नई दिल्ली: भारत में अमेरिकी राजदूत का पद पिछले करीब दो साल से खाली पड़ा है और इसकी वजह यह है कि राष्ट्रपति जो बाइडेन की तरफ से इस पद के लिए चुने गए एरिक गार्सेटी की नियुक्ति को सीनेट ने रोक रखा है.
अमेरिकन फॉरेन सर्विस एसोसिएशन (एएफएसए) के डेटा का विश्लेषण करने पर दिप्रिंट ने पाया कि अमेरिका के 20 राजदूतों का नाम तय होने के बावजूद उनकी नियुक्ति के लिए सीनेट की पुष्टि का इंतजार किया जा रहा है और इसमें गार्सेटी का मामला सबसे ज्यादा लंबे समय (16 महीने) से लंबित है.
अमेरिकन फॉरेन सर्विस एसोसिएशन अमेरिकी विदेश सेवा का पेशेवर संघ है.
अमेरिका में हाल में संपन्न मध्यावधि चुनावों में ऊपरी सदन में डेमोक्रेट्स को मामूली बहुमत के बावजूद दिप्रिंट ने जिस पूर्व राजनयिक से बात की, वह गार्सेटी के नाम पर मुहर लगने को लेकर ज्यादा आशावादी नहीं थे.
कुछ लोगों का अनुमान है कि 2024 में राष्ट्रपति पद के कार्यकाल के अंत तक चार्ज डी अफेयर्स की ‘रोलओवर’ व्यवस्था ही जारी रह सकती है. खासकर यह देखते हुए कि जनवरी 2021 में पूर्व अमेरिकी राजदूत केनेथ जस्टर के हटने के बाद से वाशिंगटन की तरफ से नई दिल्ली में ऐसे पांच अंतरिम दूतों की नियुक्ति की गई है.
गार्सेटी का नाम आधिकारिक तौर पर जुलाई 2021 में तय किया गया था, लेकिन सीनेट ने उनकी नियुक्ति को मंजूरी नहीं दी. इसकी सबसे बड़ी वजह उन पर लगाया गया यह आरोप है कि उन्होंने सब कुछ जानने के बावजूद यौन उत्पीड़न और धमकाने के आरोपी अपने एक पूर्व सहयोगी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की थी. लॉस एंजिल्स के पूर्व मेयर हालांकि बार-बार इन दावों का खंडन करते रहे हैं.
बाइडेन की तरफ से गार्सेटी का नॉमिनेशन वापस लेना और कोई नया नाम तय करने की संभावना भी कम ही लगती है. सीनेट में डेमोक्रेट्स के बहुमत हासिल करने के एक हफ्ते बाद 15 दिसंबर को व्हाइट हाउस ने कहा कि गार्सेटी का नाम तय करना एक ‘प्राथमिकता’ थी और वह उनका समर्थन करना जारी रखेगा.
हालांकि, पूर्व भारतीय विदेश सचिव कंवल सिब्बल तर्क देते हैं कि नॉमिनेशन ‘प्राथमिकता का दर्जा खो चुका है.’
सिब्बल ने दिप्रिंट को बताया, ‘नाम को मंजूरी मिलने में पहले ही जितनी देरी हो चुकी है, उससे तो यही लगता है कि इसने प्राथमिकता का दर्जा खो दिया है. इसमें जितनी अधिक देरी होगी नियुक्त होने वाले राजदूत के पास दिल्ली में उतना ही कम समय होगा. किसी राजदूत को नियुक्ति के बाद संबंधित देश में अपने पैर जमाने में छह महीने का समय लगता है और राष्ट्रपति चुनावों का समय नजदीक आने के बीच नियुक्त किए जाने वाले राजदूतों को अपनी जिम्मेदारियों के साथ न्याय करने के बारे में दो-बार सोचना पड़ सकता है.’
उन्होंने कहा, ‘बहुत संभव है कि हम फिलहाल चार्ज डी अफेयर्स के रोलओवर को देखें.’
