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Thursday, 21 November, 2024
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प्लास्टिक व्यवसायी से हीरा बिजनेस के उत्तराधिकारी तक- जैन भिक्षु और नन जिन्होंने ये सब छोड़ दिया

मठवासी जीवन में नंगे पैर चलना, दिन में एक बार भोजन करना और बिजली और आधुनिक तकनीक से दूर रहना शामिल है. जिसका मकसद पुनर्जन्म के अंतहीन चक्र से मोक्ष पाना है.

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सूरत/गिरनार/सोमनाथ/अहमदाबाद (गुजरात) : जैन धर्म में बाल दीक्षा की एक सदियों पुरानी प्रथा है, जिसके तहत कभी-कभी 8 वर्ष से कम उम्र के बच्चे -पुनर्जन्म के अंतहीन चक्र से मोक्ष पाने के लिए आध्यात्मिक लक्ष्य की खोज में, भौतिक संसार को पीछे छोड़कर भिक्षु या नन बन जाते हैं.

मठवासी जीवन में नंगे पैर चलना, दिन में एक बार भोजन करना और बिजली और आधुनिक तकनीक से दूर रहना शामिल है.

प्यू रिसर्च सेंटर के अनुसार, जैन समुदाय के ज्यादातर लोग संपन्न परिवारों से ताल्लुक रखते हैं. इसलिए, जब उनके बच्चे भौतिक दुनिया त्यागते हैं, तो इसका आमतौर पर मतलब सुरक्षित पारिवारिक उद्यमों को पीछे छोड़ना होता है. सूरत के ज्यादातर युवा जैन भिक्षुओं और भिक्षुणियों के जीवन के अतीत की एक रोचक कहानी है, क्योंकि अक्सर इसका मतलब हीरा व्यवसाय से दूर हो जाना होता है.

दिप्रिंट के नेशनल फोटो एडिटर प्रवीण जैन ने मठवासी जीवन को नजदीक से जानने के लिए, कुछ जैन साधुओं और साध्वियों को फॉलो किया, जिनमें से ज्यादातर सूरत के हीरा व्यापारी परिवारों से थे. उन्होंने जैन बच्चों के जीवन पर भी नज़र रखी, जो यह जांचे जाने के लिए ट्रेनिंग ले रहे हैं कि क्या वे भविष्य में संन्यास लेने के लायक हैं.


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Sadhvi Pragya Shree studying a text about Jain religious beliefs | Praveen Jain | ThePrint
साध्वी प्रज्ञा श्री जैन धार्मिक मान्यताओं के बारे में एक ग्रंथ का अध्ययन करती हुईं | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
A senior sadhvi helps Sadhvi Pragya Shriji get dressed in plain white robes | Praveen Jain | ThePrint
एक वरिष्ठ साध्वी, साध्वी प्रज्ञा श्रीजी को सादे सफेद वस्त्र पहनने में मदद करती हुईं | प्रवीण जैन | दिप्रिंट

 

