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Thursday, 21 November, 2024
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अमिताभ बच्चन के अंदर का इंकलाब 77 की उम्र में भी अभी शांत नहीं हुआ है

मीडिया चौथा स्तंभ है, देश की अंतरात्मा है. मेरे पास अपनी अंतरात्मा के साथ जीने की क्षमता या दुस्साहस है, लेकिन मीडिया के साथ नहीं.

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एक लंबे समय से कानों में यह कड़क आवाज एक खास तरह की गूंज पैदा कर रही है. यह देश की सर्वाधिक मूल्यवान, भारी-भरकम बुलंद आवाज है, अकेली और अनोखी. जब वह अपनी नई थ्रिलर ‘बदला’ का एक संवाद बोलते हैं, दमदार आवाज वातावरण में गूंज उठती है -‘मैं वो 6 देखूं जो तुम दिखा रही हो या वो 9 जो मुझे देखना है’.

इस आवाज की अपनी एक खासियत है. इसे सजाने-संवारने के लिए किसी और तकनीक की जरूरत नहीं है. अमिताभ बच्चन और उनके शिल्प ने कई पीढ़ियों पर राज किया है. इस फिल्मोद्योग में वह 50 साल पूरे कर चुके हैं.

अमिताभ ने अपने इंटरव्यू में की शुरुआत में पुलवामा शहीदों को श्रद्धांजलि दी और कहा कि इस घटना ने उन्हें हाल ही में अपार पीड़ा पहुंचाई है. ‘सबसे पहले भरे दिल से हम पुलवामा हमले में शहीद हुए अपने वीर जवानों के लिए और हर क्षण हमारी सुरक्षा के लिए लड़ने वाले बहादुर जवानों के लिए शोक संवेदना जाहिर करते हैं और उनके लिए प्रार्थना करते हैं.’

इंटरव्यू के दौरान कई ऐसे तथ्य रहे, जिनपर हमारे समय के सर्वाधिक लोकप्रिय फिल्म स्टार ने ठंडे, सुस्त जवाब दिए, लेकिन उनकी विनम्रता हमेशा बनी रही. स्पष्ट कहा जाए तो उनके लिए आभा और प्रशंसा कोई मायने नहीं रखती. हालांकि दूसरे लोग, उनके प्रशंसक कुछ और सोच सकते हैं. विशेषण, अतिशयोक्ति और शब्दाडंबर उनके रास्ते में आए, लेकिन उन्होंने उसे अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया. अभी भी लोग उनके मुरीद हैं. उनके भीतर का इंकलाब (उनके जन्म के समय पिता हरिवंश राय बच्चन ने उन्हें यह नाम दिया था, लेकिन बाद में बदलकर अमिताभ कर दिया) अभी भी शांत नहीं पड़ा है, और एक अभिनेता के रूप में उनकी तलाश अभी भी जारी है.

अमिताभ से हुई बातचीत के अंश इस प्रकार हैं :

आप 50 साल की अपनी इस यात्रा को किस रूप में देखते हैं. जब अब्बास साहेब आपको कलकत्ता से लेकर आए थे और ‘सात हिंदुस्तानी’ में से एक किरदार के लिए उन्होंने आपको चुना था? और अब यह यात्रा सुजोय घोष और ‘बदला’.. तक पहुंच चुकी है!

एक दिन के बाद दूसरा दिन और उसी तरह दूसरा काम. लेकिन मैंने अतीत में सुजोय के साथ काम किया है. कहानी और निर्देशक मुझे पसंद है, कहानी में जो सस्पेंस और थ्रिल है, उसने मुझे प्रभावित किया. सुजोय ने कहानी बनाई है और वह बेचैन हैं. वह अपने कलाकारों से परफेक्शन चाहते हैं, वह अपनी विचार प्रक्रिया को लेकर और उसे साकार करने को लेकर बहुत स्पष्ट हैं. वह सिनेमा के व्याकरण की बहुत अच्छी समझ रखते हैं.

आप ने महान निर्देशकों और अभिनेताओं के साथ काम किया है. क्या आप मानते हैं कि हृषिदा और प्राण आप के पसंदीदा रहे हैं. दोनों अलग-अलग तरीके से आपके लिए भाग्यशाली थे..आप ने हृषिदा के साथ 10 फिल्में कीं?

जिस भी निर्देशक, अभिनेता, लेखक, निर्माता, सहकर्मी के साथ मैंने काम किया, सभी मेरे लिए पसंदीदा रहेंगे..

तमाम शीर्ष अमेरिकी अभिनेताओं ने ली स्ट्रासबर्ग के अभिनय के तरीके को अपनाया है, जिन्हें हमने ‘गॉडफादर 2’ में हायमन रोथ के रूप में देखा था, जिनके साथ उनके शिष्य अल पैसिनो ने काम किया था, यह दिलचस्प फिल्म थी. जब आप अभिनय की दुनिया में आए तो क्या आपने अभिनय का कोई प्रशिक्षण लिया या किसी की शैली को अपनाया या किसी ने आपके काम पर असर डाला?

