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Thursday, 21 November, 2024
होमडिफेंस‘एक और ALH में खराबी', विशेषज्ञों का मानना- स्वदेशी हेलिकॉप्टरों की व्यापक समीक्षा करने की जरूरत

‘एक और ALH में खराबी’, विशेषज्ञों का मानना- स्वदेशी हेलिकॉप्टरों की व्यापक समीक्षा करने की जरूरत

पिछले दो दशकों में ALH ध्रुव से जुड़ी 18 से 22 घटनाएं सामने आईं है. विशेषज्ञों के मुताबिक, एएलएच बेड़े में खराबी की वजह इसके डिजाइन और इंजीनियरिंग से जुड़ी हो सकती हैं.

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नई दिल्ली: इस महीने की शुरुआत में अचानक पावर चले जाने के कारण नौसेना के एडवांस लाइट हेलीकॉप्टर ध्रुव की मुंबई के तट के पास डिचिंग (पानी के ऊपर आपात लैंडिंग) ने स्वदेशी हेलीकॉप्टर के प्रदर्शन और सुरक्षा पर एक बार फिर से सवाल खड़ा कर दिया है.

नौसेना के एक बयान में बताया गया है कि 8 मार्च को जब यह घटना हुई थी तब हेलीकॉप्टर नियमित उड़ान पर था और खराबी के चलते पानी पर उसकी इमरजेंसी लैंडिंग कराई गई थी.

इसमें आगे कहा गया है कि अरब सागर के ऊपर रूटीन सोर्टी के दौरान हेलीकॉप्टर में अचानक पावर चली गई और वह तेजी से नीचे आने लगा. हालात के मद्देनजर पायलट ने नियंत्रित रूप से पानी पर उसे उतारा.

नौसेना के प्रवक्ता ने ट्वीट किया कि घटना की जांच के आदेश दे दिए गए हैं.

हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) द्वारा निर्मित ALH को समस्या का सामना करना पड़ा है. पिछले दो दशकों में एएलएच से जुड़ी कम से कम 18 ( हालिया घटना समेत) घटनाएं सामने आईं हैं. कुछ रिपोर्टों से पता चलता है कि हेलीकॉप्टर से जुड़ी इन दुर्घटनाओं की संख्या 22 भी हो सकती हैं. संसद के आंकड़ों के अनुसार, 2017-21 के बीच एएलएच से जुड़ी छह घटनाएं रिपोर्ट की गईं थीं.

स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर के हिस्से के तौर पर सशस्त्र बलों ने जांच पूरी होने तक एहतियातन इन हेलीकॉप्टरों के पूरे बेड़े के परिचालन पर रोक लगाने का फैसला किया है.

ALH सेना, नौसेना और वायु सेना के लिए एक जरूरी आधार बिंदु है. 1983 में डिजाइन किए गए इस हेलीकाप्टर का इस्तेमाल सैन्य कर्मियों और मटेरियल के ट्रांसपोर्ट समेत अन्य कई तरह की सेवाओं के लिए किया जाता है.

नौसेना स्टाफ के पूर्व प्रमुख (सीएनएस) एडमिरल अरुण प्रकाश ने दिप्रिंट से कहा, ‘एएलएच के पास एक सोलिड डिजाइन है. लेकिन लगातार होने वाली दुर्घटनाओं/घटनाओं से संकेत मिलता है कि कुछ डिजाइन या विनिर्माण संबंधी मसले हो सकते हैं, जिन्हें पूरे बेड़े की जांच के संदर्भ में देखा जाना चाहिए.’

हालिया घटना में हेलीकॉप्टर को किसी तरह का कोई नुकसान नहीं पहुंचा है. उन्होंने कहा कि लेकिन यह इस तरफ इशारा करता है कि कारणों का पता लगाने और ऐसा फिर से न हो हो, इसे रोकने के लिए बोर्ड ऑफ इंक्वायरी को एक संपूर्ण और समग्र जांच की और जाना चाहिए.

दिप्रिंट से बात करने वाले विशेषज्ञों ने महसूस किया कि डिजाइन और विनिर्माण से संबंधित समस्याएं एएलएच बेड़े को सबसे अधिक प्रभावित कर रही हैं. हालांकि, आम सहमति यह है कि सिर्फ एक व्यापक और स्वतंत्र समीक्षा ही मौजूदा घटना और इसके सामने आने वाली बड़ी समस्याओं के जवाब दे सकती है.

एयर वाइस मार्शल मनमोहन बहादुर (रिटायर्ड) ने कहा, ‘इसे लेकर गंभीर जांच किए जाने की जरूरत है ताकि यह पता लगाया जा सके कि सशस्त्र बलों के इतने महत्वपूर्ण घटक को समस्याओं का सामना क्यों करना पड़ रहा है.’

नाम न बताने की शर्त पर एक पूर्व सैन्य अधिकारी ने कहा कि एएलएच में विफलता अस्वीकार्य है. ‘ऐसा लगता है कि हमने इन समस्याओं के साथ जीना सीख लिया है.’

सिर्फ बड़ी एएलएच दुर्घटनाओं का ही डेटा उपलब्ध

पिछले कुछ सालों में ALH से जुड़ी कई घटनाओं की सूचना मिली है. घटनाओं की संख्या 18 से 22 के बीच है. लेकिन कई लोगों का मानना है कि वास्तविक आंकड़ा उससे कहीं ज्यादा भी हो सकता है.