A Jain nun helps Sadhvi Pragya Shriji, who embraced the monastic life last month, put on her white robes | Praveen Jain | ThePrint
साध्वी प्रज्ञा श्री जी के साथ एक जैन नन, जिन्होंने पिछले महीने मठवासी जीवन अपनाया है | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
Sadhvi Pragya Shree (Devanshi) showing thumb after reading Jain religious beliefs | Praveen Jain | ThePrint
साध्वी प्रज्ञा श्री जैन धार्मिक मान्यताओं को पढ़ने के बाद प्रसन्न मुद्रा में | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
Sadhvi Viranshi Rekha, 13, used to sport highlighted hair and made over 2000 reels in a year’s time, before she gave up the material world to become a Jain nun | Praveen Jain | ThePrint
13 साल की साध्वी वीरांशी रेखा जो कि इससे पहले बालों को रंगती थीं और जैन नन बनने से पहले एक साल में 2,000 से अधिक रील्स बनाती थीं | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
Sadhvi Tatwatri Rekha, 20, wipes the floor after Sadhvi Viranshi Rekha, 13, is done eating her meal | Praveen Jain | ThePrint
20 साल की साध्वी तत्वत्री रेखा, 13 वर्षीया साध्वी वीरांशी रेखा के खाना खाने के बाद फर्श को पोंछती हुईं | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
Sadhvi Asangpragnya, 29, discusses a Jain religious text with another nun at a upasraye in Surat | Praveen Jain | ThePrint
29 वर्षीया साध्वी असंगप्रज्ञा सूरत में एक उपाश्रय (भिक्षुओं और भिक्षुणियों के विश्राम स्थल) पर एक दूसरी नन के साथ एक जैन धार्मिक ग्रंथ पर चर्चा करती हुईं | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
Sadhvi Tathayprgnya Shriji, 30, seen in a cheerful mood as she briefly interacts with a senior nun during her lesson at a upasraye (a resting place for monks and nuns) in Surat | Praveen Jain | ThePrint
30 साल की साध्वी तथाप्रज्ञा श्री जी, सूरत में एक उपाश्रय में अपने अध्ययन के दौरान एक वरिष्ठ नन के साथ संक्षिप्त बातचीत करते हुए हंसी की मुद्रा में | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
Sadhvi Nisangpragnya Shriji, 22, removes the lid of her water container — one of the few belongings that Jain monks and nuns keep with them | Praveen Jain | ThePrint
22 वर्षीया साध्वी निसंगप्रज्ञ श्री जी अपने पानी के बर्तन का ढक्कन हटाती हुईं- यह जैन साधु और ननों के अपने पास रखने वाली कुछ चीजों में से एक है | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
Sadhvi Devanshi Rekha, 45, with her daughter at a upasraye in Junagadh. Before becoming a monk a year ago, 13-year-old Sadhvi Viranshi Rekha used to be a fan of K-pop group BTS and loved making Instagram reels | The Print photo | Praveen Jain
45 साल की साध्वी देवांशी रेखा, जूनागढ़ के एक उपाश्रय में अपनी 13 वर्षीय बेटी साध्वी वीरांशी रेखा के साथ. साध्वी बनने से पहले वीरांशी रेखा के-पॉप ग्रुप बीटीएस की फैन हुआ करती थीं और इंस्टाग्राम रील बनाना पसंद करती थीं | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
Sadhvi Nisangpragnya Shriji, 22, removes the lid of her water container — one of the few belongings that Jain monks and nuns keep with them | Praveen Jain | ThePrint
साध्वियों का समूह अपने रोज-मर्रा के काम में लगा हुआ | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
A group of Jain sadhvis painting bowls which they use to collect food from door to door | Praveen Jain | ThePrint
जैन साध्वियों का एक समूह कटोरे को पेंट करता हुआ, जिसका इस्तेमाल वे घर-घर जाकर भोजन जुटाने के लिए करते हैं | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
Sadhvi Pararth Rekha (right)along with Sadhvi Tatwatri Rekha, 20, on the road after collecting food (bhiksha), in Junagadh | Praveen Jain | ThePrint
साध्वी तत्वात्री रेखा के साथ साध्वी परार्थ रेखा (दाएं) जूनागढ़ में, भोजन (भिक्षा) जुटाने के बाद सड़क के रास्ते जाती हुईं | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
Sadhvi Pararth Rekha, a 21-year old Jain nun, was 12 years when she decided to enter Jain monastic life | Praveen Jain | ThePrint
21 वर्षीय जैन नन, साध्वी परार्थ रेखा, जब 12 वर्ष की थीं तब उन्होंने जैन मठवासी जीवन अपनाने का फैसला किया | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
Sadhvi Pararth Rekha returns after collection food for a group of 11 Jain nuns, in Junagarh | Praveen Jain | ThePrint
जूनागढ़ में साध्वी परार्थ रेखा, 11 जैन भिक्षुणियों के लिए भोजन जुटा कर लौटती हुईं | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
Sadhu Bhagyaratna, 18, walking along with Sadhu Somyang Ratnavir, 40, who became a Jain monk 17 years ago | Praveen Jain | ThePrint
18 साल के साधु भाग्यरत्न, 40 वर्षीय साधु सोमयांग रत्नवीर के साथ चलते हुए, जो 17 साल पहले जैन साधु बने थे | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
Sadhu Bhagyaratna Vijay (in the centre), 18, walks with two brothers, Reek 18 (Left) and Varsham Jain 16, who are undergoing training to become Jain monks, in Chodwar town | Praveen Jain | ThePrint
चोडवार कस्बे में, साधु भाग्यरत्न विजय (बीच में), दो भाइयों- 18 साल के रीक (बाएं) और 16 साल के वर्शम जैन के साथ चलते हुई, जो जैन मुनि बनने की ट्रेनिंग ले रहे हैं | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
Sadhu Bhagyaratna Vijay with a Jain monk who is using a wheelchair to carry his belongings. Elderly or injured monks use such assistance to recover from their conditions, without stalling the Vihar | Praveen Jain | ThePrint
साधु भाग्यरत्न विजय एक जैन मुनि के साथ जो अपना सामान ले जाने के लिए व्हीलचेयर का इस्तेमाल करते हैं । वृद्ध या घायल भिक्षु अपने विहार (भ्रमण) को रोके बिना अपनी स्थिति से उबरने में ऐसी मदद का इस्तेमाल करते हैं | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
A group of Jain ascetics, which includes Sadhu Bhavyaratha Vijayi (in front), who was previously known as Bhanwarlal Doshi before he gave up his Rs 600-crore plastic business in 2015, passes through a street during their vihar in Chodwar | Praveen Jain | ThePrint
जैन तपस्वियों का एक समूह, जिसमें साधु भव्यरथ विजयी (सामने) शामिल हैं, जिन्हें पहले भंवरलाल दोशी के नाम से जाना जाता था, इससे पहले उन्होंने 2015 में अपना 600 करोड़ रुपये का प्लास्टिक व्यवसाय छोड़ दिया था, चोडवार में अपने विहार के दौरान एक सड़क से गुजरते हुए | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
Sadhvi Tatwatri Rekha offering prayers to the Jain deity wrapped in clothes and rested of a tiny stand | Praveen Jain |The Print photo
साध्वी तत्वत्री रेखा, कपड़े में लिपटे, एक छोटे से स्टैंड पर मौजूद जैन देवता की पूजा करती हुईं | प्रवीण जैन | दिप्रिंट
Varsham Jain (on the left) sits on the side as monks rest at the house of a devotee. The 16-year old is undergoing training to see if he’s suited to become a monk | Praveen Jain | ThePrint
वर्शम जैन (बाईं ओर) भिक्षुओं के विश्राम के लिए एक भक्त के घर में बैठे हुए. 16 साल के वर्शम ट्रेनिंग ले रहे है कि क्या वह भिक्षु बनने के लिए उपयुक्त है | प्रवीण जैन | दिप्रिंट

(इस फोटो फीचर को पढ़ने और देखने के लिए यहां क्लिक करें)


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