बिल्कुल नहीं, मैंने अभिनय का कोई प्रशिक्षण नहीं लिया, और न तो मैंने जाने-अनजाने किसी की नकल की, जब तक कि हमारे निर्माता-निर्देशक ने मुझसे वैसा करने के लिए नहीं कहा. और इस तरह के कुछ मौके आए. मुझे न तो अभिनय का कोई तरीका मालूम है और न तो मैंने कभी कोई बड़ी छलांग ही लगाई.

हॉलीवुड में किसके काम को आप पसंद करते हैं? क्रिस्टोफर प्लमर चिरयुवा हैं और लगता है अच्छा कर रहे हैं..वही स्थिति क्लिंट ईस्टवुड की है, लेकिन ज्यादातर निर्देशक के रूप में?

मार्लन ब्रांडो, मोंटगोमरी क्लिफ्ट, जेम्स डीन..

इन दिनों रणवीर सिंह अपने किरदारों को बेहतरीन तरीके से जी रहे हैं..मेरा मानना है कि आपकी कई भूमिकाओं के लिए काफी तैयारी की जरूरत रही होगी, उदाहरण के लिए ‘पा’ या ‘ब्लैक’ में. इस तरह के कठिन किरदारों के लिए अपने शिल्प के बारे में कुछ बताएंगे?

मेरे पास कोई शिल्प नहीं है और न तो यही पता है कि दूसरे लोग अच्छा काम करने के लिए क्या और कैसे करते हैं.. मैं लेखक के लिखे शब्दों और निर्देशक के निर्देशों का यथासंभव सावधानी से अनुसरण करता हूं. ‘ब्लैक’ के लिए हमने दिव्यांगों की सांकेतिक भाषा सीखी. ‘बदला’ एक अलग तरह की एक थ्रिलर है. थ्रिलर वर्षो से आज भी हमें बांध कर रखती है. मेरी पीढ़ी के कुछ लोगों की स्मृतियों में ‘महल’ आज भी जिंदा है.

1949 की इस फिल्म में अशोक कुमार और मधुबाला ने काम किया था और इसका संगीत मौलिक था. दोनों हिंदी सिनेमा के मजबूत ताने-बाने का हिस्सा रहे हैं. (अमिताभ ने भी अपने शुरुआती समय में दो बहुत जोरदार संस्पेस थ्रिलर ‘परवाना’ और ‘गहरी चाल’ में काम किया था).

आप ने हमेशा कहा है अपने अभिनय करियर में आप भाग्यशाली रहे हैं. क्या यह पंक्ति आपके जीवन का मूलमंत्र है- मैं अकेला ही चला जा रहा था, लोग जुड़ते चले गए और कारवां बनता चला गया?

अपने पेशे में मूलमंत्र का अर्थ मुझे नहीं पता.. मुझे नहीं पता कि मैं भाग्यशाली रहा हूं.

आपके शिखर के वर्षो के एक बड़े हिस्से के दौरान मीडिया के साथ आपका एक बहुत ही कठिन रिश्ता रहा है. एक समय मीडिया ने आपका बहिष्कार तक कर दिया था..और आज मीडिया के साथ आपका बहुत अच्छा रिश्ता है. इसके बारे में आप क्या कहना चाहेंगे और आपने इस दूरी को पाटने के लिए क्या कुछ किया?

मैं समझता हूं कि आपको यह अच्छी तरह पता है कि कोई भी व्यक्ति न तो मीडिया के बहुत करीब रह सकता है और न बहुत दूर ही. मीडिया चौथा स्तंभ है, देश की अंतरात्मा है. मेरे पास अपनी अंतरात्मा के साथ जीने की क्षमता, या दुस्साहस है, लेकिन मीडिया के साथ नहीं. इसके बारे में सोचना मेरे लिए मूर्खता होगी.

फिल्मोद्योग में 50 साल हो चुके हैं, फिर भी आपके भीतर का कलाकार उसी तरह जिंदा और सक्रिय है. आपको ऊर्जा कहां से मिलती है? या यह काम के प्रति सम्मान की भावना है, जो आपकी अतंर्निहित नैतिकता को परिभाषित करती है?

मुझे समझ में नहीं आता कि आप या अन्य कई लोग मुझसे यह सवाल क्यों पूछते हैं?

‘सात हिंदुस्तानी’ के बाद के वर्षो में कई फिल्में फ्लाप हुईं, लेकिन किसी मौलिक काम, सुनील दत्त की ‘रेशमा और शेरा’ की छोटी-सी भूमिका, या ‘आनंद’ से पहले की किसी फिल्म के अनुभव को याद करना चाहेंगे?

सिर्फ यही इच्छा रहती थी कि कोई दूसरा काम मिले. अधिकांश बार असफलता ही मिली..

