scorecardresearch
Saturday, 16 November, 2024
होमसमाज-संस्कृतिजी आपने सही सुना, प्रियंका और दीपिका प्रेगनेंट नहीं हैं!

जी आपने सही सुना, प्रियंका और दीपिका प्रेगनेंट नहीं हैं!

समाज में शादी के बाद मां बनना इतना महत्व रखता है कि जो धारा के विपरीत चलते हैं उनको संदेह की दृष्टि से देखा जाता है.

Text Size:

हम अक्सर सुनते हैं, हर किसी की जिंदगी में शादी एक खुशनुमा पल होता है. इसलिए यह कोई खास बात नहीं लगती. इसी तरह शादी के साथ ही बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद दूधो नहाओ, पूतो फलो भी सदियों से चला आ रहा है.

मैं भी अपनी बात यहीं से शुरू कर रही हूं कि शादी के बाद पहला सवाल खुशखबरी कब सुना रही हो हमेशा नवविवाहिता से ही पूछा जाता है. शादी के कुछ दिनों बाद ही ये सवाल आम से लेकर सेलिब्रिटी महिलाओं तक से पूछा जाता है. सेलेब्स के मां बनने की पड़ताल में मीडिया के कैमरे लग जाते हैं. इस बात की ताक-झांक होती रहती है कि कुछ प्रोग्रेस हुई कि नहीं. चटपटी खबरें बनने लग जाती हैं. सेलीब्रिटी भाव न दे तो उसके पैरेंट्स से पूछा जाता है.

अपनी कयास को साबित करने के लिए फोटो लगाई जाती हैं, जिसमें बाकायदा शरीर के खास हिस्से को मार्क कर बताया जाता है कि बेबी बंप दिख रहा है. खुशखबरी आने वाली है. प्रियंका चोपड़ा, दीपिका पादुकोण और उससे पहले अनुष्का शर्मा तक कई नाम हैं, जिनको बार-बार इस बात का खंडन करना पड़ता है कि वे प्रेगनेंट नहीं है और अभी प्रेगनेंट होने का उनका कोई इरादा भी नहीं है. लेकिन इस तरह के फोटो लगाकर महिलाओं की निजता की धज्जियां उड़ा दी जाती हैं.

पति-पत्नी के रिश्तों को इतना फ्यूडल न बनाइए

क्या शादी करने का मतलब किसी भी लड़की के लिए सिर्फ बच्चा पैदा करना है. हिंदू विवाह में सात फेरों का महत्व है. अंतिम फेरे में कहा गया है, मात्र 7 कदम चलकर इंसान एक दूसरे का मित्र बन जाता है. सातवें फेरे में दूल्हा दुल्हन से बोलता है कि वो दोनों एक मित्र की तरह साथ रहेंगे और अपनी हर बात शेयर करेंगे. मित्रता ही रिश्ते की पहली सीढ़ी होती है. जहां दोस्ती हैं वहीं पर चीजें सफल होती हैं.


यह भी पढ़ें : सरकार जब शर्मसार होती है तो पैरों पर गिर जाती है


मित्रता बराबरी का भाव है. इसलिए ये बात पति-पत्नी पर छोड़ देनी चाहिए कि बच्चा पैदा करने में दोनों के फैसले में दोनों के विचारों की अहमियत है. माता-पिता, सास-ससुर या पति का दबाव बनाना दंपति के आपसी संबंध को फ्यूडल बना देता है. आज के दौर की महिलाओं के लिए किसी फ्यूडल लॉर्ड को बर्दाश्त करना मुमकिन नहीं.

इसलिए यह बात पूरी तरह से दंपति और खास कर महिला के विवेक पर छोड़ देनी चाहिए कि बच्चा उनकी प्राथमिकता में है या नहीं. कोई लड़की यह कह दे कि वह बच्चा नहीं चाहती और उसके पति की भी उसकी इस बात में रजामंदी हो तो उसके निर्णय को स्वीकार करना चाहिए. बच्चा न चाहने के पीछे हो सकता है उसकी कुछ निजी वजहें हो. यह उसकी सेहत से जुड़ी हुई भी हो सकती है और उसके करियर के लेकर भी.

