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Friday, 22 November, 2024
होमसमाज-संस्कृति‘न विरोध कर सकते, न समर्थन कर सकते’, उर्दू प्रेस ने लिखा— कास्ट सर्वे को लेकर BJP बड़ी दुविधा में है

‘न विरोध कर सकते, न समर्थन कर सकते’, उर्दू प्रेस ने लिखा— कास्ट सर्वे को लेकर BJP बड़ी दुविधा में है

पेश है दिप्रिंट का राउंड-अप कि कैसे उर्दू मीडिया ने पिछले सप्ताह के दौरान विभिन्न समाचार संबंधी घटनाओं को कवर किया और उनमें से कुछ ने इसके बारे में किस तरह का संपादकीय रुख इख्तियार किया.

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नई दिल्ली: बिहार कास्ट सर्वे इस सप्ताह उर्दू प्रेस में प्रमुखता से छाया रहा. उर्दू के तीन प्रमुख अख़बार- इंकलाब, रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा, और सियासत – ने बिहार सरकार के इस कदम की सराहना की और इसे बीजेपी के लिए एक बड़ी “दुविधा” कहा.

2 अक्टूबर को बिहार की नीतीश सरकार द्वारा जारी सर्वे से पता चला कि अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) की राज्य में आबादी कुल आबादी का 63 प्रतिशत है, जबकि उच्च जातियां केवल 15.5 प्रतिशत हैं.

बिहार सरकार के इस कवायद का असर राष्ट्रीय राजनीति पर पड़ने की आशंका है. INDIA ब्लॉक पहले से ही राष्ट्रीय स्तर पर जाति जनगणना की मांग कर रहा है, हालांकि बीजेपी अभी इसको लेकर काफी अनिच्छुक दिख रही है.

3 अक्टूबर के सियासत के संपादकीय में कहा गया कि परिस्थितियों को देखते हुए अब पिछड़े वर्गों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण में बढ़ोतरी से इनकार नहीं किया जा सकता है. इसमें कहा गया है कि बिहार के अधिकांश राजनीतिक दलों ने इस सर्वे का स्वागत किया है.

संपादकीय में कहा गया है कि बीजेपी, जो शुरू से ही इस सर्वे का विरोध कर रही है, को राजनीतिक और सामाजिक रूप से इस समस्या से निपटना मुश्किल होगा.

लेकिन कास्ट सर्वे सिर्फ एकमात्र ऐसा विषय नहीं था जिसने उर्दू प्रेस के संपादकीय और पहले पन्नों में महत्वपूर्ण स्थान लिया. मीडिया हाउस न्यूज़क्लिक पर दिल्ली पुलिस की छापेमारी और उसके बाद गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA) के तहत गिरफ्तारियों की भी तीनों उर्दू अखबारों ने निंदा की.

दिल्ली उत्पाद शुल्क नीति मामले में आप के राज्यसभा सांसद संजय सिंह की गिरफ्तारी को भी उर्दू प्रेस ने बड़े पैमाने पर कवर किया.

प्रमुख उर्दू अखबारों के पहले पन्ने और संपादकीय में जगह बनाने वाली सभी सुर्खियों का सारांश यहां दिया गया है.

बिहार कास्ट सर्वे

बिहार के विकास आयुक्त विवेक सिंह ने सोमवार को बिहार कास्ट सर्वे रिपोर्ट जारी किया. रिपोर्ट में राज्य की कुल आबादी 13 करोड़ से अधिक बताई गई है. सर्वे के मुताबिक EBC 36 प्रतिशत के साथ राज्य का सबसे बड़ा जाति समूह है. इसके बाद OBC 27.13 प्रतिशत है.

गौरतलब है कि कांग्रेस ने सत्ता में आने पर चुनावी राज्य मध्यप्रदेश में इसी तरह का जाति सर्वे लागू करने का वादा किया है. एमपी उन पांच राज्यों में से एक है जहां इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं.

2 अक्टूबर को एक संपादकीय में- जाति जनगणना के आंकड़े जारी होने से कुछ घंटे पहले- सहारा ने कहा कि बिहार में आरक्षण के रूप में अपने अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए OBC के लिए एक आंदोलन शुरू हो गया है. संपादकीय में कहा गया है कि एक के बाद एक राजनीतिक दल इस मुद्दे को अपने एजेंडे में जगह दे रहे हैं और एक बार जब यह राष्ट्रीय मुद्दा बन जाएगा, तो किसी भी नई पार्टी के लिए इसे नजरअंदाज करना मुश्किल होगा.

इसमें कहा गया है, “जब वे (OBC) सड़कों पर उतरेंगे तो राजनीतिक दल अपने आप दबाव में आ जाएंगे और महिला आरक्षण विधेयक की तरह कोई भी विरोध करने की हिम्मत नहीं करेगा.”

अखबार ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी की एमपी में जाति सर्वेक्षण का वादा करने वाली टिप्पणी का भी जिक्र किया. संपादकीय में कहा गया है कि गांधी राज्य में OBC के लिए एक “राजनीतिक गेम प्लान” तैयार कर रहे हैं और इसके परिणामस्वरूप कुछ पार्टियों को आगामी विधानसभा चुनावों और अगले साल के संसदीय चुनावों में समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. संपादकीय में कहा गया है कि लेकिन कुछ पार्टियों को इससे फायदा भी हो सकता है.

3 अक्टूबर को अपने संपादकीय में, सियासत ने बीजेपी की “दुविधा” के बारे में बताया. इसमें कहा गया है कि बीजेपी सर्वे के बारे में चुप रही है और उसने औपचारिक रूप से अपना समर्थन नहीं दिया है. लेकिन जहां पार्टी बिहार में इसका खुलकर विरोध नहीं कर सकती, वहां की राजनीति की स्थिति को देखते हुए वह राष्ट्रीय स्तर पर इसका खुलकर समर्थन भी नहीं कर सकती.

