राहुल गांधी, ‘हैं, थे और पार्टी के अध्यक्ष बने रहेंगे.’ इस तरह की लाईन का एक ही संदेश है कि इतनी बड़ी हार से भी कोई सीख नहीं ली गई. इस परिवार के बिना जीवित रहने के बारे में पार्टी सोच भी नहीं सकती, जबकि उसकी साख तेज़ी से गिरती जा रही है.
सरकार को लेटरल एंट्री से नौकरशाही को नहीं भरना चाहिए, पहले देख तो लें कि ये काम कर रहा है या नहीं
जब मोदी सरकार पहली बार लेटरल एंट्री के ज़रिए नौकरशाही में 9 लोगों को लाई, तो इसे एक पायलट योजना की तरह लिया गया. पर अब ये देखे बिना कि इस तरह लाए गए अधिकारी काम कर पा रहे हैं, सरकार ऐेसे लोगों की भर्ती करती जा रही है. नौकरशाही को हिलाना ज़रूरी है , पर इस नई राह पर धीरे-धीरे और पारदर्शी तरीकें से कदम उठाया जाना चाहिए.