तमिलनाडु सरकार में मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने चेन्नई में आयोजित ‘सनातन का अंत’ सम्मेलन में जो वक्तव्य दिया, उससे उठा विवाद शांत होता नजर नहीं आ रहा है. उदय तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत एम. करुणानिधि के पोते और वर्तमान में मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के पुत्र हैं. इस विवाद में सबसे बढ़ चढ़ कर बीजेपी कूद गई है. अब तमाम विपक्षी पार्टियां इसका जवाब दे रही हैं. ये विवाद आने वाले विधानसभा चुनावों तक खिंच सकता है.
इस विवाद को मुख्य रूप से दो नजरिए से देखा जा रहा है. जहां बीजेपी और उससे जुड़े बुद्धिजीवी मान रहे हैं कि उदय स्टालिन ने सनातन के अंत की बात करके हिंदुओं के नरसंहार का आह्वान किया है. बीजेपी से जुड़े लोगों का कहना है कि उदयनिधि ने सनातन की तुलना डेंगू और मलेरिया जैसी बीमारियों से करके और सनातन को समाप्त करने की बात करके हिंदू धर्म विरोधी बात की है. वहीं उदय कह रहे हैं कि उनका बयान सनातन से जुड़े जातिवाद और सांप्रदायिकता जैसे पहलुओं से संबंधित है और वे किसी भी तरह के नरसंहार की बात नहीं कर रहे हैं. वे अपनी बात पर अड़े हैं और कोर्ट में जवाब देने के लिए तैयार हैं.
I never called for the genocide of people who are following Sanatan Dharma. Sanatan Dharma is a principle that divides people in the name of caste and religion. Uprooting Sanatan Dharma is upholding humanity and human equality.
I stand firmly by every word I have spoken. I spoke… https://t.co/Q31uVNdZVb
— Udhay (@Udhaystalin) September 2, 2023
इस विवाद के राजनीतिक असर की बात करें तो इससे सबसे कम प्रभावित तमिलनाडु ही रहेगा क्योंकि वहां की राजनीति में ये शब्दावली बहुत पुरानी है, खासकर जस्टिस पार्टी और द्रविड़ आंदोलन की परंपरा में ये सब इसी तरह कहा जाता रहा है और सभी पक्ष जानते हैं कि ये वैचारिक मामला है और इसमें हिंसा या नरसंहार के आह्वान जैसा कुछ नहीं है.
लेकिन अन्य राज्यों, खासकर उत्तर भारत में, ये भावनात्मक मुद्दा बन सकता है. खासकर इसलिए कि सनातन पंथ हिंदू धर्म की सबसे प्रभावशाली धारा है. उत्तर भारत की राजनीति पेरियारवादी शब्दावली से परिचित नहीं है, इसलिए वहां उत्तेजना ज्यादा है. डीएमके चूंकि कांग्रेस, सपा, तृणमूल कांग्रेस, आरजेडी आदि के साथ राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन में है, इसलिए ये दल संभलकर बयान दे रहे हैं. कांग्रेस के प्रवक्ता ने इस बयान से खुद को अलग कर लिया है और कहा है कि कांग्रेस की नीति सर्वधर्म समभाव है, वहीं तृणमूल कांग्रेस ने भी इस बयान से असहमति जताई है. बीजेपी जानती है कि उत्तर भारत में ये संवेदनशील मुद्दा है, इसलिए वह इसे बड़ा बनाना चाहती है.
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Udhayanidhi Stalin, son of Tamilnadu CM MK Stalin, and a minister in the DMK Govt, has linked Sanatana Dharma to malaria and dengue… He is of the opinion that it must be eradicated and not merely opposed. In short, he is calling for genocide of 80% population of Bharat, who… pic.twitter.com/4G8TmdheFo
— Amit Malviya (@amitmalviya) September 2, 2023
मेरी राय है कि सनातन के अंत का उदयनिधि का आह्वान हिंसा या संहार के संबंध में नहीं है. बल्कि ये हिंदू धर्म की उन धारणाओं के खिलाफ है, जो पुरातनपंथी हैं. जैसे अंधविश्वास, जाति और वर्ण व्यवस्था आदि. सनातन का अंत एक तरह से हिंदू धर्म के सुधार और संशोधन का आह्वान है. ये आलोचना हिंदू धर्म के व्यापक दायरे के अंदर है और इसे हिंदू धर्म के सनातन मत पर बाहरी हमले की तरह नहीं देखा जाना चाहिए. इस लेख में मैं हिंदू, सनातन और संविधान के संदर्भ में पूरे विवाद को देखने की कोशिश करूंगा.
