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Thursday, 21 November, 2024
होमदेश'2 जज समलैंगिक शादियों का फैसला नहीं कर सकते', BJP MP सुशील मोदी ने संसद में कहा

‘2 जज समलैंगिक शादियों का फैसला नहीं कर सकते’, BJP MP सुशील मोदी ने संसद में कहा

भाजपा नेता ने भारत में समलैंगिक विवाहों को वैध बनाने की मांग का विरोध करते हुए कहा कि या 'देश में व्यक्तिगत कानूनों के नाजुक संतुलन को पूरी तरह से नुकसान' पहुंचाएगा.

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नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी के सांसद ने राज्यसभा को सोमवार को बताया कि देश में समलैंगिक शादियों का मसला केवल अदालतों द्वारा तय नहीं हो सकता, बल्कि इसको लेकर संसद और समाज में बहस की जरूरत है.

बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा, 2 जज बैठकर इस तरह के सामाजिक मसले पर फैसला नहीं कर सकते.’ यह कहते हुए कि देश में समलैंगिक विवाहों को वैध बनाने की कोशिश ‘वाम-उदारवादी लोकतांत्रिक लोगों और एक्टिविस्टों द्वारा की जा रही है.

उन्होंने कहा कि यह ‘हमारी संस्कृति और लोकाचार के खिलाफ है’, और केंद्र को अदालत में अपना मामला मजबूती से पेश करने के लिए प्रोत्साहित किया.

भाजपा नेता ने इसकी वैधता का विरोध करते हुए कहा, ‘समलैंगिक विवाह देश में व्यक्तिगत कानूनों के नाजुक संतुलन के साथ तबाही का कारण बनेंगे.’

उन्होंने कहा कि परिवार, बच्चों और उनकी परवरिश जैसे मुद्दे विवाह की संस्था से संबंधित हैं, जैसे गोद लेने, घरेलू हिंसा, तलाक और वैवाहिक घर में रहने के लिए पत्नी का अधिकार.

पिछले सप्ताह अमेरिकी सीनेट के समान-सेक्स विवाहों को कानूनी दर्जा देने के फैसले का जिक्र करते हुए मोदी ने कहा कुछ ‘लेफ्ट-लिबरल, डेमोक्रेटिक लोग और एक्टिविस्ट्स चाहते हैं कि भारत पश्चिम का अनुसरण करे’

उन्होंने जापान का उदाहरण लिया, जो पश्चिम-प्रभुत्व वाले G7 समूह में एकमात्र एशियाई देश है, जिसने समलैंगिक विवाह का विरोध किया है.

मोदी ने कहा, एशिया में, ताइवान एकमात्र देश है जिसने समलैंगिक विवाहों को मान्य किया है.

मोदी ने कहा कि भारत में शादी को पवित्र माना जाता है और इसका मतलब केवल एक जैविक पुरुष और महिला के बीच संबंध है, जो देश के ‘सदियों पुराने सांस्कृतिक और सामाजिक मूल्यों, रीति-रिवाजों और परंपराओं’ में इसके महत्व को रेखांकित करता है.

भाजपा नेता ने आगे कहा कि हिंदू धर्म विवाह को दैवीय मानता है, यह कहते हुए कि मुस्लिम पर्सनल लॉ या किसी भी संहिताबद्ध वैधानिक कानून जैसे किसी भी असंहिताबद्ध व्यक्तिगत कानूनों में समलैंगिक विवाह को न तो मान्यता दी गई है और न ही स्वीकार किया गया है.

उन्होंने न्यायपालिका से ‘कोई भी निर्णय नहीं लेने के लिए कहा जो देश की संस्कृति, लोकाचार और मान्यताओं के खिलाफ है.’

समलैंगिक विवाह पर केंद्र सरकार का रुख

पिछले महीने, सुप्रीम कोर्ट ने विशेष विवाह अधिनियम के तहत समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने वाली याचिकाओं की जांच करने पर सहमति व्यक्त की और उन याचिकाओं पर केंद्र को नोटिस जारी किया है.

अब तक, सुप्रीम कोर्ट ने उसके पास लंबित तीन रिट याचिकाओं पर केंद्र को नोटिस जारी किया है. सुप्रीम कोर्ट के एक वकील ने दिप्रिंट को बताया कि विभिन्न उच्च न्यायालयों के समक्ष कई याचिकाएं हैं कि केंद्र कथित तौर पर केंद्र शीर्ष अदालत में स्थानांतरित करना चाहता है. चार समलैंगिक जोड़ों ने हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय से समलैंगिक विवाहों को मान्यता देने की मांग की है.

इसने भाजपा शासित केंद्र सरकार के साथ कानूनी टकराव का मंच तैयार कर दिया है, जिसने ऐसी शादियों को वैध बनाने से इनकार कर दिया है.

पूर्व में समलैंगिक विवाह का विरोध करते हुए कानून मंत्रालय ने कहा था कि अदालतों को संसद के दायरे में आने वाली कानून बनाने की प्रक्रिया से दूर रहना चाहिए.

पिछले साल, केंद्र ने दिल्ली उच्च न्यायालय में तर्क दिया था कि एक विवाह ‘पुराने रीति-रिवाजों’ पर निर्भर करता है और समलैंगिक व्यक्तियों के बीच यौन संबंध ‘पति, पत्नी और बच्चे की भारतीय परिवार इकाई अवधारणा के साथ तुलनीय नहीं है.’ यह कहते हुए कि भारत में, विवाह ‘एक जैविक पुरुष और एक जैविक महिला के बीच पवित्र संस्था है.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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