नई दिल्ली: विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) वर्तमान में भारत और इंडोनेशिया के 15 निर्माताओं द्वारा बनाई गई 20 घटिया खांसी और पेरासिटामोल सिरप के आरोपों की जांच कर रहा है, जो नौ देशों में लगभग 300 मौतों के लिए जिम्मेदार हैं.
संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य एजेंसी ने, हालांकि, भारत की उन कंपनियों की पूरी सूची साझा करने से इनकार कर दिया, जिनके ऊपर ये आरोप लगे हैं. डब्ल्यूएचओ के प्रवक्ता क्रिश्चियन लिंडमीयर ने दिप्रिंट के सवालों के ईमेल के जवाब में कहा, ‘हम अपने मेडिकल अलर्ट में शामिल निर्माताओं के अलावा अन्य निर्माताओं के नाम या विवरण का खुलासा नहीं कर सकते हैं.’
लिंडमीयर ने कहा कि हाल ही में गैम्बिया में जुलाई और अक्टूबर 2022 के बीच दूषित (Contaminated) दवाओं से जुड़ी घटनाओं की खबरें सामने आने लगीं, इसके बाद इंडोनेशिया, उज्बेकिस्तान, माइक्रोनेशिया और मार्शल द्वीप समूह में रिपोर्ट्स सामने आईं.
डब्ल्यूएचओ के प्रवक्ता ने कहा कि हालांकि, ऊपर बताए गए छह देशों में दूषित दवाओं के पाए जाने के मामले में डब्ल्यूएचओ के मेडिकल प्रोडक्ट अलर्ट की ज़रूरत है. डब्ल्यूएचओ इस तरह के अलर्ट जारी करता है जब उसके पास यह प्रदर्शित करने के लिए पर्याप्त सबूत होते हैं कि कोई उत्पाद दूषित है, उन्होंने कहा कि यह प्रभावित देश, मूल देश या निर्माता द्वारा उत्पाद विश्लेषण द्वारा निर्धारित किया जाता है.
पिछले साल, हरियाणा स्थित मेडेन फार्मास्यूटिकल्स द्वारा निर्मित कफ सिरप से जुड़े मामले – गैम्बिया में लगभग 70 बच्चों की मौत से जुड़े – और नोएडा स्थित मैरियन बायोटेक द्वारा निर्मित सिरप – उज्बेकिस्तान में 18 बच्चों की मौत से जुड़े – ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरी थीं.
दोनों ही मामलों में, प्रभावित देशों के अनुसार, दवाओं को कथित तौर पर जहरीले पदार्थ डायथिलीन ग्लाइकॉल और एथिलीन ग्लाइकॉल से कंटामिनेटेड पाया गया.
भारत सरकार ने, पहले मामले में, मेडेन फार्मास्युटिकल्स द्वारा ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 और कई गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रेक्टिस (जीएमपी) के उल्लंघन का पता लगाया था, लेकिन रेग्युलेटर द्वारा एक बैच परीक्षण रिपोर्ट ने दिखाया था कि इसमें कोई कंटामिनेशन नहीं था. हालांकि, दूसरे मामले में निर्यात की गई दवाएं दूषित पाई गईं.
माइक्रोनेशिया और मार्शल आइलैंड्स जैसे देशों को निर्यात की जाने वाली किसी भी अन्य नकली दवाओं में भारतीय दवा नियामकों को क्या मिला इसके बारे में पता नहीं है.
इन मामलों को देखते हुए, सरकार ने निर्णय लिया कि 1 जून से, भारत से निर्यात किए जा रहे सभी पेरासिटामोल और कफ सिरप निर्दिष्ट सरकारी प्रयोगशालाओं में गुणवत्ता के लिए अनिवार्य विश्लेषण से गुजरेंगे.
दिप्रिंट ने भारत के ड्रग कंट्रोलर जनरल (डीसीजीआई) राजीव सिंह रघुवंशी से डब्लूएचओ के बयान पर टिप्पणी के लिए संपर्क किया, लेकिन खबर को पब्लिश किए जाने तक हमें कोई भी प्रतिक्रिया नहीं मिली थी. प्रतिक्रिया मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.
‘मेडिकल प्रोडक्ट अलर्ट लिस्ट को नहीं बढ़ाया है’
डब्ल्यूएचओ ने कहा कि डायथिलीन ग्लाइकॉल और या एथिलीन ग्लाइकॉल के साथ प्रोडक्ट कंटामिनेशन के उदाहरण 1930 के दशक के हैं. डायथिलीन ग्लाइकॉल और एथिलीन ग्लाइकॉल जहरीले पदार्थ हैं और इन्हें मानव दवाओं में मौजूद नहीं होना चाहिए.
“कंटामिनेटेड दवाओं का दौर हाल ही जुलाई-अक्टूबर 2022 में गैम्बिया और बाद में इंडोनेशिया, उज्बेकिस्तान, माइक्रोनेशिया और मार्शल द्वीप समूह की रिपोर्टों के साथ शुरू हुआ. इन सभी ने डब्ल्यूएचओ के मेडिकल प्रोडक्ट अलर्ट की मांग की है.’
उन्होंने कहा, ‘आज तक, इस स्थिति ने 20 से अधिक उत्पादों को दो मूल देशों (भारत और इंडोनेशिया) और 15 से अधिक विभिन्न निर्माताओं के साथ प्रभावित किया है. सभी उत्पाद सिरप-आधारित हैं (पेरासिटामोल सिरप, खांसी की दवाई, या विटामिन सिरप),”
लिंडमीयर ने जोर देकर कहा कि डब्ल्यूएचओ घटिया या नकली मेडिकल प्रोडक्ट्स की सभी रिपोर्टों को बहुत गंभीरता से लेता है और पहले से सूचीबद्ध लोगों की तुलना में अन्य देशों में संभावित रूप से दूषित सिरप की मीडिया रिपोर्टिंग से अवगत है. विश्व स्वास्थ्य निकाय के प्रवक्ता ने कहा, “जांच चल रही है, डब्ल्यूएचओ ने चिकित्सा उत्पाद अलर्ट की अपनी लिस्ट का विस्तार नहीं किया है. जैसे ही हमें और जानकारी मिलती है तो उसके हिसाब से यह बदल सकता है.”
डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक टेड्रोस अदनोम घेब्रेयसस ने इस साल जनवरी में सभी सदस्य राज्यों को घटिया और नकली चिकित्सा उत्पादों की घटनाओं को रोकने, उनका पता लगाने और प्रतिक्रिया देने के लिए कार्रवाई करने का आह्वान जारी किया था.
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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