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Thursday, 21 November, 2024
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चुनावी राज्य MP, राजस्थान, छत्तीसगढ़ से बड़ी संख्या में मनरेगा से लोगों के नाम हटाए गए : NGO रिपोर्ट

लिबटेक इंडिया ने इस वित्तीय वर्ष के पहले 6 महीनों के लिए मनरेगा डेटा का विश्लेषण किया और पाया कि 80 लाख श्रमिकों के नाम हटाए गए हैं. उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक संख्या में लोगों का नाम हटाया गया है, जबकि चुनाव वाले राज्य तेलंगाना में वृद्धि देखी गई है.

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नई दिल्ली : चुनावी राज्य मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ उन पांच राज्यों में शामिल हैं, जहां इस वित्तीय वर्ष के पहले छह महीनों में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (एमजीएनआरईजीएस) सूची से सबसे अधिक संख्या में श्रमिकों के नाम हटाए जाने की जानकारी मिली है. गैर-लाभकारी लिबटेक इंडिया की एक रिपोर्ट से यह पता चला है.

शनिवार को जारी ‘मनरेगा कार्यान्वयन स्थिति: अप्रैल-सितंबर 2023’ शीर्षक से अपनी रिपोर्ट में, संगठन ने पाया कि पूरे भारत में अप्रैल और सितम्बर 2023 के बीच “कुल 80 लाख श्रमिकों का नाम हटाया” गया है.

शुद्ध रूप से कुल हटाए गए नंबर की गणना एक अवधि के दौरान हटाए गए श्रमिकों और जोड़े गए नए श्रमिकों की कुल संख्या के आधार पर की जाती है.

लिबटेक इंडिया ने कहा कि डेटा का इस्तेमाल विश्लेषण के लिए  किया गया, इसे 6 अक्टूबर, 2023 को सरकार के एमजीएनआरईजीएस पोर्टल से लिया गया.

देश में सबसे ज्यादा शुद्ध रूप से 35.57 लाख श्रमिक उत्तर प्रदेश से हटाए गए हैं- 42.01 लाख श्रमिक हटाए गए हैं और 6.43 लाख नए श्रमिक जोड़े गए है.

मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ उन राज्यों में से हैं जहां मनरेगा के तहत बड़ी संख्या में श्रमिक काम करते हैं. मध्य प्रदेश में- करीब 1.7 करोड़ पंजीकृत श्रमिकों वाले कुछ राज्यों में हैं, जहां शुद्ध रूप से 10.92 लाख श्रमिक हटाए गए. (15.98 लाख हटाए गए और 5.05 लाख नए श्रमिक जोड़े गए).

मध्य प्रदेश के बाद छत्तीसगढ़ में (9.54 लाख नाम हटाए गए हैं), राजस्थान (7.72 लाख), ओडिशा (5.77 लाख) और पश्चिम बंगाल (5.55 लाख नाम) हटाए गए हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है कि चुनावी राज्य तेलंगाना उन कुछ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में शामिल है, जिन्होंने इस वित्तीय वर्ष में मनरेगा सूची में जोड़े गए नामों की संख्या में वृद्धि दर्ज की है.

महाराष्ट्र एक और बड़ा राज्य था जहां सूची से नाम हटाए जाने की तुलना में अधिक श्रमिकों को मनरेगा जॉब कार्ड जारी किए गए. रिपोर्ट के अनुसार, इस अवधि में राज्य की सूची में करीब 4.6 लाख श्रमिकों को जोड़ा गया, जबकि 1.42 लाख नाम हटाए गए.


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रिपोर्ट पर काम करने वाले लिबटेक इंडिया के वरिष्ठ शोधकर्ता चक्रधर बुद्ध ने दिप्रिंट को बताया, “चालू वित्तीय वर्ष के पहले छह महीनों में हटाए जाने वाले नामों की संख्या बहुत अधिक है. लेकिन अगर हम इस साल फरवरी से शुरू होने वाली अवधि पर विचार करें तो यह संख्या बहुत अधिक होगी, जब वेतन के निपटान के लिए आधार-आधारित भुगतान प्रणाली (एबीपीएस) को अनिवार्य बना दिया गया था (इसे सक्षम करने की समय सीमा दिसम्बर के अंत तक बढ़ा दी गई थी).”

