दरांग / नलबाड़ी / जोरहाट / नागांव / सोनितपुर (असम): महिलाओं का एक समूह मेखला चादोर (पारंपरिक असमिया पोशाक) पहने सोमवार को रामपुर नलबाड़ी ज़िले में एक गैस एजेंसी पर केंद्र सरकार की उज्जवला योजना के तहत अपना सिलिंडर लेने के लिए इकट्ठा हुई थीं.
वे अपनी बारी आने का इंतज़ार कर रही थीं. उनकी बातचीत असम में रिलीज़ हुई नई फिल्म से लेकर उनके बच्चों के स्कूल के शिक्षकों और यहां तक कि आगामी चुनावों के बारे में होती है.
जब महिलाओं से यह पूछा गया कि उन्हें क्या लगता है कि अगला प्रधानमंत्री किसे बनना चाहिए तो समूह में मौजूद महिलाओं में से एक सिली डेका ने कहा, ‘एक सुर में एकमत प्रतिक्रिया मिली ‘मोदी’. वह ठीक हैं. हमारे पास वास्तव में शिकायत करने के लिए कुछ भी नहीं है.’
महिलाओं के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की व्यापक लोकप्रियता केवल इस समूह तक सीमित नहीं है. असम में ज़्यादातर महिला मतदाताओं ने मोदी के फिर से चुने जाने की इच्छा व्यक्त करती हैं. और उनके बारे में जोश के साथ बात करती हैं.
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को हमेशा से लगता है कि मोदी की देश भर में महिला मतदाताओं के बीच एक विशेष लोकप्रियता है. जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब से ही ऐसा ट्रेंड देखा गया है.
इन्हीं कारणों से उनकी कई योजनाओं को विशेष रूप से इसकी पूर्ति करने के लिए तैयार किया गया है. उज्ज्वला के तहत खाना पकाने के लिए गैस कनेक्शन, स्वच्छ भारत के तहत शौचालय बनाने, और महिलाओं या संयुक्त नामों से ग्रामीण घर दिए गए.
2014 से महिला मतदाताओं की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है. 2014 में 47 प्रतिशत से बढ़कर इस चुनाव में 48.13 प्रतिशत हो गयी है, और यह निर्वाचन क्षेत्र बहुत ही महत्वपूर्ण हो गया है.
इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि सभी राजनीतिक दल इस सेगमेंट को लुभाने के प्रयास कर रहे हैं. विशेष योजनाओं का वादा करने से लेकर महिला उम्मीदवारों को टिकट देने तक विभिन्न पैतरे अपना रहे हैं.
मोदी हमारे बारे में सोचतें हैं
विशेष रूप से मोदी सरकार की योजनाओं से असम की महिला मतदाताओं में उत्सुकता है. उनको लगता हैं कि पहले कि सरकारों के अंतर्गत योजनाएं उन तक बहुत कम पहुंची हैं. और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि कुछ ही पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों ने उनकी ज़रूरतों और आवश्यकता के बारे में विशेष रूप से सोचा था.
गैस एजेंसी के प्रभारी जुगल गोस्वामी दावा करते हैं कि ‘उज्ज्वला के तहत लगभग 13,000 लाभार्थी केवल अकेले उनकी एजेंसी में पंजीकृत किए गए हैं. इस योजना ने महिलाओं के बीच विशेष तवज्जो मिली है.
रामपुर के मोरोमी नाथ कहते हैं कि मोदी ने हमें गैस कनेक्शन दिए हैं. पहले खाना बनाना एक बड़ी समस्या थी, लेकिन उन्होंने हमारे बारे में सोचा है.