हिंदू धर्म के एक हिस्से के तौर पर सनातन
विवाद को समग्रता में समझने के लिए हिंदू और सनातन शब्द के अर्थ को समझना आवश्यक है. हालांकि कई वर्षों से इन दो शब्दों को समान अर्थ में इस्तेमाल करने की कोशिश होती है और इसलिए जब सनातन पर सवाल उठते हैं या आलोचना होती है, तो इसे हिंदुओं की आलोचना के तौर पर पेश किया जाता है. ये एक रणनीतिक तरीका है क्योंकि इससे सनातन के पक्ष में हिंदुओं की बहुसंख्या को एकजुट किया जा सकता है.
दरअसल हिंदू एक व्यापक अवधारणा है और सनातन इसकी कई सारी धाराओं में से एक धारा है. हिंदू शब्द पहली बार एक भौगोलिक पहचान के तौर पर अस्तित्व में आया. मिसाल के तौर पर, बाबरनामा में बाबर ने नए हासिल किए गए इलाके को हिंदुस्तान कहा है और यहां के लोगों को हिंदू. मुगलों के आने से पहले यहां मुसलमानों के कई समूह रह रहे थे और उनका यहां के बड़े हिस्से पर राज था, पर ये जमीन बाबर के लिए हिंदुस्तान ही थी.
भारतीय संविधान ने भी हिंदू की परिभाषा (अनुच्छेद 25) में सिख, बौद्ध और जैन को शामिल करके हिंदू शब्द की भौगोलिक व्याख्या को ही मान्यता दी है. संविधान के इस अनुच्छेद के स्पष्टीकरण में लिखा गया है – “खंड (2) के उपखंड (ख) में हिंदुओं के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उसके अंतर्गत सिख, जैन या बौद्ध धर्म के मानने वाले व्यक्तियों के प्रति निर्देश है और हिंदुओं की धार्मिक संस्थाओं के प्रति निर्देश का अर्थ तदनुसार लगाया जाएगा.”
ये दिलचस्प है कि अपनी चर्चित किताब हिंदुत्व में विचारक विनायक दामोदर सावरकर ने भी हिंदू शब्द की लगभग ऐसी ही व्य़ाख्या की है. उन्होंने उन तमाम मतों और पंथों को हिंदू माना है जिनकी पितृभूमि और पुण्यभूमि भारत है. उनके अर्थ में मुसलमान और ईसाई जैसे धर्म के लोग हिंदू नहीं है.
हिंदू का अर्थ लगाने के मामले में, संविधान की व्यवस्था भी इसी निष्कर्ष पर पहुंचती है. बेशक संविधान निर्माता सावरकर की तरह नहीं सोच रहे होंगे.
अगर हम हिंदू शब्द की संवैधानिक या बीजेपी की पसंद की सावरकरवादी व्याख्या को लें तो द्रविड़ नेता उदय सनातन पंथ के बारे में जो कह रहे हैं, उसे हिंदू धर्म के अंदर की बहस और विवाद के रूप में देखा जाना चाहिए.
संविधान के अनुच्छेद 25 के अंतर्गत हिंदुओं की व्यापक और भोगौलिक व्याख्या संविधान के मूल पाठ में है और ये किसी संविधान संशोधन से नहीं आई है. ये उस संविधान सभा की व्याख्या है, जिसमें नेहरू, पटेल, डॉ. आंबेडकर, मौलाना आजाद, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, पट्टाभिसीताराम्मैया जैसे दिग्गज थे.
