कानपुर: कानपुर के चमड़ा व्यापार की धूम देश-विदेश में हुआ करती थी, लेकिन पिछले चार महीने से ये ठप पड़ा है. कुंभ के दौरान बंद की गई टैनरीज़(चमड़ा) को अभी तक नहीं खोला गया है जिस कारण टैनरी मालिकों को अब तक करोड़ों का नुकसान हो चुका है. वहीं इस व्यापार से जुड़े अधिकतर मज़दूरों को आज दो वक्त की रोटी भी नहीं नसीब हो रही है. हालात ये हैं 70 प्रतिशत से ज़्यादा टैनरी मज़दूर कानपुर से पलायन कर चुके हैं. विदेश में कानपुर के चमड़ा व्यापार की साख भी गिर गई है. विदेशी व्यापारी अब पाकिस्तान और बांग्लादेश में चमड़े का ऑर्डर दे रहे हैं.
क्या है पूरा मामला
कुंभ के दौरान यूपी सरकार को दुनिया को दिखाना था कि अब गंगा उतनी मैली नहीं, साथ ही श्रद्धालुओं को भी स्वच्छ जल दिलाने का वादा था. तो ताबड़तोड़ उपाय के तहत गंगा को साफ करने के लिए नदी में गिर रहे नालो को रोका गया. कानपुर का चमड़ा उद्योग भी इसकी ज़द में आया. गंगा में गिरने वाली गंदगी रोकने वाले संयंत्र सीईटीपी के समय से शुरू न होने की वजह से कानपुर में नदी साफ़ नहीं हुई और कुंभ में गंगा का साफ पानी देने के लिए टैनरीज बंद कर दी गयीं.
सरकार की ओर से 15 दिसंबर से 15 मार्च तक टैनरीज बंद करने के आदेश आ गए, लेकिन स्मॉल टैनर्स एसोसिएशन के मुताबिक सरकार की ओर से 18 नवंबर को ही टैनरीज बंद करवा दी गईं. 8 दिसंबर इन्हें दोबारा खोलने के आदेश हुए लेकिन फिर पॉल्यूशन कंट्रोल एक्ट के तहत ऑर्डर भिजवा दिया गया जिससे टैनरी बंद करनी पड़ीं. कुंभ मेला खत्म होने और 15 मार्च बीतने के बावजूद ये अभी तक नहीं खुल पाईं. कानपुर के टैनरी में काम करने वाले कहते हैं कि ऐसा पहली बार हुआ है कि जब इन्हें इतने लंबे समय तक बंद किया गया है.
जल निगम पर रहती है ज़िम्मेदारी
कानपुर में जाजमऊ चमड़ा उद्योग के उत्सर्जन को साफ करने की ज़िम्मेदारी निभाने वाले जल निगम का कहना था कि अभी ट्रीटमेंट प्लांट की मरम्मत का काम चल रहा है, इसलिए गंदगी गंगा में गिर रही है. उसका यह भी कहना था कि मरम्मत का काम 30 नवंबर तक पूरा हो जाएगा और फिर गंगा में टैनरियों का प्रदूषित उत्सर्जन गिरना खुद ही बंद हो जायेगा. टेनरी मालिकों की मानें तो इस बात को अनसुना करके सारा अपराध टेनरियों पर मढ़ दिया गया और 18 नवंबर से उन्हें बंद करने के तुगलगी फरमान जारी हो गए.
हालांकि जाजमऊ की सारी टेनरियों में सरकारी निर्देशों के अनुसार प्राइमरी ट्रीटमेंट प्लांट लगे हैं. इनसे निकले उत्सर्जन को कनवर्स के ज़रिए कामन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट यानी सीईटीपी तक पहुंचाया जाता है. सीईटीपी का प्रबंध जल निगम करता है. इसलिए अगर सीईपीटी से कोई गंदगी गंगा में जा रही है या सिंचाई के लिए छोड़े जा रहे पानी में जा रही है तो उसके लिए टेनरियों को कैसे ज़िम्मेदार माना जा सकता है? जल निगम को क्यों इसके लिए ज़िम्मेदार नहीं माना जाता?
कानपुर के चमड़ा कारोबारी इस बात से भी आहत हैं कि कानपुर के सबसे बड़े प्रदूषित जल वाले सीसामऊ नाले की गंदगी को भी टेनरियों के नाम कर दिया जाता है. वैसे कानपुर के चमड़ा उद्योग का प्रदूषण से पुराना नाता रहा है. 50 से ज़्यादा टेनरियां कानपुर से हटाकर उन्नाव पहुंचाई गईं. कुछ कानपुर के ही बनथर में पहुंचाई गईं. लेकिन इससे भी प्रदूषण की स्थिति में बहुत सुधार नहीं आया. ट्रीटमेंट प्लांट भी स्थाई समाधान नहीं बन सके. फिर जाजमऊ से सभी टैनरियों को हटाकर रमईपुर में स्थापित करने में इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर काम शुरू हुआ. मगर वह भी परवान नहीं चढ़ पाया.