उन्होंने यह भी कहा ‘अब हम एक रुपये प्रति किलो पर चावल प्राप्त कर रहे हैं. जिसकी वजह से हम अपने बजट का प्रबंधन कर पा रहे हैं. हमें स्वास्थ्य कार्ड भी दिए गए हैं और महिलाओं के नाम पर घरों का निर्माण किया जा रहा है. शौचालय सबसे बड़ी बात है. मोदी ने वास्तव में हमारे जीवन को बदल दिया है. कम से कम वह हमारे बारे में सोचतें तो हैं. इससे पहले, किसने किया. हमें कुछ नहीं मिला है.’
वहां मौजूद अन्य महिलाएं भी इस बात से सहमत थीं. वे बातें कर रहीं थीं कि किस प्रकार से उज्जवला ने उनके स्वास्थ्य में सुधार किया है और कैसे शौचालय ने जीवन को आसान बना दिया है. गांव में उनके नाम पर एक घर होना उन्हें सशक्त होने का एहसास दिलाता है.
वंदना नाथ कहती हैं कि ‘यहां तक कि महिला सुरक्षा में भी सुधार हुआ है. अब हम रात में भी बाहर जा सकते हैं. शिक्षा में भी सुधार हुआ है. हमें अब छात्रवृत्ति भी मिलती है. इससे पहले लड़कियां बारहवीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ देती थीं. लेकिन अब अच्छी प्रदर्शन करने वाली लड़कियों को सरकार द्वारा वित्त पोषित किया जाता है. ताकि वे अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी कर सकें.’
जब उन्हें बताया गया कि कानून-व्यवस्था और शिक्षा सुविधाएं राज्य सरकार द्वारा की गयी पहल हैं, न कि केंद्र सरकार की तो महिलाएं कहती हैं कि यह सब मोदी के कारण ही है. क्योंकि असम में भी भाजपा की ही सत्ता है.
‘बेहतर सड़कें और बिजली आपूर्ति ‘
यह केवल महिलाओं के लिए बनायीं गईं योजनाएं ही नहीं हैं, जो मोदी को लोकप्रिय बनाती हैं. बल्कि अन्य कल्याणकारी योजनाएं हैं जो उनके ब्रांड को मज़बूत बनती हैं.
दरांग ज़िले के दुमनिचोकी की पूरबी डेका कहती हैं कि इसमें कोई शक नहीं है कि मोदी को ही वापस आना चाहिए.
डेका कहती हैं कि तेल और गैस कनेक्शन बेशक मिले हैं, लेकिन बेहतर सड़के और बिजली की स्थिति होने का मतलब यह हैं कि हमारा पूरा परिवार बेहतर जीवन जी सकता है. हम और क्या चाहते हैं? अगर मोदी को पांच साल और दिए जायेंगे,तो वह निश्चित रूप से बहुत कुछ करेंगे.’
नगांव के जुनुमा दास का कहना है कि मोदी सरकार ने उनके गांव में रोज़गार पैदा करने, सड़कों के निर्माण और बिजली की स्थिति में सुधार लाने में मदद की है.
यह पीएम मोदी हैं जिन्होंने यह सब सुनिश्चित किया है. इससे पहले कि सरकारें ऐसा करने में असमर्थ रहीं हैं. वह कहती हैं कि ‘उनके सभी दोस्त मोदी का समर्थन करते हैं.’
स्वयं सहायता समूह का नेटवर्क
आजीविका मिशन के तहत गठित स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) को कई ग्रामीण महिलाओं द्वारा मोदी सरकार की पहल के रूप में उद्धृत किया गया है. जिसने उन्हें स्वतंत्रता की अनुभूति कराने में मदद की है.
स्वयं सहायता समूह वास्तव में महिलाओं के बीच ब्रांड मोदी को सुदृढ़ करने के लिए एक प्रभावी प्रवर्तक के रूप में कार्य कर रहे हैं.
वे महिलाएं जो स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) का हिस्सा हैं वे अक्सर मिलती हैं. राजनीतिक चर्चा बातचीत में हो ही जीती है. सरकारी योजनाओं के बारे में सकारात्मक बातचीत और सशक्तिकरण की भावना जो कि स्वयं सहायता समूह को चलाने के साथ आती है. यह सब मोदी की लोकप्रियता बढ़ाने में मदद करती हैं.
