चालीस वर्ष की आसिया हसन 20 जून 2012 को अपने पति निसार अहमद खान के साथ पाकिस्तान से कश्मीर आईं थीं. वर्ष 1996 में आसिया ने पाकिस्तान के कराची शहर में खान के साथ शादी की थी. आसिया का कहना है कि कश्मीर आने के बाद वह कभी वापस अपने घर कराची नहीं जा पाई हैं. इस समय आसिया कश्मीर के ज़िला पुलवामा के नेवा इलाके में किराये के माकन में अपने पति और चार बच्चों के साथ रह रही हैं. श्रीनगर से नेवा की दूरी क़रीब बीस किलोमीटर है.
खान 1992 में सीमा पार कर कश्मीर से पाकिस्तान हथियारों की ट्रेनिंग करने चले गये थे. पेशे से दर्ज़ी, खान का कहना था कि मुज़्ज़फराबाद में कई महीनों तक हथियारों की ट्रेनिंग लेने के बाद वो कराची शहर में दर्ज़ी का काम करने लगे और एक सामान्य जीवन गुज़ारने लगे.
3 फरवरी को आसिया भी उस प्रदर्शन का हिस्सा थीं, जो प्रदर्शन पाकिस्तान से आई उन दर्जनों महिलाओं ने किया, जो वापस पाकिस्तान अपने घरवालों से मिलना चाहती हैं. प्रदर्शन करने के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जम्मू-कश्मीर के दोरे पर थे. इस प्रदर्शन में क़रीब तीस पाकिस्तानी महिलाएं थीं, जिन्होंने कश्मीर के पूर्व आतंकवादियों से शादी की है. ये महिलाएं कश्मीर के मुख्तलिफ़ इलाकों में रह रही हैं.
न दस्तावेज मिले न पुनर्वास की कोई योजना
काला बुर्का पहने आसिया ने बताया कि जिस सरकारी वादे पर वो पाकिस्तान से कश्मीर आये थे, वो वादे सरकार ने आजतक पूरे नहीं किए. वह कहती हैं ‘जब वर्ष 2010 में तत्कालीन मख्यमंत्री ओमर अब्दुलाह ने ये घोषणा की कि जो भी कश्मीरी नौजवान पाकिस्तान से अपने घरों को वापस लौटना चाहते हैं, वो वापस आ सकते हैं. मेरे पति ने भी जब इस पुनर्वास योजना के बारे में सुनकर ये फैसला किया कि वो अपने घर वापस लौटेंगे. हमारा पूरा परिवार फिर कश्मीर आया. तबसे लेकर आजतक किसी ने हमें अपने परिवारवालों से मिलने की इजाज़त नहीं दी. हमारी मांग सिर्फ ये है कि हमें आने- जाने के लिए यात्रा दस्तावेज़ दिए जाएं. लेकिन ऐसा नहीं किया जा रहा है. हमनें हाल ही में शान्तिपूण तरीक़े से श्रीनगर में प्रदर्शन भी किया. ये प्रदर्शन पहली बार नहीं था. पहले भी हमनें श्रीनगर में प्रदर्शन किए है. लेकिन होता कुछ नहीं है. सिर्फ नेताओं के बयान कुछ दिनों के लिए अख़बारों में छपते हैं, शायद हमें मुतमईन करने के लिए. कुछ दिनों के बाद मामला फिर ठंडा पड़ जाता है.’
सात सालों में नहीं मिली परिवार से
वो आगे बताती हैं ‘इन हालात में हमारा मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ रहा है. हमारे बच्चे भी इन हालात का शिकार हो रहे हैं. वो भी कभी- कभी अपने रिश्तेदारों से मिलने की तमन्ना करते हैं. जब ईद का त्यौहार होता है तो वह पूछते हैं कि हमें कौन ईदी देगा? पुनर्वास की बात को हम भूल गए हैं, हम सिर्फ ये मांग कर रहे हैं कि हमें अपने घरवालों से मिलने दिया जाए. जब अपने घरवालों से हमारी बात होती है तो वो भी रो पड़ते हैं. उनके लिए भी ये सबसे बड़ा मसला है कि वो हमसे मिल नहीं पाते हैं. पुनर्वास का मतलब सिर्फ ये नहीं है कि हमें दाल-रोटी दी जाये. पुनर्वास योजना में वह दस्तावेज़ भी आते हैं, जो हमें अपने घरों को जाने में मददगार साबित हों.’
