लखनऊ: भाजपा की सहयोगी अपना दल (एस) ने शनिवार को समाजवादी पार्टी (सपा) से उत्तर प्रदेश की सुआर विधानसभा सीट छीन ली – जिसे रामपुर के पूर्व सांसद आजम खान के परिवार का गढ़ माना जाता है.
इस बीच, मिर्जापुर के छानबे निर्वाचन क्षेत्र में भी, अपना दल (एस) के उम्मीदवार रिंकी कोल अपने सपा समकक्ष कीर्ति कोल के साथ 8,000 से अधिक मतों से जीत गई हैं.
रामपुर लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाले मुस्लिम बहुल विधानसभा क्षेत्र सुआर में अपना दल (एस) के शफीक अहमद अंसारी सपा की अनुराधा चौहान से आगे निकल गए. चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक अंसारी 8 हजार से ज्यादा वोटों से जीते हैं.
चौहान एक राजपूत हिंदू हैं, जबकि अंसारी, मुस्लिम हैं, और आजम खान के पूर्व सहयोगी हैं.
पिछले चुनावों के विपरीत, दोनों उम्मीदवार स्थानीय निवासी हैं.
अंसारी की जीत सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए जहां उत्साह वाली बात है वहीं सपा के लिए यह एक बड़ी परेशानी के रूप में सामने आई है, विशेष रूप से इसके समय को देखते हुए यानी कि रामपुर विधानसभा सीट भाजपा के खाते में जाने के छह महीने से भी कम समय में और 2024 के आम चुनाव से एक साल पहले.
15 साल पुराने एक मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद विधायक के रूप में आजम खान के बेटे अब्दुल्ला आजम खान की अयोग्यता के बाद सुआर उपचुनाव की जरूरत आ पड़ी थी.
जनवरी 2008 में स्टेट हाईवे पर धरना देकर एक लोक सेवक को उनकी ड्यूटी से बाधित करने के मामले में पिता और पुत्र दोनों को मुरादाबाद की एक अदालत ने दो साल की जेल की सजा सुनाई थी.
रामपुर में सीआरपीएफ कैंप पर हुए आतंकी हमले के बाद वेरिफिकेशन के लिए पुलिस द्वारा उनके काफिले को रोकने के विरोध में अब्दुल्ला और आजम खान ने धरना दिया था.
सुआर के लिए लड़ाई काफी महत्वपूर्ण रही है, विशेष रूप से इसको लेकर होने वाले राजनीतिक घटनाक्रमों को देखते हुए – जबकि सपा उम्मीदवार चौहान ने खुद को यूपी के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ की “बहन” कहा, अपना दल (एस) प्रमुख अनुप्रिया पटेल ने आजम खान के द्वारा किसी भी तरह की चुनौती होने की संभावना से इनकार किया था.
जबकि अनुप्रिया और उनके पति आशीष पटेल दोनों ने अंसारी का समर्थन किया, आदित्यनाथ और भाजपा के अन्य वरिष्ठ नेता उनके लिए प्रचार करने से दूर रहे.
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छानबे की अपना दल (एस) की उम्मीदवार रिंकी कोल पूर्व विधायक राहुल प्रकाश कोल की पत्नी हैं, जिनकी फरवरी में कैंसर से मृत्यु हो गई थी, इसलिए उपचुनाव की जरूरत पड़ी.
आजम के पूर्व सहयोगी ने सपा वोट बैंक में लगाई सेंध, पीस पार्टी ने बिगाड़ा खेल
एक्सपर्ट्स का कहना है कि सुआर में कई कारकों ने असर डाला होगा.
इनमें अंसारी को बीजेपी वोटों का ट्रांसफर, अंसारी समुदाय के बीच अपना दल (एस) के उम्मीदवार के अपने समर्थन का आधार – जो कि सुआर में आबादी का एक बड़ा हिस्सा है – और पीस पार्टी की नाज़िया सिद्दीकी जैसे प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवारों की उपस्थिति शामिल है.
आज़म खान के बेटे अब्दुल्ला ने पिछले दो चुनावों में 50 प्रतिशत से अधिक वोट बटोरे थे – 2017 के विधानसभा चुनावों में, अपने पहले चुनाव में, उन्होंने 51 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल किए, जबकि 2022 में उन्होंने 59 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल किए.
चौहान, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की पूर्व नेता हैं, जिन्होंने 2015 में सपा में शामिल होने से पहले निर्दलीय जिला पंचायत सदस्य के रूप में कार्य किया था.
