नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार “नागरिकों के खिलाफ” है और 2014 के बाद से भारत में असहिष्णुता का स्तर अभूतपूर्व है. राज्य सभा सांसद और जाने-माने वकील कपिल सिब्बल ने अपने नए गैर-चुनावी राजनीतिक मंच “इंसाफ” के एजेंडे पर विस्तार से चर्चा करते हुए यह बात कही.
मंगलवार को दिप्रिंट को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि यह पहल 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी दलों और उनके नेताओं के एक साथ आने के लिए एक साझा मंच के रूप में काम कर सकती है.
कॉलेजियम प्रणाली को लेकर न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच बढ़ते विवाद के बीच, सिब्बल ने कहा कि नागरिकों का मंच इंसाफ एक “प्रतिनिधि” प्रणाली का मुद्दा उठाएगा, जिसमें सरकार का प्रतिनिधित्व और बार एसोसिएशन की भागीदारी हो सकती है. “मुद्दे के आसपास वर्तमान बहस भयानक समय की शुरुआत करती है. फिलहाल दोनों समाधान अप्रिय परिणाम पैदा कर रहे हैं.”
सिब्बल के अनुसार, कॉलेजियम प्रणाली को “अधिक प्रतिनिधित्व” वाला बनाने की जरूरत है.
“हमें बार को इसमें शामिल करने और शायद सरकारी प्रतिनिधित्व की आवश्यकता है. लेकिन प्रक्रिया सर्वसम्मत होनी चाहिए ताकि कोई भी रुक न सके. यदि आप निर्णय लेने की प्रक्रिया एक व्यक्ति को सौंपते हैं, चाहे वह सरकार हो या कोई तीन लोग हों, तो आम सहमति होनी चाहिए.”
उन्होंने आगे कहा: “सिस्टम से खामियों को हटाया जाएगा और न्यायाधीशों की नियुक्ति में अन्याय का स्तर बहुत कम होगा. कॉलेजियम प्रणाली के साथ अभी सबसे बड़ी समस्या यह है कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश उच्चतम न्यायालय में जाने के लिए उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की ओर देखते हैं. हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सुप्रीम कोर्ट में आना चाह रहे हैं. यह अच्छा नहीं है. दूसरी व्यवस्था में हर जज सुप्रीम कोर्ट जाने के लिए सरकार के पास आता था. वह भी भयानक है. हमें एक ऐसी प्रणाली विकसित करने की आवश्यकता है जो इन दोनों विकल्पों की तुलना में अधिक बेहतर हो.”
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इंसाफ, विपक्ष का साझा मंच?
सिब्बल ने विपक्षी एकता के बारे में भी बताया कि यह लोकसभा चुनाव से पहले किस तरह रूप ले सकती है. और हालांकि उन्होंने कहा कि वह इंसाफ के माध्यम से विपक्ष को एक साथ लाने की कोशिश नहीं कर रहे हैं, उन्होंने सहमति व्यक्त की कि विभिन्न पार्टियां उनके मंच का उपयोग एक सामान्य न्यूनतम कार्यक्रम के रूप में कर सकती हैं.
उन्होंने कहा, “मैं कौन होता हूं सभी पार्टियों को एक साथ लाने वाला? मैंने अभी कहा है कि पार्टियों को इस मंच से जुड़ना चाहिए. “उनमें से प्रत्येक (विपक्षी दल) एक या दूसरे तरीके से अन्याय का लक्ष्य रहे हैं. तो ये एक ऐसा कॉमन प्लेटफॉर्म हो सकता है जिसके जरिए हम सब आगे बढ़ सकें. अंतत: हमें स्पष्ट अभिव्यक्ति के माध्यम से लोगों को यह बताना होगा कि हम किसके खिलाफ हैं. और कैसे यह अन्यायी सरकार कदम-दर-कदम सब कुछ नष्ट कर रही है जो इस संविधान की आधारशिला है. यह राजनीतिक है.”
उन्होंने यह भी कहा कि “राजनीति हमेशा एक एजेंडा के साथ नहीं होती है”. “यह ऐसे माहौल में होता है जहां लोग सोचते हैं कि कुछ गलत हो रहा है.”
यह पूछे जाने पर कि क्या इंसाफ “भाजपा विरोधी, मोदी विरोधी मोर्चा” है, सिब्बल ने कहा कि यह “सरकार की नीतियों के विरोध में है लेकिन इस देश के लोगों के हित में है”.
उन्होंने कहा, “यह सरकार नागरिकों के विरुद्ध है. हम नागरिकों के लिए सरकार चाहते हैं. किसी को कैद करो, ईडी, सीबीआई को लोगों के घर भेजो, छात्रों और शिक्षकों को यूएपीए के तहत गिरफ्तार करो- ये जनविरोधी नीतियां हैं. मैंने इस देश में इतनी असहिष्णुता कभी नहीं देखी जितनी मैंने 2014 से देखी है.”
भाजपा के अलावा अन्य दलों द्वारा शासित राज्य सरकारों की बात करते हुए, उन्होंने अन्याय को स्वीकार किया- उदाहरण के लिए, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी (टीएमसी) के शासन द्वारा कांग्रेस प्रवक्ता को गिरफ्तार किए जाने को गलत बताया लेकिन विस्तार से नहीं बताया कि क्या इंसाफ मंच ऐसे मुद्दों को भी उठाया जाएगा.
