हैदराबाद: पोर्ट ब्लेयर में बिछुड़े हुए साथी भाजपा और तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) के फिर से एक साथ आने पर आंध्र प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई है. दरअसल भाजपा दक्षिणी राज्य में अपने मेल-मिलाप की संभावना को स्पष्ट रूप से नकारती रही है.
देखा जाए तो दोनों पार्टियां ऐसे समय में साथ आई हैं, जब आंध्र में भाजपा की सहयोगी जनसेना पार्टी (JSP) के प्रमुख पवन कल्याण दोनों दलों के बीच तालमेल बिठाने पर पहले ही अपनी नाराजगी जाहिर कर चुके हैं.
175 सदस्यीय आंध्र विधानसभा के लिए अगले साल चुनाव होने हैं.
टीडीपी की एस. सेल्वी मंगलवार को अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में पोर्ट ब्लेयर नगर परिषद के अध्यक्ष के रूप में चुनी गईं. वह अगले दो वर्षों के कार्यकाल के लिए इस पद पर बनी रहेंगी. सेल्वी की नियुक्ति 2022 में परिषद के चुनावों के दौरान भाजपा और टीडीपी के सत्ता-साझाकरण समझौते के हिस्से के रूप में हुई है. भाजपा ने पहले एक साल के लिए सीट पर कब्जा किया और परिषद के बाकी के बचे दो सालों के कार्यकाल के लिए फिर से वापस आ जाएगी.
पोर्ट ब्लेयर नगर परिषद के 24 वार्डों के लिए हुए चुनावों में भाजपा ने 10 सीटें जीतीं थीं, जबकि कांग्रेस-द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) गठबंधन ने 11 सीटों पर अपना कब्जा जमाया था. एक सीट पर एक निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत हासिल की. टीडीपी दो सीटों के साथ किंगमेकर के रूप में उभरी और बीजेपी को समर्थन देने का फैसला किया. पार्टियों ने अध्यक्ष की सीट साझा करने पर सहमति व्यक्त की है.
आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और टीडीपी प्रमुख एन. चंद्रबाबू नायडू और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने साझेदारी पर संतोष व्यक्त किया.
नायडू ने मंगलवार को ट्वीट किया, ‘बीजेपी के साथ गठबंधन में पोर्ट ब्लेयर नगर परिषद के अध्यक्ष चुने जाने पर टीडीपी की श्रीमती एस सेल्वी को बधाई. उनकी नियुक्ति प्रगति के अग्रदूत के रूप में गठबंधन में लोगों के विश्वास को दर्शाती है। मैं लोगों की सेवा में उनके सफल कार्यकाल की कामना करता हूं.’
अंडमान और निकोबार टीडीपी के अध्यक्ष माणिक्य राव यादव ने मंगलवार को दिप्रिंट को बताया कि पार्टी बीजेपी को समर्थन देना जारी रखेगी. उन्होंने कहा कि अंडमान में एकमात्र एमपी सीट के लिए लड़ाई में वह भाजपा का समर्थन करने के लिए तैयार हैं. मौजूदा समय में यह सीट कांग्रेस के कुलदीप राय शर्मा के पास है.
नड्डा ने मंगलवार को ट्वीट किया था, ‘पोर्ट ब्लेयर नगर परिषद चुनाव में इस प्रभावशाली जीत पर भाजपा-तेदेपा गठबंधन को बधाई. पोर्ट ब्लेयर के लोगों के लिए यह आपकी कड़ी मेहनत और समर्पण का नतीजा है और यह जीत पीएम @narendramodi जी के विजन पर लोगों के भरोसे का प्रमाण है.’
यह भी पढ़ेंः ‘बड़ी-बड़ी खोजें बड़ी जगहों पर नहीं होती’: राजस्थान की सबसे पुरानी संस्कृति को ढूंढने में लगी ASI
आंध्र पहेली
पोर्ट ब्लेयर में भाजपा-तेदेपा गठबंधन पर शीर्ष नेताओं की सहमति ऐसे समय में आई है जब आंध्र प्रदेश में अभिनेता से राजनेता बने पवन कल्याण की अगुवाई वाली भाजपा की गठबंधन सहयोगी जनसेना पार्टी (जेएसपी) 2024 के राज्य चुनावों में ‘अकेले जाने के लिए तैयार’ है. इस घटनाक्रम ने राज्य में विपक्षी गठबंधन की पहेली को और उलझा दिया है.
भाजपा के साथ बढ़ते मतभेदों की ओर इशारा करते हुए कल्याण ने मंगलवार को कहा कि वह पार्टी के साथ गठबंधन से बाहर आने में संकोच नहीं करेंगे. उनके मुताबिक वह 2024 के चुनावों के लिए बलि का बकरा नहीं बनना चाहते हैं.
उन्होंने कहा, ‘अगर भाजपा के राज्य नेतृत्व ने जेएसपी के साथ मेरी उम्मीद के मुताबिक काम किया होता तो टीडीपी तस्वीर में नहीं होती. मुझे टीडीपी के लिए कोई अतिरिक्त प्यार नहीं है. द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में कल्याण के हवाले से कहा गया है कि मैं सिर्फ चंद्रबाबू नायडू का उनकी क्षमता के लिए सम्मान करता हूं.
