भारत की अध्यक्षता में आगामी G20 नेताओं का शिखर सम्मेलन वैश्विक चिंता के क्षेत्रों, विशेष रूप से उन क्षेत्रों पर सर्वसम्मति प्राप्त करने में मदद करने का अवसर प्रस्तुत करता है जो वैश्विक दक्षिण (Global South) को प्रभावित करते हैं. ऋण संकट से जूझ रहे देशों के ऋण समस्या का तेजी से समाधान; जलवायु परिवर्तन जैसी उभरती चुनौतियों के लिए वित्तपोषण बढ़ाने के लिए बहुपक्षीय विकास बैंकों (एमडीबी) का सुधार; और क्रिप्टो-करेंसी रेग्युलेशन के प्रति एक समन्वित दृष्टिकोण कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जिन पर फोकस होने की संभावना है, और जिस पर आम सहमति की मांग की जाएगी.
ऋण संकट का समय पर समाधान
निम्न और मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्थाओं में ऋण संबंधी समस्याएं कई गुना बढ़ गई हैं. भारत G20 कॉमन फ्रेमवर्क के तहत ऋण पुनर्गठन पर अधिक जोर दे रहा है.
निम्न और मध्यम आय वाले देशों का कुल विदेशी ऋण 2021 में बढ़कर 9 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया – जो कि एक दशक पहले की तुलना में दोगुने से भी अधिक है. बढ़ती ब्याज दरों और धीमी ग्रोथ के कारण, लगभग 60 प्रतिशत गरीब देशों पर ऋण संकट का खतरा अधिक है या वे पहले से ही संकट में हैं.
जब कोविड ने देशों के वित्तीय व्यवस्था को नकारात्मक तरीके से प्रभावित करना शुरू कर दिया तब G20 देशों ने “कॉमन फ्रेमवर्क” लॉन्च किया. कॉमन फ्रेमवर्क उधारी की मांग करने वाले देशों के अनुरोध के आधार पर, मामला-दर-मामला विचार करता है. ऋण पुनर्गठन की विशिष्टताओं पर चर्चा करने के लिए ऋणदाता समिति (Creditors Committee) बुलाई जाती है. चूंकि चीन हाल के वर्षों में प्रमुख ऋण देने वाले देश के रूप में उभरा है, इसलिए इसे पश्चिमी नेतृत्व वाले पेरिस क्लब ऋणदाता देशों, जी20 आधिकारिक ऋणदाताओं और निजी ऋणदाताओं के साथ लाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य साबित हुआ है.
विशेष रूप से, चीन ने कॉमन फ्रेमवर्क के तहत संप्रभु ऋण पुनर्गठन (Sovereign Debt Restructuring) में एमडीबी को शामिल करने पर जोर दिया है. इस स्थिति का अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा विरोध किया गया है क्योंकि इससे एमडीबी को कटौती करनी पड़ेगी, जिससे उनकी पसंदीदा ऋणदाता की स्थिति (Creditor Status) कमजोर हो जाएगी.
वर्तमान में, केवल जाम्बिया, घाना, चाड और इथियोपिया ने कॉमन फ्रेमवर्क के तहत ऋण राहत (Debt Relief) के लिए अनुरोध किया है. हालांकि, बातचीत में गतिरोध के कारण सभी चार देशों के ऋण समाधान (Debt Resolution) में देरी हो रही है.
अपने G20 प्रेसीडेंसी के तहत, भारत घाना और श्रीलंका (सीएफ से परे) के लिए ऋणदाता समितियों के गठन की सुविधा प्रदान करने में सफल रहा है, और इथियोपिया के लिए शीघ्र ऋण उपचार समझौते (Debt Treatment Agreement) की मांग की.
जाम्बिया का Debt Treatment Agreement अंततः जून 2023 में हुआ, जिसमें भारत एक ऋणदाता या क्रेडिटर था. इसके अतिरिक्त, भारतीय जी20 प्रेसीडेंसी ने कॉमन फ्रेमवर्क के भीतर और बाहर हितधारकों के बीच संचार को मजबूत करने के लिए ग्लोबल सॉवरेन डेट राउंडटेबल (जीएसडीआर) की स्थापना के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) और विश्व बैंक के साथ सहयोग किया है.
संस्थागत सेटिंग के साथ, भारत ऋण संकट से पीड़ित देशों के समयबद्ध ऋण समाधान की आवश्यकता पर आम सहमति प्राप्त करने का प्रयास करेगा.
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MDB में सुधार
इस बात की मान्यता बढ़ती जा रही है कि एमडीबी को निम्न आय वाले देशों (एलआईसी) के लिए अपने वित्तपोषण को बढ़ाना चाहिए. निम्न-आय वाली अर्थव्यवस्थाओं को महामारी, भू-राजनीतिक संघर्ष, उच्च मुद्रास्फीति, विनिमय दर में उतार-चढ़ाव और अस्थिर ऋण से उभरने वाली कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. ये अर्थव्यवस्थाएं जलवायु परिवर्तन के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील हैं और इन्हें अपने देशों को जलवायु में होने वाले परिवर्तनों को झेलने के प्रति मजबूत बनाने के लिए अतिरिक्त धन की आवश्यकता है.
एमडीबी इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए खास तौर पर मौजूद है क्योंकि वे कम लागत, लंबी परिपक्वता वाली फाइनेंसिंग, नीतिगत सलाह और नॉलेज शेयरिंग प्रदान करते हैं. जबकि निजी ऋणदाता, ऋण देने के प्रमुख स्रोत के रूप में उभरे हैं, एमडीबी द्वारा सकल संवितरण (Gross Disbursements) निम्न और मध्यम आय वाले देशों के सामने बढ़ती चुनौतियों के साथ तालमेल नहीं बिठा पाया है. इसके लिए एमडीबी के संचालन के तरीके में मूलभूत सुधारों की आवश्यकता है.
