पिछले दिनों गुरुग्राम में एक 14 वर्षीय घरेलू बाल मजदूर लड़की के साथ अत्याचार, वहशीपन और दरिंदगी की जो दास्तां सुनने को मिली, उसने दिल को दहला कर रख दिया. गलती करने पर माचिस से उसे जलाया जाना, नंगा कर सौ सौ उठक बैठक लगवाना, रोजाना बुरी तरह पीटना, उसके साथ रोज अश्लील हरकतें करना, रात के 3 बजे तक उससे काम करवाना और सुबह 6 बजे फिर से जगा कर काम पर लगा देना. सीसीटीवी से उस पर लगातार निगरानी रखना, उस लड़की के साथ की जाने वाली बर्बरता की बानगी भर है.
घरों में बंधुआ श्रमिकों की तरह काम करने वाले ऐसे लाखों बच्चे और बच्चियों की चीखें अक्सर दरवाजों में बंद होकर ही रह जाती हैं. अक्सर आपको और हमें मॉल में घूमते समय, ट्रेन में जाते समय या पर्यटक स्थलों में, ऐसी बच्चियां दिखाई पड़ती होंगी, जो पुराने कपड़ों में, अपने मालिक मालकिन का सामान लेकर चल रही होंगी या उनके छोटे बच्चे को अपनी गोद या वॉकर में टहला रही होंगी, ताकि उन लोगों के आराम में कोई खलल न पड़े. पर हमें कोई फर्क नहीं पड़ता और कई बार हम सोचते हैं कि कितनी बढ़िया तरीके से मालिक मालकिन इसका ख्याल रखते हैं, जो मॉल में घूमने इसे भी अपने साथ लाये हैं.
‘बचपन बचाओ आंदोलन’
वर्ष 1998 में ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ ने ऐसे ही एक मांमले में असगर (बदला हुआ नाम) बच्चे को एक आईएस अधिकारी के घर से मुक्त करवाया था. बच्चे का दोष सिर्फ इतना था कि उसने अधिकारी के बच्चे का बचा हुआ गिलास का दूध पी लिया था. सजा के रूप में असगर का हाथ गैस पर रखकर जला दिया गया था. इस बच्चे के मुक्ति के फ़ौरन बाद बचपन बचाओ आंदोलन ने राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष न्यायमूर्ति श्री रंगनाथ मिश्रा के समक्ष प्रस्तुत किया. परिणामस्वरूप आयोग ने केंद्र और राज्य सरकार को पत्र लिखा और इस पत्र के चलते सरकारी अधिकारियों की नियुक्ति नियमावली में 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों का घरों में काम कराना प्रतिबंधित कर दिया गया.
वर्ष 2006 में बाल श्रम प्रतिषेध व विनियमन अधिनियम 1986 में खतरनाक उद्योगों की सूची में घरेलू बाल श्रम को भी पूर्णतः प्रतिबंधित कर दिया गया. लेकिन ऐसा नहीं है कि कानून में हुए इन बदलावों से बच्चों से घरों में काम करवाने वाले लोगों पर कोई असर पड़ा. इक्का दुक्का मामलों में जहां ऐसे बच्चे मुक्त हुए और मीडिया ने इसे मुद्दा बनाया वहां लोगों को यह समझ में आया कि बच्चों से घरों में काम करवाना कानूनी रूप से गलत है, पर श्रम विभाग ने कभी न तो इसका प्रचार किया और न ही कभी ऐसे मामलों को गंभीरता से लिया.
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घरेलू बाल श्रमिक
घरेलू बाल श्रमिकों का यह मामला वास्तव में जबरिया मजदूरी या बंधुआ श्रम के लिए बाल दुर्व्यापार (ह्यूमन ट्रैफिकिंग) के नजरिये से देखने की जरूरत है. दिल्ली, गुरुग्राम, फरीदाबाद या फिर विभिन्न राज्यों के बड़े शहर हो इन सभी जगह में प्लेसमेंट एजेंसियों के माध्यम से घरेलू नौकरों को रखने का चलन है.
छत्तीसगढ़, झारखण्ड, ओडिशा, बिहार और पश्चिम बंगाल में इन प्लेसमेंट एजेंसियों के ठेकेदार ऐसी बच्चियों को अपना निशाना बनाते हैं जिनके परिवार विभिन्न वजहों से आर्थिक परेशानी झेल रहे हैं. आधार कार्ड में उम्र बढ़ाकर दिखाना इन ठेकदारों और एजेंसियों के लिए कोई बड़ी बात नहीं है. दलालों के माध्यम से बड़े शहर में पहुंचना और इन प्लेसमेंट एजेंसियों से कमीशन लेकर जहां दलालों की पौ बारह हो रही है, वहीं इन लड़कियों को शोषण इसी तरह बदस्तूर जारी है.
आईपीसी की धारा 370 ऐसे सभी मामलों में लागू होती है जहां धोखा देकर, लालच देकर या झूठ बोलकर किसी व्यक्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जाए और वहां उसका शोषण किया जाये. शोषण की परिभाषा में उसका शारीरिक शोषण या जबरिया मजदूरी करने, बंधुआ बनाकर या बंधुआ जैसी स्थिति में रखना शामिल है.
यदि घरेलू बाल श्रमिकों के इन मामलों को बाल दुर्व्यापार के नजरिये से देखना शुरू किया जायेगा तो हमें साफ़ दिखाई पड़ेगा कि यह संगठित अपराध है, जिसमें कई लोग शामिल है. गुरुग्राम की ही बात करें तो कार्यवाही सिर्फ बच्ची के मालिक और मालकिन तक ही सीमित है जबकि बच्ची को झारखंड से लाने वाले दलाल या ठेकेदार, प्लेसमेंट एजेंसी के सरगना और एजेंसी द्वारा अब तक कुल कितनी बच्चियों को विभिन्न जगहों पर भेजा गया, उसका जिक्र कहीं नहीं हो रहा.
जागरूकता की जरुरत
सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है जिन इलाकों से ये बच्चियां आ रही हैं, वहां की राज्य और जिला बाल संरक्षण इकाईओं के साथ काम करने की. इन इकाईओं को ऐसे परिवारों की पहचान करना होगा जो विभिन्न वजहों से आर्थिक परेशानी झेल रहे हैं. ऐसे परिवारों को केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न सामाजिक सुरक्षा योजनाओं से जोड़ने की पहल करनी होगी. साथ ही समुदाय के साथ मिलकर लोगों को जागरूक करना होगा की किस तरह बड़े शहरो में इन बच्चियों के साथ इस तरह की घटनाएं हो सकती है. ताकि वे दलालों के लालच में न आएं.
मानव दुर्व्यापार रोकने के लिए बनाया गया एक विधेयक पिछले तीन सालों से सदन में आने की बाट जोह रहा है. इस विधेयक को भी पारित करवाने की जरुरत है ताकि मानव दुर्व्यापार के संगठित तरीके को प्रत्येक स्तर पर तोड़ने में मदद मिल सके.
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