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Thursday, 19 December, 2024
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RSS का कहना है: जाति जनगणना समाज के ‘उत्थान’ के लिए होना चाहिए, इससे ‘सामाजिक सद्भाव’ नहीं टूटना चाहिए

आरएसएस के सुनील आंबेकर की टिप्पणी एक अन्य पदाधिकारी द्वारा जाति जनगणना का विरोध करने के एक दिन बाद आई है. कांग्रेस का दावा है कि आरएसएस और बीजेपी जनगणना से 'दलितों, पिछड़े वर्गों को समान अधिकार' देने से डरते हैं.

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नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने गुरुवार को कहा कि जाति-आधारित जनगणना का उपयोग समाज के समूचे उत्थान के लिए किया जाना चाहिए और ऐसा करते समय, इससे सभी संबंधित लोगों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किसी भी कारण से सामाजिक सद्भाव और एकता भंग न हो. इससे ऐसा लगता है कि आरएसएस का यह बयान जाति जनगणना का विरोध करने वाले अपने एक पदाधिकारी की टिप्पणी से खुद को दूर करने का प्रयास है.

जबकि आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर द्वारा जारी बयान में जाति जनगणना के लिए संघ के योग्य समर्थन का सुझाव दिया गया था, आरएसएस पदाधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि इसका अर्थ यह नहीं लगाया जाना चाहिए कि संघ जाति जनगणना चाहता है.

भाजपा और शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना के मंत्रियों और विधायकों ने नागपुर में इस सप्ताह की शुरुआत में आरएसएस मुख्यालय और के.बी. हेडगेवार और एम.एस. गोलवलकर – दोनों आरएसएस नेता – के स्मारकों का दौरा किया. मौके पर पत्रकारों से बात करते हुए, आरएसएस पदाधिकारी श्रीधर गाडगे ने कहा कि जाति जनगणना, जिसकी विपक्षी कांग्रेस मांग कर रही है, कुछ लोगों को राजनीतिक लाभ पहुंचा सकती है क्योंकि यह कुछ जातियों की आबादी के बारे में डेटा जरूर देगी, लेकिन “यह सामाजिक और राष्ट्रीय एकता के लिए अच्छा नही होगा.”

आंबेकर ने कहा कि संघ लगातार किसी भी भेदभाव और असमानता से मुक्त, सद्भाव और सामाजिक न्याय पर आधारित हिंदू समाज के लिए काम कर रहा है.

आंबेकर ने कहा, “यह सच है कि कई ऐतिहासिक कारणों से समाज के कई घटक आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ गए. उनके विकास, उत्थान और सशक्तिकरण की दृष्टि से विभिन्न सरकारें समय-समय पर विभिन्न योजनाएं और प्रावधान करती हैं, जिसका संघ पूरा समर्थन करता है. हाल के दिनों में जाति-आधारित जनगणना पर एक बहस फिर से शुरू हो गई है. हमारा विचार है कि इसका उपयोग समाज के समग्र उत्थान के लिए किया जाना चाहिए. ऐसा करते समय, सभी संबंधित पक्षों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किसी भी कारण से सामाजिक सद्भाव और एकता टूटे नहीं.”


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कांग्रेस का कहना है, ‘आरएसएस और बीजेपी डरे हुए हैं.’

एक्स पर गुरुवार को एक पोस्ट में कांग्रेस ने लिखा: “भाजपा को चलाने वाला आरएसएस हमेशा से जाति जनगणना के खिलाफ रहा है. उनका रुख बिल्कुल स्पष्ट है. दलितों और पिछड़ों को उनका हक किसी भी कीमत पर नहीं मिलना चाहिए. इसी घृणित सोच के कारण 100 वर्षों में एक भी आरएसएस अध्यक्ष दलित या पिछड़े वर्ग से नहीं हुआ. देश में सामाजिक और आर्थिक असमानता को दूर करने के लिए जाति जनगणना बहुत महत्वपूर्ण है. इससे शोषित, वंचित, दलित और पिछड़े वर्ग के लिए नीतियां बनाई जा सकेंगी, ताकि उन्हें समाज में समान अधिकार मिल सकें. आरएसएस और बीजेपी इसी बात से डरते हैं.”

नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट से बात करते हुए, आरएसएस के एक पदाधिकारी ने कहा कि लोकसभा चुनाव से पहले, जब विपक्ष इस मुद्दे को उठा रहा है और राजनीतिक रूप से लाभ उठाना चाहता है, तो गाडगे जैसे व्यक्तिगत आरएसएस पदाधिकारियों द्वारा जारी किए गए ऐसे बयान “हानिकारक” हो सकते हैं.

आरएसएस के एक पदाधिकारी ने दिप्रिंट से कहा, “जाति-आधारित जनगणना होनी है या नहीं यह एक राजनीतिक मुद्दा है और हम इसमें शामिल नहीं होना चाहते हैं, खासकर जब चुनाव होने में कुछ महीने बाकी हों. आरएसएस आरक्षण के पक्ष में रहा है क्योंकि वह समाज के वंचित वर्गों को अवसर प्रदान करना चाहता है. जाति-आधारित जनगणना पूरी तरह से राजनीतिक प्रकृति की है और हिंदू समाज को विभाजित करने का एक कदम है और हम इस मुद्दे पर कोई भी टिप्पणी करने से दूर रहना चाहते हैं.”

आरएसएस सरसंघचालक मोहन भागवत ने इस साल की शुरुआत में आरक्षण की वकालत की थी और कहा था कि कोटा तब तक जारी रहना चाहिए जब तक समाज में भेदभाव है. यह बयान भागवत के पहले के रुख से हटकर था. 2015 में, उन्होंने गैर-पक्षपातपूर्ण पर्यवेक्षकों के एक पैनल द्वारा आरक्षण की समीक्षा का आह्वान किया था.

(संपादनः ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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