भारत की G20 प्रेसीडेंसी के तहत, बहुपक्षीय विकास बैंकों (Multilateral Development Bank) को मजबूत करने पर एक स्वतंत्र विशेषज्ञ समूह की स्थापना की गई थी. विशेषज्ञ समूह का एक प्रमुख उद्देश्य, अन्य बातों के अलावा, वित्तीय क्षमता बढ़ाने के लिए एक रोडमैप का सुझाव देना था ताकि एमडीबी जलवायु परिवर्तन से लेकर स्वास्थ्य तक कई प्रकार की चुनौतियों के वित्तपोषण के लिए बेहतर ढंग से सुसज्जित हो सके.
विशेषज्ञ समूह का एक अन्य उद्देश्य एमडीबी द्वारा और एमडीबी से आवश्यक वित्तपोषण आवश्यकताओं के अनुमानों की एक पूरी श्रृंखला प्रस्तुत करना था. विशेषज्ञ समूह ने सिफारिश की है कि एमडीबी के पास अत्यधिक गरीबी को खत्म करने, साझा समृद्धि को बढ़ावा देने और वैश्विक सार्वजनिक हितों (Global Public Goods) में योगदान करने का तीन उद्देश्य होना चाहिए. यहां वैश्विक सार्वजनिक हितों में मोटे तौर पर जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता का संरक्षण, वैश्विक जल चक्र और महामारी की तैयारी और प्रतिक्रिया शामिल है.
विशेषज्ञ समूह ने सिफारिश की कि एमडीबी को अपने ट्रिपल उद्देश्यों को पूरा करने के लिए अपने ऋण को काफी हद तक बढ़ाने की जरूरत है. समूह का अनुमान है कि विकासशील देशों को सालाना 3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के अतिरिक्त खर्च की आवश्यकता होगी. जिसमें से 1.8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर क्लाइमेट ऐक्शन के लिए और 1.2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने के लिए आवश्यक होंगे.
अपनी ऋण देने की क्षमता बढ़ाने के लिए, एमडीबी को अपने पूंजी पर्याप्तता ढांचे की समीक्षा करने और केंद्रीय बैंक तरलता तक पहुंच और निजी क्षेत्र की अधिक भागीदारी सहित वित्त जुटाने के नए तरीकों की दिशा में काम करने की आवश्यकता है. ये उपाय विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को देने के लिए एमडीबी द्वारा अतिरिक्त धनराशि उपलब्ध कराने में में मदद करेंगे.
अभी तक विशेषज्ञ समूह की सिफ़ारिशों को G20 के वित्त मंत्रियों ने स्वीकार नहीं किया है. उन पर केवल “विचार” किया है. यदि G20 नेता एमडीबी में सुधार के रोडमैप पर सहमत हो सकते हैं, तो यह ग्लोबल फाइनेंस आर्किटेक्चर में सुधार के क्षेत्र में भारत की G20 अध्यक्षता का एक महत्त्वपूर्ण योगदान होगा.
क्रिप्टो रेग्युलेशन के अंतर्राष्ट्रीय सहमति वाले मानक
जबकि कई देशों ने क्रिप्टोकरेंसी को विनियमित करने के लिए रूपरेखा तैयार की है, भारत क्रिप्टो-रेग्युलेशन के लिए एक व्यापक और समन्वित दृष्टिकोण पर जोर दे रहा है. इस संदर्भ में, भारत ने अपना प्रेसीडेंसी नोट प्रकाशित किया है जो अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के चल रहे कार्यों में उभरते बाजारों के लिए विशिष्ट जोखिमों को शामिल करने की आवश्यकता पर जोर देता है. आईएमएफ और वित्तीय स्थिरता बोर्ड ने क्रिप्टो-परिसंपत्तियों और बाजारों दोनों के विनियमन, सुपरविज़न और निरीक्षण के प्रति अपने दृष्टिकोण को रेखांकित करते हुए नीतिगत दस्तावेज पेश किए हैं.
भारत ने क्रिप्टो रेग्युलेशन पर एक संश्लेषण पत्र (Synthesis Paper) के लिए अनुरोध किया. G20 सदस्यों को जो संश्लेषण पत्र वितरित किया गया है, वह प्रत्येक संस्थान द्वारा पहचाने गए जोखिमों और उनकी बातचीत को एक साथ लाता है. पेपर क्रिप्टो-परिसंपत्तियों से बढ़े हुए मैक्रो-फाइनेंशियल जोखिमों पर प्रकाश डालता है जिनका उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को सामना करना पड़ सकता है, जिसके लिए अतिरिक्त नीतिगत प्रतिक्रियाओं की आवश्यकता होगी. पेपर में भविष्य के काम का रोडमैप भी शामिल है.
यह रोडमैप आगामी G20 नेताओं के शिखर सम्मेलन में चर्चा का केंद्रीय विषय बनने की उम्मीद है. यदि रोडमैप को G20 द्वारा समर्थन दिया जाता है, तो क्रिप्टो परिसंपत्तियों पर एक व्यापक वैश्विक नियामक ढांचे (comprehensive global regulatory framework) का फॉर्मुलेशन भारत के G20 प्रेसीडेंसी के प्रमुख योगदानों में से एक होगा.
(राधिका पांडेय एसोसिएट प्रोफेसर हैं और आनंदिता गुप्ता नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी (एनआईपीएफपी) में एक रिसर्च फेलो हैं. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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