इस व्याख्या का मतलब है कि चाहे वो आर्यसमाजी हो या सनातन, द्वैत हो या अद्वैत या विशिष्टाद्वेत, शैव हो, शाक्त हो, वैष्णव हो या स्मार्त, लिंगायत हो या रविदासिया, या अर्जक, सिख हो या जैन या बौद्ध ये सब संविधान के मुताबिक, हिंदू पहचान से जाने जाएंगे. इन पर एक समान सिविल कानून लागू होंगे. इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि किसी ने ये शपथ ली है कि वे ब्रह्मा, विष्णु, महेश और राम और कृष्ण को नहीं मानते, संविधान इसके बावजूद उसे हिंदू मान सकता है. उसी तरह, सनातन को खारिज करके आर्य समाजी मत को मानने के बावजूद कोई व्यक्ति हिंदू हो सकता है.
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सनातन और हिंदू की गुत्थी
सनातन का रूढ़ अर्थ कर्मकांडी हिंदू से है, जिसकी आस्था का प्रमुख स्रोत वेद के बाद आए ग्रंथ होते हैं. सनातन की कोई सर्वमान्य परिभाषा संभव नहीं है क्योंकि सनातन का न तो कोई एक धर्म ग्रंथ है और न कोई एक गुरु. कोई सर्वमान्य देवी-देवता भी नहीं है. इसे मानने वाले वेद के बाद लिखे गए विभिन्न ग्रंथों जैसे पुराण, उपनिषद, रामायण, महाभारत आदि में आस्था रखते हैं और वहां से अपनी धार्मिकता और कर्मकांड को लेते हैं.
इस मामले में हिंदू, ईसाइयों या मुसलमानों से अलग हैं, जिनकी धार्मिकता का स्रोत क्रमश: बाइबिल और कुरान हैं. बहुत सारे ग्रंथों को स्रोत के रूप में लेने के कारण सनातन की व्यवस्थाओं और व्याख्याओं में बहुलता है, जो अक्सर अराजकता में तब्दील हो जाती है. सनातन को बेशक शास्वत और स्थिर माना जाता है पर हमने पिछले ढाई सौ साल में सनातन पंथ को कई तरह से बदलते देखा है. सती जैसी प्रथाओं को निषेध हो चुका है. बहुविवाह प्रथा बंद हो चुकी है. विधवा विवाह होने लगे हैं और ज्यादातर मंदिरों में सभी जातियों के लोग जाने लगे हैं.
सनातन शब्द का पहली बार व्यापक प्रयोग आर्य समाज की चुनौती के क्रम में हुआ. बाद में हिंदू धर्म में सुधार के प्रयासों और हिंदू कोड बिल आदि के विरोध में सनातनी पहचान वाले लोग सामने आए. आर्य समाज वेदों के बाद की कई धार्मिक रचनाओं को जाल ग्रंथ या नकली ग्रंथ कह कर खारिज करता है, जबकि सनातनियों के लिए वे धार्मिक महत्व के ग्रंथ हैं. आर्य समाज मूर्ति पूजा का निषेध करता है और इस मामले में भी सनातनियों से अलग है.
ऐतिहासिक उदाहरणों को देखें तो किसी नए धर्म का जन्म हो या एक धर्म के अंदर विभिन्न पंथों का उभरना और फैलना-सिंकुड़ना अक्सर हिंसक रूप ले लेता है. ईसाई धर्म या इस्लाम जब अस्तित्व में आया तो उस समय मौजूद धर्मों के साथ टकराकर आगे बढ़ा. इस क्रम में हिंसा की दास्तान इन धर्मों से जुड़ी कथा-कहानियों का हिस्सा है. ईसाई धर्म में जब आधुनिकता की लहर आई और प्रोटेस्टेंट और कैल्विन मत सामने आए तो चर्च ने हिंसक तरीके से उन्हें रोकने की कोशिश की. इस्लाम में शिया और सुन्नी पंथ के बीच हिंसा अब तक नहीं रुकी है. इसी तरह भारत में बौद्धों और जैनियों को भी हिंसा झेलनी पड़ी. 12वीं सदी में जब बसवन्ना के नेतृत्व में तत्कालीन प्रभावी हिंदू मतों के कर्मकांडों और भेदभाव मूलक परंपराओं को चुनौती दी गई तो इसकी हिंसक प्रतिक्रिया हुई.