तो, आंध्र प्रदेश में विपक्षी दलों का क्या सीन है?
राज्य सरकार का नेतृत्व वर्तमान में वाई एस जगन मोहन रेड्डी के नेतृत्व वाली वाईएसआरसीपी कर रही है. राज्य में चार विपक्षी दल हैं: टीडीपी, बीजेपी, कांग्रेस और जेएसपी. जेएसपी और टीडीपी दोनों ने बार-बार यह स्पष्ट किया है कि वे वाईएसआरसीपी विरोधी वोट को बांटना नहीं चाहते हैं.
JSP के पास रेजोल निर्वाचन क्षेत्र से एक विधायी सदस्य है – रपका वारा प्रसाद राव – जिन्होंने अनौपचारिक रूप से खुद को सत्तारूढ़ YSRCP पार्टी के साथ जोड़ लिया था. भाजपा और कांग्रेस दोनों के पास विधानसभा में एक भी सीट नहीं है. राज्य विधानसभा में टीडीपी के 19 फंक्शनल विधायक हैं. पार्टी ने 2019 में 23 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की थी, लेकिन उसके चार विधायक आधिकारिक रूप से वाईएसआरसीपी में शामिल हुए बिना पार्टी के साथ हो लिए थे. वाईएसआरसीपी के साथ अनौपचारिक रूप से गठबंधन करने का कदम दलबदल विरोधी कानून के तहत अयोग्यता से बचने के लिए था.
खुद जेएसपी प्रमुख पवन कल्याण का अब तक का सफर असफल रहा है. वह 2019 में दोनों निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव हारे हुए हैं.
पिछले कुछ महीनों में नायडू और कल्याण की बैठकों ने उनके बीच बढ़ते संबंधों और संभावित गठबंधन की अटकलों को जन्म दिया है. लेकिन, जेएसपी दो साल से अधिक समय से भाजपा के साथ गठबंधन में है.
हालांकि बैठकों में गठबंधन पर कोई ठोस चर्चा नहीं हुई, लेकिन टीडीपी के वरिष्ठ नेताओं ने जनवरी में दिप्रिंट को बताया था कि कल्याण उनकी पार्टी के साथ काम करने के इच्छुक हैं. तेदेपा नेताओं ने यह भी कहा कि उनकी पार्टी को भाजपा के साथ काम करने से कोई बड़ी आपत्ति नहीं है.
हालांकि पोर्ट ब्लेयर में गठबंधन की सराहना करने वाले नायडू और नड्डा के नवीनतम कदम से ऐसा लग सकता है कि उनकी पार्टियों ने 2018 में बाहर होने के बाद एक बार फिर से एक-दूसरे की तरफ हाथ बढ़ाया है. लेकिन दोनों पार्टियों के नेताओं ने मंगलवार को दिप्रिंट को बताया कि आंध्र प्रदेश में साझेदारी की किसी भी संभावना पर विचार करना जल्दबाजी होगी.
2014 में एक साथ लोकसभा चुनाव लड़ने वाली पार्टियां 2018 में आंध्र प्रदेश के लिए विशेष श्रेणी के दर्जे की मांग को लेकर नायडू के राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) से बाहर हो जाने के बाद, अलग हो गईं थीं.
लेकिन भाजपा कम से कम अभी के लिए राज्य में चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी के साथ काम करने के विचार के साथ नहीं दिख रही है.
राज्य के भाजपा नेता विष्णु वर्धन रेड्डी ने मंगलवार को दिप्रिंट को बताया, ‘नायडू के साथ हमारा पहले भी बुरा अनुभव रहा है और हम नहीं चाहते कि ऐसा दोबारा हो. बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने इसे बिल्कुल साफ कर दिया है. अंडमान नगर पालिका में पार्टियों के बीच संबंध आंध्र प्रदेश में किसी तरह की वापसी नहीं दिखाएंगे, यह यहां पूरी तरह से अलग तरीके से काम करता है.’
2021 में कल्याण ने आरोप लगाया था कि भाजपा ने उन्हें तेलंगाना में ग्रेटर हैदराबाद नगरपालिका चुनाव लड़ने से रोका था. कुछ महीने पहले दिप्रिंट से बात करते हुए रेड्डी ने कहा था कि पार्टी ने कल्याण से यह भी कहा था कि उन्हें टीडीपी और बीजेपी में से किसी एक को चुनना होगा.
अगर नायडू-कल्याण गठबंधन होता है, तो यह एक शक्तिशाली ‘कम्मा-कापू’ गठबंधन होगा. नायडू सामाजिक रूप से प्रभावशाली कम्मा समुदाय से आते हैं. उन्हें अपने समुदाय का पूरा समर्थन मिला हुआ है. लेकिन कापू नेता कल्याण के लिए ऐसा नहीं कहा जा सकता है. कापू समुदाय – जो पिछली जनगणना के अनुसार आंध्र की आबादी का लगभग 24 प्रतिशत है – जब किसी एक पार्टी का समर्थन करने की बात आती है तो वह हमेशा बंट जाता है.
(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ेंः हरियाणा की पहली महिला ड्रोन पायलट बनीं निशा सोलंकी, मगर अब भी अधर में भविष्य