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Friday, 22 November, 2024
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‘लोकतंत्र में विश्वास बहाल करने में मदद मिली’ – उर्दू प्रेस ने राहुल गांधी की संसद में वापसी का स्वागत किया

दिप्रिंट का राउंड-अप कि कैसे उर्दू मीडिया ने पूरे सप्ताह विभिन्न समाचार घटनाओं को कवर किया, और उनमें से कुछ ने क्या संपादकीय रुख क्या अपनाया.

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नई दिल्ली: उर्दू अखबारों ने कांग्रेस नेता और वायनाड से सांसद राहुल गांधी की इस सप्ताह संसद में वापसी की सराहना करते हुए कहा कि इस घटनाक्रम ने “लोकतंत्र में विश्वास बहाल करने” में मदद की है.

सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2019 मानहानि मामले में उनकी सजा पर रोक लगाने के बाद सोमवार को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने राहुल की सदन की सदस्यता बहाल कर दी.

संपादकीय में, सियासत और इंकलाब जैसे उर्दू अखबारों ने कहा कि कई राजनीतिक पर्यवेक्षक चिंतित थे कि कांग्रेस नेता की सदस्यता बहाल नहीं की जाएगी. सियासत में एक लेख में कहा गया है, ”संसद में राहुल की वापसी (द्वारा निर्मित) राजनीतिक माहौल ने लोकतंत्र में विश्वास बहाल करने में मदद की है.”

इसके अलावा, संसद के मानसून सत्र में अन्य घटनाक्रम – जैसे विवादास्पद राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक, 2023 का पारित होना – ने भी उर्दू प्रेस के पहले पन्नों और संपादकीय कॉलम में महत्वपूर्ण स्थान बनाया. जैसा कि विपक्ष द्वारा नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ लाए गए ‘अविश्वास प्रस्ताव’ पर बहस, हरियाणा में सांप्रदायिक हिंसा और मणिपुर में जातीय संघर्ष पर चर्चा हुई.

समाचार पत्रों ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के तीसरे चंद्र मिशन, चंद्रयान -3 की प्रगति को भी कवर किया, जो अब चंद्रमा के करीब पहुंच रहा है. 10 अगस्त को एक रिपोर्ट में, सियासत ने इसरो का बयान छापा कि अंतरिक्ष यान ने एक और निचली कक्षा में प्रवेश करके चंद्रमा के और भी करीब आ गया है.

इस सप्ताह उर्दू प्रेस द्वारा कवर की गई खबरों का सारांश यहां दिया गया है.

राहुल गांधी

तीनों उर्दू अखबारों – सियासत, इंकलाब और सहारा – ने ‘मोदी सरनेम’ मानहानि मामले में राहुल गांधी की सजा पर सुप्रीम कोर्ट की रोक के साथ-साथ इस हफ्ते उनकी संसद में वापसी की खबर दी.

8 अगस्त को अपने संपादकीय में – वायनाड सांसद की सदस्यता बहाल होने के एक दिन बाद – इंकलाब ने कहा कि राहुल की संसद में वापसी का सरकार के साथ-साथ विपक्ष को भी स्वागत करना चाहिए. संपादकीय में कहा गया, यह अच्छी बात है कि बिना किसी देरी के राहुल की सदस्यता बहाल कर दी गई, क्योंकि कई राजनीतिक पर्यवेक्षक चिंतित थे कि मानसून सत्र के दौरान ऐसा नहीं होगा, उन्होंने कहा कि यह देखकर संतुष्टि हो रही है कि अखबारों सहित जिन लोगों को भी इसमें संदेह था वह गलत साबित हुआ था.

उसी दिन अपने संपादकीय में, सियासत ने उस भूमिका के बारे में लिखा जो राहुल विपक्ष के भारतीय राष्ट्रीय विकास गठबंधन, या भारत में निभा सकते हैं. संपादकीय के मुताबिक, जिस तरह से विपक्ष के नेतृत्व का भार परोक्ष रूप से राहुल पर पड़ा है, उससे सभी को कुछ उम्मीद जगी है. संपादकीय में कहा गया है कि इन आशाओं की पूर्ति में सरकार या अन्य राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों द्वारा पैदा की गई बाधाएं निरर्थक साबित हो रही हैं, साथ ही कहा गया है कि राहुल को देश के लोगों से समर्थन मिल रहा है.


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संसद

प्रस्तावित जीएनसीटीडी कानून को अनौपचारिक रूप से दिल्ली सेवा विधेयक के रूप में जाना जाता है, जो दिल्ली के उपराज्यपाल – केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त एक व्यक्ति – को दिल्ली की सिविल सेवाओं पर अंतिम अधिकार देता है. दिल्ली की सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (आप) सहित विपक्ष इस विधेयक को संघवाद पर हमले के रूप में देखता है.

