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Saturday, 21 December, 2024
होममत-विमतराहुल गांधी भी मोदी जितने 'पोलराइज़िंग', लेकिन भारतीय उदारवादी उन पर रहते हैं चुप

राहुल गांधी भी मोदी जितने ‘पोलराइज़िंग’, लेकिन भारतीय उदारवादी उन पर रहते हैं चुप

2019 के इस चुनाव में राहुल गांधी व नरेंद्र मोदी में टक्कर के बीच, भाषा और विचारों पर भारतीय उदारवादियों की पकड़ को भी बारीकी से परखा जाएगा.

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राजनीतिक टिप्पणीकार अक्सर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम के आगे एक विशेषण के रूप में ‘पोलराइज़िंग’ (ध्रुवीकरण करने वाला) लगाते हैं, पर राहुल गांधी के लिए कोई ऐसा नहीं करता. हालांकि ‘ध्रुवीकरण करने वाला’ की उपमा राहुल गांधी पर भी उतनी ही लागू होती है. शब्दकोषों के अनुसार ‘ध्रुवीकरण’ का मतलब होता है किसी कारक या व्यक्ति का लोगों को दो विरोधी धड़ों में बांटना. नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी इस विशेषण के सटीक उदाहरण हैं क्योंकि दोनों ही अत्यधिक लगाव और विकर्षण का भाव जगाते हैं. आप लोगों के किसी समूह में उनके नाम का ज़िक्र भर करें, और पूरी संभावना है कि लोग दो खेमों में बंट जाएंगे- चापलूस समर्थकों और क्रुद्ध विरोधियों के खेमे.

ध्रुवीकरण सूचकांक

आइए देखें कि दोनों नेता ध्रुवीकरण सूचकांक पर कहां ठहरते हैं. राहुल गांधी के समर्थक बताते हैं कि कैसे कांग्रेस नेता ने अपनी राजनीतिक गतिविधियां बढ़ाई है, कैसे वह ट्विटर पर सक्रिय हैं, वह बेहतर वक्ता बन चुके हैं, कैसे उन्होंने राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में जीत कर दिखाया, कैसे वह भारत में बहुलवाद को बनाए रखने के आकांक्षी एक शरीफ व्यक्ति हैं. पर उनके आलोचक नेहरू-गांधी वंश के विशेषाधिकार के प्रतीक के रूप में उनकी तीखी आलोचना करेंगे. वे कांग्रेस सरकारों के घोटालों, रॉबर्ट वाड्रा के उभार, राहुल गांधी के गंवाए दशक (2004-2014) और उन्हें कई बार राजनीति में लॉन्च किए जा चुकने का उल्लेख करते हैं.


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जहां मोदी के समर्थक उनकी स्वच्छ छवि, मज़बूत नेतृत्व, सख्त हिंदुत्व, सर्जिकल हमलों और भाषण कला का ज़िक्र करते हैं, वहीं मोदी के विरोधी उनकी हिंदू सांप्रदायिक राजनीति, अर्थव्यवस्था और विदेश नीति संबंधी गलतियों तथा 2002 के गुजरात दंगों का उल्लेख करते हैं. हालांकि, दोनों की ही बेतुकी राजनीतिक नौटंकी में भागीदारी रही है. और, उनके कुछ कृत्य अत्यधिक ध्रुवीकरण वाले रहे हैं.

उदाहरण के लिए, जब राहुल गांधी ने 2013 में अध्यादेश के कागज़ातों को फाड़ा था, या बयान दिया था कि कांग्रेस के नेता 1984 के दंगों में शामिल नहीं थे; या मोदी ने 2017 में ‘श्मशान बनाम कब्रिस्तान’ की बात की थी, या हाल में डिस्लेक्सिया पीड़ितों को लेकर मज़ाक किया.

