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Friday, 22 November, 2024
होमदेशअर्थजगतप्रति व्यक्ति आय को लेकर मोदी सरकार और कांग्रेस के बीच बहस जारी, लेकिन दोनों गलत आंकड़े इस्तेमाल कर रहे

प्रति व्यक्ति आय को लेकर मोदी सरकार और कांग्रेस के बीच बहस जारी, लेकिन दोनों गलत आंकड़े इस्तेमाल कर रहे

पिछले माह वित्त मंत्रालय ने इस बात पर खुशी जताई कि 2014 के बाद से ‘प्रति व्यक्ति आय दोगुनी से अधिक बढ़कर 1.97 लाख रुपये हो गई है.’ वहीं, कांग्रेस का दावा है कि यूपीए शासनकाल में प्रति व्यक्ति आय ‘259 प्रतिशत’ बढ़ी थी.

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नई दिल्ली: 2014 से केंद्र में सत्तासीन एनडीए की अगुआई कर रही भाजपा और विपक्षी कांग्रेस—जिसने 2004 से 2014 के बीच यूपीए का नेतृत्व करते हुए केंद्रीय सत्ता संभाली थी—के बीच इस बात पर बहस जारी है कि किसके शासनकाल के दौरान प्रति व्यक्ति आय में अधिक इजाफा हुआ.

लेकिन दिप्रिंट के एक विश्लेषण से पता चलता है कि दोनों की ही तरफ से आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है.

पिछले माह आम बजट पेश किए जाने के दौरान केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने इस बात को लेकर खुशी जाहिर की कि 2014 के बाद से ‘प्रति व्यक्ति आय दोगुनी से अधिक बढ़कर 1.97 लाख रुपये हो गई है,’ वहीं कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस सप्ताह के शुरू में दावा किया कि यूपीए के एक दशक के शासनकाल में प्रति व्यक्ति आय ‘259 प्रतिशत’ बढ़ी थी.

यद्यपि दोनों ही दल ‘मौजूदा कीमतों’ के आधार पर प्रति व्यक्ति आय का हवाला दे रहे हैं, जबकि स्थापित मानदंड यह है कि ‘स्थिर कीमतों’ के आधार पर तुलना करनी चाहिए क्योंकि इससे मुद्रास्फीति का प्रभाव खत्म हो जाता है.

मौजूदा कीमतों पर जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) एक अर्थव्यवस्था में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य को उस वित्तीय वर्ष में कीमतों के साथ दिखाता है, जबकि स्थिर कीमतों पर जीडीपी आधार मूल्य पर उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य को दर्शाता है.

सवाल है कि सकल घरेलू उत्पाद आंकड़े के निर्धारण में आधार मूल्य की क्या भूमिका होती है, तो दरअसल यह मुद्रास्फीति के प्रभाव को खत्म कर देता है. उदाहरण के तौर पर, मान लीजिए कि एक कंपनी एक साल में 10 लाख रुपये की 10 कारों का निर्माण करती है. उत्पादित कारों का कुल मूल्य उस वर्ष 1 करोड़ रुपये होगा. पांच साल बाद, कंपनी उसी मॉडल की 12 कारों का उत्पादन करती है लेकिन महंगाई के कारण उनमें से प्रत्येक की कीमत 20 लाख रुपये है. तब उत्पादन का कुल मूल्य 2.4 करोड़ रुपये होगा.

अब मौजूदा कीमतों का उपयोग करते हुए देखें तो पांच वर्षों में उत्पादन मूल्य में वृद्धि 140 प्रतिशत होगी, भले ही केवल दो अतिरिक्त कारों का उत्पादन किया गया हो. लेकिन 10 लाख रुपये के आधार वर्ष मूल्य का उपयोग करके, अर्थशास्त्री और सांख्यिकीविद् मुद्रास्फीति का प्रभाव खत्म कर सकते हैं और यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि उत्पादन में वास्तविक वृद्धि केवल 20 प्रतिशत (12 कारें प्रत्येक 10 लाख रुपये पर) रही है.

मौजूदा समय में, भारत 2011-12 की कीमतों को अपनी स्थिर जीडीपी का आधार बनाता है. इसी आधार का इस्तेमाल करते हुए दिप्रिंट ने अपनी गणना में पाया कि 2014-15 से 2022-23 तक भारत की प्रति व्यक्ति आय हर वर्ष 4.2 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर से 83,091 रुपये से बढ़कर 1,15,490 रुपये हो गई. दूसरे शब्दों में, 2022-23 में वास्तविक प्रति व्यक्ति आय 2014-15 की तुलना में 1.4 गुना अधिक है.

यद्यपि 2015 में 2011-12 की प्राइस सीरिज को अपनाया गया था, 2018 में मोदी सरकार ने पिछले वर्षों के लिए भी इसी आधार का उपयोग करते हुए जीडीपी डेटा की एक बैक-सीरीज जारी की, ताकि कोई भी समान आधार वर्ष के साथ हाल के वर्षों की 2004-05 की जीडीपी से तुलना कर सके.

