अमृतसर: पंजाब की पूर्व स्वास्थ्य मंत्री और भाजपा की दिग्गज नेता लक्ष्मी कांता चावला ने कहा कि सामाजिक संगठन वारिस पंजाब डे के प्रमुख कट्टरपंथी कार्यकर्ता अमृतपाल सिंह संधू को समझदारी से काम लेना चाहिए. उन्होंने संधू को सलाह दी, ‘समझदार बनिए, धर्म की बातें करिए. पंजाब के लोग बहुत समझदार हैं.’
संधू की मुखर आलोचक चावला ने एक विशेष साक्षात्कार में दिप्रिंट को बताया कि मौजूदा समय में पंजाब में शांति बनी हुई है. लेकिन राज्य की हवा में तनाव बढ़ रहा है. हालांकि ऐसे लोगों की संख्या मुट्ठी भर से भी कम है जो राज्य की मौजूदा स्थिति के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं.
वह जिस तनाव की ओर इशारा कर रही हैं, वह पंजाब में संधू की बढ़ती मौजूदगी से है, जो भारी हथियारों से लैस अपने अंगरक्षकों के साथ पंजाब के चारों ओर घूम रहा है और एक स्वायत्त सिख राज्य ‘खालिस्तान’ का समर्थन कर रहा है.
उन्होंने कहा, ‘सही बात कहने के लिए सभी को एक साथ आने की जरूरत है. नक्कारखाने में तूती नहीं बोलती (कुछ लोगों के बोलने से कोई फर्क नहीं पड़ता). यह डर और चिंता है जो सरकार की चुप्पी की वजह से आई है. आज लोगों के मन में भावना यह है कि ‘हमले के समय मुझे कौन बचाएगा?’‘
संधू ने दिवंगत अभिनेता-खालिस्तान कार्यकर्ता दीप सिद्धू द्वारा बनाए गए एक सामाजिक संगठन, ‘वारिस पंजाब दे’ के प्रमुख के रूप में पदभार संभाला है. सिद्धू की पिछले फरवरी में कुंडली-मानेसर-पलवल (केएमपी) एक्सप्रेसवे पर एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी.
संधू ने सिख अलगाववादी नेता जरनैल सिंह भिंडरावाले के गांव ‘रोड’ में ‘खालिस्तान जिंदाबाद’ के नारों के बीच मार्च में आयोजित एक समारोह में सिद्धू की जगह ली थी. संधू का सत्ता में उदय भिंडरावाले की याद दिलाता है. वह दिवंगत नेता की तरह ही कपड़े भी पहनते हैं. संधू दुबई में अपने परिवार के ट्रांसपोर्ट बिजनेस को छोड़, संगठन को संभालने के लिए वापस पंजाब आ गए थे.
चावला ने भिंडरावाले और संधू के बीच की जा रही समानता पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.
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‘पंजाब में सिख-हिंदू एकता बहुत मजबूत’
आतंकवाद के युग की ओर ले जाने वाला पंजाब और आज के माहौल में समानता के बारे में पूछे जाने पर चावला ने कहा, ‘जब आग लगती है तो हाल एक से होते हैं, लेकिन अब हमारे पास फायर ब्रिगेड की तैयारी बेहतर है. उन्होंने आगे बताया, ‘आग जलाने की कोशिश करने वाला कोई भी व्यक्ति सफल नहीं हो पाएगा. पंजाब में सिख-हिंदू एकता बहुत मजबूत है. राज्य आतंकवाद को खारिज करता है.
चावला पंजाब में सबसे बड़े हिंदू मंदिर दुर्गियाना मंदिर समिति की प्रमुख भी हैं. उन्होंने इस महीने की शुरुआत में संधू को पंजाब के बारे में तीन सवालों के जवाब देने या फिर दुबई वापस चले जाने की चुनौती दी थी. संधू ने उनके निमंत्रण को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया था कि वह पहले उनसे पंजाबी में बात करें न कि हिंदी में.
इसके बाद चावला को सोशल मीडिया पर काफी अपशब्दों का सामना करना पड़ा था. अब वह इस मामले पर आगे कोई बात करना नहीं चाहती हैं.
पंजाब के मौजूदा माहौल के खिलाफ आवाज उठाते हुए वह खुद को अकेला महसूस कर रही हैं. उन्होंने कहा, ‘पंजाब के अच्छे लोग चुप हैं. मेरे बयान के बाद तीन दिन तक मेरी तारीफ हुई, लेकिन उसके बाद लोग ज्यादा देर तक मेरे साथ नहीं चले. यहां तक कि उन लोगों ने भी मेरा साथ छोड़ दिया जो मुझसे सहमत थे.’
प्रवासी मजदूर
संधू राज्य में आने वाले प्रवासी मजदूरों के खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं और ‘दावा’ करते हैं कि राज्य की नौकरियां सिर्फ पंजाब के लोगों के लिए हैं. चावला ने कहा कि प्रवासी श्रमिकों और पंजाबियों के बीच कोई दुश्मनी नहीं है.
उन्होंने कहा, ‘प्रवासी मजदूर यहां काम कर रहे हैं क्योंकि यहां के लोग अप्रवासी हो गए हैं. वे हमारे खेतों की देखरेख करते हैं. पंजाबी चाहते हैं कि लोग यहां आएं और काम करें. कुछ लोग अफवाह फैलाते हैं कि यहां बहुत सारे बिहारी हैं और इससे पंजाबी आबादी कम हो जाएगी. ये वे लोग हैं जो विदेशी शक्तियों के साथ काम कर रहे हैं और राज्य में डर का माहौल फैला रहे हैं. लेकिन पंजाब के लोग बेहतर जानते हैं.’
उन्होंने आगे कहा, ‘सरकार को ऐसे लोगों को नहीं छोड़ना चाहिए जिनके मूल और जुड़ाव के बारे में हमें पता नहीं है. हमें नहीं पता कि कब वो आपे से बाहर हो जाएंगे. वे कहीं से भी प्रकट हो जाते हैं. यह खतरनाक है.’
राज्य में ‘पश्चिमी प्यादों (संधू)’ के बढ़ते अनुयायियों के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ‘बाजार में कदम रखने वाला कोई भी व्यक्ति अपने अनुयायी बना सकता है.’
डीएवी कॉलेज की पूर्व प्रोफेसर चावला राज्य में आतंकवाद के खिलाफ हमेशा मजबूती से खड़ी रही हैं.
दुर्गियाना समिति की प्रमुख के रूप में वे लोगों में वैज्ञानिक सोच पैदा करने और अंधविश्वास से दूर करने के काम को भी बखूबी अंजाम देती रही हैं. पूर्व मंत्री ने महिला सशक्तिकरण के लिए भी काम किया है. ‘हमने महिलाओं को समिति का हिस्सा बनने की अनुमति देने की मांग करते हुए मंदिर के सामने धरना दिया था. इसे तब स्वीकार कर लिया गया था और इस तरह से हमने एक बड़ी बाधा को तोड़ दिया है.’
(अनुवादः राम लाल खन्ना | संपादनः ऋषभ राज)
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