राहुल गांधी एक बार फिर भारत यात्रा पर निकल पड़े हैं. पिछली बार उन्होंने दक्षिण में कन्या कुमारी से उत्तर में कश्मीर तक ‘भारत जोड़ो यात्रा’ की थी. इस बार उनकी यात्रा का नाम ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ है जो पूर्व में मणिपुर से शुरू होकर पश्चिम में मुंबई में समाप्त होगी. मकर संक्रांति के पवित्र एवं सांस्कृतिक पर्व पर यात्रा का शुभारंभ बहुत सार्थक है. यह पर्व विविधता में एकता का अनुपम उदाहरण है. इसे पंजाब में लोहड़ी, दक्षिण भारत में पोंगल या संक्रांति, असम में बिहू, गुजरात में उत्तरायण तो बिहार एवं उत्तर प्रदेश में मकर संक्रांति के रूप में मनाया जाता है. ये अद्भुत है कि भारत में अलग-अलग भाषाएं बोलने वाले अलग-अलग भौगोलिक परिवेश में रहने वाले लोग एक ही दिन एक पर्व को अलग-अलग नामों से मनाते हैं.
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) भारत की इस सतरंगी संस्कृति को खत्म कर एकरंगी संस्कृति लाना चाहती है, क्योंकि बहुरंगी और विविधतापूर्ण संस्कृति में शोषणकारी एजेंडे के लिए सहमति बनाना कठिन होता है.
‘भारत जोड़ो यात्रा’ की तरह और ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ का भी मकसद भारत की धार्मिक, सांस्कृतिक एवं क्षेत्रीय विविधता में एकता के सूत्रों पर भाजपा के हमलों के खिलाफ जनता में चेतना जगाना है. इस बार विविधता में एकता के साथ साथ सामाजिक, आर्थिक, एवं राजनीतिक न्याय की ज़रूरत पर विशेषरूप से बल दिया गया है.
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राजनीति सत्ता प्राप्ति का ज़रिया नहीं
धर्म का राजनीतिक इस्तेमाल करना शोषक और अन्यायी शक्तियों का हमेशा से प्रिय हथियार रहा है. भाजपा हमेशा से यही काम करती है. राम मंदिर का शिलान्यास और उद्घाटन कर यह पार्टी 2024 का लोकसभा चुनाव जीतने की योजना पर काम कर रही है. केंद्र सरकार खुल्लम-खुला बेशर्मी से बड़े पूंजीपतियों के लिए काम कर रही है जिससे समाज में गरीबी, बेरोज़गारी और गैर-बराबरी बढ़ रही है. इस ओर से जनता का ध्यान हटाने के लिए धर्म के राजनीतिक इस्तेमाल का सहारा ले रही है.
राहुल गांधी का कहना है कि राजनीति उनके लिए सत्ता प्राप्ति का ज़रिया भर नहीं है बल्कि विचारधारा के संघर्ष का साधन भी है. वे निडरता से बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की किसान, मज़दूर, छात्र, युवा और महिला विरोधी आर्थिक नीतियों और उन विनाशकारी नीतियों को छिपाने के लिए धर्म का सहारा लेने की नीतियों के खिलाफ वैचारिक संघर्ष चला रहे हैं. भाजपा -आरएसएस के हिन्दुत्ववादी कोर में धर्म का राजनीतिक इस्तेमाल करना लिखा है.