ऐसे में बीजेपी इस स्थिति से निपटने के लिए क्या तरीका अपनाएगी? संपादकीय में इसपर सवाल किया गया है. 

उसी दिन अपने संपादकीय में इंकलाब ने कास्ट सर्वे को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का “मास्टरस्ट्रोक” बताते हुए कहा कि बीजेपी को अब अपनी रणनीति बदलनी होगी. संपादकीय में कहा गया, “इसमें कोई संदेह नहीं है कि बीजेपी ने जाति जनगणना को खारिज नहीं किया है, लेकिन उसने इसका पूरी तरह से समर्थन भी नहीं किया है क्योंकि उसकी राजनीति जाति की पहचान को खत्म करने और सभी को हिंदुत्व के दायरे में लाने की रही है.”

इस बीच सहारा के संपादकीय में कहा गया है कि जाति सर्वेक्षण जारी होने के साथ ही नीतीश कुमार ने अपने बारे में चल रही अटकलों पर विराम लगा दिया है. संपादकीय के अनुसार, इस बात पर चर्चा हुई है कि क्या नीतीश, जिनका बीजेपी और उसके राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के साथ बार-बार रिश्ता रहा है, विपक्षी INDIA गुट का हिस्सा रहेंगे, या फिर दोबार अपनी निष्ठा बदल लेंगे.


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न्यूज़क्लिक पर छापा और संजय सिंह की गिरफ़्तारी

3 अक्टूबर को न्यूज़क्लिक के संपादक प्रबीर पुरकायस्थ और वेबसाइट के HR प्रमुख अमित चक्रवर्ती को UAPA के तहत गिरफ्तार किया गया था. ये गिरफ्तारियां न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के बाद हुईं, जिसमें आरोप लगाया गया था कि समाचार पोर्टल को एक ऐसे नेटवर्क से फंडिंग मिली थी जो चीनी प्रचार को बढ़ावा दे रहा था.

इस गिरफ़्तारी की विपक्षी दलों के साथ-साथ देश भर के पत्रकारों ने आलोचना की है और इसे प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला बताया. 

सहारा ने 4 अक्टूबर को अपने संपादकीय में लिखा कि दिल्ली पुलिस की कार्रवाई स्पष्ट रूप से पत्रकारों को “उत्पीड़ित” करने के लिए थी.

संपादकीय के अनुसार, जिन आरोपों के आधार पर कानून प्रवर्तन एजेंसियां ​​कार्रवाई कर रही हैं, वे आरोप “एक विदेशी समाचार पत्र” ने लगाए थे. संपादकीय में कहा गया है कि ईमानदारी से मांग है कि आरोपों की पूरी तरह से जांच की जाए लेकिन वर्तमान सरकार “ईमानदारी, सच्चाई और निष्पक्षता” के सिद्धांतों में विश्वास नहीं करती है. यह 2024 के आम चुनाव से पहले सरकार द्वारा अपने आलोचकों के साथ हिसाब बराबर करने के लिए सरकार की बदले की नीति है. 

5 अक्टूबर को, सियासत के संपादकीय में कहा गया कि हालांकि “आतंकवाद पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता”, लोगों पर आतंकवादी गतिविधियों का आरोप लगाने की यह प्रथा गलत है.

संपादकीय में कहा गया है, “अगर वास्तव में आतंकवादियों से संबंध हैं, चाहे वे कोई भी हों या कितने प्रभावशाली हों, उनके खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए. लेकिन मौजूदा मामला केवल राजनीतिक विरोध के खिलाफ एक कार्रवाई है और निंदनीय है.”

5 अक्टूबर को सहारा और इंकलाब ने बताया कि AAP सांसद संजय सिंह को दिल्ली शराब घोटाला मामले में गिरफ्तार किया गया है.

नांदेड़ अस्पताल में मौतें

नांदेड़ के एक अस्पताल में चार दिनों के भीतर 18 नवजात शिशुओं सहित 37 मरीजों की मौत को उर्दू प्रेस में महत्वपूर्ण कवरेज मिली. अन्य विषय जिन्हें कवरेज मिला, वह 2023 में चिकित्सा में नोबेल पुरस्कार था, जो कैटलिन कारिको और ड्रू वीसमैन को MRNA टीकों पर उनके काम के लिए दिया गया, जिससे महामारी के दौरान लाखों लोगों की जान बचाने में मदद मिली.

5 अक्टूबर को, सहारा ने अपना संपादकीय भारत में निर्मित कफ सिरप से होने वाली मौतों को समर्पित किया. इस सप्ताह की शुरुआत में, केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) ने गुजरात स्थित नॉरिस मेडिसिन्स द्वारा निर्मित कफ सिरप और एंटी-एलर्जी सिरप को “विषाक्त” घोषित किया था. ऐसा कुछ महीनों बाद हुआ जब भारत में निर्मित कफ सिरप को दुनिया भर में 141 बच्चों की मौत से जोड़ा गया था.

सहारा ने अपने संपादकीय में लिखा कि भारतीय दवा कंपनियों के लालच ने उन्हें “मानवता का हत्यारा” बना दिया है.

संपादकीय में कहा गया, “देश विवादों में उलझा हुआ है और बदनामी हो रहा है. लालची दवा कंपनियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने और मानवता को बचाने की जरूरत है, जो मुनाफे की खूनी लत में छटपटा रही है. अन्यथा विश्व गुरु का सपना कभी पूरा नहीं होगा.”

(संपादन: ऋषभ राज)

(उर्दूस्कोप को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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