असम के एक भाजपा ज़िलाध्यक्ष ने नाम न बताने की शर्त पर बताते हैं कि स्वयं सहायता समूह के नेटवर्क को बढ़ाना पार्टी का ध्येय था, जिसका राजनीतिक महत्त्व हैं और उस ध्येय को पूरा किया गया है.
एक्स फैक्टर
महिला मतदाताओं में मोदी की लोकप्रियता को बढ़ाने वाला एक प्रमुख कारक है, उनकी भाषण कला. हालांकि भाषण हिंदी में होते हैं जिससे ज़्यादातर आसामी लोग आसानी से संबंध स्थापित नहीं कर पाते हैं. मोदी के भाषणों से लोग अपने आप को जुड़ा हुआ महसूस करते है और साथ ही उनके हाव भाव से भी.
जोरहाट की ज्योति बोरा कहती हैं ‘वह इतना अच्छा बोलते हैं. जब वह बोल रहे होते हैं तो मैं हमेशा टीवी के सामने बैठी रहती हूं. हालांकि, मैं बहुत कम समझती हूं. लेकिन उनका लहजा और भाषण अच्छा होता है. वह खुद को बहुत अच्छे से ढाल लेते हैं.
दूसरों के लिए मोदी के ‘कठोर फैसले’ हैं. जिसने उन्हें अलग-थलग कर रखा है.
नालबाड़ी की अदिति वैद्य कहती हैं, ‘देखिए यह स्पष्ट है कि वे अपने पद को गंभीरता से लेते है, ये कोई हल्के में लेने वाला पद नहींं है.’ ‘वह कड़ी मेहनत करते हैं और वह कड़े फैसले लेते हैं.’ नोटबंदी एक ऐसा ही कदम था जिसने अमीर और भ्रष्ट खासकर कांग्रेस के राजनेताओं द्वारा छिपाए गए सभी काले धन को बाहर निकालने में मदद की थीं.
विरोधाभास
हालांकि वैसे सभी महिलाएं मोदी को लेकर उत्साहित नहीं हैं. अल्पसंख्यक समुदायों की महिलाओं के लिए भाजपा की राजनीति ने मोदी की योजनाओं की चमक को फीका कर दिया हैं.
दरांग की परवीन सुल्ताना कहती हैं कि ‘गैस सिलेंडर और शौचालय सब ठीक हैं यहां पर मुसलमानों की आबादी 64 फीसदी है.’
उन्होंने कहा कि ‘लेकिन उसका क्या जो संकट भाजपा लाई है? इसे देखें, नागरिकता (संशोधन) विधेयक के साथ क्या हुआ. मोदी के प्रधानमंत्री के रूप में हम सुरक्षित महसूस नहीं करते हैं, उनकी पार्टी मतभेद फैला रही है.’
कुछ का दावा है कि उनके गांवों में कुछ भी नहीं पहुंचा है और उनके लिए कांग्रेस ने बहुत कुछ किया था.
हिंदू बहुल ज़िले जोरहाट की बबीता बेगम कहती हैं कि ‘हमारे गांव की सड़कों को देखो यहां कोई काम नहीं हुआ, जहां पर मुसलमानों की आबादी 5 फीसदी है.
शौचालय का निर्माण किया गया, लेकिन इतने खराब तरीके से कि हम उनका उपयोग भी नहीं कर सकते. हर चीज़ की कीमतों में बढ़ोतरी हुई है और जीएसटी ने समस्याओं को और बढ़ाया है सिर्फ ‘मोदी, मोदी’ कहने से चीजों में सुधार नहीं आएगा. ‘इसके अलावा, भाजपा सरकार समाज को विभाजित करने के लिए लगातार कोशिश कर रही है.’
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