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Sunday, 17 November, 2024
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सुब्रमण्यम स्वामी का प्रभाव, बदलता गोल पोस्ट — BJP के राष्ट्रीय सम्मेलन के 7 निष्कर्ष

दो दिवसीय सम्मेलन के संकल्पों और भाषणों में 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा की अभियान रणनीति के तीन आयाम-मोदी, राम और राहुल गांधी शामिल थे.

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पिछले रविवार को संपन्न हुए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दो दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन में आपको सबकुछ सुना-सुना, देखा-देखा सा लगा होगा : एक के बाद एक नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा के गीत गा रहे थे. प्रस्तावों में उनका गुणगान था. 11 पेज के राजनीतिक प्रस्ताव में 84 बार पीएम का नाम आया. मोदी-मोदी के नारे पूरे अधिवेशन में गूंजते रहे. तीन प्रस्तावों में से एक में पांच भारत रत्न पुरस्कार विजेताओं पर एक पैराग्राफ था. इसमें पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के योगदान को “आपातकाल के खिलाफ लोकतंत्र के लिए एक सेनानी” के रूप में उद्धृत किया गया, लेकिन राम जन्मभूमि आंदोलन में उनकी भूमिका का कोई उल्लेख नहीं किया गया. अभी के बीजेपी के परिप्रेक्ष्य में इसका कारण समझना मुश्किल नहीं है.

सात मुख्य निष्कर्ष

राष्ट्रीय सम्मेलन में दिए गए भाषणों और पारित प्रस्तावों से मोटे तौर पर सात निष्कर्ष निकलते हैं.

सबसे पहले बात आती है कि कैसे भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने शक्तिशाली आलाकमान को झुका दिया. उन्होंने “आंतरिक पार्टी चुनावों की कमी को वैधानिक और संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन बताते हुए” और पार्टी संविधान के उल्लंघन में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के कार्यकाल के विस्तार पर पार्टी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की धमकी दी थी. उन्होंने इस बारे में चुनाव आयोग को लिखा था और 6 फरवरी 2023 को नड्डा को भी पत्र लिखकर इसकी जानकारी दी थी.

भाजपा अध्यक्ष के रूप में नड्डा का तीन साल का कार्यकाल जनवरी 2023 में समाप्त हो गया था, लेकिन लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र इसे जून 2024 तक बढ़ा दिया गया. पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने इस आशय के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी थी. रविवार को, भाजपा के राष्ट्रीय सम्मेलन ने पार्टी संविधान में संशोधन किया, जिससे संसदीय बोर्ड को आपातकालीन स्थितियों में अध्यक्ष के कार्यकाल और विस्तार सहित फैसले लेने के लिए अधिकृत किया गया.

दूसरा, सम्मेलन के प्रस्तावों और भाषणों में 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा की अभियान रणनीति के तीन आयामों — मोदी, राम और राहुल गांधी पर प्रकाश डाला गया.

तीन संकल्प थे: विकसित भारत, मोदी की गारंटी; भाजपा-देश की आशा, विपक्ष की हताशा और राम मंदिर. लोकसभा चुनाव से पहले जनवरी 2019 में इसी तरह की कवायद में भाजपा की राष्ट्रीय परिषद ने गरीबों और कृषि के कल्याण पर दो प्रस्ताव पारित किए थे. भाजपा की रणनीति में बदलाव स्पष्ट है: मोदी और कृषि से लेकर मोदी और राम तक.

तीसरे, नए प्रस्ताव में एक और बदलाव का संकेत था — पिछले 70 साल में कांग्रेस सरकारों की गलतियों को दूर करने के भाजपा के दावों से हटकर लोगों को एक नए युग या कालचक्र में ले जाने की बात की गई, जिसमें सांस्कृतिक पुनर्जागरण और सभ्यतागत गौरव सांसारिक चिंताओं से ऊपर रखने की कोशिश की गई.

अयोध्या मंदिर में राम लला की प्रतिष्ठा का दिन — 22 जनवरी 2024 — “भारत की आध्यात्मिक चेतना का पुनर्जागरण और महान भारत की वापसी की यात्रा की शुरुआत” था. राम मंदिर पर प्रस्ताव में कहा गया, “यह एक नए कालचक्र की शुरुआत के साथ अगले एक हज़ार साल के लिए भारत में रामराज्य की स्थापना का प्रतीक है.” विकसित भारत, मोदी की गारंटी पर संकल्प में कहा गया, “अब से एक सहस्राब्दी बाद भी लोग माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में इस कालातीत युग पर उत्साह के साथ चर्चा करना जारी रखेंगे.”

