असली सवाल यह है कि इस भारी गिरावट के बाद क्या होगा? अडाणी की कंपनियों के बाजार मूल्य में 120 अरब डॉलर से ज्यादा की कटौती (इस घाटे में से गौतम अडाणी का खुद का हिस्सा दो तिहाई है) होने के बाद भी हकीकत यह है कि इस समूह का कुल मूल्य 100 अरब डॉलर से ज्यादा के बराबर है, जिसमें से दो तिहाई हिस्सा खुद अडाणी का है.
हालात जिस तेजी से बदल रहे हैं उनके मद्देनजर इन आंकड़ों को अनुमानित ही माना जा सकता है. इसके अलावा क्रॉस होल्डिंग्स, प्रोमोटर के लिए शेयरों के वादे आदि के कारण भी समायोजन करना मुश्किल है. लेकिन अडाणी अब संपत्ति के लिहाज से नंबर वन या टू या नंबर 20 भी भले न रह गए हों, वे बेहद अमीर व्यक्ति हैं और उनका समूह अभी भी एक विशाल समूह है.
तो अब क्या होगा? हिंडेनबर्ग रिपोर्ट ने कहा कि इस समूह का मूल्य 85 फीसदी बढ़ाकर आंका गया था. चूंकि यह अनुमान 10 दिन पहले जारी किया गया था, उसके शेयरों की कीमत में औसतन 60 फीसदी का सुधार किया गया. लेकिन आज भी इस समूह की कंपनियों के मूल्य बढ़ा-चढ़ाकर बताए जा रहे हैं. उदाहरण के लिए, अडाणी पावर का मूल्य उसके ‘बुक वैल्यू’ से 14 गुना ज्यादा बताया जाता है. यही अडाणी ट्रांसमीशन के साथ भी है और अडाणी ग्रीन एनर्जी का मूल्य तो इसके ‘बुक वैल्यू’ से 56 गुना ज्यादा बाते जाता है.
हाल में अधिग्रहीत की गई अंबुजा सीमेंट जैसी कंपनी की बुक वैल्यू से समान्यतः कई गुना ज्यादा मूल्य बताया जाता है, जिसकी कीमत और बुक वैल्यू का अनुपात 2.1 का है. सामान्य मूल्यांकन के मानक के अनुसार अडाणी के कई शेयरों की कीमतों में गिरावट अभी काफी दूर है.
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कंपनियां अपने बाजार पूंजीकरण के आधार पर जिंदा या मृत नहीं होतीं, हालांकि वे नई पूंजी हासिल करने के लिए इसका लाभ उठा सकती हैं. लेकिन पूंजी, खासकर कर्ज का उपयोग करना होता है और इसके लिए आपको मुनाफा कमाने और नकदी का प्रवाह बनाना होता है. अडाणी समूह की सात मूल कंपनियों की वित्तीय स्थिति बताती है कि पिछले मार्च में उन्होंने टैक्स-पूर्व करीब 17,000 करोड़ रुपए का लाभ दर्शाया, जो कि एनटीपीसी की स्थिति से भिन्न नहीं है.
इस समूह के विदेशी कर्ज में कटौती की गई है ताकि बाजार में उसकी मुश्किलें कम हों, और क्रेडिट रेटिंग नीची की जा सके. इसलिए, कोई नया बॉन्ड खर्चीला साबित होगा. नया बैंक कर्ज कोई साहसी बैंक मैनेजर ही दे सकता है. अडाणी एंटरप्राइजेज़ की किरकिरी के बाद इक्विटी बाजार किसी नई इक्विटी को भरी मुश्किल का ही सामना करना पड़ेगा.
सार यह कि इस समूह का पूरा ध्यान अब अपने कर्जों के भुगतान पर रहेगा ताकि उसकी वित्तीय साख बनी रहे. नई महत्वाकांक्षी परियोजनाओं के लिए पैसा जुटाना तभी मुमकिन हो पाएगा जब उसकी वित्तीय स्थिति स्थिर होगी.
नकदी सीमित होने और बाजार पूंजीकरण में 50 फीसदी से ज्यादा की कमी के कारण अडाणी समूह को चादर के हिसाब से ही अपने पैर फैलाने पड़ेंगे. उनमें और मुकेश अंबानी में बड़ा फर्क (अगर इसका कोई मतलब है) यह है कि अंबानी अब अडाणी से ज्यादा अमीर हैं और अंबानी ने अपने कर्जे घटा लिए हैं इसलिए वे मनमुताबिक निवेश कर सकते हैं.
इसलिए अब हम इन बातों के बारे में कम चर्चा ही सुनेंगे कि अडाणी ग्रीन हाइड्रोजन और बिजली के सबसे बड़े उत्पादनकर्ता बनने वाले हैं, कि वे सौर ऊर्जा, रक्षा उपकरणों और सेमी-कंडक्टर की बड़ी परियोजनाएं ला रहे हैं. मौजूदा बंदरगाहों, हवाईअड्डों और दूसरे व्यवसायों का विस्तार करने जा रहे हैं.
वृद्धि की धीमी रफ्तार में जाने का खतरा यह है कि इससे गिरावट बाद के मौजूदा मूल्यांकन भी खतरे में पड़ जाता है. जिस तरह प्रगति कर रहा कोई तेज व्यवसायी कई तरह के खेल कर सकता है लेकिन सीमाओं के कारण विकल्प सिकुड़ने लगते हैं तब वह विपरीत जाल में फंस सकता है.
इस कॉलम में पिछले सप्ताह मैंने कहा था कि अडाणी को अब संघर्ष करना पड़ सकता है, हालांकि यह जीवन-मरण का संघर्ष नहीं है. बेशक यह गौतम अडाणी का अंत नहीं है. आखिर, उनके मित्र सही जगहों पर बैठे हैं, वे देश के दूसरे सबसे अमीर व्यक्ति बने हुए हैं और उनका कॉर्पोरेट ग्रुप सबसे बड़े कॉर्पोरेट समूहों में शामिल है. लेकिन शुरुआती साहस के बाद अडाणी ने जब यह घोषणा की कि वे न तो वे अपने पब्लिक ईशू का विस्तार करने जा रहे और न उसकी कीमत घटाने जा रहे हैं तब यह साफ हो गया कि उन्होंने अपनी स्थिति का पुनर्मूल्यांकन जरूर किया होगा.
ज्यादा गंभीर बात यह है कि उनके संघर्ष ने उन सबको जरूर प्रभावित किया होगा जिन्होंने अडाणी की परियोजनाओं में निवेश किया. उसने सरकार की मैनुफैक्चरिंग और इन्फ्रास्ट्रक्चर संबंधी महत्वाकांक्षाओं को भी प्रभावित किया होगा— उन महत्वाकांक्षाओं को, जो काम कराने वाले चुनिंदा नेशनल चैंपियनों की योग्यताओं पर कुछ हद तक परवान चढ़ी थी.
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