हालांकि, इंसाफ में भाजपा नेताओं के शामिल होने से उन्हें कोई दिक्कत नहीं है. उन्होंने हंसते हुए कहा, “यह सिर्फ मोदी जी को दिखाएगा कि उनकी पार्टी में कुछ बेइन्साफी (अन्याय) हो रही है.”
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इंसाफ के 3 व्यापक लक्ष्य
सिब्बल ने ‘इंसाफ’ की घोषणा करते हुए कहा था कि वह 11 मार्च को दिल्ली के जंतर-मंतर पर एक जनसभा करेंगे, जहां वे मंच के लक्ष्यों पर बात करेंगे.
“मैं इस बारे में 1-2 साल से सोच रहा हूं- हम इस संदर्भ में क्या कर सकते हैं कि देश कहां जा रहा है. मुझे दूसरी राजनीतिक पार्टी बनाने की कोई इच्छा नहीं थी. हमने G-23 (कांग्रेस के भीतर वरिष्ठ नेताओं का एक असंतुष्ट समूह) की स्थापना इस उम्मीद में की थी कि हम पार्टी के भीतर राजनीतिक रूप से कुछ करने में सक्षम होंगे. और उसके बाद मैंने खुद से कहा, “अगर हम कांग्रेस के भीतर राजनीतिक रूप से कुछ नहीं कर सकते हैं, तो मुझे इसे व्यक्तिगत स्तर पर करना चाहिए.” उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “मैं इसे व्यक्तिगत रूप से कर रहा हूं और मुझे उम्मीद है कि देश के लोग इस एजेंडे में मेरा समर्थन करेंगे.”
सिब्बल की इंसाफ के तीन व्यापक लक्ष्य हैं. पहला, आरएसएस की शाखाओं का जवाब ढूंढना.
“यह विचार मेरे पास इस संदर्भ में आया कि कैसे भाजपा समुदाय के भीतर इन शाखाओं की स्थापना करके और उस एजेंडे को आगे बढ़ाकर समुदाय के समर्थन को बढ़ाने में सक्षम रही है. आप इसका मुकाबला कैसे करते हैं? राजनीतिक दलों के लिए इसका मुकाबला करना मुश्किल होगा क्योंकि ये शाखाएं एक विचारधारा से जुड़ी हैं लेकिन उनके पास आम लोग भी हैं जो इसे आगे ले जाते हैं. “लंबी अवधि का एजेंडा लोगों को शाखा का जवाब ढूंढने के लिए प्रेरित करना है.”
उन्होंने कहा कि इसका दूसरा लक्ष्य लोगों को यह बताना है कि जमीन पर क्या हो रहा है.
उन्होंने कहा, “तीसरा विचार (लक्ष्य) भारत का एक नया विचार देना है, एक दृष्टि जो मोदीजी से बिल्कुल अलग है.” उन्होंने कहा, “(मोदी के) विजन के एक बड़े हिस्से ने समाज के केवल क्रीमी लेयर को ही लाभान्वित किया है. अस्सी से नब्बे करोड़ लोग उस विजन से बिल्कुल अछूते हैं.”
उन्होंने यह भी कहा कि वकील इस आंदोलन में सबसे आगे होंगे.
उन्होंने कहा, “दुनिया में कहीं भी, जहां आमूल-चूल परिवर्तन हुए हैं, वकील सबसे आगे रहे हैं. हमें (वकीलों को) एक और संघर्ष के लिए देश के लोगों के साथ एकजुट होने की जरूरत है.”
लेकिन, उन्होंने स्पष्ट किया, इंसाफ केवल “वकीलों” का समूह नहीं है.
सिब्बल ने कहा कि विचार वकीलों और नागरिकों के साथ एक “विकेंद्रीकृत” मंच बनाने का था जो सामुदायिक स्तर पर सामूहिक रूप से “अन्याय” का सामना कर सके.
एक वेबसाइट बनाई गई है जिस पर कोई भी, जिसमें वकील भी शामिल हैं, ‘इंसाफ के सिपाही’ बनने के लिए साइन अप कर सकते हैं.
सिब्बल ने कहा, “व्यक्तिगत मुद्दों को मंच के माध्यम से व्यक्तिगत रूप से निपटाया जाएगा. उदाहरण के लिए, अगर सुप्रीम कोर्ट में कोई मामला आता है और किसी को मेरी मदद की जरूरत है, तो मैं मदद करूंगा. शाखाएं भी विकेंद्रीकृत हैं. इसलिए, सत्ता नीचे से प्रवाहित होनी चाहिए.”
राज्य सभा सांसद ने इस मंच को “वाम” या “दक्षिणपंथी” कहने से भी परहेज किया.
उन्होंने कहा, “यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम किस बारे में बात कर रहे हैं. यदि आप मुझसे पूछें कि क्या स्वभाव से मैं पूर्ण वामपंथी हूं, तो मेरा उत्तर नहीं है. अगर आप मुझसे पूछें, अगर मैं पूरी तरह से दक्षिणपंथी हूं, तो मेरा जवाब नहीं है. आज की दुनिया में, जो काफी हद तक एकीकृत है, आपको इस बारे में बहुत बारीक होने की जरूरत है कि आपका राष्ट्रीय हित कहां है.”
(संपादन: कृष्ण मुरारी)
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