मैंने भी नरेंद्र मोदी के नाम के आगे ‘ध्रुवीकरण करने वाला’ लगाया था जब मैं ‘वाशिंगटन पोस्ट’ में थी. 2013 में तब एक पाठक ने सवाल उठाया था कि एक लोकप्रिय नेता के लिए मैंने ऐसे शब्दों का इस्तेमाल क्यों किया. मैं उस पाठक को जवाब देने बैठी ही थी कि मुझे लगा कि मेरा स्पष्टीकरण राहुल गांधी, लालू प्रसाद यादव, मायावती, ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल पर भी लागू हो सकता है.

ध्रुवीकरण करने वाले नेता

भारत के टिप्पणीकारों के बीच ध्रुवीकरण करने वाले का पारंपरिक माने है कोई दक्षिणपंथी नेता और विभाजक प्रकृति की उसकी राजनीति. यहां, कुछ पाठक, खासकर कांग्रेस के समर्थक, मुझ पर नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी की झूठी तुलना करने का आरोप लगा सकते हैं. वे राहुल गांधी का एक ‘धर्मनिरपेक्ष’ एकता लाने वाले और नरेंद्र मोदी का एक दक्षिणपंथी विभाजक के रूप में उल्लेख देखना चाहेंगे.

पर भारत के बाहर, ‘पोलराइज़िंग’ का इस्तेमाल एक विचारधारा-तटस्थ विशेषण के रूप में दक्षिणपंथी और वामपंथी दोनों ही प्रकार के लोगों के लिए होता है. और, हाल के दिनों में तो ये मध्यमार्गियों के लिए भी इस्तेमाल किया जाने लगा है.

जब 2013 में वेनेज़ुएला के पूर्व राष्ट्रपति ह्यूगो शावेज़ का निधन हुआ, तो न्यूयॉर्क टाइम्स और वाशिंगटन पोस्ट दोनों ने ही अपने स्मृति लेखों की हेडलाइन में ‘पोलराइज़िंग’ शब्द इस्तेमाल किए थे यानि उन्हें ध्रुवीकरण करने वाले की उपमा दी थी.

पोस्ट ने लिखा था कि, ‘श्री शावेज़ ने वेनेज़ुएला को बुरी तरह ध्रुवीकृत हाल में छोड़ा है. उनके समर्थक उन्हें आभिजात्य वर्ग से निपटने के लिए कटिबद्ध साहसी विद्रोही के रूप में महिमामंडित करते हैं, तो उनके विरोधी उन्हें एक ख़तरनाक और क्रूर नेता बताते हैं.’


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बेशक, ब्राज़ील के वर्तमान अति दक्षिणपंथी राष्ट्रपति जेयर बोलसोनारो, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप और फ्रांस की दक्षिणपंथी नेता मैरिन लापेन को अक्सर ध्रुवीकरण करने वाला बताया जाता है.

अंतर्राष्ट्रीय मीडिया इससे भी एक कदम आगे पहुंच गया है. क्या कभी ‘अति-मध्यमार्गी’ कही जाने वाली विचारधारा के नेताओं को भी ‘पोलराइज़िंग’ कहा जा सकता है? आप फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों से ज़्यादा मध्यमार्गी नेता नहीं ढूंढ़ सकते हैं. वास्तव में, जब दो साल पहले वो चुनाव प्रचार कर रहे थे, तो उनकी सख़्त-मध्यमार्गी राजनीति के लिए ‘कट्टर मध्यमार्गवाद’ के मुहावरे का इस्तेमाल किया जाता था.

परंतु हाल में फ्रांस में हुए जनांदोलन के बारे में लिखे एक आलेख को फाइनेंशियल टाइम्स ने इस तरह शुरू किया है: ‘अधिकांश महत्वपूर्ण राजनेताओं की तरह, इमैनुएल मैक्रों ध्रुवीकरण करने वाले व्यक्ति हैं.’

अमेरिका में 2015 में एक गैलप सर्वे में बराक ओबामा और जॉर्ज बुश दोनों को ही ‘सर्वाधिक ध्रुवीकरण करने वाले’ राष्ट्रपतियों के रूप में रखा गया था. यहां तक कि हिलेरी क्लिंटन को भी ध्रुवीकरण करने वाली नेता बताया गया.

