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Friday, 22 November, 2024
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‘नेट-जीरो’ का लक्ष्य हासिल करने की रेस में भारत दुनिया की 5 अर्थव्यवस्थाओं में : रिपोर्ट

थिंक टैंक, स्ट्रैटेजिक पर्सपेक्टिव्स की नई रिपोर्ट, 'नेट जीरो-कार्बन औद्योगिक युग प्रतिस्पर्धा', में जीरो कार्बन तकनीकों पर पांच प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं - अमेरिका, चीन, यूरोपीय संघ, भारत और जापान के प्रदर्शन की तुलना की गई है.

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नई दिल्ली : ‘नेट-जीरो’ का लक्ष्य हासिल करने की दौड़ में भारत शुरुआती अर्थव्यवस्थाओं अमेरिका, यूरोपीय संघ, चीन और जापान समेत चार अर्थव्यवस्थाओं के राजकोषीय स्थिति में तो नहीं, लेकिन नए औद्योगिक दौर में खुद को अच्छी तरह से स्थापित करने की क्षमता रखता है, एक रिपोर्ट से ये बात सामने आई है.

थिंक टैंक, स्ट्रैटेजिक पर्सपेक्टिव्स की नई रिपोर्ट, ‘नेट जीरो-कार्बन औद्योगिक युग प्रतिस्पर्धा’, में जीरो कार्बन तकनीकों पर पांच प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं – अमेरिका, चीन, यूरोपीय संघ, भारत और जापान के प्रदर्शन की तुलना की गई है.

यह दिखाती है कि नेट-जीरो ट्रांजिशन नीतियों ने प्रतिस्पर्धात्मकता, ऊर्जा सुरक्षा और भविष्य की आर्थिक समृद्धि को काफी मजबूत किया है.

रिपोर्ट में कुछ सकारात्मक विकास बिंदु भी हैं, जो बताते हैं कि भारत जीरो-कार्बन प्रौद्योगिकियों की दौड़ में सही रास्ते पर है.

रिपोर्ट के अनुसार, पहला बिंदु यह है कि “भारत उन कुछ देशों में से है जो अपने राष्ट्रीय स्तर पर तय योगदान लक्ष्य को पूरा करने की राह पर है, हालांकि, इसे 2050 तक नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन तक पहुंचने के लिए 12.7 ट्रिलियन अमरीकी डालर का निवेश की जरूरत होगी. भारत सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं में से एक बना हुआ है, खासकर जब चीन की महामारी के बाद की रिकवरी धीमी हो गई है और भारत दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है.”


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इसमें कहा गया है, “भारत अपने बिजली उत्पादन में सौर और पवन उर्जा को शामिल करने में प्रगति कर रहा है, 2017 के आंकड़ों (5 प्रतिशत से 9 प्रतिशत) से इसकी हिस्सेदारी लगभग दोगुनी हो गई है.”

तीसरा, इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग के 2022 और 2030 के बीच 49 प्रतिशत के साथ सालाना चक्रवृद्धि वृद्धि दर से बढ़ने की उम्मीद है, जिससे 2030 तक 50 मिलियन नौकरियां पैदा होंगी. चौथा, ऊर्जा संरक्षण अधिनियम जैसी ट्रांजिशन-समर्थक नीतियां निवेशकों और उद्योग को प्रोत्साहन दे रही हैं.

रिपोर्ट के अनुसार, अंतरराष्ट्रीय सार्वजनिक वित्तीय प्रवाह को लेकर, 2020-21 के लिए, भारत पिछले 2 वर्षों से (2.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर, सौर ऊर्जा के लिए 66 प्रतिशत के साथ) शीर्ष पर रहा था.

रिपोर्ट में कहा गया है, “चीन और यूरोपीय संघ, पवन ऊर्जा क्षेत्र में अग्रणी बने हुए हैं, अमेरिका और भारत विनिर्माण क्षमताओं के मामले में एक-दूसरे से करीबी चल रहे हैं और अपनी घरेलू नीतियों के लागू करने से बाजार की हिस्सेदारी बनाए रख सकते हैं.”

रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि यह स्पष्ट है कि आर्थिक विकास पर अलग-अलग स्थिति को देखते हुए भारत की अन्य अर्थव्यवस्थाओं के साथ बराबरी के स्तर पर तुलना नहीं की जा सकती.

चूंकि भारत वैश्विक नेट-जीरो सप्लाई चेन का एक अभिन्न अंग बनने की मजबूत महत्वाकांक्षाएं रखता है, लिहाजा आने वाले भविष्य में ट्रांजिशन से फायदा पाने की नींव मौजूद हैं.

