पटना/नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव के आखिरी चरण 19 मई को होने वाले मतदान में बिहार की राजधानी पटना की दो लोकसभा सीटें पटना साहिब और पाटलिपुत्र भी शामिल हैं. पटना साहिब सीट की चर्चा ज़्यादा है. इसकी वजह ये है कि ये सीट स्टार पावर से लैस है. इस पर एक तरफ जहां केंद्रीय मंत्री और एनडीए के उम्मीदवार रविशंकर प्रसाद हैं, वहीं दूसरी तरफ लंबे समय तक भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में रहे बॉलीवुड के पूर्व स्टार शत्रुघ्न सिन्हा हैं. सिन्हा भाजपा को छोड़ अब महागठबंधन के उम्मीदवार के तौर अपनी इस पुरानी पार्टी के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ रहे हैं. लेकिन पाटलिपुत्र की सीट भी कम वीआईपी नहीं है क्योंकि इस सीट से बिहार के पूर्व सीएम लालू यादव की बेटी मीसा भारती दोबारा चुनाव लड़ रही हैं. वहीं, मीसा के ख़िलाफ़ एनडीए के राम कृपाल यादव हैं जिन्होंने 2014 के आम चुनाव में इस सीट पर जीत हासिल की थी.
पाटलिपुत्र की सीट के अहम होने के पीछे की वजह ये है कि पिछले आम चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) सुप्रीमो लालू की बेटी मीसा इस सीट से चुनाव हार गई थीं. उन्हें हराने वाले कोई और नहीं बल्कि एक समय उनके पिता लालू यादव के वफादार रहे राम कृपाल यादव थे. राम कृपाल को उम्मीद थी कि 2014 के चुनाव में इस सीट से लालू उन्हें टिकट देंगे. लेकिन उन्होंने अपनी बेटी को टिकट दे दिया जिसकी वजह से राम कृपाल बाग़ी हो गए और भाजपा का दामन थाम लिया. पिछले चुनाव में पीएम नरेंद्र मोदी की लहर थी और इस लहर में बाग़ी बने कृपाल का भी बेड़ा पार लग गया. हालांकि, उनको ज़मीनी नेता माना जाता है और ये तक कहा जाता है कि अपने क्षेत्र में शादियों से लेकर मरनी तक की लिस्ट उनके पास होती है. वो लगभग हर परिवार की ख़ुशी और ग़म में शरीक होते हैं. पर अगर कोई हवा न हो तो क्या वो जीत पायेंगे.
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मीसा से दिप्रिंट से बातचीत
इसी सीट से जुड़ा सबसे बड़ा गणित ये बताया जा रहा है कि पिछले चुनाव में मीसा जितने वोटों से हारी थीं, यहां से उतने वोट वामपंथी पार्टी सीपीआई (एमएल) यानी माले को मिले थे. ऐसे में उनकी पार्टी राजद ने माले के साथ आपसी समझ विकसित करते हुए सीटों की अदला-बदली कर ली. इसके तहत राजद ने आरा से अपना उम्मीदवार नहीं उतारा. इस सीट से माले के राजू यादव चुनाव लड़ रहे हैं जिन्हे महागठबंधन का समर्थन हासिल है. राजू एनडीए के आरके सिंह के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ रहे हैं. महागठबंधन द्वारा मिले इस समर्थन की वजह से माले ने पटना की सीट पर अपना उम्मीदवार नहीं उतारा. इस सीट पर इस समझदारी को गेमचेंजर माना जा रहा है क्योंकि एक तो मोदी लहर के पहले से घटने की बात कही जा रही है, ऊपर से अगर माले के वोट सीधे राजद को ट्रांसफर हो गए तो राम कृपाल की राह आसान नहीं रहेगी.
इस बारे में जब दिप्रिंट की बात मीसा भारती से हुई तो वो कहती हैं, ‘पांच साल पूरे हो गए लेकिन सरकार ने अपने द्वारा किए गए वादों की तरफ ध्यान नहीं दिया.’ मीसा की ये प्रतिक्रिया उनके विपक्षी राम कृपाल के उस बयान के जवाब में थी जिसमें वो कहते हैं कि भाजपा विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ रही है. जब दिप्रिंट ने राम कृपाल से पूछा कि विपक्ष का आरोप है कि विकास नहीं हुआ है तो वह दावा करते हैं, ‘विपक्ष के पास कोई मुद्दा ही नहीं है. गांव में जाकर पता कीजिए, हर घर में बिजली, हर गांव में नाली और गली का काम कराने के अलावा हर घर में शौचालय बनवाया गया है.’ फिर वो मोदी सरकार की कई योजनाएं गिनाते हैं. लेकिन सवाल वही है कि अगर वाकई योजनाएं पूरी की गई हैं तो राम कृपाल और भाजपा विकास के मुद्दे को छोड़ राष्ट्रीय सुरक्षा, आतंकवाद, सेना और सर्जिकल स्ट्राइक के नाम पर क्यों चुनाव लड़ती.
बिहार में जिन सीटों पर भाजपा के सांसद हैं जैसे पटना, बेगूसराय, खगड़िया, आरा और बक्सर वहां एक अजीब सी समानता नज़र आती है. दिप्रिंट ने इन इलाकों के दौरे में पाया कि इनमें एक-आधी सीट को छोड़कर बाकी पर लोग अपने वर्तमान सांसद से काफी नाराज़ हैं. खगड़िया की एक राजनीतिक रैली में तो वोटरों ने एनडीए उम्मीदवार और वहां के सांसद महबूब अली कैसर को ‘घटिया अदमी’ तक बता दिया. लेकिन उनका कहना था कि कैसर चाहे जैसे भी हों पर देश के लिए नरेंद्र मोदी ही ठीक हैं. दिप्रिंट को ये अजीब समानता तमाम जगहों पर देखने-सुनने को मिली. भाजपा के सांसद भी अपने नहीं बल्कि पीएम नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट मांग रहे हैं. ऐसे में पाटलिपुत्र जैसी शहरी सीट पर देखने वाली बात होगी कि पिछली बार राम कृपाल का बेड़ा पार लगाने वाले मोदी क्या इस बार भी ऐसा करा पाते हैं.
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पिछले चुनाव में राम कृपाल इस सीट से नए उम्मीदवार थे, तब नरेंद्र मोदी भी नए थे. ऐसे में इनके वादों की नवीनता लोगों को पसंद आ गई. इस बार राम कृपाल से हिसाब मांगा जा रहा है, वे एंटी इंकंबेंसी का सामना भी कर रहे हैं. इस बार 2014 की तरह विकास नहीं बल्कि राष्ट्रवाद मुद्दा है. देखना होगा कि पाटलिपुत्र की शहरी जनता विकास की जगह राष्ट्रवाद का नैरेटिव कितना पसंद करती है. उनके पक्ष में जाने वाली बातों में नीतीश कुमार और रामविलास पासवान जैसे नेताओं का एनडीए के पाले में होना है. इस सीट पर पासवान वोट अच्छी संख्या में है. वहीं, मीसा के लिए ये करो या मरो का मुक़ाबला है. हालांकि, वो लालू परिवार की पहली संतान हैं लेकिन परिवार में पहले से चल रही कथित कलह के बीच उनके लिए इस सीट को एक बार और हारना उनकी राजनीतिक प्रासंगिकता पर सवाल खड़े करने वाला साबित होगा. इस सीट पर आख़िरी यानी सातवें चरण में 19 मई को वोटिंग होनी है. आम चुनाव के नतीजे 23 मई को आएंगे.