नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र की उस क्यूरेटिव याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें अमेरिका स्थित फर्म यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन, जो कि अब डाउ केमिकल्स के स्वामित्व में है, को 1984 में भोपाल गैस पीड़ितों के लिए मुआवजा बढ़ाने की मांग की थी.
सुप्रीम कोर्ट ने भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के लिए केंद्र की तरफ से मुआवजा बढ़ाने वाली याचिका को खारिज करते हुए कहा, ‘भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के पास पड़े 50 करोड़ रुपये की राशि का इस्तेमाल भारत सरकार द्वारा लंबित दावों (रकम) को पूरा करने के लिए किया जाएगा.’
यह निर्णय जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पांच जजों की खंडपीठ ने सुनाया. पीठ में जस्टिस संजीव खन्ना, अभय एस ओका, विक्रम नाथ और जेके माहेश्वरी शामिल हैं.
अदालत ने कहा, ‘यदि इस मामले को फिर से खोला गया तो यह भानुमती का पिटारा खोलने जैसा हो सकता है और दावेदारों के लिए हानिकारक होगा.’
अदालत ने कहा कि बीमा पॉलिसी लेने में विफलता भारत सरकार की ओर से एक घोर लापरवाही है.
12 जनवरी को, सुप्रीम कोर्ट ने अमेरिका स्थित फर्म यूनियन कार्बाइड कार्पोरेशन जो कि अब डाउ केमिकल्स के स्वामित्व में है को, 1984 भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को मुआवजा बढ़ाने की मांग वाली केंद्र की क्यूरेटिव याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
केंद्र की क्यूरेटिव याचिका, जिसमें पीड़ितों को मुआवजा बढ़ाने के लिए यूनियन कार्बाइड और बाकी फर्मों को 7,400 करोड़ रुपये से अधिक की अतिरिक्त राशि देने की निर्देश की मांग की गई थी, जो कि 470 मिलियन अमरीकी डॉलर (1989 में निपटान के समय 715 करोड़ रुपये) की पूर्व निपटान राशि से अधिक है.
सरकार ने 14 फरवरी, 1989 के फैसले की शीर्ष अदालत से फिर से समीक्षा की मांग की थी, जिसमें 470 मिलियन अमेरिका डॉलर का मुआवजा तय किया था.
सरकार ने शीर्ष अदालत के 14 फरवरी, 1989 के फैसले की फिर से जांच करने की मांग की, जिसने 470 मिलियन अमरीकी डॉलर का मुआवजा तय किया था, यह तर्क देते हुए कि 1989 का निपटारा गंभीर रूप से खराब था.
केंद्र सरकार का तर्क यह था कि 1989 में निर्धारित मुआवजा हकीकत से अलग धारणाओं पर आया था.
सुनवाई के दौरान यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन की स्वामित्व वाली फर्मों ने शीर्ष अदालत को बताया कि 1989 के बाद से जब कंपनी और केंद्र के बीच एक समझौता हुआ था, तब से रुपये की कीमत का गिरना, पीड़ितों के लिए अब मुआवजे के टॉप-अप की मांग करने का आधार नहीं हो सकता है.
इन फर्मों में से एक की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने शीर्ष अदालत को बताया था कि समझौते के समय भारत सरकार ने यह नहीं बताया था कि यह अपर्याप्त है.
भोपाल गैस त्रासदी, जिसे दुनिया की सबसे भयावह औद्योगिक आपदा के तौर पर जाना जाता है, 2 और 3 दिसंबर, 1984 की रात को यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के पेस्टिसाइड संयंत्र से घातक गैस के रिसाव के बाद कई हजार लोगों के जान चली गई थी.
यह दर्दनाक हादसा मध्य प्रदेश के भोपाल में हुआ था, जब बहुत ही खतरनाक और जहरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट (एमआईसी), यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (यूसीआईएल) से निकली और परिणास्वरूप मवेशियों के नुकसान के अलावा, 5,295 लोगों को जान चली गई थी, लगभग 5 लाख 68,292 लोग इसके चपेट में आए थे.
शीर्ष अदालत ने 2010 में सजा को बढ़ाने के लिए केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा दायर एक क्यूरेटिव याचिका को पहले ही खारिज कर चुकी है.
भोपाल की एक अदालत के आदेश पर जनता के आक्रोश का सामना कर रही, यूनियन कार्बाइड के अधिकारियों को दो साल कैद की सजा सुनाई गई थी, इसके बाद एजेंसी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. दोषी ठहराए गए लोगों में यूनियन कार्बाइड इंडिया के पूर्व अध्यक्ष केशब महिंद्रा शामिल हैं.
शीर्ष अदालत ने 2011 में सीबीआई की क्यूरेटिव याचिका को खारिज करते हुए कहा था कि, ‘1996 के फैसले के लगभग 14 साल बाद दायर इस तरह की क्यूरेटिव याचिकाओं में कोई संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है.’
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