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Sunday, 17 November, 2024
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वो कवि जिनकी कविता ‘जब कभी झूठ की बस्ती में’ पीएम मोदी ने संसद में पढ़ी

संसद में पीएम मोदी और मल्लिकार्जुन खड़गे ने अपनी राजनीतिक बहस में गजल के जो चंद मिसरे पढ़े, उस गजलकार का नाम है प्रमोद राजपूत और वह सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं.

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नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बजट सत्र के आखिरी दिन संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण का धन्यवाद ज्ञापन दे रहे थे.. इस दौरान प्रधानमंत्री ने एक गज़ल की चंद लाइन पढ़ी.

जब कभी झूठ की बस्ती में, सच को तड़पते देखा है
तब मैंने अपने भीतर किसी बच्चे को सिसकते देखा है

गजल के इस मिसरे को प्रधानमंत्री ने इस अंदाज से पढ़ा कि सोशल मीडिया से लेकर मीडिया तक में इस गज़ल को लोगों ने तलाशना शुरू कर दिया. यहां तक की कुछ मीडिया हाउस ने इस गज़ल को सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता बता कर सबसे आगे निकलने की होड़ लगाई और आगे निकल गए…लेकिन वह यहीं गच्चा खा गए..यह कविता मशहूर शायर सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की नहीं बल्कि प्रमोद राजपूत द्वारा लिखी गई है…

ई-मेल से पता चला कि पीएम ने संसद में गज़ल पढ़ी

मजेदार बात यह है कि प्रमोद को भी यह बात उसी रात दिप्रिंट के एक मेल से पता चली. उन्होंने उस मेल के जवाब में चार मेल भेजे लेकिन जैसे ही उन्हें उनकी पत्नी ने बताया कि आज प्रधानमंत्री जी ने एक ऐसी कविता पढ़ी है तो उन्होंने झटपट मेल फिर से खोला..टीवी पर पीएम के भाषण को तलाशने लगे और फिर रात एक बजे तक मशक्कत करने के बाद पूरा भाषण सुनने के बाद उन्हें यकीन हुआ कि उनके देश से आया ई-मेल सच्चा है और प्रधानमंत्री ने उनकी गजल की चंद लाइनों को संसद में एक अलग अंदाज़ में पढ़ा है… प्रमोद बताते हैं कि मैं तब और चौंका जब मैंने देखा कि नेता प्रतिपक्ष ने भी मेरी इसी गजल की चंद लाइनों को अपने भाषण में सुनाया है…

अब बारी प्रमोद के सवालों की झड़ी लगाने की थी..प्रमोद पूछते हैं कि क्या पीएम से पहले मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी संसद में अपनी बात रखी थी…जवाब दिया हां…बोले तभी पीएम कहते हैं..खड़गे जी आपने कवि की इस लाइन पर ध्यान नहीं दिया…और फिर वो मेरी गज़ल की लाइनों को आगे पढ़ने लगते हैं…प्रमोद ने यह कविता 30 जुलाई 2017 को साहित्य मंजरी. कॉम पर पोस्ट की है..

कौन हैं प्रमोद राजपूत

मिलते हैं उस गज़लकार सॉफ्टवेयर इंजीनियर से जो कविताएं और गजलें शौकिया लिखता है…और उसका सपना आने वाले दिनों में बॉलीवुड का संगीतकार बनना है.

प्रमोद पिछले 20 सालों से सात समंदर पार हैं…पहले यूरोप में और पिछले 18 सालों से अमेरिका में रह रहे हैं. और टोयोटा में कंसलटेंट के तौर पर काम कर रहे हैं. वह बताते हैं, मैं शौकिया गज़ल लिखता हूं और 15 साल की उम्र से लिख रहा हूं. लेकिन यह कविता जो पीएम और खड़गे जी ने संसद में पढ़ी वह मैनें डेढ़ साल पहले लिखी थी. इस कविता की उपज मेरा बॉलीवुड प्रेम है.

poet pramod kumar
प्रमोद राजपूत

मैं हमेशा से सपना देखता था कि मैं बॉलीवुड का बड़ा लिरिसिस्ट हूं. तो मैं ख्वाब देखकर कविताएं, गजलें लिखता हूं..फिर अपनी जिंदगी और रिस्पांसिबिलिटी में ऐसा उलझा की शौक दरकिनार हो गए और काम ही सर्वोपरी हो गया. लेकिन पिछले दो सालों से मैं हफ्ते में एक दो कविताएं, गज़ल या फिर शेर लिखने लगा हूं..शुरुआत में तो मैं अपनी कविताएं साहित्य मंजरी पर लोड करता था लेकिन अब मैं अपने यूट्यूब चैनल पर ही कविताएं कुछ मेरी कलम से पर पोस्ट कर देता हूं. उन कविताओं को पढ़ता हूं..क्योंकि मैंने देखा है कि लोग पढ़ने में रूचि कम ले रहे हैं, सुनना ज्यादा पसंद करते हैं. 2020 में मैं अपनी कविता संग्रह को किताब का रूप दूंगा.

