सैन फ्रांसिस्को: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की कुछ दिन पहले ही मुलाकात के दौरान कई बड़े रक्षा सौदों की घोषणा के तीन सप्ताह से अधिक समय बाद, अमेरिकी विदेश विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने विश्वास जताया कि रूस से दूर भारत का सैन्य उपकरणों के आयात में विविधता लाना इस सौदे को सकारात्मक दिशा में ले जाएंगे.
इस सप्ताह पत्रकारों के एक ग्रुप से बात करते हुए और स्पष्ट रूप से मॉस्को का उल्लेख किए बिना, विदेश विभाग की एक वरिष्ठ अधिकारी मेलिसा डोहर्टी ने कहा, “हम चाहते हैं कि भारत अपने सैन्य उपकरणों में विविधता लाने में सक्षम हो. हम सह-उत्पादन सहित बड़े सैन्य सहयोग पर भी विचार कर रहे हैं.”
अभी भी रूस भारत का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता बना हुआ है, उसके बाद फ्रांस का नंबर आता है.
हालांकि, इस जून में पीएम मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान, नई दिल्ली ने भारतीय सेना, नौसेना और वायु सेना के लड़ाकू विमानों के लिए जनरल इलेक्ट्रिक से इंजन खरीदने और 31 प्रीडेटर ड्रोन के लिए 3 बिलियन डॉलर के सौदे की घोषणा की.
विशेषज्ञों ने इस नए सौदों को 2005 में पूर्व भारतीय प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह और पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के बीच हस्ताक्षरित नागरिक परमाणु समझौते के आधार पर देखा.
22 जून को जारी एक संयुक्त बयान में वाशिंगटन और नई दिल्ली ने अपने प्रशासन को उन नीतियों को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध किया जो उद्योग, सरकार और शैक्षणिक संस्थानों के बीच अधिक प्रौद्योगिकी साझाकरण, सह-विकास और सह-उत्पादन के अवसरों की सुविधा प्रदान करती हैं.
डोहर्टी ने कहा, “हमें लगता है कि भारत को अपनी क्षेत्रीय अखंडता और सुरक्षा बनाए रखने के प्रयासों में एक विविध आपूर्ति श्रृंखला होनी चाहिए.”
यह ऐसे समय में आया है जब भारत चीन के बीच सीम पर तनावपूर्ण स्थिति बनी हुई है. 2020 गलवान घाटी संघर्ष के बाद से दोनों देशों के रिश्ते में कड़वाहट जारी है.
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दोहरे कारक
विशेषज्ञों का मानना है कि जहां हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते आक्रामक व्यवहार के जवाब में भारत को मजबूत करना महत्वपूर्ण है, वहीं मॉस्को से दूर अपने सैन्य उपकरणों का विविधीकरण प्राथमिकता है.
एसोसिएशन ऑफ साउथईस्ट एशियन नेशंस में पूर्व अमेरिकी राजदूत स्कॉट मार्सिल ने दिप्रिंट को बताया, “मुझे लगता है कि यह दोनों है. यह मुख्य रूप से (भारत और अमेरिका के बीच) संबंधों को मजबूत करने और इस प्रक्रिया में भारत को अपने सैन्य उपकरणों में विविधता लाने में मदद करने के बारे में है.”
इस बीच, विदेश नीति संस्थान एस्पेन स्ट्रैटेजी ग्रुप और एस्पेन सिक्योरिटी फोरम के कार्यकारी निदेशक अंजा मैनुअल ने संकेत दिया कि हालांकि भारत और अमेरिका कभी भी “औपचारिक सहयोगी” नहीं हो सकते हैं, लेकिन चीन की चिंता ही उन्हें एकजुट करती है.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “अमेरिका और भारत बहुत करीबी साझेदार हैं और लगातार करीब आ रहे हैं. हम कभी भी औपचारिक सहयोगी नहीं बनेंगे लेकिन हम ‘चीन की चिंता’ को बहुत समान तरीके से देखते हैं.”
मैनुअल ने कहा, “हम दोनों के चीन के साथ बड़े व्यापारिक संबंध हैं. मुझे लगता है कि अब आप अमेरिका और भारतीय विदेश नीति के बीच काफी समानता देख रहे हैं.”
सीमा पर चल रहे गतिरोध के बावजूद, भारत और चीन के द्विपक्षीय व्यापार में पिछले दो वर्षों में तेजी आई है, लेकिन बताया गया है कि 2023 की पहली छमाही में इसमें गिरावट देखी गई है, जिसका मुख्य कारण चीन की आर्थिक मंदी है.
इसी तरह, यूएस ब्यूरो द्वारा इस साल की शुरुआत में प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका और चीन ने अपने व्यापार युद्ध और भू-राजनीतिक तनाव के बावजूद पिछले साल द्विपक्षीय व्यापार में $ 690.6 बिलियन का रिकॉर्ड उच्च स्तर दर्ज किया, जो 2018 में $ 658.8 बिलियन के पिछले रिकॉर्ड को पार कर गया.
हालांकि, चीन की मंदी के कारण अमेरिकी माल आयात में बीजिंग की हिस्सेदारी कथित तौर पर 2023 के पहले चार महीनों में गिरकर 13.3 प्रतिशत हो गई.
(संपादन: ऋषभ राज)
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