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Saturday, 23 November, 2024
होमदेशआंसू, दुख भरी कहानियां और मुस्कुराने की कुछ वजहें - मणिपुर के कुकी राहत शिविर में कैसी है ज़िंदगी

आंसू, दुख भरी कहानियां और मुस्कुराने की कुछ वजहें – मणिपुर के कुकी राहत शिविर में कैसी है ज़िंदगी

3 मई को मणिपुर में गैर-आदिवासी मैतेई और आदिवासी कुकी के बीच झड़पें हुईं. लेकिन टेंग्नौपाल राहत शिविर में शरण लिए लोगों क एक-दूसरे के सुख-दुख में सांत्वना मिली है.

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टेंगनौपाल, मणिपुर: 46 वर्षीय थांगमिनसियाम वैफेई को नहीं पता था कि उसके अंदर यह है. 4 मई को, जैसे ही उन्होंने सुना कि पेट्रोल बमों से लैस एक भीड़ मणिपुर के कांगपोकपी जिले के एक गांव सैलोम पैटन की ओर आ रही है, उन्होंने झट से अपने 17 वर्षीय दिव्यांग बेटे को उठाया और भागने लगे.

जल्द ही, उन्हें अहसास हुआ कि अपने बेटे को लंबी दूरी तक ले जाना चुनौतीपूर्ण होगा, लेकिन बीच में रुकना कोई विकल्प नहीं था. तब तक उनका बेटा भी धैर्य खोने लगा था और उसे गुस्सा भी आ रहा था. थांगमिनसियाम ने अपनी सारी ताकत इकट्ठा करते हुए अपनी दौड़ फिर से शुरू की और तब तक चलते रहे जब तक कि वे एक जंगली इलाके में नहीं पहुंच गए. इसके बाद जंगली इलाके में वे अंततः आराम करने के लिए रुके.

3 मई को, मणिपुर में गैर-आदिवासी मैतेई और आदिवासी कुकी के बीच जातीय झड़पें हुईं. तब से जारी हिंसा में 150 से अधिक लोग मारे गए हैं और कई हज़ार लोग विस्थापित हुए हैं.

जैसे-जैसे भीड़ की हिंसा जारी रही, थांगमिनसियाम वैफेई, उनकी पत्नी तिंगनगैपक वैफेई अपनी हर तरह की कोशिशों के बावजूद अन्य भाग रहे ग्रामीणों के साथ नहीं रह सके और जल्द ही पीछे छूट गए. लेकिन थांगमिनसियाम ने अपने और उग्र भीड़ के बीच उतनी ही दूरी बनाए रखने की ठान ली थी. उन्होंने सेंट पीटर स्कूल, टेंग्नौपाल में कुकी राहत शिविर से बात करते हुए कहा, “मैं अपनी पत्नी के साथ और बेटे को गोद में लेकर सात किलोमीटर तक चढ़ाई की. वह ज़ोर-ज़ोर से रो रहा था, खुद को आज़ाद करने की कोशिश कर रहा था, लेकिन मैं उसे नहीं छोड़ सकता था,”.

दो रातों तक, थांगमिनसियाम और उसका परिवार इस रास्ते पर चलते रहे, एक समय में जितनी संभव हो उतनी दूरी तय करते हुए, जंगलों में छिपते रहे, भोजन की तलाश करते रहे और आस-पास के गांवों से पानी की व्यवस्था करते रहे. और यह तब तक चलता रहा जब तक कि वे एक नागा गांव में नहीं पहुंच गए, जहां अंततः उन्हें  आश्रय मिला.

अपने असाधारण कारनामे पर विचार करते हुए, थांगमिनसियाम ने दिप्रिंट को बताया: “मुझे नहीं पता कि मैंने यह कैसे किया. वो तीन दिन एक बुरे सपने की तरह थे.”

लेकिन थांगमिनसियाम की कहानी अकेली नहीं है – चूंकि मणिपुर जातीय मैतेई-कुकी संघर्ष की आग में जल रहा है, यह ऐसी कई कहानियों में से एक है जो टेंग्नौपाल राहत शिविर में बताई जाने की प्रतीक्षा कर रही है, जहां विस्थापित होकर पहुंचे शरणार्थी अपने साझा दुखों से एक साथ बंधे हुए हैं.

थांगमिनसियाम जैसे लोगों के लिए, शिविर परिवार बन रहा है – बच्चों को नए साथी मिल गए हैं, बुजुर्गों को चर्च में उनके साथ जाने के लिए साथी मिल गए हैं, और महिलाएं एक-दूसरे की कहानियों में सांत्वना पा रही हैं. ऐसे समय में, उन्हें एक-दूसरे से ताकत मिली है.

जैसे ही शिविर के निवासी भागने की अपनी दर्दनाक कहानियां सुनाते हैं, एक नवजात शिशु की हंसी गलियारों में गूंजती है, जो क्षण भर के लिए उदास माहौल को बदल देती है. यह आवाज़ कई थके हुए चेहरों पर मुस्कान ले आती है – यह आवाज़ थांगमिनचुंग की है, जो एक 20 दिन की उम्र का एक बच्चा है.

उनकी मां, लिंगथियान्नेई वैथेई, साढ़े आठ महीने की गर्भवती थीं, जब उन्हें अपने परिवार के साथ भागना पड़ा. उसने नहीं सोचा था कि वे जीवित बचेंगे. वह कहती हैं, “मुझे पसीना आ रहा था, मैं सांस नहीं ले पा रहा था. मैंने सोचा कि मैं अपने बच्चे और अपने परिवार को खो दूंगी. मैं बस भगवान की आभारी हूं कि हम सभी बच गए,”

थांगमिनचुंग के आने से शिविर के निवासियों को क्षण भर के लिए अपने दुखों को दूर करने की प्रेरणा मिली – उन्होंने सेब के रस के साथ टोस्ट बनाकर एक छोटा सा उत्सव मनाया. थांगमिनचुंग का उनकी मातृभाषा में मतलब होता है “लोकप्रिय”, उनकी मां लिंगथियान्नेई हमें बताती हैं कि लोग बच्चे के साथ खेलने के लिए इकट्ठा हो जाया करते थे.

