नई दिल्ली: 2003 में तत्कालीन सरकार द्वारा बंद की गई पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) जो कि सेवानिवृत्त लोगों के लिए पूरी तरह से सरकार द्वारा वित्त पोषित थी, उसे हाल के वर्षों में कांग्रेस के नेतृत्व वाले कई राज्यों में पुनर्जीवित किया गया है.
यह मुद्दा पिछले साल गुजरात और हिमाचल प्रदेश सहित विभिन्न राज्यों में पार्टी के चुनावी वादों का भी हिस्सा रहा है.
हालांकि, यह योजना रायपुर में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) के रविवार को समाप्त हुए पूर्ण सत्र में पारित आर्थिक प्रस्ताव का हिस्सा नहीं थी.
प्रस्ताव में 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए पार्टी के आर्थिक रोड मैप को तैयार करने की कोशिश की गई है और इस योजना की अनुपस्थिति विशिष्ट प्रतीत होती है, विशेष रूप से ओपीएस की सरकारी खजाने की संभावित लागत को पहले कांग्रेस के भीतर लाल झंडी दिखा दी गई है.
हालांकि, पार्टी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि पेंशन योजना पूर्ण बैठक में आर्थिक मामलों की समिति में चर्चा के लिए भी नहीं आई, संचार के प्रभारी कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने इस चूक को कम किया.
24 फरवरी को अधिवेशन में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान, उन्होंने कहा कि विषय समिति में इसके बारे में “बहुत चर्चा” हुई, 120 से अधिक कांग्रेस नेताओं के एक समूह ने मसौदा प्रस्तावों पर चर्चा की और उन्हें अंतिम रूप दिया.
यह पूछे जाने पर कि प्रस्ताव में ओपीएस का उल्लेख क्यों नहीं किया गया, रमेश ने दिप्रिंट को बताया कि यह एक नीति थी जिसे राज्य इकाइयों को अपने घोषणापत्र में शामिल करना था.
उन्होंने कहा, “ओपीएस वह है जो हम करते हैं. संकल्प इस बारे में हैं कि हम क्या करेंगे. यह कुछ ऐसा है जिसे राज्य इकाइयां अपने घोषणापत्र के वादों में शामिल करती हैं. संकल्प व्यापक दिशा देता है और अधिक दार्शनिक है.”
एआईसीसी के आर्थिक मामलों के उप-समूह के अध्यक्ष, पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने इस मामले पर टिप्पणी करने से इनकार करते हुए कहा, “मैं केवल यह जानता हूं कि प्रस्ताव में क्या है.”
इस बीच, उप-समूह के संयोजक गौरव वल्लभ ने दोहराया कि यह राज्यों को तय करने की नीति है और आर्थिक मामलों की समिति में हर कोई इससे सहमत था.
पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने जनवरी में समाप्त हुई भारत जोड़ो यात्रा के मौके पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान यही सुझाव दिया था.
जब मीडिया ने उनसे पूछा कि क्या हिमाचल में पार्टी की जीत का श्रेय पेंशन योजना के वादे को जाना चाहिए, तो उन्होंने कहा, “इस पर कोई वैज्ञानिक विश्लेषण नहीं किया गया है.”
राहुल ने कहा, “हम यह नहीं कहते हैं कि हर राज्य को ऐसा करने की ज़रूरत है. हम केंद्र से सलाह दे सकते हैं कि क्या सही रहेगा और क्या नहीं. इसके बारे में बस इतना ही. हम इसे राज्यों पर छोड़ते हैं क्योंकि अलग-अलग राज्यों को अलग-अलग सरकारें चलानी पड़ती हैं.
दिप्रिंट से बात करते हुए, पार्टी के एक नेता ने कहा कि 2024 के लोकसभा चुनावों में ओपीएस पार्टी के लिए एक प्रमुख चुनावी मुद्दा नहीं होगा.
नेता ने कहा, “यह राज्यों पर निर्भर है कि वे क्या करते हैं.” कोई यह भी तर्क दे सकता है कि कांग्रेस तमिलनाडु में सरकार का हिस्सा है और राज्य ओपीएस में वापस नहीं लाया गया है और यह नहीं होगा.
