अग्निपथ योजना के तहत एनरोल हुए अग्निवीरों के पहले बैच ने पिछले महीने सशस्त्र बलों के विभिन्न भर्ती प्रशिक्षण संस्थानों में प्रशिक्षण शुरू किया. स्वाभाविक रूप से, सशस्त्र बलों को मूल योजना में आवश्यक संशोधनों को स्पष्ट करने में कुछ साल लगेंगे.
इस अवधि के दौरान, जिन दो क्षेत्रों पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता होगी, वे प्रारंभिक भर्ती प्रक्रिया और भर्ती प्रशिक्षण हैं.
सेना ने ऑनलाइन परीक्षा को प्रक्रिया का पहला चरण बनाकर पहले ही दूसरे बैच की भर्ती प्रक्रिया में बदलाव कर दिया है. इसके बाद फिजिकल फिटनेस/मेजरमेंट और मेडिकल टेस्ट होते हैं. इससे पहले, लिखित परीक्षा जो फिजिकली आयोजित की जाती थी, अंतिम चरण थी. यह परिवर्तन निश्चित रूप से पूरे प्रशासनिक बोझ को कम करेगा.
कॉमन एंट्रेंस एग्जाम (सीईई) के बाद सेना भर्ती कार्यालयों (एआरओ) द्वारा तय किए गए स्थानों पर शॉर्टलिस्ट किए गए उम्मीदवारों के लिए भर्ती रैलियां आयोजित की जाएंगी. यह डिजिटल इंडिया की दिशा में एक बड़ा कदम है, हालांकि इसने भर्ती सुधार को बढ़ावा देने के लिए अग्निपथ योजना का सहारा लिया.
मेरिट का कमतर करना
योग्यता, सिद्धांत जिसे वास्तव में महत्व दिया जाना चाहिए, वह कमजोर है क्योंकि बहुत से भारतीयों को समान अवसर से वंचित कर दिया जाता है.
यदि समान अवसर के सिद्धांत को बरकरार रखा जाता है, तो यह उन रेजिमेंटों और इकाइयों की संरचना को प्रभावित कर सकता है जो ब्रिटिश विरासत को बनाए रखना जारी रखते हैं जो अनिवार्य रूप से मार्शल क्लासेस लॉजिक पर आधारित थी, एक भ्रम जिससे इस विश्वास से बढ़ावा दिया जाता है कि एथनिसिटी/क्लास/जाति/धर्म और ज्यॉग्रफी के आधार पर बनी इकाइयों में सेना ज्यादा प्रभावशाली होती है. इस गलतफहमी को काफी लंबे समय से खारिज कर दिया गया है और इसका उत्कृष्ट उदाहरण इन्फैंट्री रेजिमेंट, द ब्रिगेड ऑफ द गार्ड्स है जिसे विशेष रूप से 1949 में फील्ड मार्शल करियप्पा द्वारा बनाया गया था.
अग्निपथ योजना उन रेजीमेंटों को परिवर्तित करने के लिए दीर्घकालिक रास्ता प्रदान करती है जो अभी भी ब्रिटिश विरासत पर कायम हैं. इसलिए लगभग 15-20 वर्षों में, अखिल भारतीय वर्ग में यह रूपांतरण हो सकता है, भले ही वे सिख, कुमाऊं, मद्रास आदि जैसे नामों को बनाए रख सकें. ब्रिगेड ऑफ गार्ड्स में सेवा करने के बाद, मुझे विश्वास है कि जब भारतीय एक-दूसरे से मिलते-जुलते हैं, तो उनकी संकीर्ण पहचान खत्म हो जाती है और राष्ट्रवादी दृष्टिकोण को बढ़ावा मिलता है. संक्षेप में, सेना में ऐसी भर्तियां होंगी जो संकीर्ण पहचान को विशेषाधिकार नहीं देती हैं और यह समान अवसर को बढ़ावा देगी. नौसेना और भारतीय वायु सेना अखिल भारतीय योग्यता के आधार पर अपने रंगरूटों का चयन करती है और सेना अपवाद नहीं होनी चाहिए.
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खराब प्रदर्शन के लिए पुरस्कार
इसमें कोई संदेह नहीं है कि आरएमपी से को छोड़ने के राजनीतिक निहितार्थ हैं और इसे नकारात्मक रूप से देखा जाएगा, खासकर सिंधु-गंगा क्षेत्र के राज्यों द्वारा. हालांकि, जब दीर्घावधि में राष्ट्रीय जनसंख्या नीति के भीतर इसे देखा जाता है, तो ऐसे राज्यों को नुकसान पहुंचाने का कोई कारण नहीं है जिन्होंने जनसंख्या वृद्धि को कम करने में बेहतर प्रदर्शन किया है.
