नई दिल्ली: दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (एमओएचयूए) द्वारा पिछले साल शहरी नियोजन पर गठित समिति ने कुछ सिफारिशें की हैं जिनमें से प्रमुख हैं- शहरों की आर्थिक क्षमता का लाभ उठाने के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में शहरी और क्षेत्रीय योजना पर एक राष्ट्रीय प्राधिकरण, अर्बन प्लानर्स की बड़े पैमाने पर भर्ती, और अर्बन प्लानर्स को विनियमित करने के लिए एक कानून.
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा बजट 2022 में समिति की घोषणा की गई थी.
Pathways to Amrit Kaal: Envisioning and realising a new future for Indian cities शीर्षक वाली अपनी 84-पृष्ठ की रिपोर्ट में तेजी से बढ़ते शहरीकरण से निपटने के लिए संघर्ष कर रहे शहरों के मुद्दों को के बारे में कहा गया है.
रिपोर्ट इस साल अप्रैल में MoHUA को सौंपी गई थी और मंत्रालय ने रिपोर्ट पर चर्चा के लिए सोमवार को समिति के सदस्यों के साथ अपनी पहली बैठक की.
मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि संभावना है कि 2050 तक देश की 50 प्रतिशत से अधिक आबादी के शहरों में रह रही होगी, शहरों के सामने आने वाले मुद्दों को हल करने की ज़रूरत है.
यह भी पढ़ेंः SC आयोग ने ‘जातिवादी विज्ञापन’ के लिए Zomato को जारी किया नोटिस. दिल्ली पुलिस, यूट्यूब से भी मांगी रिपोर्ट
रिपोर्ट मौजूदा शहरी विकास नीतियों और मानदंडों के पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता पर प्रकाश डालती है. यह आर्थिक विकास के केंद्र के रूप में शहरों की बेहतर निगरानी और विकास के लिए संस्थागत तंत्र स्थापित करने के महत्व पर भी जोर देता है.
PM की अध्यक्षता में स्वायत्त शहरी नियोजन निकाय
रिपोर्ट में कहा गया है कि समिति ने शहरी और क्षेत्रीय नियोजन और विकास पर सभी मंत्रालयों, विभागों और एजेंसियों को मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए देश में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली एक सर्वोच्च सलाहकार निकाय (एनयूपीआरए) बनाने की घोषणा की है. एनयूपीआरए में अन्य लोगों के साथ अर्बन प्लानर्स, सरकारी अधिकारी और विषयों के विशेषज्ञ इसके सदस्य होंगे.
रिपोर्ट में कहा गया है, “संगठन की प्रमुख भूमिका देश के सभी मंत्रालयों, विभागों और एजेंसियों को शहरी और क्षेत्रीय योजना और आर्थिक विकास से संबंधित मामलों में सभी स्तरों पर मार्गदर्शन प्रदान करने वाली एक शीर्ष तकनीकी सलाहकार निकाय के रूप में कार्य करना होगा. अच्छी तरह से प्रबंधित शहर हमारे देश के लिए आर्थिक विकास के स्तंभ बन सकते हैं जिन्हें इस प्राधिकरण द्वारा प्रेरित किया जाना चाहिए,”
रिपोर्ट में कहा गया है कि सिफारिश सिंगापुर सेंटर फॉर लिवेबल सिटीज़ एंड अर्बन रिडेवलेपमेंट अथॉरिटी की तर्ज पर है. सिंगापुर के भौतिक विकास को स्थायी तरीके से निर्देशित करने और सामरिक योजनाओं को विकसित करने के लिए अनुसंधान, क्षमता विकास और एक व्यापक योजना दृष्टिकोण तैयार करने के लिए दो प्राधिकरण जिम्मेदार हैं.
एक राष्ट्रीय प्राधिकरण के अलावा, समिति ने यह भी सिफारिश की है कि दस लाख से अधिक आबादी वाले सभी शहरों में ‘आर्थिक विकास परिषदों’ का गठन किया जाए, और शहरों की पूर्ण आर्थिक क्षमता का लाभ उठाने के लिए दस लाख से कम आबादी वाले सभी जिलों में ‘जिला आर्थिक विकास परिषदों’ की स्थापना की जाए.
क्षमता निर्माण, अर्बन प्लानर्स को रेग्युलेट करने के लिए कानून
शहरों के नियोजित विकास में सबसे बड़ी बाधा अर्बन प्लानर्स की भारी कमी है. रिपोर्ट के अनुसार, अधिकांश टियर-2 और टियर-3 शहरों में योग्य पेशेवर अर्बन प्लानर्स तक पहुंच नहीं है और “शहरी योजनाकारों का अनुपात अनुशंसित 1:30,000 to 1:50,000 के मुकाबले 1:500,000 से 1:10,00,000 के बीच है.”