नेता ने राहुल गांधी के रुख को दोहराते हुए कहा कि यह कहना “अवैज्ञानिक” है कि हिमाचल में कांग्रेस ओपीएस के कारण जीती.
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‘जहां वादा किया है वहां लागू करेंगे’
ओपीएस, जिसे 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी की अगुआई वाली बीजेपी सरकार ने बंद कर दिया था, उसे नई पेंशन योजना (एनपीएस) द्वारा बदल दिया गया था.
ओपीएस के तहत, सेवानिवृत्त कर्मचारियों को रिटायरमेंट के बाद उनकी अंतिम सैलरी का 50 प्रतिशत हिस्सा दिया जाता था.
एनपीएस, हालांकि, एक अंशदायी पेंशन योजना है, जिसके तहत कर्मचारी अपने वेतन का 10 प्रतिशत योगदान करते हैं, जबकि सरकार पेंशन फंड में 14 प्रतिशत का योगदान करती है.
रिटायरमेंट के समय, कर्मचारियों को संचित कोष के न्यूनतम 40 प्रतिशत के साथ मासिक पेंशन प्राप्त करने के लिए एक अनुमोदित पेंशन प्रदाता से एक वार्षिकी योजना खरीदने की आवश्यकता होती है. बाकी को एकमुश्त निकाला जा सकता है.
केंद्र में, कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने 2004 से 2014 तक अपने कार्यकाल के दौरान एनपीएस को जारी रखा. हालांकि, हाल के वर्षों में, जिन राज्यों में कांग्रेस सत्ता में है – राजस्थान, छत्तीसगढ़ और हिमाचल प्रदेश -वहां सरकार ने ओपीएस योजना बहाल कर दी है.
झारखंड सरकार, जहां कांग्रेस गठबंधन सहयोगी है, ने भी ऐसा ही किया है.
इससे पहले, पार्टी के डेटा एंड एनालिसिस विंग के अध्यक्ष, प्रवीण चक्रवर्ती, जिन्हें पार्टी के सबसे अच्छे आर्थिक दिमागों में से एक माना जाता है ने सरकारी खजाने को ओपीएस की उच्च लागत का हवाला दिया है.
यहां तक कि जब पार्टी ने पिछले साल नवंबर में गुजरात चुनाव के दौरान ओपीएस को चुनावी वादा किया था, तब चक्रवर्ती ने कहा था कि इसकी लागत “गुजरात में कर राजस्व का 15%” होगी.
Out of 6.5 crore (65 mn) people in Gujarat, about 3 lakh (300k) are in govt service.
The old pension scheme will cost roughly 15% of tax revenues.
Why should the top 0.5% of people get 15% of all taxpayers' money as post-retirement pension?@APanagariya is right to question
— Praveen Chakravarty (@pravchak) November 15, 2022
हालांकि, उन्होंने बाद में स्पष्ट किया था कि उनके बयान को पार्टी के भीतर कुछ “बड़े आंतरिक संघर्ष” के रूप में प्रतिबिंबित करना गलत होगा.
पूर्ण अधिवेशन में, रमेश ने कहा कि पार्टी उन राज्यों में ओपीएस को “कार्यान्वित” करने के लिए “प्रतिबद्ध” थी जहां इसका वादा किया गया था.
आगामी कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए घोषणापत्र में इस योजना को शामिल करने पर भी पार्टी के भीतर चर्चा हो रही है.
उन्होंने कहा, ”ओपीएस (पूर्ण सत्र में कांग्रेस विषय समिति में) पर काफी चर्चा हुई. कर्नाटक में आगामी चुनाव है जिसके लिए घोषणा पत्र तैयार करना है. लेकिन मैं आपको यह स्पष्ट कर दूं कि कांग्रेस पार्टी इसे लागू करेगी.’ “जहां हमने पहले ही वादा किया है, हम सुनिश्चित करेंगे कि हम करेंगे.”
(संपादनः फाल्गुनी शर्मा)
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