नई दिल्ली: दिप्रिंट की अनन्या भारद्वाज ने कुकी और मैतेई समुदायों के बीच इस साल की मणिपुर जातीय हिंसा की कवरेज के लिए गुरुवार को दूसरा दानिश सिद्दीकी स्वतंत्रता पुरस्कार जीता. किसान ट्रस्ट द्वारा आयोजित, ये पुरस्कार दिल्ली के डॉ. अंबेडकर अंतर्राष्ट्रीय केंद्र में राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर दिये गए.
पुरस्कार के बारे में बात करते हुए, भारद्वाज ने कहा, “एक पत्रकार के रूप में यह मेरे लिए एक बहुत ही खुशी का पल था… मणिपुर मेरे लिए सबसे चुनौतीपूर्ण कार्यों में से एक था. लेकिन जब मैं वहां गई और हिंसा का प्रत्यक्ष अनुभव किया तो यह बिल्कुल अलग अनुभव था. मुझे यह अवसर दिप्रिंट के माध्यम से मिला और मैं अपना पुरस्कार अपने संगठन को समर्पित करती हूं.”
भारद्वाज के अनुसार, मणिपुर में घटनाओं को कवर करते समय उनके लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में एक भाषा थी. “फिर भी एक रिपोर्टर के रूप में, मैं भाग्यशाली महसूस करती हूं कि मुझे वहां जाकर रिपोर्टिंग करने का मौका मिला. इसलिए मैं इस पुरस्कार के साथ आज यहां खड़ी हूं.”
2023 के अन्य पुरस्कार विजेताओं में पूर्व प्रोफेसर, लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता राम पुनियानी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित फोटो जर्नलिस्ट अतुल लोके शामिल हैं. जहां पुनियानी को लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित किया गया, वहीं लोके को श्रीलंका, नेपाल और अन्य देशों से उनके साहसी फोटो रिपोर्टिंग के लिए पुरस्कार मिला.
पुरस्कार विजेताओं को राज्यसभा सदस्य और किसान ट्रस्ट के अध्यक्ष चौधरी जयंत सिंह, वरिष्ठ राजनेता शाहिद सिद्दीकी (दानिश सिद्दीकी से संबंधित नहीं), मनोज झा, यशवीर सिंह और दानिश के पिता अख्तर सिद्दीकी सहित किसान ट्रस्ट के अन्य सदस्यों की उपस्थिति में सम्मानित किया गया. इस वर्ष के पुरस्कारों के जूरी सदस्यों में सामाजिक कार्यकर्ता योगेन्द्र यादव, दिप्रिंट के वरिष्ठ फोटो जर्नलिस्ट प्रवीण जैन और लेखक और इतिहासकार सैयद इरफान हबीब शामिल थे.
पुलित्जर विजेता पत्रकार दानिश सिद्दीकी की स्मृति में स्थापित दानिश सिद्दीकी स्वतंत्रता पुरस्कार का उद्देश्य “उन व्यक्तियों को सम्मानित करना है जो संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखने, नागरिक अधिकारों की वकालत करने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए काम करते हैं.” जुलाई 2021 में रॉयटर्स के लिए अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे को कवर करते समय सिद्दीकी की हत्या कर दी गई थी. उन्होंने कोविड-19 महामारी के कवरेज के लिए अपना दूसरा पुलित्जर जीता था.
इस वर्ष के पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं को सम्मानित करते हुए, आयोजकों ने “भारत में कम होती प्रेस स्वतंत्रता” पर भी बात की.
“साहसी पत्रकारों” की सराहना करते हुए, जूरी सदस्य हबीब ने कहा, “लोग आजादी के लिए भगत सिंह के बलिदान के बारे में बात करते हैं, बहुत से लोग उनके साहस के बारे में नहीं जानते हैं कि उन्होंने लिखना कैसे जारी रखा था. आजकल लिखने का साहस रखने वाले पत्रकार वही कर रहे हैं जो भगत सिंह ने किया था. वे हमारी प्रेरणा हैं.”
‘पत्रकार आम लोगों की आवाज हैं’
इसी क्रम में बोलते हुए किसान ट्रस्ट के अध्यक्ष चौधरी जयंत सिंह ने कहा, “अभिव्यक्ति का अधिकार ही वह अधिकार है जिस पर कभी हमारा देश चलता था. जब लोगों को यह अधिकार नहीं दिया गया तो हम कभी सड़कों पर नहीं उतरे… जब हमारी कलम बंद हो जाती है, तो हमारे विचार भी बंद हो जाते हैं और समाज में कोई प्रगति नहीं होगी.”
राष्ट्रीय जनता दल के नेता मनोज झा के मुताबिक, देश में मौजूदा हालात ऐसे हैं कि एक पूरे धार्मिक समुदाय के मारे जाने पर लोग खुशी मनाते हैं. उन्होंने कहा, “नफरत का स्तर ही ऐसा है. भारत में जो लोग यह भी नहीं जानते कि फ़िलिस्तीन और इज़रायल कहां हैं, वे फ़िलिस्तीनियों को सिर्फ इसलिए मरते देखना चाहते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि वे सभी मुसलमान हैं.”
झा ने आगे आरोप लगाया, “मौजूदा सरकार ने देश को धर्म के आधार पर बांट दिया. यह उन्हें चुनाव तो जिता सकता है लेकिन इस देश की किस्मत नहीं बदल सकता.”
पूर्व राज्यसभा सदस्य और राष्ट्रीय लोकदल के उपाध्यक्ष शाहिद सिद्दीकी के लिए चिंता की बात यह थी कि “कई पत्रकार राजनेताओं की तरह बोलते हैं, लेकिन असली पत्रकारों को गंभीरता से नहीं लिया जाता है.”
उन्होंने कहा, “ईमानदारी और संवाद के बिना लोकतंत्र संभव नहीं है. पत्रकार आम लोगों की आवाज़ हैं और वे सच्चाई को सामने लाते हैं. लोग एक बार सरकार के लिए वोट करते हैं लेकिन ‘पत्रकार अगले पांच वर्षों तक सरकार को नियंत्रण में रखते हैं’.”
(संपादन: अलमिना खातून)
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