नई दिल्ली: अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की पुलिस की मौजूदगी में हत्या के बाद गैंगस्टर्स की चर्चा तेज हो गई है. इसमें कई गैंगस्टर्स बाद में राजनेता बने और माननीय बनकर देश और राज्य की पंचायतों में पहुंचे.
अगर बात पूर्वांचल के बाहुबलियों की करे तो बृजेश सिंह का नाम लिए बिना यह अधूरा है. बृजेश वाराणसी से एमएलसी रह चुके हैं. उनकी पत्नी अन्नपूर्णा सिंह वर्तमान में वाराणसी से ही एमएलसी हैं और उनके भतीजे सुशील सिंह विधायक हैं. बृजेश सिंह जन्म वाराणसी के धौरहरा गांव में हुआ था. इनके पिता का नाम रविंद्र सिंह था. बृजेश की शुरुआती पढ़ाई वाराणसी के यूपी कॉलेज से हुई, जहां बृजेश BSc की पढ़ाई कर रहे थे. लेकिन जब बृजेश कॉलेज में पढ़ रहे थे उसी समय 1984 में उनके पिता रवींद्र सिंह की हत्या कर दी गई. रवींद्र सिंह की हत्या गांव के लोगों ने जमीन विवाद के कारण कर दी थी. रवींद्र सिंह की हत्या के बाद बृजेश का सामना आपराधिक दुनिया से हुआ. पिता की हत्या के बाद बृजेश ने हथियार उठा लिया. साल 1985 में बृजेश ने पहली बार किसी अपराध में हिस्सा लिया जिसमें उन्होंने अपने पिता के हत्यारे पांचू सिंह के पिता हरिहर सिंह को गोली मारकर हत्या कर दी. उसके बाद बृजेश ने अपने गांव के प्रधान रघुनाथ की भरे कचहरी में AK 47 से भून दिया. पूर्वांचल में पहली बार AK 47 से अपराध हुआ था. यह पूरे प्रदेश के लिए चौकानें वाला था. उसके बाद 1986 में चंदौली के सिकरौरा गांव में पूर्व प्रधान रामचंद्र यादव सहित 6 लोगों की हत्या हुई जिसमें भी बृजेश का नाम सामने आया. इस गैंगवार में बृजेश सिंह को भी पुलिस की गोली लगी थी जिसके बाद पुलिस ने उसे पकड़ लिया लेकिन बाद में बृजेश पुलिस के चंगुल से भागने में कामयाब रहा.
त्रिभुवन सिंह से दोस्ती और गैंगवार की शुरुआत
रामचंद्र यादव की हत्या के बाद बृजेश सिंह का सिक्का पूरे पूर्वांचल में चलने लगा था. इसी दौरान उसकी दोस्ती त्रिभुवन सिंह से हुई जो साहिब सिंह गैंग का सदस्य था. दरअसल 90 के दशक में पूर्वांचल में साहिब सिंह और मजनू सिंह दो गैंग सक्रिय थे जो हर तरह के अपराध, ठेकेदारी, हत्या आदि में शामिल रहते थे. त्रिभुवन ने बृजेश को साहिब सिंह गैंग में शामिल करवाया.
बात ये थी त्रिभुवन भी अपराध की दुनिया में इसलिए कदम रखा था क्योंकि उसके परिवार के कई सदस्यों की हत्या हो गई थी. त्रिभुवन के भाई राजेंद्र सिंह की हत्या कर दी गई थी जो उत्तरप्रदेश पुलिस में थे. और इस हत्या में नाम सामने आया मजनू गैंग और उसके सदस्य मुख्तार अंसारी और साधु सिंह का. मुख्तार और साधु उस वक्त मजनू गैंग का सबसे बड़ा नाम था. कुछ ही दिन बाद और बृजेश और त्रिभुवन ने मिलकर साधु की एक अस्पताल में हत्या कर दी.
इसके बाद शुरू हुई मुख्तार अंसारी और बृजेश सिंह की कभी न खत्म होने वाली दुश्मनी की कहानी.
