आपको अगर 2014 का लोकसभा चुनाव याद हो, तकनीक के हिसाब से बहुत आधुनिक चुनाव,जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आपने 3डी अवतार में एक साथ कई जगह उद्घोष करते हुए देखा गया था. भाषण पहले से ही रिकार्डेड था. जिसे होलोग्राम का स्वरूप दिया गया था.
अब आप सोचिये जरा 2024 के चुनाव पास हैं, नरेंद्र मोदी का 3डी अवतार फिर से आता है लेकिन इस बार पूरी तरह से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से बना हुआ है: टेक्स्ट टू वीडियो और चैटजीपीटी द्वारा वह बातचीत कर रहा है और सरकार से सम्बंधित जवाब दे रहा है, होलग्राम द्वारा वह 3डी फॉर्मेट में दिख रहा है और सिंथेटिक मीडिया द्वारा लिप-सिंक अर्थात एकदम सच के करीब हाव-भाव. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस अवतार तैयार है चुनाव में आपसे निजी संवाद स्थापित करने के लिए. अगर आपको लग रहा है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में एक ऐसा मुद्दा जिसे अनदेखा किया जा रहा है, क्या हो सकता है, वो है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस.
तुर्की चुनाव में भी हुआ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल
हाल ही में चल रहे तुर्की चुनाव में भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बनाये कंटेंट से हड़कंप मच गया जब राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोआन के प्रतिद्वंदी केमल किलिकडारोग्लू का अंग्रेजी में बना हुआ डीपफेक वीडियो वायरल हो गया. यह कम नहीं था कि तुर्की चुनाव में ही केंद्र-वाम होमलैंड पार्टी के नेता मुहर्रम इंस की एक अज्ञात महिला के साथ सेक्स टेप लीक हो गया जिसे उन्होंने डीपफेक करार दिया और राष्ट्रपति चुनाव से अपना नामांकन वापिस ले लिया.
तुर्की का चुनाव का एक जीवंत उदाहरण है कि एआई और अन्य उन्नत प्रौद्योगिकियां लोकतंत्र व्यवस्था को बहुत अधिक नुकसान पहुंचा सकती हैं, जहां लोकतंत्रों को इस तरह के नए हस्तक्षेप का जवाब देना मुश्किल हो सकता है.
प्राइसवाटरहाउस कूपर्स का अनुमान है कि एआई से 2030 तक वैश्विक अर्थव्यवस्था में 124 लाख करोड़ रुपए से अधिक बढ़ोतरी हो सकती है. भारत में पिछले दो लोकसभा चुनाव में नैरेटिव बनाने के लिए जहां फ़ेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप का इस्तेमाल हुआ था अब उनको गति चैटजीपीटी, गूगल बार्ड, डाल-ई, मिडजर्नी एआई जैसे टूल्स देंगें. माइक्रोसॉफ्ट और गूगल ने अपनी कॉरपोरेट रणनीति नई टेक्नोलॉजी पर झोंक दी है. माइक्रोसॉफ्ट ने चैटजीपीटी और डाल-ई बनाने वाली कंपनी ओपन एआई में पैसा लगाया है.
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राजनीति में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का बढ़ता प्रभाव
इंटरनेट पर ऐसे अनेक एआई टूल्स उपलब्ध हैं जिससे किसी की भी आवाज़ व हाव-भाव क्लोन किया जा सकता हैं और उनका एक फर्जी ऑडियो या वीडियो बनाया जा सकता है. मिडजर्नी एआई द्वारा हाल ही में गांधी, नेहरू, मोदी, आंबेडकर, डोनाल्ड ट्रम्प की गिरफ्तार होते हुए जब एआई निर्मित तस्वीरें आईं तो लोग उन तस्वीरों की वास्तविकता से दंग रह गए. वो तस्वीरें असली नहीं थी बल्कि एक एआई टूल मिडजर्नी द्वारा बनाई गई थीं और अब रोज़ ही ऐसी तस्वीर आ रहीं हैं जिसमें असली-नक़ली का अंतर बता पाना मुश्किल हो रहा है.