मेरी पहली कविता

प्रमोद बताते हैं मैंने पहली कविता 15 साल की उम्र में लिखी थी…मैं इंदिरा गांधी की हत्या किए जाने से निराश था. मैं महात्मा गांधी का भी बहुत बड़ा प्रशंसक हूं, उनकी भी हत्या कर दी गई ती और श्रीमती गांधी को भी मार दिया गया था..तब मैंने निराश मन से यह कविता लिखी…

ना जाने कब तक यहाँ गांधी क़ुर्बान होंगे

जिगर पे और कितने ख़ूनी निशान होंगे,
जालिमों ने लगाई है जो स्वार्थ की आग यहाँ ,

जल रहा है उसमें देखो भारत का भाग्य यहाँ,

माँ पूछ रही है अपने मूक नीरव नयन से
क्या अब नहीं यहाँ पे भगत सिंह जवान होंगे,

जिगर पे और कितने ख़ूनी निशान होंगे

डेढ सौ कविता लिख चुका हूं…पहली बार भारत आ रहा हूं

वैसे तो मैं भारत आता ही रहता हूं लेकिन अगले महीने मैं विशेषतौर पर एक कवि के तौर पर भारत आ रहा हूं. मैं पहली बार मुंबई 8 मार्च को जश्न-ए-नूर मुशाएरा जिसे डॉ नूर अमरोहवी करा रहे हैं उसमें कविता पाठ करने आ रहा हूं. उनसे मेरी मुलाकात अमेरिका में ही हुई है जहां उन्होंने मुझे कविता पढ़ते सुना था. शायद यही वजह है कि वह मुझे भारत बुला रहे हैं. व्यस्त समय में कविता लिखने का समय कैसे निकालते हैं? कविता लिखने के लिए अब व्यस्तता का बहाना बेकार है क्योंकि मुझे हमेशा आइडिया मॉर्निंग या फिर इवनिंग वॉक के दौरान आता है और मैं झटपट मोबाइल पर लिख लेता हूं.

भारत से जुड़ाव बना हुआ है

प्रमोद बिहार के छपरा जिला के एक छोटे से गांव चतुरपुर के रहने वाले हैं. वह जब भी भारत आते हैं तो अपने गांव जाना जरूर पसंद करते हैं. पिता आर्मी में थे तो उनकी पोस्टिंग के अनुरूप ही वह देश घूमे. 12वीं तक हिंदी माध्यम से पढ़ाई की और फिर नॉर्थ बंगाल यूनिवर्सिटी कोलकाता से एमसीए किया. बचपन भी बहुत साधारण था. उनके लिए पिता ने सबसे पहले 1982 में एटलस साइकिल खरीदी थी जब साइकिल की कीमत महज 350 रूपए थी. और पापा ने छह महीने के स्टॉलमेंट पर खरीदी थी.

प्रधानमंत्री से मुलाकात

प्रधानमंत्री से मुलाकात नहीं हुई है लेकिन ख्वाब है कि एक दिन उनसे मुलाकात होगी. उनका व्यक्तित्व करिशमाई है. वह कहते हैं कि जिस तरह से उन्होंने मेरी कविता को पढ़ा है ठीक वैसे ही मेरी कविता मुझे उनसे मिलवा देगी. प्रधानमंत्री से प्रभावित प्रमोद कहते हैं कि वह एक बेहतरीन इंसान और नेता हैं उन्होंने भारत को एक दूसरे स्तर पर पहुंचा दिया है. मुझे गर्व है कि वह हमारे नेता हैं. पिछले पांच सालों में जिस तरह से देश बदला है वह बताता है कि मोदी के कार्यकाल में बेहतरीन काम हुआ है.

राहुल गांधी कैसे नेता, कांग्रेस को जरूरत है करिश्माई नेता की

प्रमोद इस बात से इनकार नहीं करते कि जब वह बड़े हो रहे थे तब देश में कांग्रेस की सरकार थी. वह कहते हैं कि अगर मैं अपने बचपन से आज को देखूं तो हमारे देश ने बहुत तरक्की की है. हम देश में कांग्रेस की देन को नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं. लेकिन कांग्रेस में अब कोई इंदिरा और राजीव गांधी जैसा करिश्माई व्यक्तित्व वाला नेता नहीं है.

यहां पढ़ें पूरी कविता

जब कभी झूठ की बस्ती में, सच को तड़पते देखा है

जब कभी झूठ की बस्ती में, सच को तड़पते देखा है
तब मैंने अपने भीतर किसी, बच्चे को सिसकते देखा है

माना तू सबसे आगे है, मगर न बैठ यहाँ अभी जाना है
मैंने दो चार कदम पर मँज़िल से, लोगों को भटकते देखा है

धन, दौलत, रिश्ते, शोहरत, मेरी जान भी कोई चीज नहीं
मैंने इश्क़ की ख़ातिर ख़ुल्द से भी, आदम को निकलते देखा है

ये हुस्न ओ आब तो ठीक है लेकिन, गुरुर क्यूँ तुमको इस पर है
मैंने सूरज को हर शाम इसी, आसमाँ में ढ़लते देखा है

अपने घर की चारदिवारी में, अब लिहाफ में भी सिहरन होती है
जिस दिन से किसी को ग़ुर्बत में, सड़कों पर ठिठुरते देखा है

पहले छोटी छोटी खुशियों को, सब मिल कर साथ मनाते थे
अब छोटे छोटे आँगन में, रिश्तों को सिमटते देखा है

तुम आज भी मेरे अपने हो, शायद इन्सान हो और ज़माने के
वरना मौसमों से पहले हमने, अपनों को बदलते देखा है

किस बात पे तू इतराता है, यहाँ वक़्त से बड़ा तो कुछ भी नहीं
कभी तारों से जगमग आसमाँ में, सितारों को टूटते देखा है

(पूजा मेहरोत्रा ने प्रमोद राजपूत से ई-मेल के जरिए और व्हाट्सएप कॉल कर यह इंटरव्यू लिया है)

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