10 अगस्त के संपादकीय में, सियासत ने कहा कि दिल्ली सेवा विधेयक के माध्यम से, राष्ट्रीय राजधानी पर केंद्र सरकार की पकड़ को मजबूत करने का प्रयास किया जा रहा है – जो “संघीय शासन के सिद्धांतों का उल्लंघन” है.

संपादकीय में दावा किया गया है कि कुछ पार्टियां अपने हितों की रक्षा के लिए और केंद्रीय जांच एजेंसियों के डर से भी इस कदम का समर्थन कर रही हैं. इसमें कहा गया है कि इन पार्टियों को यह समझने की जरूरत है कि अगर आज किसी अन्य संगठन को निशाना बनाया जा रहा है, तो कल यह वे ही हो सकते हैं.

तीनों अखबारों ने कांग्रेस सांसद और लोकसभा में कांग्रेस के उपनेता गौरव गोगोई द्वारा सदन में सरकार के खिलाफ लाए गए ‘अविश्वास प्रस्ताव’ पर संसद में हुई बहस की भी खबर दी. उन्होंने राहुल गांधी के उस भाषण जिसमें उन्होंने णिपुर में जातीय संघर्ष को ‘भारत माता’ पर हमला कहा था उस प्रस्ताव पर हुई बहस के बारे में विस्तार से बताया, गृहमंत्री अमित शाह की राज्य की बीरेन सिंह सरकार का समर्थन करने की प्रतिक्रिया और अंत में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कांग्रेस पर हमला शामिल है.

नूंह और मणिपुर हिंसा

तीनों अखबारों ने पिछले हफ्ते की सांप्रदायिक हिंसा के बाद नूंह में विध्वंस अभियान चलाने के हरियाणा सरकार के फैसले की सूचना दी. नूंह में अभियान पर स्वत: संज्ञान लेते हुए, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने 6 अगस्त को विध्वंस अभियान पर रोक लगा दी, यह सोचते हुए कि क्या यह “जातीय सफाई” का काम था.

विध्वंस अभियान पर अपने संपादकीय में, सियासत ने कहा कि भारत में, राजनीति और धर्म को जोड़ने की प्रवृत्ति है. इसमें कहा गया है कि हर साल कोई न कोई विधानसभा चुनाव होने के कारण धर्म और राजनीति के मिश्रण की इस प्रवृत्ति के कारण देश में माहौल तेजी से खराब हो रहा है.

8 अगस्त को, तीनों अखबारों ने हरियाणा में मुस्लिमों के व्यवसायों पर प्रतिबंध लगाने के लिए हिंदू महापंचायतों के बारे में रिपोर्ट की.

उसी दिन सहारा के एक संपादकीय में नूंह में हरियाणा सरकार के विध्वंस अभियान पर सवाल उठाया गया. संपादकीय में पूछा गया कि सिर्फ आरोपों के आधार पर लोगों के घर गिराने का फैसला क्यों लिया गया.

संपादकीय में पूछा गया कि क्या कोई सरकार किसी ऐसे व्यक्ति को दोषी मानकर दंडित कर सकती है जिस पर अपराध का महज संदेह हो.

समाचार पत्रों ने मणिपुर के लिए समितियां नियुक्त करने के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की सूचना दी. 8 अगस्त को, अदालत ने कहा कि वह मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त दत्तात्रेय पडसलगीकर को मणिपुर में यौन हिंसा के आरोपों की केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) जांच के “समग्र मॉनिटर” के रूप में नियुक्त कर रही है. इसने हिंसा प्रभावित मणिपुर में राहत और पुनर्वास की निगरानी के लिए उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीशों का एक पैनल भी नियुक्त किया.

9 अगस्त को, इंकलाब ने उत्तर प्रदेश विधानसभा के मानसून सत्र में राज्य के वित्त मंत्री सुरेश खन्ना द्वारा 1980 के मुरादाबाद दंगों पर एक रिपोर्ट पेश करने के बाद हंगामे की भी सूचना दी, जिसमें 83 लोग मारे गए थे और कई घायल हुए थे.

उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एम.पी. की अध्यक्षता में एक जांच आयोग बनाया गया. सक्सेना ने पहली बार नवंबर 1983 में रिपोर्ट सौंपी थी.

जब रिपोर्ट संसद में पेश की गई तो समाजवादी पार्टी ने 40 साल पुरानी रिपोर्ट लाने के पीछे योगी सरकार की मंशा पर सवाल उठाया. हालांकि, बाद योगी सरकार ने यह कहकर प्रतिक्रिया दी कि यह सच्चाई सामने लाई जा रही है.

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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