लेकिन ऐसा हमेशा नहीं होता. नए दौर में आर्य समाज से जब सनातन को चुनौती मिली तो ये विवाद कभी हिंसक नहीं हुआ. सिख पंथ जब हिंदू मुख्यधारा से अलग हुआ तो उसे हिंदू मुख्यधारा से हिंसा नहीं झेलनी पड़ी. यानी धर्मों की अंतरक्रियाओं और अंत: क्रियाओं के विभिन्न हिंसक और अहिंसक रूप हैं.
द्रविड़ आंदोलन ने सनातनी हिंदुत्व के जातिवाद, भेदभाव और पाखंड को चुनौती दी है. लेकिन उग्र नारों के बावजूद ये काम आम तौर पर, कानून और संविधान के दायरे में ही हुआ है. इस संदर्भ में देखें तो सनातन के अंत के आह्वान को समझना आसान हो जाएगा. इसी तरह बाबा साहब 1956 में जब नागपुर में हिंदू धर्म त्यागकर बौद्ध धम्म अपनाते हैं तो 22 प्रतिज्ञाएं पढ़ी जाती हैं. यहां हिंदू धर्म से मुक्ति की बात तो होती है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि वे हिंदुओं के अंत की कामना कर रहे हैं.
पेरियार, अन्नादुरै और करुणानिधि की परंपरा का एक नेता सनातन के अंत की बात नहीं करेगा तो आखिर करेगा क्या? इस वैचारिक संघर्ष से ही द्रविड़ आंदोलन उभरा है.
कोई कह सकता है कि उदयनिधि जिस भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं, वह गलत है और उससे हिंसा की ध्वनि आती है. ये मामला अगर कोर्ट तक जाता है तो शायद ये पता चलेगा कि अदालत ऐसे आरोपों को कैसे देखती है. लेकिन किसी शब्द या वाक्य का अर्थ उसके संदर्भ में ही समझा जाना चाहिए कि वह बात किस परिस्थिति में कही जा रही और बोल कौन रहा है. इस बात को इंग्लिश फिल्म 12 एंग्री मैन (1957) या उसके हिंदी रिमेक एक रुका हुआ फैसला में समझा जा सकता है. इसमें एक किरदार गुस्से में दूसरे किरदार को कहता है कि – मैं तुम्हें मार डालूंगा. लेकिन उसे समझाया जाता है कि वह दरअसल किसी को मारने का इरादा नहीं रखता. बात सिर्फ इतनी सी है कि वह बेहद गुस्से में है.
इसी तरह जब बीजेपी कांग्रेस मुक्त भारत की बात करती है तो इसका मतलब कांग्रेसियों का नरसंहार नहीं, कांग्रेस को चुनाव में हरा-हरा कर उसकी राजनीति और विचारधारा को मिटा देना या बेहद कमजोर कर देना है. इसी तरह गरीबी हटाओ नारे का मतलब गरीबों को मिटाना नहीं है. पोलियो को मिटाने का मतलब बीमारी को मिटाने से है. इसी तरह छुआछूत मिटाने का मतलब उन लोगों को मिटाना नहीं है जो छुआछूत करते हैं.
आखिरी बात, द्रविड़ आंदोलन तमिलनाडु में फल-फूल रहा है, लेकिन साथ में मंदिर भी फल-फूल रहे हैं. 1967 में पहली बार द्रविड़ पार्टी की सरकार बनने के बाद से वहां द्रविड़ विचारधारा की ही दो पार्टियों का राज रहा है. लेकिन इस बीच वहां हिंदू मंदिर भी आबाद हैं. भारत में जिस राज्य में सबसे ज्यादा मंदिर हैं, और बहुसंख्यक आबादी खुद को जनगणना में हिंदू गिनती है, वहीं द्रविड़ विचारधारा भी चल रही है. उदयनिधि स्टालिन की मां दुर्गा स्टालिन खुद हिंदू परंपरा को मानती हैं और अक्सर मंदिरों में उनको देखा जा सकता है.
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(दिलीप मंडल इंडिया टुडे हिंदी पत्रिका के पूर्व मैनेजिंग एडिटर हैं, और उन्होंने मीडिया और समाजशास्त्र पर किताबें लिखी हैं. उनका एक्स हैंडल @Profdilipmandal है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
(संपादन- इन्द्रजीत)
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