नई दिल्ली: चुराचांदपुर में एक राहत शिविर के एक खाली कमरे में जीवित बचे दो लोगों में से एक 40 वर्षीय महिला याद करते हुए बताती हैं कि कैसे 3 मई को उसके गांव पर हमला किया गया था. उसी दिन मणिपुर में जातीय झड़पें अचानक शुरू हो गई थीं. अगली सुबह तक उसने अपने चार बच्चों को अपने घर से लगभग 40 मिनट की दूरी पर स्थित नागा बस्ती में आश्रय लेने के लिए भेज दिया था.
वह और उनके पति कांगपोकपी जिले में अपने गांव से भागने वाले अंतिम कुछ लोगों में से थे. वे आठ अन्य लोगों के साथ पास के जंगल में छिप गए, लेकिन उन्हें मैतेई भीड़ ने पकड़ लिया.
40 साल की उस महिला ने दिप्रिंट को बताया, “भीड़ ने पहाड़ियों पर कुकी गांवों को जला दिया था और वे लोग लूटे गए सुअरों, गायों और बकरियों के साथ लौट रहे थे. आवारा बकरियां हमारी तरफ आ गईं और इस तरह भीड़ ने हमें ढूंढ लिया,”
वह याद करते हुए बताती हैं कि कैसे भीड़ ने कुकी गांव वालों को दो समूहों में बांट दिया था और उन्हें एक अपेक्षाकृत कम उम्र की महिला (युवती) के साथ मुख्य सड़क की दिशा में ले गए थे, जिसे वायरल वीडियो में भी देखा जा सकता है. कम उम्र की महिला के साथ उसके भाई और पिता भी थे.
महिला ने कहा, “हमारा सारा सामान जल गया था; भीड़ हमें इस बात का विश्वास दिलाने की कोशिश करती रही कि वे हमें नुकसान नहीं पहुंचाएंगे,”
लेकिन जैसे-जैसे भीड़ बढ़ती गई, लात-घूंसे चलने लगे. वह याद करते हुए बताती हैं कि कैसे पुरुषों ने उनके कपड़े खींचे और गलत तरीके से इधर-उधर उनके शरीर को छुआ. आगे उन्होंने कहा कि उन्होंने कम उम्र की युवा महिला और उसके भाई के साथ मुख्य सड़क पर खड़ी एक पुलिस जीप में शरण ली, लेकिन इससे उन्हें कोई राहत नहीं मिली और उनके साथ सब कुछ वैसे ही जारी रहा.
भीड़ तब जीप को हिलाने लगी और उस महिला के भाई को बाहर खींच लिया.
उसने कहा, “जीप में दो पुलिसकर्मी और एक ड्राइवर थे. लेकिन उन्होंने हमारी मदद नहीं की. इसके बजाय, उन्होंने जीप छोड़ दी जिससे भीड़ को खुली छूट मिल गई,” उसने कहा कि युवती के पिता और भाई को भीड़ ने पीट-पीट कर मार डाला था और उनके शव नाले में फेंक दिए थे.
उसने कहा कि उसके बाद भीड़ फिर उन दो महिलाओं की ओर मुड़ गई जिन्हें कपड़े उतारने के लिए मजबूर किया गया और सड़क के किनारे धान के खेत में घसीटा गया. तभी किसी ने यह वीडियो रिकॉर्ड कर लिया जो अब सोशल मीडिया पर सामने आया है.
धान के खेत में, पुरुषों के दो समूहों ने महिलाओं को कुछ मीटर की दूरी पर घेर लिया और कथित तौर पर उनके साथ बलात्कार किया. 40 साल की महिला ने दिप्रिंट को बताया, “मैं उनसे मुझे छोड़ देने की विनती करती रही. मैंने उन्हें बताया कि मैं एक मां हूं, यह सोचकर कि शायद उन्हें दया आएगी,”
यह भी पढेंः मणिपुर में बलात्कारों के बारे में कोई बात नहीं करना चाहता. हिंसा के बीच एक सन्नाटा छाया हुआ है
लेकिन उसकी गुहार किसी ने नहीं सुनी.
एक काफी बड़ी भीड़ ने कुछ मीटर की दूरी पर लेटी हुई युवा महिला को घेर लिया. अपेक्षाकृत ज्यादा उम्र की महिला ने बताया कि वह उसकी चीखें और पुरुषों को चिल्लाते हुए सुन सकती थी कि “कौन इसका बलात्कार करना चाहता है”.
उसने यह भी कहा कि उसने भीड़ में परिचित चेहरे देखे और उनसे उसे और दूसरी महिला को जाने देने के लिए गिड़गिड़ायी. उसने कहा, कुछ पुरुष पड़ोसी गांवों से थे.
यह घटना दो घंटे तक चली जिसके बाद भीड़ उन्हें वापस उसी स्थान पर ले गई जहां उनके कपड़े पुलिस जीप के बगल में पड़े थे.
उसने कहा, “युवती अपने पिता और भाई को मृत देखकर टूट गई. फिर कुछ लोग हमारे पास आए और हमसे कहा कि हम चले जाएं, नहीं तो हम भी मारे जाएंगे,”.
उसने याद करते हुए यह भी बताया कि कैसे कुछ पुरुषों ने उसे और युवा महिला को उसकी टी-शर्ट सौंप दी लेकिन कुछ अन्य लोगों ने दोबारा उसे उनसे छीन लिया.