आजम खान द्वारा काफी कैंपेन किए जाने के बावजूद उनकी हार हुई – शुरुआती अटकलों को धता बताते हुए कि वह प्रचार नहीं करेंगे, सपा के कद्दावर नेता को वीडियो और जनसभाओं के माध्यम से मतदाताओं को एक भावनात्मक अपील करते हुए देखा गया, जहां उन्होंने जनता से उन्हें “अपना अधिकार” देने के लिए कहा.
एक अन्य रैली में, उन्होंने अंसारी के खिलाफ एक तीखा हमला किया, जिसमें कहा गया कि उन्होंने भाजपा के सहयोगी के लिए चुनाव लड़कर समुदाय को नीचा दिखाया (“नाक कटवा दी”), यहां तक कि उन्हें देशद्रोही भी कहा, लेकिन स्पष्ट रूप से उनका नाम लिए बिना.
रामपुर के एक सामाजिक कार्यकर्ता सिफत अली ने दिप्रिंट को बताया कि सपा मुस्लिम वोटों का एक बड़ा हिस्सा हासिल करने में कामयाब रही, लेकिन यह सीट जीतने के लिए पर्याप्त नहीं था.
“अंसारी ने दो बार नगर पालिका अध्यक्ष के पद पर रहे और 35,000 से अधिक मतों से जीत हासिल की. उन्होंने अंसारी समुदाय के सदस्यों के समर्थन के कारण जीत हासिल की है, जो मुस्लिम वोटों का एक बड़ा हिस्सा हैं. साथ ही, बीजेपी का हिंदू वोट भी उनके साथ गया और इस गठबंधन ने सपा के समीकरण को उलट दिया.’
पीस पार्टी की नाजिया सिद्दीकी भी सपा के लिए नुकसानदायक साबित हुईं.
नाम न बताने की शर्त पर एक स्थानीय सपा नेता ने इसके लिए पीस पार्टी के चुनाव कैंपेन को जिम्मेदार ठहराया – नेता के अनुसार, मार्च में उपचुनाव की घोषणा से दो महीने पहले पार्टी ने अपना राजनीतिक अभियान शुरू कर दिया था.
क्या आजम खान परिवार के लिए कोई रास्ता नहीं बचा?
राजनीतिक जानकार 75 वर्षीय आज़म खान की राजनीतिक संभावनाओं पर अलग-अलग मत रखते हुए दिखाई देते हैं, विशेष रूप से यह देखते हुए कि सपा वर्तमान में सत्ता से बाहर है.
खान यूपी में 93 आपराधिक मामलों का सामना कर रहे हैं और अभद्र भाषा के मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद अक्टूबर में उन्हें विधानसभा से अयोग्य घोषित कर दिया गया था.
“एक राजनीतिक परिवार के रूप में, आज़म के पास जो भी राजनीतिक पूंजी बची है उसे अपने बेटे को सौंपना चाहेंगे. उम्र उनका साथ नहीं दे रही है और उनसे शानदार प्रदर्शन की उम्मीद नहीं है और ऐसा लग सकता है कि परिवार खत्म होता जा रहा है.’ अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पोलिटिकल साइंस के प्रोफेसर मिर्जा असमर बेग ने दिप्रिंट को बताया, “चूंकि सपा निकट भविष्य में यूपी में सत्ता में नहीं आ रही है, इसलिए यह आजम खान के लिए आगे की राह नहीं बची है.”
वे कहते हैं कि फिर भी उन्हें एकबारगी खारिज नहीं किया जा सकता है.
“राजनीति, म्यूजिकल चेयर का खेल है जहां सत्ता मुट्ठी भर लोगों के बीच बदलती रहती है. आजम खान का परिवार एक राजनीतिक परिवार है और वे लोकसभा चुनाव से पहले भी महत्वपूर्ण बने रह सकते हैं.
लेकिन सपा प्रवक्ता अमीक जमई ने दिप्रिंट को बताया कि आजम समाजवादी आंदोलन के सबसे बड़े नेताओं में से एक थे और अब भी शक्तिशाली हैं.
उन्होंने कहा, “भाजपा को लगता है कि उनकी सदस्यता छीनकर वे उनका राजनीतिक प्रभाव खत्म कर देंगे, लेकिन कुछ नेता पदों की दया पर नहीं हैं.” “यूपी विधानसभा में [सपा के] 110 विधायक, लोकसभा और राज्यसभा में सपा सदस्य आजम खान का परिवार हैं. आजम खान ही तय करते हैं कि किसे (रामपुर में) टिकट मिलेगा.”
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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