2026 में निर्धारित संभावित राजनीतिक परिसीमन के मामले में भी इसी तरह का तर्क दिया जा सकता है. 1971 की जनगणना के बाद से प्रत्येक राज्य में संसदीय और राज्य विधानसभा सीटों की कुल संख्या अपरिवर्तित रही है, हालांकि सभी निर्वाचन क्षेत्रों में आबादी का समान वेटेज रखने के लिए सीमाओं का पुनर्निर्धारण किया गया है. संवैधानिक आवश्यकता के अनुसार, 2026 में, भारत को नवीनतम जनसंख्या जनगणना, 2021 को आधार के रूप में लेते हुए सीटों के वर्तमान आवंटन को पुनर्गठित करने की आवश्यकता होगी.
इससे दक्षिणी और उत्तरी राज्यों के बीच कानून निर्माताओं के मिक्सिंग में बदलाव आएगा. राज्यों में जनसांख्यिकी और प्रजननशीलता के विकास और दक्षिण में परिवार नियोजन की तुलनात्मक सफलता को देखते हुए, सीटों की संख्या के मामले में उत्तर को लाभ होगा. इस मुद्दे से संघर्ष की स्थिति पैदा हो सकती है.
दोनों मामलों को राजनीतिक रूप से प्रबंधित और बातचीत करनी होगी लेकिन शासन में खराब प्रदर्शन को लाभ में नहीं बदलना चाहिए.
मानवीय जज़्बा
सेना के प्रशिक्षण केंद्रों से अग्निवीरों के बारे में शुरुआती रिपोर्टें सकारात्मक और आशाजनक लगती हैं, विशेष रूप सेना की प्रभावशीलता के मामले में जो अंततः मायने रखता है, वह है मानवीय जज़्बा.
गेंद अब उन सशस्त्र बलों के पाले में है जिनके ऊपर कच्ची प्रतिभा को ढालने की जिम्मेदारी है, जो बेरोजगारी के बढ़ते राष्ट्रीय माहौल के बीच रोजगार की तलाश में हैं. लक्ष्य है इन्हें रोक पाना और इसे बेहतर प्रदर्शन के लिए प्रेरणा मिलनी चाहिए. जिन लोगों को नहीं रखा जाएगा उन्हें 10 लाख रुपये की पूंजी दी जाएगी जो बिजनेस या स्वरोजगार शुरू करने में मददगार साबित होगा क्योंकि उन लोगों के लिए रोजगार की तलाश करना एक चुनौती होगी.
इस समस्या को कम किया जा सकता है यदि मंत्रालय, विशेष रूप से गृह मंत्रालय, उन्हें प्रतिस्पर्धी प्रक्रिया के माध्यम से नौकरी देने की योजना बनाए जिसमें उनकी चार साल की सेवा को भी ध्यान में रखा जाएगा. सरकार में अग्निवीरों के कौशल का उपयोग नहीं करने का टर्फ प्रोटेक्शन के अलावा कोई कारण नहीं होना चाहिए. ऐसा पीएमओ ही कर सकता है. निजी और कॉर्पोरेट संस्थानों ने अग्निवीरों को समायोजित किए जाने का समर्थन किया है, लेकिन समय ही बताएगा कि ये वादे पूरे किए जाते हैं या नहीं.
बढ़ते वैश्विक तनाव की स्थिति में, अग्निपथ योजना, अपने सभी ज्ञात नकारात्मक पहलुओं के साथ, बढ़ते पेंशन खर्च को कम करने की एकमात्र उम्मीद पैदा करती है जिसमें रक्षा बजट का बड़ा हिस्सा खर्च हो रहा है. इसका सफल होना जरूरी है भले ही एक स्थायी सेना की तुलना में इसके लाभ कुछ कम हैं.
ह्यूमन कैपिटल सशस्त्र बलों का अंतिम हथियार है. हमारी चयन और रिटेंशन का सिस्टम योग्यता के आधार पर होनी चाहिए न कि जातीयता और धर्म की संकीर्ण पहचान पर. अग्निपथ योजना जिसका सुपरविजन वास्तव में पीएमओ द्वारा किया गया था, एक दीर्घकालिक गेम चेंजर साबित हो सकती है, विशेष रूप से ऐसी दुनिया में जो युद्ध की तरफ बढ़ती हुई दिख रही है – ऐसे में हमारे पास अपने भंडार तैयार होंगे.
(लेफ्टिनेंट जनरल (डॉ.) प्रकाश मेनन (रिटायर) तक्षशिला संस्थान में सामरिक अध्ययन कार्यक्रम के निदेशक; राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय के पूर्व सैन्य सलाहकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल @prakashmenon51 है. व्यक्त विचार निजी हैं.)
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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