गंगा में गिरने वाली गंदगी रोकने वाले संयंत्र सीईटीपी के समय से शुरू न होने की वजह से कानपुर में नदी साफ़ नहीं हुई. कुंभ में गंगा का साफ पानी देने के लिए टैनरी बंद हो गयीं, व्यापार की कमर टूट गयी और हज़ारों मज़दूर बेरोज़गार हो गए. 18 नवंबर से आज तक यहां टैनरी बंद हैं. दरअसल कुंभ के दौरान गंगा में पानी साफ रहे, इसके लिए गंगा के किनारे जल प्रदूषित करने वाले सभी उद्योगों को बंद करने का आदेश दिया गया है. इसके चलते कानपुर में चमड़ा टैनरी ही नहीं बिजनौर और हापुड़ में डिस्टलरी तीन महीने तक बंद रखने के आदेश हुए. सरकार की ओर से ये आदेश दिए गए लेकिन कुंभ खत्म होने के बाद भी इनको अभी तक नहीं खोला गया.
अब तक 10 हज़ार करोड़ का नुकसान
उत्पादन के मामले में कानपुर का चमड़ा उद्योग तमिलनाडु के बाद दूसरे नंबर पर है. कानपुर के चमड़ा व्यापारी कहते हैं कि फैक्टरियां बंद होने से इन दिनों में लगभग 10 हज़ार करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है और तीन महीने की बंदी से कानपुर का चमड़ा उद्योग अगले तीन साल तक नहीं उबर पाएगा.
जानें मज़दूरों का हाल उन्हीं की जुबानी
पटना के संतोष रविदास पिछले चार साल से कानपुर स्थित एक टैनरी में कार्यरत हैं. पिछले चार महीने से ये बंद पड़ी है जिस कारण उन्हें वेतन नहीं मिल पाया. संतोष आर्थिक तंगी के कारण बच्चों के स्कूल की फीस नहीं जमा कर पाए. वे कहते है, ‘इस कारण मेरे बच्चों का स्कूल से नाम काट दिया गया.’ परेशान संतोष बताते हैं कि अगर ‘यही हाल रहा तो आने वाले दिनों में मैं बच्चों को दो वक्त की रोटी भी नहीं खिला पाऊंगा.’ संतोष की तरह ही हज़ारों मज़दूर ऐसा जीवन जीने को मजबूर हैं. टैनरी मालिकों का कहना है कि लगभग 70% मज़दूर कानपुर से पलायन कर चुके हैं.
गोरखपुर के रहने वाले बिरजू बताते हैं कि उनके साथ सैकड़ों मजदूर यहां काम करते थे जो अब जा चुके हैं. वह भी कुछ दिन का और इंतज़ार कर रहे हैं. वे कहते हैं, ‘अगर काम नहीं मिला तो मैं वापस गोरखपुर लौट जाऊंगा.’
कानपुर के जाजमऊ में खच्चर चलाकर माल ढुलाई का काम करने वाले राम पाल बताते हैं कि पहले ‘दिनभर में 500- 1000 से 1200 रुपए तक की कमाई हो जाती थी. अब तो 500 रुपए भी मुश्किल हैं. छह लोगों का परिवार नहीं चल पा रहा. तीन घोड़े हैं, अब एक का ही काम है.’
ज़्यादातर मुस्लिम जुड़े हैं इस व्यापार से
जाजमऊ स्थित 90 प्रतिशत टैनरी के मालिक मुसलमान हैं. वहीं मजदूरों में अल्पसंख्यक व दलितों की संख्या काफी अधिक है. स्मॉल टैनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष हफीजुर रहमान (बाबू भाई) कहते हैं कि ‘इसे धर्म से जोड़कर नहीं देखना चाहिए लेकिन मामले को जिस तरह लटकाया जा रहा है उससे सियासत की बू आ रही है’.
टैनरी मालिकों का क्या है कहना
स्मॉल टैनर्स एसोसिएशन के सदस्य फिरोज़ आलम ने दिप्रिंट को बताया कि ‘व्यापारियों का धंधा ठप होने के साथ ही साख पर बट्टा भी लग गया है. एक तो आर्डर समय पर नहीं दे पाए, दूसरे आगे के आर्डर भी कैंसिल हो गए.’ चमड़ा एसोसिएशन के मुताबिक करीब 10,000 करोड़ का नुकसान हो चुका है. यहां कानपुर में चमड़ा उद्योग में करीब एक लाख लोग काम करते हैं. हज़ारों दैनिक वेतनभोगी कर्मी इस दौरान खाली बैठे हैं. ‘विदेशों से हमें जो निर्यात आर्डर मिले थे वे भी रद्द हो गए हैं. हमारा कारोबार छह महीने पीछे चला गया है.’