बुद्ध ने कहा: “ग्रामीण विकास मंत्रालय के अनुसार, 2022-23 में 5.2 करोड़ श्रमिकों के नाम हटा दिए गए. तो वहीं पिछले 18 महीनों में 6 करोड़ से ज्यादा मजदूरों के नाम हटा दिए गए हैं. यह एक बड़ी संख्या है, यह देखते हुए कि इस साल काम की मांग बढ़ी है.”

कार्यकर्ताओं का आरोप है कि कुछ मामलों में पंजीकृत श्रमिकों के नाम गलत तरीके से हटा दिए गए हैं, क्योंकि उनके जॉब कार्ड एबीपीएस से जुड़े नहीं थे, जिसे सरकार पूरे देश में लागू करने की कोशिश कर रही है.

संक्षेप में, मनरेगा सूची से किसी कार्यकर्ता को हटाने का मतलब है कि वह व्यक्ति काम करने के लिए अयोग्य है क्योंकि वह अब ग्रामीण जॉब कार्यक्रम के तहत पंजीकृत नहीं है. योजना के तहत, हर पात्र परिवार को एक जॉब कार्ड दिया जाता है, जो उसके प्रौढ़ वयस्क सदस्यों को वर्ष में 100 दिन के काम का अधिकार देता है.

हालांकि, केंद्र सरकार ने कहा है कि जॉब कार्ड हटाए जाने की कई वजहें थीं.

इस वर्ष मानसून सत्र में लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में, ग्रामीण विकास मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा था: “जैसे कि ‘सिस्टम त्रुटि’ जॉब कार्ड को हटाने का एक परिभाषित कारण नहीं है… इसके कई कारण हैं जॉब कार्डों को हटाने का विवरण नीचे दिया गया है: पहला- नकली जॉब कार्ड (गलत जॉब कार्ड), दूसरा- डुप्लीकेट जॉब कार्ड, तीसरा अब, काम करने को तैयार नहीं, चौथा- ग्राम पंचायत से स्थायी रूप से स्थानांतरित हो गया, पांचवां- जॉब कार्ड में एक व्यक्ति का होना और व्यक्ति की मृत्यु हो गई हो.”

दिप्रिंट ने रिपोर्ट पर आधिकारिक टिप्पणी के लिए केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के प्रवक्ता से संपर्क किया है. प्रतिक्रिया मिलने पर इसे रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.

काम की मांग में इजाफा

बुद्ध ने कहा कि पिछले एक साल में मनरेगा सूची में एक्टिव श्रमिकों की कुल संख्या में 7.5 प्रतिशत की गिरावट आई है.

एक श्रमिक को “सक्रिय” श्रमिक माना जाता है यदि उसने पिछले तीन वित्तीय वर्षों में एक दिन भी काम किया हो.

लिबटेक इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, 6 अक्टूबर, 2022 तक पूरे भारत में 15.49 करोड़ सक्रिय श्रमिक थे, लेकिन इस साल 6 अक्टूबर को यह संख्या घटकर 14.33 करोड़ हो गई.

रिपोर्ट में कहा गया है, “सक्रिय जॉब कार्डों की कुल संख्या में 4.3 प्रतिशत की कमी देखी गई (पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में इस वित्तीय वर्ष के छह महीनों में), यह 10.16 करोड़ से घटकर 9.72 करोड़ हो गई… ये आंकड़े मनरेगा कार्यबल में एक महत्वपूर्ण सिकुड़न का संकेत देते हैं, इस गिरावट में योगदान देने वाले फैक्टर्स की पहचान करने और कार्यक्रम की भागीदारी को पुनर्जीवित करने के लिए रणनीति तैयार करने के लिए एक व्यापक विश्लेषण की आवश्यकता पर बल देते हैं.”

जहां एक्टिविस्टों ने सूची से श्रमिकों के नाम हटाए जाने पर चिंता जताई है, वहीं देशभर में, खासकर 14 राज्यों में काम की मांग में वृद्धि हुई है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि इस वित्तीय वर्ष के पहले छह महीनों में सृजित मानव दिवसों की संख्या पिछले वर्ष की इसी अवधि में सृजित मानव दिवसों से अधिक थी. ‘मानव-दिवस’ का मतलब प्रति दिन काम करने वाले लोगों की संख्या को काम किए गए दिनों की संख्या से गुणा करने से है.

रिपोर्ट के अनुसार, “वित्तीय वर्ष 2021-22 में बढ़े मानव-दिवसों में 210 करोड़ से घटकर 172 करोड़ (18 प्रतिशत की कमी) होने के बाद, चालू वित्तीय वर्ष में मामूली वृद्धि हुई, जो 188 करोड़ (9 प्रतिशत की कमी) तक पहुंच गई है.”