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किन देशों में नियुक्ति को नहीं मिली मंजूरी?
एएफएसए के आंकड़ों के मुताबिक, 20 देश ऐसे हैं जिनके लिए नामित अमेरिकी राजदूत की नियुक्ति को मंजूरी लंबित है. इनमें अजरबैजान, बहामास, बारबाडोस, काबो वर्डे, कंबोडिया, इक्वाडोर, गुयाना, भारत, कुवैत, मालदीव, मोंटेनेग्रो, नाइजर, नाइजीरिया, पापुआ न्यू गिनी और वानुअतु, रवांडा, सऊदी अरब, तिमोर-लेस्टे, तुर्कमेनिस्तान, संयुक्त अरब अमीरात और जिम्बाब्वे शामिल हैं.
इस वर्ष तय किए गए अन्य सभी नामों के विपरीत गार्सेटी एक मात्र ऐसा नॉमिनेशन हैं जिनकी पुष्टि 2021 से लंबित है.
राजदूतों की लंबित नियुक्ति वाली सूची में भारत एक मात्र एशियाई देश भी है. इस बीच, पाकिस्तान में इस साल अप्रैल में आधिकारिक तौर पर अमेरिकी राजदूत की नियुक्ति हुई, वहीं फरवरी में श्रीलंका, अक्टूबर में नेपाल और पिछले दिसंबर में बांग्लादेश को नए अमेरिकी राजदूत मिले.
एएफएसए के डेटा से यह भी पता चलता है कि 15 देशों के लिए कोई नाम तय नहीं किया गया है, जिनमें इटली, हैती, गैबॉन, इथियोपिया, इरिट्रिया, डोमिनिकन गणराज्य, क्यूबा, क्रोएशिया, कोलंबिया, बोलीविया, अफगानिस्तान, माइक्रोनेशिया, पलाऊ, सोलोमन द्वीप और सीरिया शामिल हैं.
इस तरह कुल 35 देश ऐसे हैं जहां अमेरिकी राजदूत का पद खाली पड़ा है.
इस हफ्ते, सीनेट ने लंबे समय से लंबित दो राजदूतों के नामों पर मुहर लगाई है, जिसमें रूस के लिए लिन एम ट्रेसी और ब्राजील के लिए एलिजाबेथ फ्रॉली बागले शामिल हैं.
नामांकन को मंजूरी देने की प्रक्रिया क्या है?
अमेरिकी संविधान के आर्टिकल-2 सेक्शन-2 के मुताबिक, राष्ट्रपति ‘सीनेट की सलाह और सहमति के साथ’ राजदूतों, सिविल अधिकारियों, मंत्रियों, कौंसुल और न्यायाधीशों को नामित करता है. इसका मतलब है कि नामांकन की सीनेट में वोटिंग के जरिये पुष्टि होनी चाहिए.
सीनेट समितियां दोनों के बीच एक सेतु का काम करती हैं. राष्ट्रपति की तरफ से नॉमिनेशन के बाद संबंधित सीनेट समितियों नामित व्यक्ति के बारे मे जांच करती है. राजदूत पद के लिए तय नामों में छानबानी का जिम्मा विदेश मामलों की सीनेट समिति का होता है.
समितियां सार्वजनिक सुनवाई करती हैं जिसके लिए नामित व्यक्तियों को निजी तौर पर उपस्थित रहना होता है. इसके बाद नाम को स्वीकारने, खारिज करने या किसी तरह की टिप्पणी के बिना ही समिति अपनी सिफारिश सीनेट को भेज देती हैं. समिति के पास सीनेट को नामित व्यक्ति की रिपोर्ट न भेजने का भी अधिकार है, यह एक तरह से समिति के स्तर पर ही नामांकन खारिज कर देने जैसा है.
अगर समिति किसी नामित व्यक्ति की नियुक्ति को मंजूरी देने की सिफारिश करती है, तो सीनेट में उस पर वोटिंग होगी और मंजूरी के लिए बहुमत वोट आवश्यक है.
