सोशल मीडिया पर भारत-पाक के बीच चल रहे युद्ध के दौरान वास्तविक जीवन में गुजरात के द्वारका की एक 22 साल की औरत ने फांसी लगा ली, क्योंकि उसका पति कश्मीर में पोस्टेड था. वहां चल रही घटनाओं से इतना आतंकित हुई कि बिना युद्ध हुए भी उसने अपनी जान गंवा दी.
सैनिकों के हाथ में बंदूक दे बॉर्डर पर खड़ा कर उनसे हजारों किलोमीटर दूर अपने कमरे में बैठकर मोबाइल फोन में मारो-काटो-मरो-शहीद चिल्लाता हुजूम क्या उस औरत की चिंता और दर्द बांट सकता है? आईडी ब्लास्ट में मारे गए मेजर चितरेश बिष्ट की मां और होने वाली बीवी का गम मारो-मारो के शोर में दब गया है. पुलवामा हमले में 40, मांयें और 40 पत्नियां भी शहीद हुई हैं.ऐसे और हजारों-लाखों सैनिकों को शहादत का तमगा देने को बेकरार हुजूम औरतों के अस्तित्व को ही नकार देता है.
बल्कि ये भीड़ अपना क्रोध औरतों पर ही मोड़ देती है. करगिल युद्ध से लेकर अब तक शहादत की रिपोर्टिंग करने वाली वरिष्ठ पत्रकार बरखा दत्त को इस भीड़ ने बलात्कार की धमकियां दीं. यूं ही, रवीश कुमार को धमकियां दीं- मां और बहन के बलात्कार की. सोशल मीडिया पर जो लड़की इस भीड़ की तरह गालियां नहीं दे रही थी, हर उस लड़की को ये भीड़ गैंग रेप करने की धमकी दे रही थी. दो साल पहले युद्ध को बुरा बताने वाली गुरमेहर, जिनके पिता को आतंकवादियों ने मारा था, को इसी भीड़ ने हजारों बार गैंग रेप करने की धमकी दी. पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध छेड़ने की बात करते हुए ये भीड़ वहां की औरतों के बलात्कार को ही अंतिम लक्ष्य बनाकर रैलियां कर रहे हैं. वो कौन सी भीड़ थी जिसने शोपियां में 23 कश्मीरी औरतों का बलात्कार किया था? पाकिस्तान में भी तो पत्ते वैसे ही झड़ते हैं जैसे यहां. वो कौन सी भीड़ थी जिसने 1971 में लाखों बंगाली औरतों का बलात्कार किया था?
यह भी पढ़ें : 5 फुट 4 इंच का असफल जिहादी है मसूद अजहर, उसके इशारे पर लोग मरने क्यों चले जाते हैं?
क्या युद्ध का मतलब औरतों का बलात्कार ही है? तो फिर बलात्कारियों की, मायें और बीवियां विद्रोह भी करेंगी. तो ये औरतें युद्ध रोक भी तो सकती हैं?
आज से ढाई हजार साल पहले ग्रीक लिटरेचर में युद्ध को लेकर महिलाओं के विद्रोह पर एरिस्टोफेंस ने लाइससट्रेटा नाम का नाटक लिखा. दिखाया कि असल में युद्ध की पीड़िता भी एक औरत ही होती है. ग्रीस में स्पार्टा, थीबिस और कई अन्य राज्यों के बीच पिलोपोनेजियन युद्ध चल रहा था. सैनिक घर आते, शादियां करते- बच्चे करते और फिर युद्ध के मैदान में पहुंच जाते. बूढ़ी मायें बेटों की बाट देखती रह जातीं. बीवियां विधवाओं की तरह जीवन यापन करतीं. तब लाइससट्रेटा नाम की नायिका सभी राज्यों की औरतों को लेकर एक्रोपोलिस किले में इकट्ठा करती है. वह उनसे सवाल करती है कि हमारे राज्यों की महिलाओं की इतनी खराब स्थिति के बारे में वो कुछ करती क्यों नहीं हैं? वो उन्हें कमजोर कहती है. वह कहती है कि जमीन के भूखे पुरुष युद्ध किए जा रहे हैं और औरतें उनके आने के इंतजार में बूढ़ी होकर मर रही हैं.
वहां के कमिश्नर को जब पता चला तो उसने युद्ध के लायक नहीं रहे बूढ़ों से कहा कि उन्होंने औरतों को बेवजह इतनी आजादी दे रखी है कि वे सब किले में कैद करके बैठी हैं. लाइससट्रेटा और किले में बंद औरतों को निकालने के लिए जब पुलिस भेजी गई तो पुलिस को भी भगा दिया गया. औरतें शांति की संधि पर अपनी मांग पर डटी रहीं.