कोविड महामारी के दौरान लगाए गए सख्त प्रतिबंधों के प्रभाव के कारण 2021-22 में मानव-दिवसों की संख्या अधिक थी, परिणामस्वरूप लोगों का रिवर्स माइग्रेशन हुआ.

बुद्ध ने कहा, “अगर जिन श्रमिकों के नाम गलत तरीके से हटा दिए गए थे, उन्हें बहाल कर दिया गया होता तो सृजित मानव दिवस और भी अधिक होते. पिछले 18 महीनों में 6 करोड़ से अधिक श्रमिकों के नाम सूची से हटा दिए गए हैं. आंकड़े एमजीएनआरईजीएस के तहत रोजगार के अवसरों की लगातार उच्च और बढ़ती मांग को दिखाते हैं.”

एमजीएनआरईजीएस, जिसे 2006 में लागू किया गया था, एक मांग-आधारित योजना है. लिबटेक इंडिया की रिपोर्ट में कहा गया है कि 14 राज्यों में मानव-दिवसों में वृद्धि हुई है.

रिपोर्ट में कहा गया है, “(काम की मांग में) सबसे बड़ी गिरावट पश्चिम बंगाल (99.5 प्रतिशत), हिमाचल प्रदेश (28.6 प्रतिशत), और मध्य प्रदेश (25.2 प्रतिशत) में देखी गई, जबकि छत्तीसगढ़ (106.4 प्रतिशत), झारखंड (75.6 प्रतिशत) में देखी गई। प्रतिशत) और तमिलनाडु (67.4 प्रतिशत) की सबसे अधिक वृद्धि देखी गई है.”

छत्तीसगढ़ में काम करने वाले एक गैर-लाभकारी संगठन, चौपाल (चौपाल ग्रामीण विकास प्रशिक्षण एवं शोध संस्थान) के अध्यक्ष गंगाराम पैकरा ने कहा: “राज्य में मानव-दिवसों में वृद्धि के कई कारण हो सकते हैं. मुख्य कारणों में से एक यह है कि मनरेगा के तहत निजी भूमि पर काम में काफी वृद्धि हुई है.”

‘एबीपीएस जिम्मेदार’

इस साल 30 जनवरी को, केंद्र सरकार ने “समय पर भुगतान” सुनिश्चित करने के लिए एमजीएनआरईजीएस मजदूरी के निपटान के लिए आधार-आधारित भुगतान प्रणाली को अनिवार्य बनाने का आदेश जारी किया है.”

श्रमिकों के विरोध और राज्यों द्वारा इसके कार्यान्वयन में आने वाली कठिनाई के बाद, सरकार ने एबीपीएस कार्यान्वयन की समय सीमा कई बार बढ़ाई, नवीनतम वृद्धि 31 दिसंबर, 2023 है.

बुद्ध ने कहा कि मनरेगा सूची से इतने बड़े पैमाने पर श्रमिकों के नाम हटाने के पीछे एबीपीएस पर सरकार का दबाव मुख्य कारणों में से एक था.

बुद्ध ने कहा, “जब एबीपीएस के कार्यान्वयन की बात आती है तो जमीनी स्तर पर कई मुद्दे नजर आते हैं. ये बड़े पैमाने पर हटाया जाना भी इसी वजह से है. हमारे विश्लेषण में, हमने पाया है कि श्रमिकों (जॉब कार्ड) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा अभी भी एबीपीएस से जुड़ा नहीं है. सरकार अगले साल से इसे अनिवार्य बनाने की योजना बना रही है, लेकिन अगर सभी श्रमिक एबीपीएस के तहत नहीं होंगे, तो लोग इस योजना के तहत रोजगार से वंचित हो जाएंगे.”

उन्होंने कहा: “हमारे निष्कर्ष के अनुसार, सभी पंजीकृत श्रमिकों में एबीपीएस के माध्यम से भुगतान के लिए पात्र श्रमिकों का प्रतिशत महाराष्ट्र में 27.1 प्रतिशत से लेकर आंध्र प्रदेश में 97.2 प्रतिशत तक है. ऐसे श्रमिकों की एक बड़ी संख्या है जो अभी तक एबीपीएस में शामिल नहीं हुए हैं. सक्रिय श्रमिकों में यह संख्या असम में 43.6 प्रतिशत और केरल में 99.7 प्रतिशत है.”

(अनुवाद और संपादन : इन्द्रजीत)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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