क्या स्कूल में आपने कोई शेक्सपियर किया? आपकी आवाज और अभिनय में कही-कहीं नाटकीयता की झलक है, जो आपकी हाल की फिल्मों में उभरकर सामने आई है?

नहीं, स्कूल में कभी भी शेक्सपियर नहीं किया..

अभिनय करते हुए आपको 50 साल पूरे हो चुके हैं. क्या ‘विजय’ के अलावा कोई किरदार है, जो आपके जहन में जिंदा हो, और क्यों?

नहीं ऐसा कोई नहीं है..

क्या हिंदी सिनेमा नई पीढ़ी के युवा निर्देशकों और अभिनेताओं के साथ अच्छे हाथों में है. जैसे रणवीर सिंह, आयुष्मान खुराना, आलिया भट्ट, राजकुमार या गली बॉय का ‘शेर’ साधारण कहानियां कह रहे हैं, जो लोगों को पसंद आ रही हैं? बायोपिक या जीवन की सच्ची कहानियां अच्छा कर रही हैं. अक्षय ने इस ऑर्ट फॉर्म को आकार दिया है, आप भी नागराज मंजुल के साथ ‘झुंड’ कर रहे हैं. क्या यह स्थिति मौलिक स्क्रिप्ट के अभाव के कारण है या ऐसी कहानियां समय की मांग हैं?

समय और परिस्थितियां बदल गई हैं. हर पेशे में बदलाव आया है. फिल्म कोई अलग नहीं है. मौजूदा पीढ़ी अविश्वसनीय प्रतिभा से भरी हुई है. मैं इस पीढ़ी से बहुत प्रभावित हूं, और मैं सौभाग्यशाली हूं कि मुझे इनमें से कुछ के साथ काम करने का मौका मिला है. यह मेरे लिए सीखने जैसा है. वे एक अलग और वैकल्पिक दुनिया के दृष्टिकोण मुहैया कराते हैं और यह सीखने लायक है.

आज के मनोरंजन जगत के लेखकों और निर्माताओं की विश्वसनीयता, निपुणता, बुद्धिमानी और कौशल को कभी कम मत आंकिए. वे पिछले 100 सालों से अधिक समय से हमारी रचनात्मकता के पुष्पित और पल्लवित होने के प्रमाण हैं. 100 साल बाद भी अर्थवान बने रहना और खड़े रहना कोई मजाक नहीं है. यह सम्मान लायक है. मौलिकता एक द्वंद्वात्मक शब्दावली है. इसका बहुत सावधानी से इस्तेमाल करने की जरूरत है.

क्या आपको यह सच्चाई परेशान करती है कि आज के अभिनेता अपनी फिल्मों के प्रचार-प्रसार के लिए काफी मेहनत करते हैं और उसमें काफी समय और ऊर्जा लगाते हैं, जबकि आपके समय में ऐसा नहीं था, जब आप निर्विवाद शहंशाह थे. ये सारी चीजें क्यों और कैसे बदल गईं?

आप कहीं भी देखिए, महोदय, यह स्थिति सिर्फ अभिनेताओं के साथ नहीं है. बल्कि क्या आज के समय में हर कोई अपनी दाल-रोटी के लिए मेहनत नहीं कर रहा है?

आपके समय में एक कलाकार की साल में आठ फिल्में रिलीज होती थीं. आज अभिनेता साल में या दो साल में एक फिल्म करते हैं. क्या यह नए युग के व्यवसाय का तरीका है?

यह बेहतर प्रबंधन को एक मान्यता है, वित्तीय और व्यक्तिगत दोनों को. अच्छी बात यह है कि संगीत और मेलोडी हिंदी सिनेमा में वापस लौट आए हैं. हर कोई संगीत का आनंद ले रहा है. संगीत हमारी आत्मा को छू रहे हैं.

समानांतर सिनेमा के समय से लेकर छोटे सिनेमा तक, जैसे ‘राजी’ और ‘बधाई हो’ विशुद्ध मनोरंजक (व्यवसायिक) सिनेमा से टक्कर ले रही हैं. क्या हिंदी फिल्मों के दर्शकों की रुचि बदल गई है, या व्यवसायिकता की ही परिभाषा बदल गई है?

मुझे नहीं ‘व्यवसायिक’ या ‘समानांतर’ क्या है. सिनेमा सिर्फ सिनेमा है. आकार और परिधि, छोटा-बड़ा कपड़े नापने के पैमाने हैं. दुनिया के हर कोने में हर पीढ़ी की रुचि बदल गई है, सिर्फ फिल्म में ही नहीं, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में.

‘गिरफ्तार’ की कोई स्मृति? शायद यह पहली फिल्म है, जिसमें रजनीकांत, कमल हासन और आप ने एकसाथ काम किया है?

यह एक समय था, अवसर था और एक सबसे सुखद अनुभव था, एक ही फिल्म में रजनी और कमल के साथ.

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