गुरुग्राम: गड्ढे भी जिन्दगी बचाने वाले हो सकते हैं. कम से कम 80 वर्षीय दर्शन सिंह के परिवार तो यही मानेगा. हरियाणा के करनाल जिले के निसिंग में रहने वाले दर्शन सिंह को पंजाब के पटियाला में डॉक्टरों द्वारा “गलती से” मृत घोषित कर दिया गया था लेकिन “पॉटहोल से लगने वाले एक झटके” ने उन्हें वापस जिंदा कर दिया.
जबकि भारत में दुर्घटना को अंजाम देने वाले पॉटहोल्स के बारे में काफी कुछ लिखा गया है, कभी-कभी जानलेवा भी, लेकिन सिंह के मामले में यह पॉजिटिव रिजल्ट लेकर आया.
सिंह के परिवार के अनुसार, उन्हें काफी समय से हृदय संबंधी बीमारी है, जिसके इलाज के लिए उनके बड़े बेटे गुरदेव सिंह उन्हें पटियाला के एक निजी अस्पताल में ले गए थे. गुरदेव सिंह पटियाला के कॉलेज में लेक्चरर हैं. गुरुवार की सुबह, डॉक्टरों ने गुरदेव से बताया कि उनके पिता की दिल की धड़कन नहीं चल रही है और उनकी “मौत” हो चुकी है.
यह खबर निसिंग में तेजी से फैल गई, जहां सिंह का परिवार काफी जाना-मान और धनी लोगों में से एक है. वहां के एक निवासी करमजीत सिंह विर्क ने कहा, “दर्शन सिंह कॉलोनी जहां परिवार रहता है, का नाम उन्हीं के नाम पर रखा गया है.”
उनकी मृत्यु पर दुख जताने और उनके अंतिम संस्कार की तैयारी के लिए रिश्तेदार और दोस्त उनके घर पर इकट्ठा होने लगे. सिंह के छोटे बेटे और निसिंग नगर समिति के पूर्व उपाध्यक्ष बलदेव सिंह अपने पिता के शव को वापस लाने के लिए पटियाला पहुंचे.
लेकिन ऐसा लगता है कि नियति को कुछ और ही मंजूर था.
अपने पिता को ”बापू जी” कहकर संबोधित करने वाले बलदेव सिंह ने दिप्रिंट को फ्राइडे को बताया, “जब एम्बुलेंस कैथल में ढांड के पास थी, तो उसके टायर ऊबड़-खाबड़ सड़क पर एक बड़े गड्ढे से टकरा गए, जिससे वाहन को झटका लगा. अचानक, मैंने अपने पिता के हाथ में हलचल देखी. जब मैंने चेक किया तो पाया कि उनका दिल धड़क रहा था.”
बलदेव ने कहा: “हम उन्हें सीधे निसिंग के एक निजी अस्पताल में ले गए, जहां डॉक्टरों ने हमें बेहतर इलाज के लिए उन्हें करनाल स्थानांतरित करने के लिए कहा. हम उन्हें करनाल के रावल अस्पताल ले गए जहां अभी उनका इलाज चल रहा है.”
रावल अस्पताल में सिंह का इलाज कर रहे डॉ. नेत्र पाल ने शुक्रवार को उनके जीवित होने की दिप्रिंट से पुष्टि की.
हरियाणा के फतेहाबाद के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ विनी सिंगला के अनुसार, सिंह का मामला एक दुर्लभ मामला है. उन्होंने कहा, “इस विशेष मामले पर तब तक टिप्पणी करना मुश्किल होगा जब तक कोई यह नहीं जानता कि मरीज को मृत घोषित करने वाले डॉक्टर ने कैसे निष्कर्ष निकाला कि मरीज मर गया था.”
जिंदा या मुर्दा?
सांगला ने कहा, “आमतौर पर, जब डॉक्टर किसी मरीज को मृत घोषित करते हैं, तो वे सबसे पहले आंख की पुतलियों को देखते हैं. यदि पुतलियां फैली हुई हैं, तो इसका मतलब है कि रोगी का मस्तिष्क मृत हो चुका है. इसके अलावा, डॉक्टर हृदय की भी जांच करते हैं कि वह चल रहा है या नहीं. हृदय गति रुक गई है या नहीं इसका पता लगाने के लिए अधिकांश डॉक्टर ईसीजी करते हैं,”
डॉक्टर ने कहा: “अगर हृदय काम करना बंद कर चुका होता है तो उस मामले में ईसीजी एक सीधी रेखा दिखाता है.. हृदय गति रुकने के बाद सांसे भी चलना बंद हो जाती हैं. और अगर मस्तिष्क को कुछ सेकंड के लिए ऑक्सीजन नहीं मिले, तो मरीज का फिर से जिंदा होना लगभग असंभव हो जाएगा.
फिलहाल, कम से कम ऐसा लगता है कि सिंह ने सभी मुश्किल पर जीत हासिल कर ली है.
पाल ने कहा, “मैं यह नहीं कह सकता कि वह अभी भी ठीक हैं. लेकिन हां, वह बच गए हैं और उनका इलाज चल रहा है.’ शुरुआत में करीब 18 घंटे पहले जब उन्हें अस्पताल लाया गया था तो उनकी हालत को देखते हुए उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था. लेकिन उसकी नाड़ी चल रही थी और वह जीवित थे. अब, उन्हें वेंटिलेटर की ज़रूरत नहीं है.”
इस बीच, बलदेव ने अपने पिता के जीवित रहने को ‘चमत्कार’ बताया, लेकिन साथ ही कहा कि परिवार तभी खुश होगा जब वह फिर से बात करना शुरू करेंगे. उन्होंने कहा, “बापू जी भगवान की कृपा से बच गए हैं.”
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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