इसके बाद शॉल और दुपट्टे में लिपटी दोनों महिलाएं अपने गांव की ओर जाने वाले जंगल के रास्ते की ओर वापस जाने लगीं – जो तब तक काफी हद तक सुनसान हो चुका था.
एक बार जब वे गांव में वापस आ गईं, तो वे उन लोगों के साथ हो गईं जो हिंसा से बचने के लिए भाग रहे थे और कई दिनों तक जंगलों से गुजरने और नागा गांवों में रुकने के बाद, असम राइफल्स के जवानों की मदद से चुराचांदपुर के राहत शिविरों में पहुंचीं.
40 साल की महिला ने दिप्रिंट को बताया कि वह मेडिकल जांच के लिए कभी अस्पताल नहीं गईं. मणिपुर के सूत्रों ने कहा कि युवा महिला हमले के बाद मानसिक रूप से काफी नाजुक स्थिति में थी और अपने परिवार के साथ दक्षिणी जिले में चली गई थी.
दिप्रिंट द्वारा सबसे पहले रिपोर्ट किए गए यौन उत्पीड़न और बलात्कार के बाद जिंदा बचे लोगों की पीड़ा, भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराध को लेकर चुप्पी और शर्म की संस्कृति के कारण काफी हद तक अनसुनी रह गया थी.
चुप्पी तोड़ना
भीड़ द्वारा दो कुकी महिलाओं को नग्न कर घुमाने का वीडियो सोशल मीडिया पर सामने आने के एक दिन बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ और मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने राज्य में पहली बार शुरू हुई जातीय हिंसा के एक दिन बाद 4 मई को हुए इस हमले की निंदा करते हुए बयान दिए.
संसद के मानसून सत्र से पहले मीडिया को संबोधित करते हुए, पीएम मोदी ने कहा कि घटना के बारे में जानकर उनका दिल “दर्द और गुस्से” से भर गया है. उन्होंने संवाददाताओं से कहा, “मैं अपने देशवासियों को आश्वस्त करना चाहता हूं कि किसी भी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा. मणिपुर की बेटियों के साथ जो हुआ उसे कभी माफ नहीं किया जा सकता,”
सीजेआई चंद्रचूड़ ने घटना का संज्ञान लेते हए कहा कि अदालत इस घटना से “बहुत परेशान” है और या तो केंद्र या राज्य सरकार को हस्तक्षेप करना चाहिए और कार्रवाई करनी चाहिए अन्यथा अदालत ऐसा करेगी.
दिप्रिंट से बात करते हुए, मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने हमले को मानवता के खिलाफ अपराध करार दिया और अपराधियों के लिए मौत की सजा पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार स्वत: संज्ञान लेगी और जांच का आदेश देगी.
हालांकि, मणिपुर पुलिस के उच्च पदस्थ सूत्रों ने पहले दिप्रिंट को बताया था कि कुकी और मैतेई के बीच जातीय हिंसा भड़कने के बाद उसे कभी भी यौन अपराधों की कोई आधिकारिक शिकायत नहीं मिली, लेकिन इस विशेष मामले में वीडियो सामने आने के बाद बुधवार को कार्रवाई शुरू की गई है. मणिपुर में छह कुकी महिलाओं के साथ कथित बलात्कार की खबर दिप्रिंट द्वारा प्रकाशित किए जाने के एक सप्ताह बाद भीड़ द्वारा दो महिलाओं को नग्न घुमाने की घटना वायरल हो गई.
गुरुवार को मणिपुर पुलिस ने इस मामले के सिलसिले में 32 वर्षीय हुइरेम हेरोदास और तीन अन्य को गिरफ्तार किया. इसके बाद, 18 मई की एक एफआईआर – इस संबंध में बी. फीनोम गांव के ग्राम प्रधान की शिकायत पर आधारित – सामने आई, जिसमें आरोप लगाया गया कि 4 मई को एक युवती के साथ “दिनदहाड़े बेरहमी से सामूहिक बलात्कार किया गया”.
इस बीच, राज्यपाल अनुसुइया उइके ने गुरुवार को पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) राजीव सिंह से मुलाकात की और उन्हें “इस जघन्य अपराध को अंजाम देने वाले अपराधियों के खिलाफ मामला दर्ज करने और कानून के अनुसार सजा देने के लिए तत्काल कदम उठाने” का निर्देश दिया. राज्यपाल ने मीडिया आउटलेट्स को यह भी बताया कि उन्होंने राज्य पुलिस प्रमुख को “उस थाने के पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया, जहां इस घटना की शिकायत दर्ज की गई थी, क्योंकि उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की.”
मणिपुर में जातीय हिंसा ने कम से कम 150 लोगों की जान ले ली है और हजारों लोग विस्थापित हो गए हैं. 3 मई को हिंसा की शुरुआती घटनाएं ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर (एटीएसयूएम) द्वारा चुराचांदपुर में आयोजित एक रैली से पहले हुई थीं, जिसमें मणिपुर उच्च न्यायालय द्वारा सरकार को मैतेईयों के लिए अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने पर विचार करने की सिफारिश का विरोध किया गया था.
इस रिपोर्ट को अतिरिक्त इनपुट के साथ अपडेट किया गया है.
(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)
यह भी पढ़ेंः मणिपुर में बलात्कारों के बारे में कोई बात नहीं करना चाहता. हिंसा के बीच एक सन्नाटा छाया हुआ है