2011-12 की प्राइस सीरिज के आधार पर दिप्रिंट की गणना दर्शाती है कि यूपीए सरकार के पहले नौ वर्षों के दौरान प्रति व्यक्ति वास्तविक आय 2004-05 में लगभग 50,000 रुपये से 1.5 गुना बढ़कर 2012-13 में लगभग 75,000 रुपये हो गई, जिसमें एक चक्रवृद्धि दर से वार्षिक वृद्धि दर 5 प्रतिशत रही.

दूसरे शब्दों में कहें तो वास्तविक प्रति व्यक्ति आय यूपीए सरकार के पहले नौ वर्षों में मोदी सरकार के पहले नौ वर्षों की तुलना में 0.8 प्रतिशत अधिक तेजी से बढ़ी.


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सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में वरिष्ठ सलाहकार कंचन गुप्ता ने मंगलवार को कहा कि यूपीए-शासनकाल की वृद्धि को ‘निम्न आधार प्रभाव’ के लिए जिम्मेदार माना जा सकता है.

हालांकि, जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के सेंटर ऑफ इकोनॉमिक स्टडीज एंड प्लानिंग में प्रोफेसर प्रवीण झा के मुताबिक, आधार प्रभाव तर्क कोई खास मायने नहीं रखता है.

प्रवीण झा ने दिप्रिंट को समझाया, ‘कोई भी आधार जो भारत के आय वर्गीकरण को आगे नहीं बढ़ाता, वह निम्न है. अपनी मौजूदा प्रति व्यक्ति आय के साथ भारत अभी एक निम्न-आय वाले देश की श्रेणी में आता है, इसलिए निम्न-बनाम-उच्च आधार वृद्धि का तर्क समझ नहीं आता है.’

आधार वर्ष कोई भी हो वृद्धि दर धीमी है

मौजूदा कीमतों का उपयोग करते हुए कोई तुलना करना तब उपयोगी होता है जब विभिन्न वर्षों के बजाये सभी देशों से तुलना की जा रही हो.

दिप्रिंट का एक और विश्लेषण दर्शाता है कि केंद्र में किसी की भी सरकार रही हो, भारत की प्रति व्यक्ति आय उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में सबसे निचले पायदान पर रही है.

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुताबिक, 20 उभरते बाजार हैं. इसे देखते हुए दिप्रिंट ने अपने विश्लेषण से यूएई और हंगरी को बाहर कर दिया क्योंकि उनकी जनसंख्या 1 करोड़ से कम है, और इससे प्रति व्यक्ति आय की गणना प्रभावित हो रही थी.

सभी देशों में अनुकूलता को और बेहतर बनाने के उद्देश्य से दिप्रिंट ने क्रय शक्ति समानता (पीपीपी) पर इन बड़ी उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में प्रति व्यक्ति जीडीपी का इस्तेमाल किया जो कि अलग-अलग विनिमय दरों के प्रभाव को खत्म करने की एक कोशिश है.

2023 के लिए ग्रोथ को प्रोजेक्ट करने वाले नवीनतम वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक (डब्ल्यूईओ) डेटासेट के मुताबिक, पीपीपी पर भारत की वर्तमान प्रति व्यक्ति जीडीपी 9,026 डॉलर है. वर्ष 2000 में यह आंकड़ा लगभग 1,916 डॉलर था, इसलिए कोई ये कह सकता है कि पीपीपी में भारत की प्रति व्यक्ति आय तबसे चार-पांच गुना बढ़ी है.

लेकिन इसने समान आकार की अर्थव्यवस्थाओं के बीच भारत की रैंकिंग को नहीं बदला है.

डब्ल्यूईओ का डेटा इस्तेमाल करते हुए दिप्रिंट ने जब 18 बड़ी उभरती अर्थव्यवस्थाओं की रैंकिंग की तो भारत 2000-2023 की अवधि के दौरान अंतिम पायदान पर रहा.

वहीं, चीन की रैंक में सुधार हुआ है. 2000 में 2,886 डॉलर प्रति व्यक्ति जीडीपी (पीपीपी) के साथ चीन 18 अर्थव्यवस्थाओं में 17वें स्थान पर था. 2023 तक इसके 23,038 डॉलर (पीपीपी) की प्रति व्यक्ति जीडीपी के साथ 9वीं रैंक पर पहुंचने अनुमान है.

झा ने कहा, ‘चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों से लाभ पाने पर ध्यान केंद्रित किया, जबकि हमारी जीडीपी संगठित क्षेत्रों का प्रतिबिंब है जिसमें अनुमानित जीडीपी वृद्धि के एक बड़े हिस्से के लिए कुछ संगठनों की एक मामूली संख्या जिम्मेदार होती है, और इसमें ग्रोथ प्रक्रिया का व्यापक हिस्सा शामिल नहीं होता है. जब तक ग्रोथ की यह संरचना नहीं बदली जाती, तब तक विकास सीमित रहेगा.’

उन्होंने कहा कि चीन राज्य के पूंजीवाद का ‘सबसे सफल मॉडल’ है, जिसमें ‘बहुत हद तक कमान’ राज्य के पास है और यह नीतिगत फैसलों पर भारत को मात देता नजर आता है.

झा ने कहा, ‘चीन ने 1980 के दशक में अपनी प्रति व्यक्ति आय में तेजी की सूचना देना शुरू कर दिया था और जब उसने खुद को पूरी दुनिया के लिए एक फैक्ट्री में तब्दील किया तो कोई उसे रोक नहीं पाया.’

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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