शिविर के गलियारे के एक कोने में एक बेंच पर जोशुआ बैठा है, जो करीब 20 साल का युवा है. उसकी उंगलियां गिटार के तारों पर नाच रही थीं, उसकी निगाहें खिड़की के बाहर बारिश पर टिकी थीं और उसके होठों पर एक प्रेम गीत के कुछ शब्द थे. एक छोटी लड़की धुन पर नृत्य करती है.

वह दिप्रिंट को बताते हैं, ”ऐसे समय में जब हम नफरत से घिरे हुए हैं, यही चीज़ मुझे सांत्वना देती है.”

इस गैलरी में, दिप्रिंट के राष्ट्रीय फोटो संपादक प्रवीण जैन कुकी समुदाय के लोगों के जीवन पर एक नज़र डालते हैं, जो कांगपोकपी में अपने गांव से विस्थापित हो गए थे.

The old members of the families have also walked kilometres to save themselves from rioters. 81 years old Nemkholhing Gangte hugs her friend 82 years old Themkhonei Mate. They are thankful to god for saving them Photo: Praveen Jain | ThePrint
81 वर्षीय नेमखोलहिंग गंगटे राहत शिविर में अपने 82 वर्षीय दोस्त थेमखोनी मेट को सांत्वना देते हुए गले लगाती हैं | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
It is still not safe to walk on the roads in Manipur. Most of the Kukis remain indoors. Balcony has become a window to enjoy the outside world Photo: Praveen Jain | ThePrint
चूंकि मणिपुर में काम करना अभी भी सुरक्षित नहीं है, इसलिए अधिकांश विस्थापित घर के अंदर ही रहते हैं। बालकनी अब बाहर की दुनिया के लिए उनकी एकमात्र खिड़की है | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
Women sit at the gate of the hostel in evening. This is how they keep themselves busy in the shelter Photo: Praveen Jain | ThePrint
महिलाएं लंबे दिन को गुजारने के लिए राहत शिविर के प्रवेश द्वार पर एकत्र होती हैं | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
A kid holds wraps his brother, smiling, still oblivious of the tense situation in the state Photo: Praveen Jain | ThePrint
एक बच्चा अपने छोटे भाई को गोद में लिए हुए है, अपने आस-पास के तनावों से बेखबर | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
All of them stand in the corridor and look outside Photo: Praveen Jain | ThePrint
स्कूल के बरामदे में बैठे विस्थापित बच्चे | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
Everybody in the shelter try to lighten the mood. They talk and shelter Photo: Praveen Jain | ThePrint
सेंट पीटर स्कूल, टेंग्नौपाल के राहत शिविर में महिलाएं अपने बच्चों की देखभाल करती हैं प्रवीण जैन | दिप्रिंट
A Kuki woman wraps toddler around her while the older one cries for attention from mother. Photo: Praveen Jain | ThePrint
एक कुकी महिला अपने बच्चे को पकड़े हुए जबकि बड़ा बच्चा उसका ध्यान आकर्षित करने के लिए रो रहा है | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
Children have not been able to attend schools and colleges. They cannot step out frequently because of the hostile situation in the state. Leaving ko option for them but to stay indoor and watch television for entertainment. Photo: Praveen Jain | ThePrint
तनाव जारी रहने के कारण, छात्रों को स्कूलों और कॉलेजों में जाने के बजाय घर पर रहने के लिए मजबूर होना पड़ा है । प्रवीण जैन | दिप्रिंट
Children play carom at the shelter Photo: Praveen Jain | ThePrint
टेंगनौपाल राहत शिविर में कैरम खेलकर बच्चे अपना मनोरंजन करते हैं | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
There are kids and women in the shelter Photo: Praveen Jain | ThePrint
राहत शिविर में अपने बच्चों की देखभाल करती एक महिला | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
Lhingthiannei Vaithei mother newborn baby Thangminchung with his brother Photo: Praveen Jain | ThePrint
टेंग्नौपाल राहत शिविर में लिंगथियान्नेई वैथेई और उसका बच्चा, थांगमिनचुंग | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
It is raining in Manipur right now, making it more difficult for people. Kukis are using all sorts of alternatives to cover themselves in the rain Photo: Praveen Jain | ThePrint
राहत शिविर में जीवन कठिन है, विशेषकर मानसून में। राहत शिवर में लोग खुद को ढकने के लिए हर तरह के विकल्पों का इस्तेमाल कर रहे हैं | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
While the children play in the corridors, youth play basketball in the school ground Photo: Praveen Jain | ThePrint
युवा स्कूल के मैदान में बास्केटबॉल खेलते हुए | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
Children play in the corridors. Photo: Praveen Jain | ThePrint
स्कूल में बने राहत शिविर के गलियारों में खेलते बच्चे | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
A kid pulls another in a wheelchair inside the shelter Photo: Praveen Jain | ThePrint
राहत शिविर के अंदर एक बच्चा दूसरे बच्चे के चारों ओर घूम रहा है | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
Kids mostly remain inside, play in the corridors. Photo: Praveen Jain | ThePrint
छोटे बच्चे राहत शिविर में घर के अंदर खेलते हैं | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
Women carry a child on her back Photo: Praveen Jain | ThePrint
राहत शिविर में एक महिला अपनी पीठ पर एक बच्चे को ले जा रही है | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
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