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Friday, 22 November, 2024
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एवरेस्ट पर्यटन हर वर्ष ‘समस्याओं के पहाड़’ की वजह बन रहा है

नेपाल सरकार वास्तव में यह समझना ही नहीं चाहती है कि हिमालय की चोटियों पर क्या हो रहा है. पहाड़ी ढलान को टिकाऊ बनाने के लिए और अधिक प्रयास की जरूरत है.

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एवरेस्ट पर चढ़ाई का मौसम चल रहा है. कुछ हफ़्ते के लिए हर बसंत ऋतु में मौसम में सुधार होता है. जिससे पर्वतारोहियों को दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत को छूने का मौका मिलता है. पर्वतारोहियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए नेपाल सरकार ने एवरेस्ट पर चढ़ने की चुनौती लेने के लिए आने वाले सैकड़ों लोगों को रेग्युलेट करने के लिए नए कानून पारित किए हैं.

लेकिन नई नीतियों से यह पता चलता है कि काठमांडू में अधिकारियों को वास्तव में समझ में नहीं आ रहा है कि हिमालय की चोटियों में क्या हो रहा है और पहाड़ी ढाल को बेहतर बनाने के लिए और काफी कुछ किया जाना चाहिए. पहला नया नियम कि जब वह एवरेस्ट से नीचे उतर रहा हो तो पर्वतारोही को कम से कम 8 किलो का कचरा वापस लाना चाहिए. यह हैरान कर रहा है और यह दूसरी नीति के विपरीत है, जो इस वर्ष पर्वतारोहण परमिट शुल्क को कम कर रहा है ताकि अधिक पर्वतारोहियों को आकर्षित किया जा सके.

इससे पता चलता है कि नेपाली सरकार केवल नीतियों को पारित करना जानती है लेकिन उन्हें लागू नहीं करती. यह सुनिश्चित करने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किए गए हैं कि उन्हें लागू किया जाए या निगरानी की जाए.

ज्यादातर नियुक्त किए गए सरकारी प्रतिनिधि संपर्क अधिकारी के रूप में एवरेस्ट क्षेत्र की यात्रा करते हैं. वे कभी भी बेस कैंप में नहीं जाते हैं. कठोर वातावरण में सामंजस्य स्थापित करने में असफल होते हैं. उनके पास बहुत कम जानकारी होती है कि उनकी नीतियों को लागू किया जा रहा है या नहीं. इससे यह सवाल उठता है: सरकार को कैसे पता चलेगा कि प्रत्येक पर्वतारोही 8 किलो सामान एवरेस्ट से वापस ला रहा हैं जो वास्तव में एकत्र किये गए थे?


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नेपाल में पर्वतारोहण अब एक व्यावसायिक प्रबंध है. जिसमें मुख्य रूप से दो मुख्य लक्ष्य शामिल हैं. सरकार के लिए लाभ और प्रतिभागियों को बढ़ावा देना है. पर्वतारोहण रोमांच की सच्ची भावना लंबे समय से गायब है. यही कारण है कि सरकार ने अधिक पर्वतारोहियों को प्रोत्साहित करने के लिए क्लाइम्बिंग परमिट शुल्क को कम कर दिया है, जो एवरेस्ट फ्रेंचाइजी में खरीद सकते हैं.

क्लाइम्बिंग अब बहुत भीड़ वाले स्थान में की जाती है. हाल के वर्षों में पर्वतारोहियों की संख्या में नाटकीय रूप से वृद्धि हुई है . 2009 से अब तक लगभग 2,000 लोग पहाड़ पर चढ़े हैं. पिछले साल हमने पर्वतारोहियों की एक लंबी कतार देखी (एवरेस्ट बेस कैंप के ठीक ऊपर) जो अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे. इसमें शामिल सभी दलों के लिए एक खतरनाक स्थिति पैदा होती है.

पर्वतारोही की संख्या में यह उछाल पहाड़ के ऊपर अब अच्छी तरह से स्थापित मार्गों का एक परिणाम है- जो निश्चित रस्सियों के साथ पंक्तिबद्ध, मौसम की भविष्यवाणी में सटीकता, बेहतर क्लाइम्बिंग गियर और गाइड की संख्या में वृद्धि का परिणाम है.

कूड़ा फेंकने का मैदान

अगर हम पर्वतारोही को सुरक्षा और उच्च गुणवत्ता वाला माहौल सुनिश्चित करना चाहते हैं तो कचरे के प्रबंधन पर सावधानी से विचार करने की आवश्यकता है. हम पहाड़ों को कूड़ा फेंकने का मैदान नहीं मान सकते. यह अनुमान है कि एवरेस्ट बेस कैंप के बाहर लगभग 50 टन पर्वतारोहण से कचरा जमा हो गया है.

इस कचरे में ज्यादातर ऑक्सीजन सिलेंडर, खाने के डिब्बे, फटे टेंट और रस्सियां, मानव अपशिष्ट और यहां तक ​​कि शव भी होते हैं. यहां तक कि समय-समय पर सफाई के बावजूद कचरे की मात्रा जल्दी कम नहीं होने जा रही है. क्योंकि पहले की तुलना में ज्यादा लोग एवरेस्ट पर चढ़ रहे हैं.

