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Saturday, 2 November, 2024
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फिल्मी कलाकारों के जरिए राजनीति के दिग्गजों को घेरने की कोशिश

फिल्मी हस्तियों के प्रशंसकों की बड़ी संख्या होती है जो वोटों में भी परिवर्तित होती रहती हैं. इसीलिए राजनीतिक पार्टियां विरोधी नेताओं के खिलाफ उन्हें चुनावी मैदान में उतारती हैं.

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केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह के खिलाफ लखनऊ से फिल्म अभिनेत्री व शत्रुघ्न सिन्हा की पत्नी पूनम सिन्हा को समाजवादी पार्टी ने उम्मीदवार बनाया है. देश की राजनीति में यह पहला मौका नहीं है जब किसी बड़े नेता को किसी फिल्मी हस्ती से घेरने की कोशिश की गयी है.

उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ में ही समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के खिलाफ भोजपुरी फिल्मों के अमिताभ बच्चन माने जाने वाले दिनेश लाल यादव उर्फ ‘निरहुआ’ को भारतीय जनता पार्टी ने उम्मीदवार बनाया है. यूपी की ही एक अन्य सीट गोरखपुर से भारतीय जनता पार्टी ने भोजपुरी सिनेमा के ही एक अन्य अभिनेता रवि किशन को उम्मीदवार बनाया है. गोरखपुर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गढ़ रहा है. इस सीट से योगी आदित्यनाथ 1998 से 2014 तक लगातार पांच बार चुनाव जीते लेकिन 2018 के उपचुनाव में सपा-बसपा के गठबंधन के कारण उनका यह किला ढह गया. इसी कारण इस बार भाजपा ने अभिनेता रवि किशन पर दांव लगाया है.

लखनऊ भारतीय जनता पार्टी का गढ़ रहा है. यहां से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी 1991 से 2004 तक लगातार चुनाव जीतते रहे. वाजपेयी को भी कई बार विपक्षी पार्टियों ने फिल्मी हस्तियों को चुनाव मैदान में उतारकर घेरने की कोशिश की. लेकिन वाजपेयी कभी नहीं हारे.

1996 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने अभिनेता राज बब्बर को वाजपेयी के खिलाफ उतारा. राज बब्बर अटल बिहारी वाजपेयी से लगभग दो लाख वोटों के भारी अंतर से हारे. इसके बाद अगले लोकसभा चुनाव 1998 में समाजवादी पार्टी ने वाजपेयी के खिलाफ प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक मुज़फ्फर अली को उतारा. मुज़फ्फर अली को 2,15,475 वोट और वाजपेयी को 4,31,738 वोट मिले. इस बार वाजपेयी की जीत का अंतर बढ़ गया. 2014 के लोकसभा चुनाव में जब राजनाथ सिंह भाजपा के उम्मीदवार बने तो कांग्रेस ने मॉडल और अभिनेत्री नफीसा अली को उनके खिलाफ उम्मीदवार बनाया. इस चुनाव में नफीसा को जनता का कुछ खास समर्थन नहीं मिला. उन्हें केवल 61,477 वोट मिले.

कुल मिलकर हम देखते हैं कि लखनऊ की जनता फिल्मी हस्तियों पर नेताओं को ही तरजीह देती रही है. इस बार के चुनाव में राजनाथ सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ रहीं पूनम सिन्हा मॉडल और अभिनेत्री रह चुकी हैं. वे अभिनेत्री सोनाक्षी सिन्हा की मां हैं. शत्रुघ्न सिन्हा पटना साहिब सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार हैं.


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दिग्गज नेताओं को फिल्मी हस्तियों द्वारा घेरने का सबसे बड़ा उदाहरण 1984 का इलाहाबाद लोकसभा चुनाव है. यहां से उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नन्दन बहुगुणा चुनाव मैदान में थे. उनके खिलाफ कांग्रेस का कोई भी बड़ा नेता चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं हुआ. यहां तक कि विश्वनाथ प्रताप सिंह और इलाहाबाद के तत्कालीन सांसद के पी तिवारी ने भी राजीव गांधी के कहने के बावजूद चुनाव लड़ने से मना कर दिया था. ऐसी स्थिति में राजीव गांधी ने उस समय के सुपर स्टार अमिताभ बच्चन को बहुगुणा के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार किया.

इलाहाबाद अमिताभ बच्चन की जन्मभूमि है लेकिन वे लंबे समय से मुंबई में रह रहे थे. अमिताभ चुनाव से कुछ दिन पहले ही इलाहाबाद पहुंचे. 65 वर्षीय बहुगुणा अपने भाषणों में कहते कि मेरा घर इलाहाबाद में है और मैं 40 वर्षों से यहां विकास का काम कर रहा हूं जो मेरी जीत के लिए काफी है. मैं कांग्रेस पार्टी का धन्यवाद देता हूं कि उन्होंने यहां की जनता के लिए फ्री मनोरंजन की व्यवस्था कर दी है.