मेहंदी का रंग उतरा नहीं कि काउंसिलिंग शुरू

शादी के बाद बच्चा न होने पर परिवार के लोग, रिश्तेदार और दोस्त बहुत दबाव बनाते हैं. वो आपकी काउंसिलिंग शुरू कर देते हैं. आपकी शादी के बाद की जिंदगी शुरू ही हुई है कि वह आपको कहने लगेंगे बुढ़ापे का सहारा तो चाहिए. अगर आपने बच्चा पैदा करने में देरी की तो यह कहते भी देर नहीं लगेगी क्या बुढ़ापे में बच्चा पैदा करोगी. यह सवाल लड़की की शादी देर से होने पर भी दबी जबान से गूंजने लगता है क्या बूढ़ी होकर शादी करेगी.

आखिर यह अपमान सिर्फ लड़कियों को ही क्यों झेलना पड़ता है? चाहे वह कितना भी बड़ा मुकाम क्यों न हासिल कर ले. प्रियंका चोपड़ा से लेकर दीपिका पादुकोण और एश्वर्या राय तक की उम्र पर सवाल उठ चुके हैं. बार-बार सवाल. महत्वाकांक्षी होने के ताने.

जब लोग कहते हैं फ्रस्ट्रेशन है इसको

महिलाओं पर इन बातों का गहरा मनोवैज्ञानिक असर पड़ता है. उनका कामकाज प्रभावित होता है. मेरी एक दोस्त कहती हैं – ‘लोगों ने जीना हराम कर दिया है. रिश्तेदार से लेकर सहकर्मी तक हर जगह एक ही सवाल है. इंतेहा तो यह है कि हमारी निजी जिंदगी में लोग ताकझांक करते हैं. बिना मांगे सलाह देते हैं, कुछ कहते हैं कमी है तो सरोगेसी से कर लो. इन सब बातों से उकता गई हूं.’


यह भी पढ़ें : कश्मीर में खुले वो दरवाज़े, जो हमें नज़र नहीं आए


एक दूसरी दोस्त है, जिसकी बेटी है 10 साल की. लोगों ने उसको भी परेशान किया और अंततः उसने दोबारा मां बनने का निर्णय लिया. रोज रोज की बात से वह भी सोचने लगी एक बेटा तो होना ही चाहिए. समाज में शादी के बाद मां बनना इतना महत्व रखता है कि जो धारा के विपरीत चलते हैं उनको संदेह की दृष्टि से देखा जाता है.

फर्ज की चादर में डूब जाती हैं महत्वाकांक्षी की सिसकियां

बच्चा पैदा करने का असर महिला के कामकाज पर पड़ता है. इसलिए बच्चा हो जाने के बाद अच्छे करियर वाली लड़कियां भी कई बार घर की सीमा में कैद हो जाती हैं. बच्चों की परवरिश में ही उनकी जिंदगी निकल जाती है. उनको घर की महारानी का तमगा तो मिल जाता है लेकिन असलियत में उनकी हैसियत क्या है यह हम सब जानते हैं. जो काम वह नहीं करना चाहती उन पर थोप दिया जाता है. बाहर जाकर अकेले कमाने वाला उसका पति भी जब तब उससे हिसाब किताब पूछता है उसे अहसास कराता है कि उसकी वजह से ही वह महारानी है.

बच्चे पैदा करने के बाद असर उसके करियर पर पड़ता है. घर में बच्चे न पढ़ें या शरारती हैं तो भी कहा जाता है इसे तो अपने करियर की पड़ी है, बच्चों से इसे कोई लेना देना नहीं. क्रेच में जाने वाले बच्चों की मां को अक्सर संवेदनहीन करार दिया जाता है. ऑफिस में भी उनको ताने मिलते हैं क्योंकि बच्चों की परिवरिश के साथ अपने काम के साथ भी न्याय करना पड़ता है.

महत्वाकांक्षा पर असर

क्या एक महिला का महत्वाकांक्षी होना अपराध है और बच्चे पैदा करना उसकी स्वाभाविक ड्यूटी. ड्यूटी की इस चादर के भीतर महत्वाकांक्षा की सिसकियां शायद सुनाई नहीं देती और न यह समाज सुनना चाहता है. ठीक कहती हैं, प्रियंका चोपड़ा और दीपिका पादुकोण- नहीं हैं हम प्रेगनेंट. और अभी हमारा कोई इरादा भी नहीं है. बहुत सारे प्रोजेक्ट है जिनपर काम होना है.

प्लीज आने वाली फिल्म के बारे में बात कीजिए. हमसे उस काम के बारे में बाते कीजिये, जिससे हमारी पहचान है.

(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं. उन्होंने हिंदी साहित्य पर शोध किया है)

share & View comments