इस पूरे प्रकरण में जो सबसे जरूरी घटना रही वो ये थी कि लाइससट्रेटा ने औरतों को बताया था कि अगर वे अपने पतियों से शारीरिक संबंध बनाने से इनकार करेंगी तो युद्ध खत्म हो सकता है. सारी औरतें एक किले में बंद हो गईं और अपने पतियों को किसी भी तरह के संबंध से मना कर दिया. आखिर हुआ भी यही कि किले के बाहर पुरुषों की भीड़ बढ़ती गई. वे सब औरतों से बाहर आने की गुहार लगा रहे थे. आखिर में फ्रस्टेट हुए पुरुषों को औरतों की शर्त मानकर शांति की संधि पर हस्ताक्षर करने पड़े.
आश्चर्य होता है कि सत्ताधारी पार्टी के नाम पर जब समर्थक औरतों के प्रति इतनी हिंसा का प्रदर्शन कर रहे हैं तो भाजपा की महिला नेता टेक्सटाइल मंत्री स्मृति ईरानी, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण क्या सोच रही होंगी? ये राजनीति है, यही महिलाएं या भाजपा की कोई और महिला नेता अगर कल पार्टी बदल ले तो उसे ये समर्थक ऐसे ही बलात्कार की धमकियां देंगे? ये किस तरह का राष्ट्रवाद है? अभी तक तीन पावरफुल महिला मंत्रियों का किसी भी तरह का बयान नहीं आया है इन सेक्सुअल टेररिस्ट के खिलाफ. ये जमीन के लिए युद्ध की मांग नहीं है, ये जेंडर के खिलाफ जिहाद है. तस्लीमा नसरीन के उपन्यास लज्जा में भी दंगे के दौरान सुरंजन की बहन माया का अपहरण होता है और वो एक मुस्लिम स्त्री से बलात्कार कर बदला लेने की बात सोचता है. विडंबना ये है कि तस्लीमा ने दंगों के दौरान औरतों की स्थिति के बारे में बताया और जवाब में उन्हें बांग्लादेश से निर्वासित होना पड़ा. यही नहीं, हिंदुस्तान में भी उनका विरोध कर दिया जाता है. औरतों पर ये किस तरह का दबाव बनाया जाता है? युद्ध औरतों के शरीर के अलावा उनके ममत्व को भी खंडित करता है.
आम आदमी पार्टी के पूर्व और भाजपा के वर्तमान नेता कपिल मिश्रा ने पुलवामा घटना के बाद आपा खोते हुए पाकिस्तानी औरतों की कोख उजाड़ने की धमकी दी. ठीक उसी तरह जैसे अश्वस्थामा ने अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा की कोख उजाड़ दी थी. हिंदुस्तान में महाभारत के युद्ध का काल ढाई हजार साल पहले ही बताया जाता है. कुरुक्षेत्र में जब 18वें दिन का युद्ध खत्म हुआ तब सिर्फ औरतें ही वहां मौजूद थीं. जलती हुई लाशों, मांस खाते गिद्धों और राज-काज संभालने चले गये पुरुषों के साथ सिर्फ विधवाएं ही थीं जो इस युद्ध की सार्थकता-निरर्थकता पर सोच रही थीं. आंखों पर पट्टी बांध जीवन गुजारने वाली गांधारी ने वहीं पर महाभारत के योद्धाओं को श्राप दिया था. विडंबना है कि गांधार आज के पाकिस्तान में ही है. इस युद्ध में उसी गांधार की बेटी ने अपने सौ पुत्रों को खोया था.
यह भी पढ़ें : पीएम को ‘चोर’ कहना बुरा, पर एक बार ‘चोर’ के नारेबाजी से ही सांसदों की जान बची थी
पुलवामा हिंसा की शिकार 40 मांयें क्या सोच रही होंगी? क्या हम अपने आस-पास आंखों पर पट्टी बांध पुत्रों की लाश ढूंढ़ती गांधारी देखना चाह रहे हैं? क्या इस देश को गांधारी का श्राप लग गया है कि यहां पुत्र अकाल मृत्यु को प्राप्त होते रहेंगे? यहां तक तो ठीक है, पर अगर किसी शहीद की पत्नी ने दूसरी शादी कर ली तो यही उन्मादी भीड़ उसे पता नहीं किन विशेषणों से नवाज देगी. उन्मादी भीड़ औरतों को बलत्कृत, परित्यक्ता, वैधव्य-निरीहता के रूप में ही देखना चाहती है.