पहले उद्धृत पूर्व सैन्य अधिकारी ने कहा, ‘रिपोर्ट किया गया डेटा सिर्फ बड़ी दुर्घटनाओं के बारे में बताता है. ऐसी कई छोटी-मोटी घटनाएं या दुर्घटनाएं हो सकती हैं, जिनके बारे में हमें जानकारी नहीं है.’

2007 में वायु सेना की ‘सारंग’ एरोबिक टीम का एक ALH बेंगलुरु के येलहंका एयरबेस पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिससे विंग कमांडर विकास जेटली की दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु हो गई थी.

2014 में एक अन्य घटना में, एएलएच दुर्घटनाग्रस्त होने पर उत्तर प्रदेश में वायु सेना के सात कर्मियों की मौत हो गई थी.

अगले ही साल 2015 में, आर्मी एविएशन कॉर्प्स का एक और एएलएच ध्रुव जम्मू-कश्मीर के बांदीपोरा जिले में दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिसमें पायलट और सह-पायलट की मौत हो गई. शहीद हुए दोनों जवानों की पहचान लेफ्टिनेंट कर्नल राजेश गुलाटी और मेजर ताहिर खान के रूप में हुई थी.

इसके अलावा, भारतीय सेना के दो जनरल 2017 में लद्दाख में एक एएलएच दुर्घटना में बाल-बाल बचे थे.

दो साल बाद, 2019 में सेना की उत्तरी कमान के जीओसी लेफ्टिनेंट जनरल रणबीर सिंह भी उधमपुर की अपनी यात्रा के दौरान दुर्घटनाग्रस्त हुए थे.

हालांकि लेफ्टिनेंट जनरल सिंह से संबंधित दुर्घटना के कोर्ट ऑफ इंक्वायरी के निष्कर्ष सार्वजनिक नहीं किए गए हैं. लेकिन रक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने पहले दिप्रिंट को बताया था कि दुर्घटना रोटर्स और बैक की पावर को नियंत्रित करने वाले ‘क्लैकेटिव’ के टूटने के बाद हुई थी.

सूत्रों ने बताया कि यह एक मैन्युफैक्चरर डिफेक्ट था.


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कलेक्टिव कंट्रोल

एक हेलीकॉप्टर में तीन प्रमुख कंट्रोल होते हैं जिनका इस्तेमाल पायलट को उड़ान के दौरान करना होता है-  कलेक्टिव पिच कंट्रोल, साइक्लिक पिच कंट्रोल और एंटी-टोक पैडल या टेल रोटर कंट्रोल.

यूएस फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन के मुताबिक, क्लैक्टिव पिच कंट्रोल (या सामान्य ‘क्लैक्टिव’ या ‘थ्रस्ट लीवर’) पायलट की सीट के बाईं ओर होता है और बाएं हाथ से इसे ऑपरेट किया जाता है.

कलेक्टिव का इस्तेमाल मुख्य रोटर ब्लेड के पिच एंगल को बदलने के लिए किया जाता है और यह एक साथ या कलेक्टिविली करता है, जैसा कि इसके नाम से जाहिर है. जैसे ही कलेक्टिव पिच कंट्रोल को ऊपर उठाते है, तो सभी मुख्य रोटर ब्लेडों के पिच एंगल में एक साथ और समान तेजी आती है और जब हम इसे कम करते है तो यह तेजी ठीक इसी तरह से धीमी पड़ जाती है.

कलेक्टिव के टूटने से वास्तव में पावर अचानक से कम हो सकती है.

एएलएच बेड़े की समग्र समीक्षा

विशेषज्ञों का मानना है कि भारत के एएलएच बेड़े में खराबी इसके डिजाइन और इंजीनियरिंग के मुद्दों से जुड़ी नजर आ रही है. उनके मुताबिक, ये दुर्घटनाएं इसके ढांचे से जुड़ी हैं और सिर्फ पूरे बेड़े की जांच, समीक्षा और अध्ययन के जरिए ही इनके बारे में पता चल सकता है और इनका समाधान किया जा सकता है.

एयर वाइस मार्शल मनमोहन बहादुर (रिटायर्ड) ने समझाया, ‘अरब सागर में हाल ही में हुई एएलएच घटना के केंद्र में साइक्लिक और कलेक्टिव पिच रॉड्स में समस्या हो सकती हैं. ये राड्स ALH को ऊपर और नीचे और साइड में जाने में सक्षम बनाती हैं.’

वह आगे कहते हैं, ‘हालांकि क्लैक्टिव और साइक्लिक इसकी वजह हो सकते हैं लेकिन एएलएच में आई खराबी की सही वजह पूरी जांच के बाद ही सामने आ पाएगी.’

पूर्व एयर वाइस मार्शल ने कहा, ‘जांच में एक इंजीनियरिंग और डिजाइन एसेसमेंट, जिस धातु से उसका निर्माण होता है उसकी स्टडी, निर्माण प्रक्रिया का मूल्यांकन, या शायद ये सभी एक साथ शामिल हो सकते हैं.’ उन्होंने कहा, हालांकि यह महत्वपूर्ण है कि यह मूल्यांकन एक स्वतंत्र निकाय द्वारा किया जाए.

पूर्व सीएनएस अरुण प्रकाश ने कहा, ‘सेना के बेड़े में एएलएच ध्रुवों की बड़ी संख्या और विविध एवं खतरनाक इलाकों में इनके परिचालन को देखते हुए, इनको फिर से शुरू करने की अनुमति देने से पहले जांच के नतीजों का इंतजार करना बेहतर रहेगा.’

विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि सशस्त्र बलों और मैन्युफैक्चरर को समाधान खोजने के लिए एक साथ आने की जरूरत है.

(अनुवाद: संघप्रिया मौर्या | संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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