वाशिंगटन पोस्ट ने हाल ही में एक संपादकीय में बताया कि रिपब्लिकन सीनेटरों की तरफ से नामांकन को सीनेट में रोके जाने के कारण बाइडेन के समय नामितों में एक नियुक्ति की पुष्टि का औसत समय (103 दिन) जॉर्ज डब्ल्यू बुश के समय में नामित लोगों की पुष्टि (48 दिनों) की तुलना में दोगुने से अधिक हो गया है.
यही वजह है कि बाइडेन को आंशिक तौर पर कुछ देशों के लिए किसी भी व्यक्ति को नामित न करने के लिए जिम्मेदार माना जा रहा है, जहां अभी भी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की तरफ से चुने गए अधिकारी ही अपनी सेवाएं दे रहे हैं.
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गार्सेटी के नाम पर क्यों नहीं लगाई गई मुहर?
गार्सेटी के मामले की बात करें तो सीनेट समिति ने इस साल जनवरी में ही उनके नाम की सिफारिश सीनेट को भेज दी थी. हालांकि, रिपब्लिकन सीनेटरों की तरफ से इसे रोके जाने के कारण सीनेट में अभी तक मतदान नहीं हुआ है. लॉस एंजिल्स टाइम्स ने बताया कि कुछ डेमोक्रेट सीनेटर भी इस नाम को लेकर ‘हिचकिचा’ रहे हैं.
पूर्व राजनयिक विजय नांबियार कहते हैं कि सीनेट में डेमोक्रेट्स के 51-49 का बहुमत हासिल होने के बावजूद गार्सेटी के नाम पर फिलहाल मुहर लगने की संभावना नहीं दिखती है.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि गार्सेटी का नाम केवल रिपब्लिकन पक्ष की चिंताओं के कारण नहीं अटका है बल्कि खुद उनकी अपनी पार्टी में भी इसे लेकर चिंताएं रही हैं. मेरी राय में उच्च सदन में डेमोक्रेटिक पार्टी को मामूली बहुमत के बावजूद उनके नाम को मंजूरी मिलने का मामला फिलहाल अटका ही रहने वाला है.’
यह पूछे जाने पर कि क्या 2024 में बाइडेन के राष्ट्रपति कार्यकाल के अंत तक नई दिल्ली में एक राजदूत होगा, नांबियार ने कहा कि उन्हें ऐसी को उम्मीद नजर नहीं आती है.
उन्होंने कहा, ‘चीन की चुनौती और यूक्रेन युद्ध ने भारत को अमेरिका के लिए और अधिक महत्वपूर्ण बना दिया है. अमेरिकी जानते हैं कि नई दिल्ली में अमेरिकी राजदूत की अनुपस्थिति के बावजूद द्विपक्षीय संबंध मजबूत हो रहे हैं. मुझे लगता है कि उन्हें य़ही व्यवस्था ज्यादा सही लग रही है. लेकिन मुझे नहीं लगता कि नई दिल्ली अभी तक इसे स्वीकारने के लिए तैयार है.’
12 दिसंबर को सीएनएन को दिए एक इंटरव्यू में गार्सेटी—जिनका लॉस एंजिल्स के मेयर के तौर पर कार्यकाल हाल ही में समाप्त हुआ है—अपने नॉमिनेशन को लेकर आशावादी नजर आए.
यह पूछे जाने पर कि सीनेट कब तक उनके नाम पर मुहर लगा देगी, गार्सेटी ने कहा, ‘मैंने इस पर कोई अनुमान लगाना बंद कर दिया है कि मंजूरी कब मिलेगी. लेकिन मैं इस बारे में काफी आशावादी हूं. मुझे रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स का अच्छा समर्थन है जिनकी नजर में यह पद एक बड़ी जिम्मेदारी है.’
(संपादनः शिव पाण्डेय । अनुवादः रावी द्विवेदी)
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