क्रोनी और एकाधिकारवादी पूंजीवादी विचारधारा के बरक्स कांग्रेस पार्टी की विचारधारा धर्म और राजनीति को एक दूसरे से अलग रखने, धर्म को व्यक्ति की निजी आस्था समझने, सभी धर्मों के बीच सद्भाव कायम करने और किसानों, मज़दूरों, छात्रों, युवाओं और महिलाओं के लिए जनकल्याणकारी नीतियां बनाना है. किसान विरोधी भाजपा सरकार की कृषि कानूनों के खिलाफ कांग्रेस पार्टी दृढ़ता से खड़ी रही जिसके परिणामस्वरूप भाजपा सरकार को कृषि कानूनों को वापस लेना पड़ा. ग्रामीण क्षेत्रों के गरीबों के कल्याण के लिए कांग्रेस पार्टी की सरकार ने मनरेगा कानून लाया जिसको भाजपा सरकार ने निष्प्रभावी बना दिया. राहुल गांधी के प्रयासों से भूमि अधिग्रहण कानून बना जिसके चलते विकास योजनाओं के लिए अधिगृहित की जा रही ज़मीनों का उचित मुआवज़ा किसानों को मिल रहा है और एक्सप्रेसवे और अन्य विकास योजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण करना भी आसान हो गया. राहुल गांधी के पास एक संतुलित दृष्टि है जो उनके प्रयास से बने भूमि अधिग्रहण कानून में दिखती है. उनकी इसी संतुलित दृष्टि से समाज का प्रभु वर्ग जो सब कुछ खुद हड़पना चाहता है और गरीबों को और गरीबी की ओर देखना चाहता है उनसे चिढ़ता है और उनके खिलाफ दिन-रात दुष्प्रचार में लगा रहता है.
‘भारत जोड़ो यात्रा’ के बाद भी राहुल गांधी लगातार समाज के निम्न तबकों के बीच, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्रों, कॉलेज की छात्राओं, सब्ज़ी विक्रेताओं, मैकेनिकों, बढ़ई, किसानों, अभ्यास करते हुए कुश्ती के खिलाड़ियों, ट्रक ड्राइवरों, रेलवे के कुलियों आदि के बीच जाकर उनकी तकलीफों को जानने में लगे हुए थे जिससे कि जब भी उनको मौका मिले वे उनके लिए कुछ अच्छा कर सकें.
उनका मानना है कि वैचारिक संघर्ष जनता के बीच पहुंच कर जनता से संवाद कर ही प्रभावशाली तरीके से चलाया जा सकता है. जनता के बीच पहुंच कर उनसे संवाद कर उनके दुख दर्द और समस्याओं को जानना समझना और फिर इनके निवारण के लिए काम करना महात्मा गांधी का बताया रास्ता है जिस पर राहुल गांधी आज चल रहे हैं.
उन्होंने पिछली यात्रा का नाम ‘भारत जोड़ो यात्रा’ था. इसके पीछे उनकी दृष्टि भाजपा की समाज को जाति, धर्म, भाषा, प्रांत और लिंग भेद में विभाजित करने और लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर करने की नीतियों से भारत की कमजोर होती हुई राष्ट्रीय एकता को बचाना था.
इस बार उन्होंने यात्रा का नाम ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ रखा है. इसके पीछे उनकी सोच यह है कि भारतीय संविधान ने प्रस्तावना में न्याय को इस तरह परिभाषित किया है कि न्याय के तीन अवयव हैं : सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक.
सामाजिक न्याय को सबसे पहले स्थान दिया गया है. इसी के अनुरूप कांग्रेस पार्टी ने फ़रवरी 2023 में रायपुर महाधिवेशन में सामाजिक न्याय प्रस्ताव पारित किया और राहुल गांधी लगातार सामाजिक न्याय के पक्ष में अपने भाषणों में बोल रहे हैं. आर्थिक न्याय के लिए भाजपा सरकार के खिलाफ उनके संघर्ष से सभी अवगत हैं.
इस संदर्भ में केवल न्याय योजना की चर्चा करना काफी होगा जिसके तहत प्रत्येक गरीब परिवार को छह हज़ार रुपये प्रत्येक महीना दिया जाएगा. जीएसटी और नोटबंदी से किस तरह छोटे व्यापारी बर्बाद हुए हैं, बेरोज़गारी से किस तरह भारत का युवा बर्बाद हो रहा है, इस बारे में वे लगातार लोगों को सचेत कर रहे हैं. उनके निर्देश से कांग्रेस की राज्य सरकारों ने अपने यहां पुरानी पेंशन योजना फिर से लागू किया है.
