नई दिल्ली: दूध और दुग्ध उत्पादों की कीमतों में महंगाई पिछले लगभग 20 महीनों से बढ़ी है और पिछले पांच महीनों में इसने लगातार देश में मूल्य वृद्धि के सभी स्तरों को पार कर लिया है.
दुग्ध उद्योग से निकटता से जुड़े लोगों के अनुसार इसका कारण, आपूर्ति और मांग कारकों का एक संयोजन हो सकता है, जिसमें महामारी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है.
दिप्रिंट के विश्लेषण में पाया गया है कि फरवरी 2022 और जुलाई 2022 में मामूली गिरावट के अलावा, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक की ‘दूध और दूध उत्पाद’ श्रेणी में मुद्रास्फीति की दर जुलाई 2021 से फरवरी 2023 तक लगभग हर महीने तेज हुई है. डेटा यह भी दिखाता है कि, अक्टूबर 2022 से, दूध की कीमतों में मुद्रास्फीति देश में मूल्य वृद्धि की सामान्य दर को पार कर गई है, और यह अंतर बढ़ता ही जा रहा है.
जबकि मुद्रास्फीति को लेकर हमारे पास नवीनतम आंकड़े फरवरी 2023 के हैं, दूध की वास्तविक कीमत पर ज्यादा ताजे आंकड़े मौजूद हैं.
उपभोक्ता मामलों के विभाग के मूल्य आंकड़ों के अनुसार, 4 अप्रैल, 2023 को एक लीटर दूध की औसत कीमत एक साल 51.4 रूपये प्रति लीटर से बढ़कर 4 अप्रैल, 2023 – अंतिम तारीख जिसके लिए आंकड़े उपलब्ध हैं – को 56.8 रुपये हो गई है. जो कि एक साल में 10.5 फीसदी की बढ़ोत्तरी है.
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राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान के पूर्व प्रधान वैज्ञानिक बी.एस. चंदेल ने दिप्रिंट को बताया, “दूध की कीमतों में वृद्धि का मुख्य कारण इनपुट लागत में वृद्धि है, जिसका एक हिस्सा चारे की कीमतों में वृद्धि के कारण है. दुधारू पशुओं के मिश्रित आहार में उपयोग किए जाने वाले कंसंट्रेट और खनिजों की कीमत में भी वृद्धि हुई है,”
चंदेल ने यह कहते हुए कि उस पीरियड में उत्पादन पर विपरीत असर पड़ा, बताया, “इन इनपुट्स की कीमत में वृद्धि का कारण कोविड -19 महामारी और उसके बाद के कैरी-ऑन इफेक्ट्स है,”
आगे उन्होंने कहा कि किसी भी मामले में, देश में फ़ीड की आपूर्ति मांग का केवल 60 प्रतिशत है, और इसलिए फ़ीड की बढ़ती कीमतों का दूध की कीमत पर असर पड़ा है.
अमूल के पूर्व प्रबंध निदेशक और भारतीय डेयरी संघ के वर्तमान अध्यक्ष आर.एस. सोढी ने कहा, आपूर्ति के मुद्दों की निश्चित रूप से इसमें एक भूमिका है, यह मुद्दा इस तथ्य में भी निहित है कि दुग्ध उत्पादों की मांग में वृद्धि हुई है.
सप्लाई को लेकर उन्होंने कहा कि महामारी से प्रेरित नेशनल लॉकडाउन और उसके बाद के रीजनल लॉकडाउन का मतलब है कि दूध की मांग में तेजी से गिरावट आई है, जिसका पूरे उद्योग पर असर पड़ा है.
सोढ़ी ने बताया, “हालांकि लॉकडाउन के दौरान मांग गिर गई, पर इसका कारण यह नहीं था दूध देने वाले जानवरों ने दूध का उत्पादन बंद कर दिया था, और इसलिए दूध और उसके उत्पादों की कीमत में तेजी से गिरावट आई है.” “परिणामस्वरूप, अगले वर्ष में, कीमतों के गिरने के कारण किसानों ने शायद उतना उत्पादन बढ़ाने की कोशिश नहीं की जितनी वे कर सकते थे.”
दरअसल, पशुपालन और डेयरी विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि, हालांकि भारत में दूध का कुल उत्पादन हर साल बढ़ा है, लेकिन महामारी के बाद से उत्पादन की वृद्धि दर में तेजी से गिरावट आई है.
सोढ़ी ने कहा, “एक अन्य कारक यह है कि महामारी के दौरान मवेशियों का कृत्रिम गर्भाधान नहीं किया जा सकता था, जिसकी वजह से उन्हें बच्चे देने में देरी हुई. इसका असर दो साल बाद महसूस किया गया.”
हालांकि, चंदेल के अनुसार, यह कारक अभी तक डॉक्युमेंट नहीं किया गया है.
चंदेल ने कहा, ‘यह तथ्य रिकॉर्ड में नहीं आया है.’ “वैज्ञानिकों द्वारा यह माना जा रहा है कि बच्चे देने में देरी हो सकती है, लेकिन यह अभी तक रिकॉर्ड में दर्ज नहीं हुआ है.”
चंदेल और सोढ़ी दोनों इस बात से सहमत हैं कि पिछले कुछ वर्षों में दूध और दूध उत्पादों की मांग में वृद्धि हुई है, चंदेल का कहना है कि यह क्रय शक्ति में वृद्धि के कारण है, और सोढ़ी का कहना है कि इसका कारण आहार में प्रोटीन को ज्यादा से ज्यादा शामिल करने की वजह से हुआ है.
हालांकि, सोढ़ी का कहना है कि दूध की कीमतों में वृद्धि के पीछे मांग में वृद्धि प्रमुख कारण है, चंदेल को लगता है कि इनपुट कीमतों में बढ़ोत्तरी ही वृद्धि का प्रेरक कारक है.
इसके अलावा, रिपोर्ट्स से संकेत मिलता है कि लंपी स्किन त्वचा रोग, जो पिछले एक साल में भारत में मवेशियों को काफी हद तक प्रभावित कर रहा है, ने देश में दूध के उत्पादन पर ज्यादा प्रभाव नहीं डाला है. साक्ष्य बताते हैं कि यह रोग बड़े पैमाने पर उन मवेशियों को प्रभावित कर रहा है जो पहले से ही बूढ़े और बीमार हैं, और इसलिए किसी भी मामले में ज्यादा दूध का उत्पादन नहीं कर रहे हैं.
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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