अमिताभ बच्चन की पत्नी जया बच्चन ने चुनाव प्रचार के दौरान लोगों से अपील किया कि मैं इलाहाबाद की बहू हूं और मुझे मुंह दिखाई में वोट दीजिये. इलाहाबाद में कुल डाले गए वोटों का 68.21 प्रतिशत अमिताभ को मिला. बहुगुणा लगभग तीन लाख वोटों से हारे. पूरे भारत की राजनीति में बहुगुणा की हार के कारण खलबली मच गई. लेकिन अमिताभ बच्चन इलाहाबाद की जनता की उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे और तीन साल में ही बोफोर्स कांड में अपने भाई का नाम आने के बाद सांसद सीट से त्यागपत्र दे दिया. इसके बाद जो उपचुनाव हुआ उसमें वी. पी. सिंह ने जीत दर्ज़ की. बहुगुणा चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा सके.

1989 में वी पी सिंह की सरकार के समय राम मंदिर आंदोलन का नेतृत्व करने वाले लालकृष्ण आडवाणी का ग्राफ लोकप्रियता के शिखर पर था. 1991 के लोकसभा चुनाव में आडवाणी ने नयी दिल्ली और गांधीनगर दोनों क्षेत्रों से नामांकन दाखिल किया. आडवाणी को घेरने के लिए कांग्रेस ने 60 और 70 के दशक के सुपर स्टार राजेश खन्ना को उतारा. आडवाणी यह चुनाव महज 1,589 वोटों से जीत पाये. इस सीट पर समाजवादी नेता और पत्रकार सुरेन्द्र मोहन की पत्नी मंजू मोहन ने जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़ा था और उन्हें 20,000 वोट मिले थे. लोगों का कहना था कि यदि मंजू मोहन मोहन ने वोट नहीं काटे होते तो आडवाणी के लिए राजेश खन्ना ने मुश्किलें खड़ी कर ही दी थीं.

2004 के लोकसभा चुनाव में फिल्म अभिनेता धर्मेंद्र और गोविंदा ने जीत दर्ज़ की थी. कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में गोविंदा ने मुम्बई उत्तर से पांच बार के सांसद भाजपा नेता व पूर्व पेट्रोलियम मंत्री राम नाईक को पराजित किया था.

2014 के लोकसभा चुनाव में यहां से भाजपा के गोपाल शेट्टी ने कांग्रेस के संजय निरूपम को चार लाख से भी अधिक वोटों के अंतर से हराया था. वोटों के इतने बड़े अंतर को पाटने के उद्देश्य से कांग्रेस ने 2019 के चुनाव में अभिनेत्री उर्मिला मतोंडकर को टिकट दिया है. धर्मेंद्र बीकानेर से भाजपा की टिकट पर जीते थे. उन्होने तत्कालीन सांसद रामेश्वरलाल डूडी को उनकी परम्परागत जाट बहुल क्षेत्र से हराया था. 2004 में टीवी सीरियलों की अभिनेत्री स्मृति ईरानी को कांग्रेस के दिग्गज नेता कपिल सिब्बल के खिलाफ चांदनी चौक से उतारा और 2014 में राहुल गांधी के खिलाफ अमेठी से उतारा. हालांकि दोनों बार स्मृति सफल नहीं हो पाईं.

2009 के लोकसभा चुनाव में अभिनेता राज बब्बर ने मुलायम सिंह यादव के गढ़ मानी जाने वाली सीट फिरोज़ाबाद सीट से उनकी बहू डिम्पल यादव को हराकर खलबली मचा दी थी. 2014 के लोकसभा चुनाव में अभिनेत्री हेमा मालिनी ने अजित सिंह के बेटे जयंत चौधरी को हराया था.

दक्षिण भारत में ऐसी फिल्मी हस्तियों की एक पूरी शृंखला है जिन्होने राजनीति में भी सफलता पाई. एन टी रामाराव, एम जी रामचंद्रन, जयललिता, एम करुणानिधि आदि फिल्मी हस्तियों ने तो लंबे समय तक मुख्यमंत्री पद की ज़िम्मेदारी भी संभाली. दरअसल इन फिल्मी हस्तियों के प्रशंसकों की बड़ी संख्या होती है जो वोटों में भी परिवर्तित होती रहती हैं. इसीलिए राजनीतिक पार्टियां विरोधी नेताओं के खिलाफ उन्हें चुनावी मैदान में उतारती हैं. दूसरी तरफ मीडिया की सुर्खियां भी मिल जाती हैं.


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अंत में पुराने ज़माने के सुपर स्टार देवानंद का ज़िक्र करना भी ज़रूरी है. उन्होंने आपातकाल के बाद हिन्दी फिल्म जगत के कई दिग्गजों के साथ मिलकर एक राजनीतिक पार्टी बनाई थी. नेशनल पार्टी ऑफ इंडिया नाम से बनी इस पार्टी के प्रथम अध्यक्ष देवानंद ही थे. 1979 में एनपीआई की एक रैली मुंबई के शिवाजी पार्क में हुई थी जिसमें बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए थे. पार्टी ने बाकायदा घोषणा पत्र भी जारी किया था जो काफी चर्चित हुआ था जिसमें उन्होंने पूरे देश में अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूल खोलने का वादा किया था. अपनी आत्मकथा रोमांसिंग विथ लाइफ में देवानंद ने लिखा है कि आपातकाल के दौरान वे हरदम संजय गांधी के लोगों के निशाने पर रहे.

1980 में जब लोकसभा चुनाव हुए तो यह पार्टी एक भी उम्मीदवार नहीं उतार पायी और कुछ ही दिनों के बाद पार्टी भंग कर दी गयी.

(लेखक हिंदी में पीएचडी हैं और दिल्ली विश्वविद्यालय के लक्ष्मीबाई कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं.)

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