एवरेस्ट बेस कैंप एक टेंट सिटी की तरह दिखता है. यह देखा गया कि आज अधिकांश पर्वतारोहियों के पास पर्वतारोहण कौशल का स्तर उतना नहीं है, जो एक दशक पहले पहाड़ों पर जाने वाले लोगो में पाया जाता है. पहाड़ पर वर्ष दर वर्ष रिकॉर्ड भीड़ बढ़ रही है, ऐसा लगता है पैसे और समय के साथ कोई भी पर्वत को पार कर सकता है. लेकिन, पर्वतारोहियों के लिए परमिट शुल्क बढ़ाना संख्या को सीमित करने का एक तरीका है.

इसके अलावा, पर्यावरण संपर्क अधिकारी को स्थानीय समुदाय में से किसी को नियुक्त करने की आवश्यकता होती है. उन्हें उच्च पर्वतीय वातावरण से परिचित होना चाहिए और समुदाय को समय-समय पर पहाड़ पर ऊपर और नीचे दोनों जगह सफाई के लिए प्रेरित करना चाहिए. परमिट शुल्क के एक हिस्से को विशेष रूप से उस समय-समय पर सफाई के लिए समर्पित करने की आवश्यकता है जो मौसमी स्थानीय रोजगार को भी बढ़ावा देगा.

पर्यावरण की रक्षा में शेरपा लोगों को भी शामिल करने की आवश्यकता है. पर्यावरण का एनजीओ, सागरमाथा प्रदूषण नियंत्रण समिति नामचे बाजार में स्थित है, जो उच्च हिमालय का प्रवेश द्वार है और ट्रैकिंग और पर्वतारोहण पर्यटन से संबंधित पर्यावरण प्रबंधन अभ्यास में सक्रिय है लेकिन वे संसाधनों की कमी के चलते सीमित हैं.


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पहाड़ पर उच्चस्तरीय पर्यावरण अभ्यास की निगरानी के लिए एक मजबूत टीम की आवश्यकता है. इसमें प्रशिक्षित पश्चिमी और स्थानीय गाइड शामिल होने चाहिए और स्थानीय पर्यटन से होने वाले मुनाफे से इनका समर्थन किया जा सकता है. नेपाल सरकार एवरेस्ट से संबंधित चढ़ाई रॉयल्टी में सालाना 3.3 मिलियन अमेरिकी डॉलर कमाती है. यहां तक ​​कि अगर उस पैसे का 5 प्रतिशत से भी कम हिस्सा शिविरों से कचरा हटाने के उद्देश्य से समर्पित किया जाये और इसके साथ ही नए रेग्युलेशन के साथ संयोजन में हर पर्वतारोही को 8 किलोग्राम कचरा (ऑक्सीजन सिलेंडर को छोड़कर) वापस लाने की आवश्यकता है, जो कि लंबे समय में बड़ा फर्क पैदा कर सकता है.

शवों को नीचे लाएं

यह विकृत लग सकता है, लेकिन यदि कोई पर्वतारोही मर जाता है. तो गाइड या अभियान दल को कानूनी रूप से उसके शरीर को वापस लाने के लिए जिम्मेदार बनाया जाना चाहिए. अगर अभियान दल ऐसी घटनाओं के खिलाफ जमा राशि को जब्त करने का फैसला करता है. तो पेशेवर रूप से प्रशिक्षित, स्थानीय खोज और बचाव दल के लिए वित्तीय प्रोत्साहन होना चाहिए, जो काम पूरा कर सके. नेपाली सरकार को तुरंत काठमांडू से संपर्क अधिकारी भेजने की प्रथा को बंद करना चाहिए और इसके बजाय इस काम को करने के लिए स्थानीय शेरपाओं (उदाहरण के लिए पूर्व गाइडस) को भर्ती करना चाहिए.

एवरेस्ट पर्यटन की जटिल समस्या को आसान बनाने के लिए एक भी समाधान नहीं है. परमिट शुल्क में वृद्धि, प्रत्येक टीम में कम पर्वतरोही, एक स्थानीय खोज और बचाव दल की स्थापना, स्थानीय (शेरपा) पर्यावरण संपर्क अधिकारियों की भर्ती, पर्यावरणीय सफाई में अधिक निवेश करना. जिसमें अंतरराष्ट्रीय और स्थानीय अभियान दल शामिल हों. जो लोग स्थापित नियमों का पालन और उच्च पर्यावरण मानकों को नहीं अपनाते हैं उन्हें भी कुछ वर्षों के लिए परमिट से वंचित किया जा सकता है.

एक बात निश्चित है: सरकार वास्तव में यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध नहीं है कि उसकी पर्वतारोहण चोटियां प्रदूषित न हों. काठमांडू में बैठे सरकारी अधिकारी (ज्यादातर लोगों के पास इन दुर्गम स्थानों पर जाने के लिए कोई सुराग नहीं है) जमीन पर किए गए कार्यों से बहुत दूर हैं. मैं इन मुद्दों पर किये गए उनके कार्यों से बहुत आशावादी नहीं हूं.

( संजय नेपाल वाटरलू विश्वविद्यालय में पर्यावरण प्रबंधन के एसोसिएट प्रोफेसर हैं.)

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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