अब से एक सहस्राब्दी! क्यों नहीं? यही भाजपा के संकल्प का सार है. और जब कोई दशकों और यहां तक कि एक सहस्राब्दी के संदर्भ में बात करता है, तो अस्थायी उपलब्धियों के लिए दो-तीन साल का अंतर सच में मायने नहीं रखता. संकल्प में यह भी कहा गया कि भारत 2027 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाएगा. दिसंबर 2023 में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि यह 2025 के अंत तक होगा. जनवरी 2024 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि यह FY28 तक होगा. कुछ हफ्ते बाद, शहरी और आवास मामलों के मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा, “2028 तक (5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के लिए) इंतज़ार करने की कोई ज़रूरत नहीं है, यह 2024-25 तक होगा.”

ठीक है, आप समय-सीमा के बारे में भ्रमित हो सकते हैं, लेकिन एक नए कालचक्र में इधर-उधर कुछ साल बीजेपी के लिए मायने नहीं रखते. यह 2021 की जनगणना या लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिला आरक्षण लागू करने के लिए समय सीमा के बारे में पूछने जैसी बात है.


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2019 के बाद से बदलाव

चौथा, जब रामराज्य स्थापित होने की बात हो तो भाजपा के लिए छोटी-मोटी चीज़ें मायने नहीं रखती. कृषि पर 2019 के प्रस्ताव के एक उपशीर्षक में लिखा था: “कृषि आय को दोगुना करने का लक्ष्य”. उससे चार महीने पहले भी सितंबर 2018 में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने सरकार के “2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के संकल्प” की बात की थी. पीएम मोदी ने 8 अप्रैल 2019 को बीजेपी के घोषणापत्र में लिखा, “दो प्रतिबद्धताएं हैं जिनके बारे में मैं बेहद भावुक हूं — साल 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करना और सभी के लिए घर. आपके समर्थन से मुझे यकीन है कि दोनों पूरे होंगे.”

कोविड-19 ने जाहिर तौर पर एक बड़ा संकट खड़ा किया, लेकिन किसानों की आय दोगुनी करने के बारे में अब बिल्कुल भी बात नहीं की जाती है, जहां तक सभी के लिए आवास की बात है — जिसे प्रधानमंत्री आवास योजना के नाम से जाना जाता है — को 2024 में एक नई समय सीमा मिल गई है. संयोग से कृषि पर प्रस्ताव में स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के बारे में भी बात की गई और बताया गया कि कैसे संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार “हमारे देश के किसानों के कल्याण के इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर निष्क्रिय और शांत बैठी रही”. 2024 में: पंजाब और अन्य जगहों पर किसान स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के कार्यान्वयन सहित कई मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं. भाजपा के नए संकल्प इस मुद्दे पर चुप हैं — केवल एक पैराग्राफ में “किसानों के कल्याण” के बारे में बात की गई है, जिसमें उनकी आय दोगुनी करने या स्वामीनाथन आयोग का कोई उल्लेख नहीं है.

वंशवाद का सवाल

पांचवां, विपक्ष के ऊपर तंज मारना किसी पार्टी के लिए कोई नई बात नहीं. राष्ट्रीय सम्मेलन ने विपक्ष की हताशा पर एक अलग प्रस्ताव पारित किया. भाजपा अभी भी विपक्ष की वंशवादी राजनीति में रस ढूंढती है, चाहे उसने कितने भी वंश वादियों को इसमें शामिल कर लिया हो — नवीनतम, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण, पूर्व सीएम शंकरराव चव्हाण के बेटे हैं. अमित शाह ने राष्ट्रीय सम्मेलन में कहा, “सोनिया गांधी का लक्ष्य राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाना, शरद पवार का अपनी बेटी को मुख्यमंत्री बनाना, ममता बनर्जी का अपने भतीजे को मुख्यमंत्री बनाना, स्टालिन का अपने बेटे को मुख्यमंत्री बनाना, लालू यादव का अपने बेटे को मुख्यमंत्री बनाना, उद्धव ठाकरे का अपने बेटे को मुख्यमंत्री बनाना, मुलायम सिंह यादव ने सुनिश्चित किया कि उनका बेटा मुख्यमंत्री बने.”