अभी हाल ही में 28 मई को जब पहलवानों को जंतर मंतर से हटाया गया तो पुलिस वैन में बैठा हुआ उनका हंसता हुआ फोटो वायरल हो गया, जब बाद में जांच हुई तो पाया गया कि ये एक एआई टूल द्वारा चेहरों के हाव-भाव बदलकर फोटो से छेड़छाड़ की गयी थी और पहलवानों को पुलिस वैन में हंसता हुआ दिखा दिया गया था.
दुनिया भर में सुर्ख़ियां बटोरने वाला चैटजीपीटी का इस्तेमाल मंत्रियों और विधायकों की टीम ने करना शुरू कर दिया है. रचनात्मक कंटेंट, सोशल मीडिया कंटेंट, चित्र बनाना, कार्टून बनाना, भाषण लिखना, महिला-युवा जैसे अलग अलग वर्ग को साधते हुए संदेश तैयार करना चैटजीपीटी जैसे टूल से अब चुटकियों का खेल बन गया है. चैटजीपीटी द्वारा कंटेंट निर्माण सुलभ हुआ है वहीं इस टूल से इतनी अधिक मात्रा में फ़र्ज़ी कंटेंट, आर्टिकल, सोशल मीडिया पोस्ट व न्यूज़ बनाया जा सकता है जो चुनाव का मिज़ाज बदलने, भ्रम फैलाने और नेता की छवि को नुक़सान पहुंचाने में किया जा सकता है जैसे तुर्की में हुआ.
एआई टूल्स से पार्टी कार्यकर्ताओं और पोलिटिकल पार्टियों को सेवा देने वाली कंपनियों का काम बहुत आसान हो गया है. क्योंकि लेखन, डिज़ाइन, कोड, वेबसाइट, कंटेंट, सोशल मीडिया, स्ट्रेटेजी जैसे काम चैटजीपीटी जैसे टूल्स कर सकते हैं.
गोल्डमैन सैश के अनुसार एआई कुछ सालों में 30 करोड़ नौकरियां ख़त्म कर देगा. चैटजीपीटी की वजह से विश्व में लाखों नौकरियां संकट में आ गईं हैं ऐसे में एआई टूल्स को चलाने के लिए प्रोम्प्ट इंजीनियर जैसी नौकरियां और कौशल मांग में आ गए हैं जो चुनाव प्रबंधन में भी इस्तेमाल होंगे. अब पोलिटिकल कंसल्टिंग कंपनियां बहुत कम समय, संसाधन और लोगों द्वारा रिसर्च, पोलिटिकल संचार, नीति निर्माण, रणनीति और जनता से संवाद स्थापित करने के लिए ऑडियो-वीडियो निर्माण कर सकती हैं
भारत में एआई पॉलिसी अभी सामने नहीं आयी है लेकिन केंद्रीय आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव चैटजीपीटी और गूगल वार्ड को रेगुलेट करने की बात ज़रूर कर रहे हैं. हैरानगी की बात यह है की संसद के शीतकालीन और बजट सत्र में एएआई टूल्स और एआई द्वारा चुनाव पर पड़ने वाले प्रभाव पर एक भी बहस नहीं हुई ना ही किसी सांसद ने यह मुद्दा उठाया.
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का राजनीति और चुनाव में उपयोग आज उसी कगार पर है जैसे 2010 के दशक की शुरुआत में सोशल मीडिया. सोशल मीडिया को भाजपा ने पिछले दशक की शुरुआत में जिस तरह इस्तेमाल किया था उससे 2014 के चुनाव में उन्हें बम्पर फ़ायदा हुआ था. सोशल मीडिया के आने पर जिन राजनीतिक पार्टियों के पास संसाधन थे उन्होंने उसे बेहतर इस्तेमाल किया और क्षेत्रीय पार्टियां पीछे रह गयीं, यही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के साथ होने वाला है. नियामकों के अभाव में अब जो राजनीतिक पार्टी एआई के इस्तेमाल से चुनाव प्रबंधन बेहतर करेगी वो बेहतर नैरेटिव बना पाएंगे और 2024 को अपने पक्ष में मोड़ पाएगी.
(सागर विश्नोई द आईडियाज़ फैक्ट्री ग्रुप में एआई और पॉलिटिक्स पर रिसर्च कर रहे हैं. व्यक्त विचार निजी हैं.)
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