नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव 2019 के मतदान की तारीखें आ गई हैं. सभी दल वैसे तो 2018 के अंत से ही गठबंधन, सीट बंटवारे को लेकर जोड़-तोड़ की राजनीति में जुट गए थे लेकिन अब जब रविवार को मतदान की तारीखें आ गई हैं और सात चरण में चुनाव का एलान कर दिया गया है तो इसकी तारीखों को लेकर राजनीति शुरू हो गई है. लंबे समय से महिलाओं के लिए सदन में 33 फीसदी आरक्षण की बात चल रही है लेकिन मामला हर बार कहीं न कहीं अटक जाता है. लेकिन 2014 की लोकसभा में अलग तरह का बदलाव देखने को मिला. मुस्लिम सांसदों की सदन में संख्या घटी है जिसे लेकर राजनीति भी हुई.
आईएएनएस की एक रिपोर्ट के मुताबिक लोकसभा में मुस्लिम सांसदों का प्रतिनिधित्व घट रहा है. अब जब पार्टियां अपने उम्मीदवारों की घोषणा करने-करने को हैं तो यह देखना जरूरी हो जाता है कि इस बार कौन सी पार्टी किसे प्राथमिकता देती है. यह यह जानना जरूरी है कि चुनाव में जातिवाद हावी होता है. और यह मुद्दा चिंता का विषय इसलिए है, क्योंकि संसद देश के सामाजिक ताने-बाने का प्रतिनिधित्व करता है.
यह देखना है कि कितने मुस्लिम नेताओं को चुनाव मैदान में उतारा जाएगा और उनमें से कितने इसमें जीत हासिल करेंगे. लेकिन अगर 2014 लोकसभा चुनाव के नतीजों पर नजर डाली जाए, तो 2019 में इस मामले में ज्यादा बदलाव की उम्मीद नहीं की जा सकती.
रमजान के दिनों में मतदान, पर उठे सवाल
वहीं दूसरी तरफ कोलकाता के मेयर और टीएमसी नेता फिरहाद हाक़िम ने चुनाव आयोग की तारीखों को लेकर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग एक संवैधानिक बॉडी है मैं उसका आदर करता हूं, मैं उसके खिलाफ कुछ भी नहीं कहना चाहता हूं. लेकिन सात फेज में चुनाव होने की वजह से बिहार, यूपी और पश्चिम बंगाल के लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ेगा. उन्होंने यह भी कहा कि इस दौरान जो लोग रमजान का व्रत करते होंगे उनके लिए यह समय काफी तकलीफ देय साबित होगा.
Firhad Hakim, Kolkata Mayor&TMC leader: Minority population in these 3 states is quite high. They'll cast votes by observing 'roza'. EC should've kept this in mind. BJP wants minorities to not cast their votes.But we aren't worried. People are committed to 'BJP hatao-desh bachao' https://t.co/7MCnrgrDqE
— ANI (@ANI) March 11, 2019
फिरहाद हाक़िम ने कहा कि इन तीन राज्यों में अल्पसंख्यक मतदाताओं की संख्या अधिक है और मतदान की तारीखें उन दिनों में हैं जब वह रोजा रखे हुए होंगे. चुनाव आयोग को अल्पसंख्यक मतदाताओं का भी ध्यान रखना चाहिए. हाक़िम भारतीय जनता पार्टी पर निशाना साधते हुए कहा कि भाजपा नहीं चाहती की मुस्लिम मतदान करें. लेकिन हम इस बात को चिंतित बिल्कुल नहीं है क्योंकि हमलोगों ने ठान लिया है ‘बीजेपी हटाओ देश बचाओ.’
मुस्लिम सांसदों की सदन में घटी संख्या
2014 में केवल 23 मुस्लिम नेता मुख्य रूप से छह राज्यों -पश्चिम बंगाल (8), बिहार (4), केरल (3), जम्मू एवं कश्मीर (3), असम (2) और आंध्र प्रदेश (1) से चुने गए थे. केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप से भी एक मुस्लिम सांसद चुना गया था.
परिदृश्य पर एक व्यापक नजर डालें तो पता चलता है कि 2014 में 53 मुस्लिम नेता दूसरे स्थान पर रहे थे. लद्दाख से एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरे गुलाम रजा भी भाजपा के थुपस्तान चेवांग से महज 36 वोटों से हार गए थे.
कांग्रेस के हमीदुल्लाह सयीद लक्षद्वीप सीट से मोहम्मद फैजल से केवल 1,535 वोटों से हार गए थे. माकपा के ए. एन. शमसीर केरल की वडाकारा सीट से कांग्रेस के मुल्लापल्ली रामचंद्रन से केवल 3,306 वोटों से हार गए थे और समाजवादी पार्टी के डॉ. शफीक उर रहमान बराक संभल सीट से भाजपा के सत्यपाल सिंह से 5,174 वोटों से हार गए थे. इन सीटों को छोड़कर सभी मुस्लिम नेता भारी अंतर से हारे थे.
पिछले लोकसभा चुनाव का एक और पहलू यह है कि केवल नौ मुस्लिम नेता ही मुस्लिम उम्मीदवारों से हारे थे, जबकि बाकी सभी सीटों पर गैर-मुस्लिम उम्मीदवार जीते थे. उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा मुस्लिम उम्मीदवार (19) दूसरे स्थान पर रहे थे, जिसके बाद पश्चिम बंगाल से नौ और बिहार से पांच मुस्लिम उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहे.
माकपा के मोहम्मद सलीम ने पश्चिम बंगाल की रायगंज सीट केवल 1,356 वोटों से जीती थी. पश्चिम बंगाल के आरामबाग से 3,46,845 वोटों के अंतर से जीतने वाली तृणमूल कांग्रेस की अपरूपा पोद्दार (आफरीन अली) सबसे ज्यादा अंतर से जीतने वाली मुस्लिम विजेता थीं.
2011 की जनगणना के अनुसार, देश की मुस्लिम आबादी 17.2 करोड़ है, लेकिन लोकसभा में उनका प्रतिनिधित्व 10 प्रतिशत से भी कम है. लोकसभा में सबसे ज्यादा मुस्लिम सदस्य 1980 में थे, जब 49 नेता सदन के लिए चुने गए थे.