पर भारत में, अतिवामपंथी नेताओं को भी शायद ही कभी ‘पोलराइज़िंग’ कहा जाता हो. ये स्थिति इसलिए है क्योंकि दीर्घकाल तक भाषा के सर्वशक्तिमान गेटकीपर रहे उदारवादी और वामपंथी बुद्धिजीवियों ने इस शब्द को दक्षिणपंथी खांचे में डाल रखा था.

‘दुर्भाग्यपूर्ण चलन’

तमाम राजनीति भाषा से शुरू होती है, और इसके पूर्वाग्रहों से जुड़ी होती है. लेखक मैल्कम कोक्सॉल ने 2013 की अपनी किताब ‘ह्यूमैन मैनिपुलेशन’ में लिखा है कि भाषा कोई तटस्थ माध्यम नहीं होती, बल्कि यह हमारी स्मृतियों के सूचना भंडार में जमी छवियां और धारणाएं हैं. किताब के अनुसार, ‘भाषा का खेल खेलना और भाषाई जाल बिछाना, नेताओं और राजनीति से प्रेरित मीडिया संगठनों का लोकप्रिय शगल रहा है.’

हिलेरी क्लिंटन को ध्रुवीकरण करने वाली बताए जाने के मुद्दे पर न्यूयॉर्क टाइम्स में 2015 में छपे एक लेख में ‘पोलराइज़िंग’ शब्द और इसके ‘दुर्भाग्यपूर्ण चलन’ पर विचार किया गया था. उस लेख के अनुसार, ‘लोग अक्सर ‘भड़काऊ’ या ‘एकदम नापसंद’ जैसे विशेषणों की जगह ‘पोलराइज़िंग’ का इस्तेमाल करते हैं. रिपोर्टरों को यह शब्द पसंद है क्योंकि यह पक्षपाती या किसी खास राय वाला नहीं दिखने में उनके काम आता है. यह उन्हें तटस्थता प्रदान करता है, भले ही इसकी बुनियाद ढुलमुल और कमज़ोर क्यों न हो. किसी को ध्रुवीकरण करने वाला करार देकर वो कह रहे होते हैं कि ‘विभाजन दिख रहा है, पर हम आपको नहीं बताएंगे कि इसका कोई मतलब है भी या नहीं.’


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राजनीति स्तंभकार चार्ल्स क्रैथैमर ने 2003 में जॉर्ज बुश से चिढ़ने वालों के लिए ‘बुश डिरेंजमेंट सिंड्रोम’ मुहावरा गढ़ा था. इसका मतलब था ‘आमतौर पर सामान्य रहने वाले लोगों में राष्ट्रपति की नीतियों, या यों कहें कि जॉर्ज डब्ल्यू बुश के अस्तित्व, को लेकर भारी उन्माद का संचार होना.’

उस बेहतरीन मुहावरे को अब ट्रंप डिरेंजमेंट सिंड्रोम का नया रूप दिया जा रहा है. शायद ये सही समय है कि ध्रुवीकरण करने वाले दो नेताओं नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के लिए उस मुहावरे को भारत लाया जाए. ऐसे वोटरों की बड़ी तादात है जो राहुल और मोदी से जुड़े सनकीपन के कारण इतने लाचार हैं कि वे ‘टीना फैक्टर’ (विकल्पहीनता की स्थिति) की बात करने लगे हैं.

2019 के इस चुनाव में राहुल गांधी के न्याय (NYAY) और नरेंद्र मोदी के पीएम-किसान में जारी टक्कर के बीच, भाषा और विचारों पर भारतीय उदारवादियों की पकड़ को भी बारीकी से परखा जाएगा. भारतीय टिप्पणीकारों को अपने पूर्वाग्रहों को छोड़ने और नई वास्तविकताओं को स्वीकार करने की ज़रूरत है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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