डेमोक्रेसी, सेक्यूलरिज्म, सोशल जस्टिस और सोशलिज्म
राजनीतिक न्याय के तहत राहुल गांधी लोकतांत्रिक संस्थाएं जैसे संसद, न्यायपालिका, चुनाव आयोग, मीडिया और राज्यों के अधिकारों को कमज़ोर करने और सामाजिक राजनीतिक कार्यकर्ताओं और स्वतंत्र पत्रकारों को उत्पीड़ित करने की भाजपा की नीतियों के खिलाफ लगातार संघर्ष कर रहे हैं. वे खुद उत्पीड़न का शिकार हो रहे हैं. उनकी और कांग्रेस पार्टी की सोच है कि भाजपा की विनाशकारी सामाजिक-आर्थिक नीतियों से देश को बचाने के लिए ज़रूरी है कि भारत की जनता को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय मिले. भारतीय संविधान की प्रस्तावना के अनुरूप राहुल गांधी लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, सामाजिक न्याय, समाजवाद को मज़बूत कर रहे हैं. इनके लिए अंग्रेज़ी शब्दों, डेमोक्रेसी, सेक्यूलरिज्म, सोशल जस्टिस और सोशलिज्म के पहले अक्षर को लें तो यह संक्षेप में डी एस 3 बनता है.
राहुल गांधी राज्यों के अधिकारों यानी संघवाद के पक्ष में मज़बूती से खड़े हैं. वे जानते हैं कि भारत की राष्ट्रीय एकता को मज़बूती देने के लिए राज्यों के संविधान प्रदत्त अधिकारों के प्रति संवेदनशील होना होगा. अगर हम डी एस 3 के साथ संघवाद को जोड़ दें तो डी एस 4 बनता है. राहुल गांधी डी एस 4 को ज़मीन पर उतारने की कोशिश कर रहे हैं. अगर एक ओर भाजपा की क्रोनी पूंजीवाद परस्त धर्म और राजनीति का घालमेल करने की विध्वंसकारी नीतियां हैं तो दूसरी ओर कांग्रेस और राहुल गांधी की डी एस 4 की निर्माणकारी, सकारात्मक, रचनात्मक और जनकल्याणकारी नीतियां है.
भारत धार्मिक, भाषाई और सांस्कृतिक विविधताओं से भरा देश है. भारत की राष्ट्रीय एकता और अखंडता इस बात पर निर्भर करती है कि भारत की राजनीतिक शक्तियां विविधताओं के विभिन्न आयामों के बीच एकता और संतुलन कायम रख पाती हैं या नहीं.
भारत विविधताओं के साथ -साथ सामाजिक आर्थिक विभाजनों और विषमताओं का भी देश है. विविधताओं के विभिन्न आयामों के बीच एकता और संतुलन को सामाजिक – आर्थिक विभाजनों और विषमताओं से चुनौती मिलती है. न्याय की संपूर्ण अवधारणा को ज़मीन पर उतार कर ही विविधताओं में एकता को सम्भाला जा सकता है. अन्यथा विविधताओं के अलग-अलग अवयवों के बीच विभाजन और विषमता बढ़ेगी और राष्ट्रीय एकता और अखंडता को आघात पहुंचेगा.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की राजनीति का ऐतिहासिक उद्देश्य न केवल ब्रिटिश साम्राज्यवाद से भारत को मुक्ति दिलाना था, बल्कि भारत की बहुरंगी संस्कृति की रक्षा करना भी रहा है. कांग्रेस यह समझती है कि यह केवल और केवल डी एस 4 के रास्ते पर चलकर हो सकता है. यही कारण है कि कांग्रेस पार्टी की इंदिरा गांधी की सरकार ने संविधान संशोधन करके प्रस्तावना में समाजवाद और सेक्यूलरिज्म शब्द को जोड़ा है.
भाजपा-आरएसएस की मोदी सरकार की आर्थिक सामाजिक नीतियों के चलते भारत की विविधता तनावग्रस्त हो गई है. भारत देश की विविधताओं को संभालने, बहुरंगी संस्कृति की रक्षा करने और जनता के सभी हिस्सों को न्याय दिलाने के लिए राहुल गांधी एक बार फिर से यात्रा पर निकल पड़े हैं.
(लेखक अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सचिव सचिव हैं. उनका एक्स हैंडल @chandanjnu है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं)
(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)
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