इस G20 में, भारत वैश्विक हरित विकास समझौते पर जोर दे सकता है, जिसमें जलवायु वित्त, एलआईएफई (लाइफ), सर्कुलर अर्थव्यवस्था, एसडीजी की प्रगति में तेजी लाना, ऊर्जा परिवर्तन और ऊर्जा सुरक्षा शामिल होगी.

जी20 एक ऐसा मौका है, जहां भारत अपनी मजबूत अध्यक्षता के साथ जनसांख्यिकीय लाभांश (फायदे का हिस्सा) को तय कर सकता है और भविष्य की आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभरने का अगुवाई कर सकता है. भारत 2023 में 3.7 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाएगा और दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में ब्रिटेन पर अपनी बढ़त बनाए रखेगा.

भारत के हरित लक्ष्यों की ओर बढ़ने के बारे में बात करते हुए, क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला ने कहा, “जी20 नीतियों और ग्रीन लक्ष्य की दिशा में जीरो कार्बन प्रौद्योगिकियों के व्यापक मूल्यांकन का मौका है. भारत में हरित लक्ष्यों की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ाने, कई राज्यों में ईवी नीतियों का कार्यान्वयन और ऊर्जा दक्षता की वजह से हुई है.”

खोसला ने कहा, “एक ऐसे देश के रूप में जिसमें अगले कुछ दशकों में बड़े पैमाने पर औद्योगिक विकास देखेगा, उसे इनोवेशन, अनुसंधान और विकास पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, साथ ही एक ऐसा वातावरण बनाना चाहिए जो चीन पर निर्भरता को कम करते हुए तेजी से निवेश आकर्षित करे. उन क्षेत्रों को, जहां स्वच्छ प्रौद्योगिकी गेम-चेंजिंग हो सकती है और सिस्टम व कार्यबल के कौशल को सुनिश्चित करना ही वास्तविक एनर्जी ट्रांजिशन को सुनिश्चित करेगा. जी20 की अध्यक्षता के तौर पर, कठिन भू-राजनीति माहौल के बीच भारत के पास विकास और ट्रांजिशन एजेंडे के नेतृत्व के लिए भूमिका को संतुलित करने की जिम्मेदारी है, ताकि वह वह अपने नेतृत्व का दावा सुनिश्चित कर सके और ग्लोबल साउथ की आवाज बन सके.”

इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस (आईईईएफए) में दक्षिण एशिया के निदेशक विभूति गर्ग ने कहा कि, भारत न केवल बिजली क्षेत्र के डीकार्बोनाइजेशन के लिए नवीकरणीय ऊर्जा की व्यापक आवश्यकताओं पर विचार कर रहा है, बल्कि सरकार के पास इलेक्ट्रिक व्हीकल्स की भी बड़ी योजना है और वाहन और परिवहन और अन्य उद्योगों के लिए स्वच्छ ऊर्जा समाधान के रूप में हरित हाइड्रोजन को भी बढ़ावा देना है.

गर्ग ने कहा, “परंपरागत रूप से भारत जीवाश्म ईंधन के आयात पर निर्भर रहा है और अब नवीकरणीय ऊर्जा विकास की कहानी के साथ, डाउनस्ट्रीम सप्लाई चेन के लिए आयात पर निर्भर है. फोकस बदल रहा है और हम एक देश के रूप में मॉड्यूल, सेल के घरेलू विनिर्माण का एक बड़ा आधार बना रहे हैं. वेफर्स, बैटरी भंडारण, इलेक्ट्रोलाइजर आदि और महत्वपूर्ण खनिजों की खोज और खनन पर भी ध्यान दिया जा रहा है. भारत को उत्पादों की दक्षता में सुधार करने के लिए सप्लाई चोन के निर्माण में सर्वोत्तम प्रौद्योगिकी तक पहुंच बनानी होगी और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि कम लागत वाले वित्तीय मदद तक पहुंचना होगा. अगर हम 2030 का लक्ष्य हासिल करना चाहते हैं तो निवेश को मौजूदा स्तर से तीन गुना से अधिक करने की जरूरत है.”

स्ट्रैटेजिक पर्सपेक्टिव्स की कार्यकारी निदेशक लिंडा कल्चर ने कहा कि जीरो-कार्बन प्रौद्योगिकियों पर आधारित नये औद्योगिक दौर का उभार हुआ है. चीन, यूरोपीय संघ और अमेरिका बढ़ते वैश्विक बाजारों में सबसे बड़ी हिस्सेदारी हासिल करने और अपनी घरेलू मांग के लिए आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं.


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