आसिया बताती हैं कि बीते सात वर्ष में उनके मायके में कई ऐसे अवसर आए, जब मेरा और मेरे बच्चों का वहां जाना ज़रूरी था. वो बताती हैं,’ बीते सात वर्षों में मेरे मायके और रिश्तेदारों के यहां कई सारे ऐसे अवसर आए, जब किसी की शादी हुई और जब कोई मरा. लेकिन मैं और मेरे बच्चे वो सब कुछ देख नहीं सके. बच्चे अक्सर पूछते हैं कि ननिहाल में शादी थी तो हम वहां क्यूं कर नहीं जा सकते हैं? यहां सरकार ने बीते सात वर्षों में कभी हमें अपने मायके वापस जाने की इजाज़त नहीं दी. ये सात वर्ष बहुत ही मुश्किलों में गुज़रे.’
कश्मीर आने वाली आसिया की तरह ही सैंकड़ों पाकिस्तानी महिलाओं की कहानी एक जैसी है.
आतंकवादी रह चुके निसार अहमद खान कहते हैं कि हम जिस भरोसे पर वापस आए थे, वो भरोसा टूट चूका है. उन्होंने कहा ‘जब मैं कश्मीर आया तो ये सोचकर आया था कि सरकार ने जो घोषणा की है, हमें उसके मुताबिक़ अपना जीवन अच्छी तरह से गुज़ारने का मौक़ा मिलेगा. लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. मैं बीते कई वर्षों से यहां अपने गांव में किराए के एक कमरे में रहता हूं. मुश्किल से गुज़ारा होता है. मैं हर महीने क़रीब आठ हज़ार रूपया अपने दर्ज़ी के काम से कमाता हूं.’
खान कहते हैं कि अब आने वाले दिनों में उन्हें किराये का मकान भी खाली करना है. इस पुनर्वास योजना के तहत अबतक क़रीब चार सौ कश्मीरी नौजवान अपने घरों को वापस लौटे हैं. दरअसल 2010 में तत्कालीन मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह ने पुनर्वास योजना की घोषणा की थी. उमर अब्दुल्लाह सरकार ने जब ये घोषणा कि थी तो उन्होंने घर वापस आने के लिए चार रास्तों की शर्त रखी थी. जो चार रास्ते घर वापस आने लिए तय किए गये थे, उनमें सीमा के रास्ते वाघा, चकन दा बाग़, सलेमाबाद और अटारी शामिल थे या फिर इंदरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट का रास्ता.
पाकिस्तान गए आतंकियों को वापस लाने के लिए कश्मीर सरकार ने की थी घोषणा
पुनर्वास की घोषणा सरकार ने उन आंतकवादियों के लिए रखी थी जो वर्ष 1989 और 2009 के बीच पाकिस्तान हथियारों की ट्रेनिंग लेने गए थे. खान नेपाल के रास्ते कश्मीर पहुंच गए थे. कश्मीर पहुंचकर वो पुलिस के सामने पेश हुए थे, जिसके बाद उन्हें कई दिनों तक पुलिस हिरासत में रखा गया था.
पुनर्वास योजना की घोषणा के बाद उमर अब्दुल्लाह सरकार ने नेपाल रूट को कश्मीर के पूर्व आंतकवादियों के क़ानूनी रूट बनाने के लिए केंद्र सरकार को एक प्रस्ताव दिया था. कुछ समय बाद इस प्रस्ताव पर तत्कालीन मख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने भी मांग की थी और बताया था कि कश्मीर के पूर्व आतंकवादियों को आने की इजाज़त दी जाए.
खान कहते हैं कि जिस दफ्तर में भी वह पुनर्वास की गुहार लगाने पहुंचे, वहां से उन्हें निराश होकर वापस लौटना पड़ा है.
वर्ष 1989 में कश्मीर के हज़ारों युवा सीमा पारकर पाकिस्तान पहुंच गए थे, जहां उन्होंने हथियारों की ट्रेनिंग ली. निसार भी उन्ही युवा में से एक थे.
खान और उनकी पत्नी पर मामले दर्ज हैं. खान कहते हैं ‘एक तो ये मुश्किल है कि मेरी पत्नी को मायके जाने के लिए यात्रा करने के दस्तावेज़ नहीं दिए जा रहे हैं, जो पहली मुश्किल है. दूसरी मुश्किल ये है कि हम दोनों पर मामले दर्ज किए गए हैं, जिसके लिए हमें अदालत में जाना पड़ता है. केस लड़ने के लिए पैसों की ज़रूरत होती है जो हमारे पास नहीं हैं. अब हम कुछ नहीं मांगते हैं. हमारी मांग सिर्फ ये है कि एक तो हमारे ऊपर जो मामले दर्ज हैं उनको वापस लिया जाए. दूसरा ये कि मेरी पत्नी को पाकिस्तान अपने मायके जाने के लिए दस्तावेज़ दिए जाए, ताकि वह अपने परिवारवालों से जाके मिल सके.’
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)