नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को दिल्ली आबकारी नीति मामले में बिनॉय बाबू की जमानत याचिक पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को नोटिस भेजा है.
बिनॉय ने एक शराब कंपनी मेसर्स पेरनोड रिकार्ड में महाप्रबंधक के रूप में काम किया है और उन्हें पिछले साल नवंबर में ईडी ने गिरफ्तार किया था. न्यायमूर्ति दिनेश कुमार शर्मा की खंडपीठ ने बुधवार को जांच एजेंसी से प्रतिक्रिया/स्थिति रिपोर्ट मांगी है और मामले को 16 मार्च, 2023 के लिए सूचीबद्ध कर दिया है.
ट्रायल कोर्ट ने 16 फरवरी को विजय नायर, अभिषेक बोनीपल्ली, समीर महेंद्रू, सरथ पी रेड्डी और बिनॉय बाबू की जमानत याचिका खारिज कर दी थी, जिन्हें दिल्ली सरकार की अब रद्द की जा चुकी नई आबकारी नीति के तहत मनी लॉन्ड्रिंग जांच में गिरफ्तार किया गया था.
ट्रायल कोर्ट ने अन्य लोगों के साथ बिनॉय बाबू को जमानत देने से इनकार करते हुए कहा था कि इस मामले में कार्यवाही के इस स्टेज में कोई भी अभियुक्त जमानत पर रिहा होने का हकदार नहीं है क्योंकि उनके खिलाफ लगाए गए आरोप काफी गंभीर हैं और एक आयोग के कमीशन से संबंधित हैं. मनी-लॉन्ड्रिंग आर्थिक अपराध धारा 3 द्वारा परिभाषित की गई है और धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) की धारा 4 द्वारा दंडनीय है.
वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी बुधवार को बिनॉय की तरफ से उपस्थित हुए और साक्ष्य पेश करते हुए कहा कि उन्हें ईडी द्वारा इस मामले में गलत तरीके से फंसाया गया है, हालांकि उन्होंने आबकारी नीति के निर्माण में कोई भूमिका नहीं निभाई और इस तथ्य के बावजूद कि उपरोक्त अपराधों के मामले में उन्हें सीबीआई द्वारा गवाह बनाया गया था.
वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ वकील भी बिनॉय बाबू की ओर से पेश हुए और कहा कि उक्त आबकारी नीति के संबंध में आवेदक द्वारा निभाई गई एकमात्र भूमिका यह थी कि उन्होंने विशेषज्ञ समिति को उक्त नीति के संबंध में मैसर्स पेरनोड रिकार्ड की ओर से सिफारिशें प्रस्तुत की थीं. M/S Pernod Ricard के शराब के कारोबार में एक हितधारक था और नीति के निर्माण के संबंध में इसकी सिफारिशें या विचार दिए थे.
ईडी ने बिनॉय बाबू की जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि वह उपरोक्त कार्टेल का एक प्रमुख सदस्य थे, उनके बिना उपरोक्त आपराधिक साजिश करने वालों के लिए कार्टेलाइजेशन और एकाधिकार मकसद पूरा करना संभव नहीं होता. यह भी कहा था कि मैसर्स पेरनोड रिकार्ड द्वारा कॉर्पोरेट गारंटी प्रस्तुत करने का विचार इस आवेदक के दिमाग की उपज थी और यह सुनिश्चित करने के लिए किया गया था कि खुदरा विक्रेता संस्थाएं उक्त कंपनी और दिल्ली के शराब बाजार के लगभग 30 प्रतिशत हिस्से को नियंत्रित करने के मकसद से कम से कम 35 प्रतिशत स्टॉक रखें.
ईडी के मुताबिक मामले की अब तक की जांच में सामने आया है कि इस साजिश में शामिल लोकसेवकों को करीब 100 करोड़ रुपये की अग्रिम रिश्वत दी गई थी और राजनीतिक व्यक्तियों के बीच इस साजिश के कारण बनी सांठगांठ के परिणामस्वरूप, शराब के धंधे में शामिल सरकारी अधिकारियों/कर्मचारियों और अन्य अभियुक्तों के खिलाफ जीएनसीटीडी के खजाने को लगभग 2873 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है.
यह भी विशेष रूप से आरोप लगाया गया है कि ईडी द्वारा की गई एक जांच से पता चला है कि सभी पांचों आरोपियों ने मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी क्योंकि वे सभी इस प्रक्रिया या गतिविधियों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सक्रिय रूप से शामिल थे.
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