शहरी नियोजन क्षमता और क्षमताओं की अनुपलब्धता के कारण उत्तराखंड, पूर्वोत्तर, तटीय, वन और द्वीप क्षेत्रों जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में शहरी क्षमता की स्थिति बहुत खराब है. रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य और शहर शहरीकरण से जुड़े अवसरों का लाभ उठाने में असमर्थ हैं.
सितंबर 2021 में, नीति आयोग ने भारत में शहरी नियोजन क्षमता में सुधार शीर्षक वाली अपनी रिपोर्ट में इस मुद्दे को उठाया था. इसमें, संघीय थिंक टैंक ने क्षमता निर्माण की आवश्यकता और शहरी योजनाकारों के लिए एक नियामक ढांचे की सिफारिश की थी. नीति आयोग की रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत के 7,933 कस्बों और शहरों (शहरी बस्तियों) में से 63 प्रतिशत के पास मास्टर प्लान नहीं है.
नीति आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके अलावा, राज्य नगर और देश नियोजन विभागों में टाउन प्लानर्स के लिए 12,000 से अधिक पदों की आवश्यकता है, “यह वर्तमान स्थिति के विपरीत है. इन विभागों में ‘टाउन प्लानर्स’ के लिए 4,000 से कम स्वीकृत पद हैं, जिनमें से आधे खाली पड़े हैं.’
उच्च स्तरीय समिति ने सिफारिश की है कि केंद्र सरकार को जूनियर स्तर पर 2,000 शहरी योजनाकारों, 850 मध्य स्तर के शहरी योजनाकारों और 350 बहु-विषयक विशेषज्ञों की भर्ती के लिए पांच साल की अवधि में राज्यों को धन आवंटित करना चाहिए.
इसने यह भी सिफारिश की है कि केंद्र सरकार शहरी नियोजन पेशे और प्रथाओं को विनियमित करने के लिए एक ‘टाउन एंड कंट्री प्लानर्स बिल’ पेश करे, और शहरी योजनाकारों को प्रशिक्षित करने के लिए विभिन्न पहलों का सुझाव दिया.
शहर-क्षेत्र आर्थिक प्रवेश द्वार और रिवरफ्रंट विकास के रूप में
समिति ने सिफारिश की है कि ‘शहर-क्षेत्रों’ को इस तरह विकसित किया जाए कि वे “विदेशी निवेश और प्रतिभा को आकर्षित करने के लिए आर्थिक प्रवेश द्वार” के रूप में काम करें. इसने एक राष्ट्रीय आर्थिक प्रवेश द्वार कार्यक्रम का भी प्रस्ताव किया है, जिसके तहत 25 शहर-क्षेत्रों को इसके कार्यान्वयन के लिए पांच साल की अवधि के लिए प्रत्येक को 200 करोड़ रुपये प्राप्त होंगे.
“इकोनॉमिक गेटवे प्रोग्राम में जीडीपी, निवेश, कौशल वृद्धि और नौकरियों, पॉलिसी फ्रेमवर्क और इकोनॉमिक विज़न को साकार करने के लिए ज़रूरी प्रोजेक्ट्स, तकनीकी सहायता के लिए सर्वश्रेष्ठ एजेंसियों का पैनल, लगातार लर्निंग और ब्रांडिंग के लिए हाई विज़िबिलिटी कम्युनिकेशन रणनीति के लिए केस स्टडी शामिल होंगे. रिपोर्ट में कहा गया है कि ब्लू-ग्रीन पारिस्थितिक मास्टर प्लान और अनौपचारिक अर्थव्यवस्था का एकीकरण व कौशल निर्माण पर जोर आर्थिक गेटवे कार्यक्रम के लिए आवश्यक घटक होंगे.
साबरमती रिवरफ्रंट विकास परियोजना का उल्लेख करते हुए, समिति ने देश भर में ऐसी और परियोजनाओं को शुरू करने की सिफारिश की है. इसके लिए, इसने 25 शहरों की पहचान की है, जो उनके संबंधित रिवरफ्रंट्स को फिर से जीवंत करने के लिए धन उपलब्ध कराया जाना चाहिए.
(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)
यह भी पढ़ेंः MP में OBC की स्थिति पर रिपोर्ट जल्द दाखिल करेगा पैनल, विपक्ष ने कहा- ‘बेमतलब’, जातिगत जनगणना की मांग