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Wednesday, 20 November, 2024
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मणिपुर में कांग्रेस के लोकसभा कैंडीडेट बिमोल आइकोजाम बोले- CAA से अलग करके NRC का विरोध नहीं करेगी कांग्रेस

जेएनयू के स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज के एक एसोसिएट प्रोफेसर, अकोइजाम ने कहा कि कुकी और मैतेई दोनों को एक-दूसरे की वास्तविक चिंताओं को समझना चाहिए.

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इम्फाल: इनर मणिपुर संसदीय क्षेत्र से पार्टी के लोकसभा उम्मीदवार ए. बिमोल अकोइजाम ने दिप्रिंट को शुक्रवार को बताया कि अगर राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) से अलग कर दिया जाए तो कांग्रेस मणिपुर में इसे लागू करने का विरोध नहीं करेगी.

अकोइजाम का बयान ऐसे समय में आया है जब मणिपुर में एनआरसी लागू करने के सवाल पर बीजेपी, कांग्रेस को घेरने की कोशिश कर रही है. बता दें कि 11 महीने बाद भी मणिपुर में जातीय संघर्ष थमने का नाम नहीं ले रहा है.

दिप्रिंट को दिए एक साक्षात्कार में, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज के एसोसिएट प्रोफेसर अकोइजाम ने कहा कि एनआरसी पर, कांग्रेस आलाकमान, खासकर राहुल गांधी की आपत्तियां, इसे सीएए से जोड़ने को लेकर हैं.

अकोइजाम ने कहा, “अगर एनआरसी की बात है, तो मुझे नहीं लगता कि किसी को इसमें कोई समस्या होगी. इसीलिए कांग्रेस पार्टी ने 2003 में इसका समर्थन किया था. राज्य इकाई ने इस पर प्रस्तावों का समर्थन (विधानसभा) किया है. लोग जानबूझकर यह धारणा बनाने की कोशिश कर रहे हैं (कि कांग्रेस एनआरसी के खिलाफ है),”

अगस्त 2022 में, मणिपुर विधानसभा ने अवैध अप्रवासियों की पहचान करने और उन्हें निर्वासित करने के लिए एनआरसी लागू करने की मांग करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया. पिछले महीने, विधानसभा ने पिछले प्रस्ताव की पुष्टि करते हुए एक और प्रस्ताव पारित किया.

लेकिन, प्रस्ताव पारित होने से पहले ही कांग्रेस के पांच विधायकों ने वॉक आउट कर दिया, जिसके बाद भाजपा ने दावा किया कि कांग्रेस एनआरसी के खिलाफ है. बीजेपी विधायक राजकुमार इमो सिंह ने इस मामले को लेकर कांग्रेस पर हमला बोला.

कांग्रेस की राज्य इकाई ने स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि उसके विधायकों ने इसलिए नहीं वॉक आउट किया था क्योंकि वे एनआरसी का विरोध कर रहे थे बल्कि उन्होंने इसलिए वॉक आउट किया था क्योंकि स्पीकर ने एनआरसी पर व्यापक चर्चा करवाने से इनकार कर दिया था.

पूरे प्रकरण ने एक बार फिर एनआरसी का सपोर्ट और सीएए का विरोध करने वाले पूर्वोत्तर के स्थानीय समुदायों दोनों का विरोध करने वाले मुसलमानों के बीच संतुलन बैठाने की कांग्रेस की परेशानियों को उजागर कर दिया है.

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने 16 दिसंबर, 2019 को ‘एक्स’ (तब के ट्विटर) पर पोस्ट किया था, “सीएए और एनआरसी भारत पर फासीवादियों द्वारा बड़े पैमाने पर फैलाए गए ध्रुवीकरण के हथियार हैं.”

अकोइजाम ने दिप्रिंट को बताया कि दरअसल, कांग्रेस ने 2003 में एनआरसी का समर्थन किया था, जब इसे भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार द्वारा लाए गए सीएए के हिस्से के रूप में पेश किया गया था. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि “अवैध अप्रवासियों के इस मुद्दे को हल करने की जरूरत है और यह पता लगाने की जरूरत है कि कौन नागरिक है और कौन नागरिक नहीं है”.

हालांकि, अकोइजाम, जिनकी आइडेंटिटी पॉलिटिक्स और संघर्ष में विशेषज्ञता है, ने कहा कि लोगों को एनआरसी लागू करने से असम जैसे राज्यों में उत्पन्न होने वाली जटिलताओं के प्रति भी सावधान रहने की जरूरत है, जहां इस बात पर कोई अस्पष्टता नहीं है कि अवैध अप्रवासी के रूप में पहचान किए गए लोगों के साथ कैसे व्यवहार किया जाए.