फिरोज़ आलम के मुताबिक ‘टैनरी संचालकों और व्यापारियों को इस बंदी का असर तीन साल तक झेलना पड़ेगा. इस धंधे को नुकसान न होता अगर कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (सीईटीपी) पूरी तरह संचालित होते तो टैनिरयों पर रोक न लगानी पड़ती.’
स्मॉल टेनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष हफीजुर रहमान (बाबू भाई) ने बताया कि चार महीने से काम ठप पड़ा है. इस बेरोज़गारी और व्यापार में हो रहे घाटे के लिए सरकार पर आरोप लगाते हुए कहते हैं, ‘हम हर साल सरकार को दो करोड़ 78 लाख टैक्स के रूप में दे रहे हैं.’
एसोसिएशन के सदस्य एस. फैज का कहना है कि बंद पड़ी इकाइयों को बिजली, सफाई मशीनों के रखरखाव आदि के लिए लगभग 10 लाख रुपये प्रति माह का अतिरिक्त खर्च उठाना पड़ रहा है.
कहां फंसा है पेच
फिरोज़ आलम के मुताबिक कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (सीईटीपी) पूरी तरह संचालित न हो पाने के कारण उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कुंभ मेले तक टैनरियों को बंद रखने का फैसला लिया जबकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस साल मई में जाजमऊ के सीईटीपी और पंपिंग स्टेशनों को ठीक करने के लिए 17.68 करोड़ रुपए का बिल पास किया था. 12 नवंबर तक इसका संचालन पूरी क्षमता के साथ शुरू होना था जो नहीं हो सका. ऐसे में ज़िम्मेदार कौन है. वह खुद पिछले एक महीने से सचिवालय के चक्कर काट रहे हैं. फाइल एक विभाग से दूसरे विभाग जा रही है लेकिन कोई हल नहीं निकल रहा. उनके मुताबिक चुनाव करीब हैं इसके पीछे राजनीतिक वजह भी हो सकती है.
लगातार घाटे में जाता कानपुर का चमड़ा व्यापार
2014 में जाजमऊ और कानपुर के क्षेत्रों में 402 रजिस्टर्ड टेनरी यानी चमड़े के कारखाने संचालित थे लेकिन सरकार की अनदेखी और प्रदूषण को लेकर उठते सवालों के कारण अब महज 260 टेनरियों ही चल रही हैं. बाकी लगातार घाटे के कारण या तो बंद हो गईं या फिर ज़िला प्रशासन द्वारा सीज़ कर दी गईं. इस पूरे कारोबार से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से 10 लाख से ज़्यादा लोगों की रोज़ी-रोटी जुड़ी है.
लेदर कॉउंसिल ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक कानपुर में कभी 12,000 करोड़ रुपए का चमड़े का व्यापार होता था, जो घटकर महज 2000 करोड़ रुपए तक रह गया है. कारोबार में 40 फीसदी से ज़्यादा की गिरावट दर्ज़ की गयी है.
विपक्ष सरकार को बता रहा दोषी
समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता अब्दुल हफीज़ गांधी का कहना है कि ‘कुंभ के समापन तक चमड़ा उद्योग को बंद करा दिया गया था. परंतु लाखों लोगों के रोज़गार को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार को इसको खोलने की तरफ ध्यान देना चाहिए. गंगा सफाई के प्रयास चलते रहना चाहिए लेकिन उद्योग भी प्रभावित नहीं होने चाहिए.’ कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता अंशू अवस्थी का कहना है कि ‘रोज़गार पर इस सरकार का फोकस ही नहीं है. केवल चमड़ा व्यापारी ही नहीं हर व्यापारी सरकार से नाराज़ हैं. ये केवल वादे करने वाली सरकार है. उन्हें कभी पूरा नहीं करती. ’
सरकारी अधिकारियों का क्या है पक्ष
कानपुर के डीएम विजय विश्वास पंत की मानें तो वह टैनरी मालिकों की समस्या सुलझाने में लगे हैं. कुछ सरकारी औपचारिकताएं बाकी हैं. उन्हीं के पूरे होने का इंतज़ार है. पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड में कानपुर के रीजनल अधिकारी घनश्याम से जब इस मामले में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि वह अभी कुछ सप्ताह पहले ट्रांसफर होकर आए हैं. इस मामले पर कुछ नहीं बोलेंगे.
दिप्रिंट की ओर से सरकार के कई मंत्रियों इस मुद्दे को लेकर बात करने की कोशिश की गई, लेकिन हर कोई इस मुद्दे पर बोलने से बच रहा है. जाहिर है चुनाव के माहौल में कोई भी मंत्री इसमें नहीं पड़ना चाहता लेकिन दूसरी तरफ टैनरी के मजदूरों का हाल बेहाल है. दिन पर दिन उनकी उम्मीद टूटती जा रही है.