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Sunday, 17 November, 2024
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संसदीय पैनल की सिफारिश- ‘राज्य की सहमति’ के बिना भी खास मुद्दों पर CBI को जांच करने की शक्ति दें

दस राज्यों ने सीबीआई को दी गई सामान्य सहमति वापस ले ली है. विपक्ष शासित राज्य आरोप लगाते रहे हैं कि केंद्र राजनीतिक लाभ के लिए केंद्रीय एजेंसियों का 'दुरुपयोग' करता है.

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नई दिल्ली: अधिक से अधिक गैर-भाजपा राज्यों द्वारा सीबीआई को दी गई सामान्य सहमति वापस लेने के साथ, एक संसदीय पैनल ने सिफारिश की है कि सरकार एक “नया कानून” बनाए ताकि महत्वपूर्ण मामलों की राज्य की सहमति और हस्तक्षेप के बिना महत्त्वपूर्ण मामलों की “जांच” के लिए संघीय एजेंसी को व्यापक अधिकार दे.”

भाजपा के वरिष्ठ राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी की अध्यक्षता वाली कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय संबंधी स्थायी समिति ने अपनी कार्रवाई रिपोर्ट (एटीआर) में आगे कहा है कि सीबीआई के कामकाज में वस्तुनिष्ठता और निष्पक्षता लाने के लिए नए कानून में कुछ सुरक्षा उपाय किए जाने चाहिए ताकि राज्य भी अलग-थलग और बिल्कुल शक्तिहीन महसूस न करें.”

कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) से संबंधित अनुदान की मांग (2023-24) पर एटीआर पिछले मंगलवार को संसद में पेश किया गया था.

लोकसभा और राज्यसभा के 11 भाजपा सांसदों वाली 30 सदस्यीय समिति ने सिफारिश की है कि ‘राज्य की सहमति वाले खंड’ को केवल ऐसे मामलों में हटाया जाना चाहिए, जिन्हें राष्ट्र की सुरक्षा के लिए खतरा माना जाता है और “सीबीआई द्वारा ऐसे मामलों की जांच में किसी भी देरी से देश के नागरिकों में सामान्य असंतोष पैदा हो सकता है.”

अब तक, दस राज्यों – तमिलनाडु, मिज़ोरम, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, राजस्थान, केरल, झारखंड, पंजाब, मेघालय और तेलंगाना – ने दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (डीएसपीई) अधिनियम, 1946 की धारा 6 के तहत राज्य के उन मामलों में जांच करने के लिए सीबीआई को दी गई सामान्य सहमति वापस ले ली है.

कार्मिक विभाग; कार्मिक, पेंशन और लोक शिकायत मंत्रालय के तहत कार्य करते हुए और 1963 में स्थापित केंद्रीय जांच ब्यूरो डीएसपीई अधिनियम द्वारा शासित होता है.

अधिनियम की धारा 6 में कहा गया है कि संबंधित राज्य के अधिकार क्षेत्र में की जाने वाली सीबीआई की किसी भी जांच के लिए राज्य सरकार की सहमति एक शर्त है.

हालांकि, ऐसे मामलों में ऐसी सहमति की आवश्यकता नहीं है जहां संवैधानिक अदालतें सीबीआई को जांच सौंपती हैं.

विपक्ष शासित राज्यों के बीच सहमति वापस लेना एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया है, जो आरोप लगाते रहे हैं कि केंद्र राजनीतिक लाभ के लिए सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय जैसी केंद्रीय एजेंसियों का “दुरुपयोग” कर रहा है.

हालांकि, जिन दस राज्यों ने सीबीआई से सहमति वापस ले ली है, उनमें से दो – राजस्थान और छत्तीसगढ़ – में अब नवंबर के विधानसभा चुनावों के बाद भाजपा का शासन है और संभावना है कि वे अपने राज्यों में मामलों की जांच के लिए सीबीआई को अनुमति दे सकते हैं.

यहां तक कि मिजोरम के नवनियुक्त मुख्यमंत्री लालदुहोमा ने हाल ही में एक साक्षात्कार में दिप्रिंट को बताया था कि राज्य में भ्रष्टाचार के मामलों की जांच के लिए सीबीआई को सामान्य सहमति दी जाएगी.


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‘DPSE एक्ट की कई सीमाएं हैं’

संसदीय पैनल ने मार्च 2023 में पेश की गई कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) से संबंधित अनुदान की मांग (2023-24) पर अपनी रिपोर्ट में सरकार को एक नया कानून बनाने की सिफारिश की थी.

सरकार द्वारा बताए गए कारणों को न मानने के बाद अब उसने एटीआर में नए कानून की जरूरत दोहराई है.

डीपीएसई अधिनियम की धारा 6 के अनुसार, सरकार ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा था, राज्य सरकारों ने “विशिष्ट श्रेणियों के व्यक्तियों के खिलाफ अपराधों की निर्दिष्ट श्रेणी की जांच के लिए” सीबीआई को एक सामान्य सहमति प्रदान की है, जो सीबीआई को उन निर्दिष्ट मामलों को पंजीकृत करने और जांच करने में सक्षम बनाती है.”

इसमें आगे कहा गया है, “ऐसे राज्य में किसी भी मामले की जांच के लिए, जो उपरोक्त सहमति में शामिल नहीं है, राज्य में सीबीआई द्वारा जांच के लिए राज्य सरकार की विशिष्ट सहमति की आवश्यकता होती है. सीबीआई मामले दर मामले के आधार पर ऐसी सहमति चाहती है,”

समिति ने सरकार के जवाब को स्वीकार नहीं करते हुए कहा कि डीपीएसई अधिनियम में “कई सीमाएं” हैं. इसमें कहा गया है, ”इससे महत्वपूर्ण मामलों की निष्पक्ष और वस्तुनिष्ठ जांच करने की सीबीआई की शक्तियों पर गंभीर सीमाएं लग गई हैं, जिससे राज्यों में भ्रष्टाचार और संगठित अपराधों को बढ़ावा मिलेगा.”

“इसलिए, जैसा कि पहले सिफारिश की गई थी, डीएसपीई अधिनियम के अलावा, एक नया कानून बनाने और स्थिति और कार्यों को परिभाषित करने और राज्य की सहमति और हस्तक्षेप की आवश्यकता के बिना ऐसे महत्वपूर्ण मामलों की जांच करने के लिए सीबीआई को व्यापक अधिकार देने की सख्त जरूरत है.”

राज्य सरकारों, उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय की सहमति के आधार पर मामले सीबीआई को भेजे जाते हैं. यह नोडल एजेंसी भी है जो इंटरपोल सदस्य देशों की ओर से जांच को को-ऑर्डिनेट करती है.

(संपादनः शिव पाण्डेय)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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