“इसके अंतर्राष्ट्रीय आयाम हैं. एक बार जब आप इन लोगों की पहचान कर लेंगे, तो आप उनके साथ कैसा व्यवहार करना चाहेंगे? क्या आप सचमुच उन्हें दूसरे देशों में भेज सकते हैं? इन मुद्दों के प्रति जागरूक रहना चाहिए. लेकिन निश्चित रूप से अवैध अप्रवासियों की जांच करने और यह अंतर करने की ज़रूरत है कि कौन नागरिक है और कौन नहीं, इसलिए एनआरसी को लेकर मेरी स्थिति बहुत स्पष्ट है.

अकोइजाम ने कहा कि वह सीएए के संबंध में कांग्रेस आलाकमान की चिंताओं से भी इत्तेफाक रखते हैं क्योंकि “यह संदेह है कि इससे एक विशेष समुदाय को उत्पीड़न का सामना करना पड़ सकता है”.

इसके अलावा, पूर्वोत्तर के लोग सीएए द्वारा एनआरसी के तहत बांग्लादेशी हिंदुओं के रूप में पहचाने गए लोगों को भारत में बसने की पेशकश की गुंजाइश को लेकर भी चिंतित हैं. “यह देश के किसी भी अन्य स्थान की तुलना में भारत के पूर्वोत्तर को कहीं अधिक प्रभावित करने वाला है.”

एनआरसी के अलावा, मैतेई नागरिक समाज समूहों की मांग है कि समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा दिया जाए, यह भी मणिपुर में चुनाव से पहले एक प्रमुख चर्चा का मुद्दा बनकर उभरा है.

इस मांग पर नए सिरे से जोर देना महत्वपूर्ण है क्योंकि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि मणिपुर उच्च न्यायालय के “जल्दबाजी में दिए गए” आदेश ने राज्य सरकार को मैतेई को एसटी मानने का निर्देश दिया था, जिसने हिंसा भड़काने के लिए चिंगारी के रूप में काम किया था. इस साल फरवरी में, उच्च न्यायालय ने विवादास्पद हिस्से को हटाते हुए आदेश को संशोधित किया.

अकोइजाम ने कहा कि यह मांग अनिवार्य रूप से उनके “अस्तित्व संबंधी खतरे” के संबंध में मैतेई की “वैध चिंता” से उत्पन्न हो रही है. कांग्रेस उम्मीदवार ने कहा, मैतेई लोगों को लगता है कि एसटी का दर्जा इस संबंध में एक संवैधानिक सुरक्षा के रूप में काम करेगा.

अकोइजाम ने कहा, “लेकिन मैं इस स्थिति के बारे में बहुत कठोर नहीं होऊंगा और कहूंगा कि मुझे इसकी परवाह नहीं है कि मेरे अन्य साथी इसके बारे में क्या महसूस करते हैं.” उन्होंने आदिवासी कुकी समुदाय, जो मैतेई को एसटी स्टेटस दिए जाने का विरोध करता है, को भी बातचीत के जरिए शामिल करने की हिमायत की. “आप यह उन पर थोप नहीं सकते”

अकोइजाम ने कहा, “हमें उनसे बात करने और उन्हें मनाने की जरूरत है, और उन्हें साथी नागरिकों के रूप में मैतेई समुदाय की वास्तविक चिंताओं को समझने की भी जरूरत है और हो सकता है कि उनकी (कुकी) कुछ चिंताएं तथ्यात्मक रूप से सही न हों.” तो ऐसी स्थिति नागालैंड का मॉडल एक विकल्प हो सकता है जिसमें जहां जनजातियों को एडवॉन्स्ड और पिछड़े के रूप में वर्गीकृत किया गया.

यह कहते हुए कि मणिपुर में राज्य का अधिकार ख़तरे में आ गया है, अकोइजाम ने कहा कि शांति बहाल करने के लिए, यह जरूरी है कि “समाज के सभी वर्गों के साथ न्याय किया जाना चाहिए”.

उन्होंने कहा, “ऐसा नहीं है कि न्याय के साथ शांति नहीं हो सकती. मैतेई लोगों को भी कष्ट सहना पड़ा है, बहुत अन्याय हुआ है,”

मणिपुर में 19 और 26 अप्रैल को मतदान होगा. इनर मणिपुर सीट, जिस पर पहले चरण में चुनाव होना है, वर्तमान में भाजपा सांसद और केंद्रीय मंत्री रंजन कुमार राजकुमार के पास है. अकोईजाम का मुकाबला भाजपा के थौनाओजम बसंत कुमार सिंह से है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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