भाजपा का संकल्प भी यही बात दोहराता है. जबकि पार्टी की वंशवाद को निशाना बनाना एक पुरानी रणनीति है, दिलचस्प बात यह है कि शाह ने उनमें से सात को कैसे चुना — कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, शिवसेना, समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल और द्रविड़ मुनेत्र कषगम. यह वंशवाद पर पीएम मोदी के संशोधित रुख में फिट बैठता है — वंशवाद ठीक है, लेकिन वंशवादी पार्टियां लोकतंत्र के लिए खतरा हैं.

हालांकि, इसका एक और आयाम भी है. भाजपा एक वंशवादी पार्टी नहीं है, लेकिन ऐसी पार्टियों के खिलाफ गुस्सा उसके सहयोगियों पर सवाल उठाता है — दिवंगत राम विलास पासवान के बेटे और भाई के नेतृत्व वाली लोक जनशक्ति पार्टी के दो गुट, अपना दल का अनुप्रिया पटेल का गुट, अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी और कॉनराड संगमा के नेतृत्व वाली नेशनल पीपुल्स पार्टी समेत अन्य. शाह अन्य राजवंशों जैसे शिरोमणि अकाली दल के सुखबीर बादल, तेलुगु देशम पार्टी के नारा लोकेश, वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के जगन मोहन रेड्डी और बीजू जनता दल के नवीन पटनायक के बारे में चुप रहती है. भाजपा को स्पष्ट रूप से विश्वास है कि मतदाता भाजपा के वंशवाद और विपक्षी वंशवाद को अलग-अलग देखते हैं.

छठा, इंडिया टुडे के नए मूड ऑफ द नेशन सर्वे से संकेत मिलता है कि देश इस बात पर विभाजित है कि मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने भ्रष्टाचार कम किया है या नहीं, 46 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने ‘हां’ कहा और 47 प्रतिशत ने ‘नहीं’ कहा.

लेकिन भाजपा के प्रस्तावों से पता चलता है कि वो आश्वस्त है कि विपक्षी नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप अभी भी चुनावी तौर पर काम करते हैं. वे कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) के नेताओं के खिलाफ मामलों का हवाला देते हैं, यहां तक ​​कि वे केंद्रीय जांच एजेंसियों का बचाव करते हुए पूछते हैं कि विपक्षी दलों ने उन नेताओं के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की जिनके घरों से ‘भ्रष्टाचार का पैसा’ बरामद हुआ था. भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार विपक्ष-केंद्रित जांच कराने का जोखिम उठा सकती है क्योंकि जैसा कि पीएम ने सम्मेलन में कहा था, सत्ता में उनके 23 साल “आरोप-मुक्त” या दाग-मुक्त रहे हैं.

सातवां, भाजपा के प्रस्तावों में इस बढ़ती धारणा के बारे में चिंता लगती है कि पार्टी सत्ता हथियाने के लिए चुनी हुई सरकार को गिरा रही है. पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा अनुच्छेद 356 के दुरुपयोग से लेकर चौधरी चरण सिंह, चंद्र शेखर, देवेगौड़ा और इंद्र कुमार गुजराल के नेतृत्व वाली सरकार को गिराने तक, अतीत में सरकार को अस्थिर करने के लिए कांग्रेस पर ठोस हमले से ऐसा लगता है. विपक्ष के प्रस्ताव में इस संदर्भ में आपातकाल लगाए जाने का भी हवाला दिया गया. इसमें आगे कहा गया, “ममता बनर्जी को सबसे भ्रष्ट नेता कहने वाली कांग्रेस ने उन्हें INDIA गठबंधन का हिस्सा बना लिया है.” इस संदर्भ में यह बात याद रखने वाली है कि मोदी ने 2014 में अशोक चव्हाण को “कांग्रेस का आदर्श उम्मीदवार” कहा था और एक दशक बाद उन्हें भाजपा में शामिल कर लिया. इसी तरह मोदी और अमित शाह ने 2023 में विधानसभा चुनाव से पहले मेघालय में संगमा सरकार को “सबसे भ्रष्ट” कहा था, भले ही भाजपा इसका हिस्सा थी. एनपीपी ने चुनाव जीता और भाजपा संगमा के नेतृत्व वाली सरकार में फिर से शामिल हो गई. ज़ाहिर तौर पर, जो सत्ता पक्ष नहीं कहती है कि आप विपक्ष और भाजपा के लिए एक ही नैतिक दिशा-निर्देश का उपयोग नहीं कर सकते.

(डीके सिंह दिप्रिंट के पॉलिटिकल एडिटर हैं. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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