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मुख्तार और बृजेश की दुश्मनी
सबसे पहले बृजेश ने मुख्तार पर हमला जुलाई 2001 में किया. मुख्तार मुहम्मदाबाद से मऊ जा रहा था कि उसरी चट्टी गांव के पास बृजेश के गैंग की उसपर हमला कर दिया. इस हमले में मुख्तार अंसारी की जान तो बच गई लेकिन उसके दो गनर मारे गए. यह घटना यूपी की क्राइम हिस्ट्री में उसरी चट्टीकांड नाम से दर्ज हो गया. इसके बाद बृजेश और मुख्तार की दुश्मनी और बढ़ गई. इसके बाद बृजेश को लगा कि अगर इलाके में अपना दबदबा रखना है तो उसे राजनीतिक संरक्षण की जरूरत है. उस वक्त उसने हाथ पकड़ा बीजेपी नेता और विधायक कृष्णानंद राय का. दरअसल कृष्णानंद राय ने मुख्तार के बड़े भाई अफजल अंसारी को 2002 के विधानसभा चुनाव में हराया था. बृजेश कृष्णानंद राय के संरक्षण में काम करने लगा, लेकिन 29 नवंबर 2005 को कृष्णानंद राय की मुख्तार गैंग द्वारा गोली से छलनी कर हत्या कर दी गई थी. इसके बाद से बृजेश जान बचाने के लिए उत्तप्रदेश से भाग गया. तीन साल तक वह कहीं दिखा नहीं लेकिन साल 2008 में दिल्ली पुलिस की स्पेशल टीम ने उसे उड़ीसा के भुवनेश्वर से बृजेश को गिरफ्तार कर लिया. ब्रजेश वहां अरुण कुमार नाम से रह रहे थे. साल 2022 में 13 साल बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उसे रिहा कर दिया.
मुख्तार को मारने के लिए 6 करोड़ की सुपारी
बृजेश सिंह जेल में थे उसी दौरान पुलिस ने लंबू शर्मा नाम के एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया. लंबू शर्मा आरा कोर्ट धमाके मामले में गिरफ्तार किए गए थे. इस दौरान पुलिस ने पूछताछ की तो पता चला कि बृजेश सिंह ने लंबू शर्मा को मारने के लिए 6 करोड़ की सुपारी दी थी. इसके बाद हड़कंप मच गया. उस वक्त की सपा सरकार ने मुख्तार अंसारी की सुरक्षा कई गुना बढ़ा दी थी.
जेल से राजनीति की शुरुआत
बृजेश जब जेल में बंद थे उसी वक्त उन्होंने साल 2012 में उत्तरप्रदेश के चंदौली की सैयदराजा सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ा. हालांकि बृजेश इस चुनाव में मनोज सिंह से हार गए थे. इसके बाद जेल से ही बृजेश सिंह ने 2016 में वाराणसी सीट से MLC का चुनाव लड़ा और जीते. साल 2022 में 13 साल बाद बृजेश की जेल से जमानत पर रिहाई हो गई.
कोयला किंग सूर्यदेव सिंह से संबंध और जेजे अस्पताल हत्याकांड
1990 के दशक में बृजेश सिंह की पहचान झारखंड (तत्कालीन बिहार) के कोयला माफिया सूर्यदेव सिंह से हुई. बृजेश सूर्यदेव का कारोबार देखने लगा. इस दौरान उसपर 6 हत्याओं के आरोप लगे.
साल 2003 में सूर्यदेव सिंह के बेटे राजीव रंजन सिंह का अपहरण कर हत्या कर दी गई. इस हत्याकांड में बृजेश का नाम सामने आया. हालांकि, बाद में बृजेश का नाम इससे हटा दिया गया.
इसके अलावा सितंबर 1992 में मुंबई के जेजे अस्पताल गोलीकांड हुआ. उस हत्याकांड में शैलेश हलदरकर को गोलियों से छलनी कर दिया. कहा जाता है कि यह हत्याकांड दाऊद के इशारे पर उसके रिश्तेदार पारकर की हत्या का बदला लेने के लिए करवाया गया था. इस घटना में अस्पताल की सुरक्षा में लगे मुंबई पुलिस के दो जवान भी मारे गए थे. इस घटना के बाद बृजेश सिंह के खिलाफ टाडा के तहत मुकदमा चलाया गया था लेकिन सितंबर 2008 में सबूतों की कमी के कारण उसे बरी कर दिया गया.
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