scorecardresearch
Wednesday, 20 November, 2024
होमदेशतालिबान इफेक्ट? भारत के ‘नॉन रेस्पोंसिव' रुख की वजह से काबुल के किले का पुनरुद्धार अधर में लटका

तालिबान इफेक्ट? भारत के ‘नॉन रेस्पोंसिव’ रुख की वजह से काबुल के किले का पुनरुद्धार अधर में लटका

आगा खान ट्रस्ट फॉर कल्चर के मुताबिक, नई दिल्ली ने 2020 में अफगानिस्तान के बाला हिसार प्रोजेक्ट के लिए लगभग एक मिलियन डॉलर देने का वादा किया था. लेकिन अब यह 'पूरी तरह से रडार से बाहर' है.

Text Size:

नई दिल्ली: पिछले अगस्त में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से भारत सरकार ने काबुल में एक प्राचीन किले ‘बाला हिसार’ के जीर्णोद्धार कार्य को आगे बढ़ाने को लेकर ‘गैर-जिम्मेदार’ रवैया अपनाया हुआ है. प्रोजेक्ट से जुड़े संगठन को अपने बलबूते पर काम करने के लिए अकेला छोड़ दिया है. दिप्रिंट को यह जानकारी मिली है.

दरअसल, अगस्त 2020 में भारत और तत्कालीन अशरफ गनी के नेतृत्व वाली अफगानिस्तान सरकार ने 65 हेक्टेयर विरासत स्थल की बहाली के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे. इसमें नई दिल्ली की तरफ से प्रोजेक्ट के पहले चरण के लिए लगभग एक मिलियन डॉलर देने का वादा किया गया था. उस समय भारत सरकार ने कहा था कि वह अफगानिस्तान की सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है.

दिप्रिंट ने नवंबर 2020 में जानकारी दी थी कि यह प्रोजेक्ट अफगानिस्तान के पहले पुरातात्विक पार्क के रूप में काम करेगा और 2022 तक इसे पूरा कर लिया जाएगा.

आगा खान ट्रस्ट फॉर कल्चर (AKTC) अफगानिस्तान इस योजना को क्रियान्वित कर रहा है. उसके मुताबिक, फिलहाल यह प्रोजेक्ट भारत सरकार की ‘अनिच्छा’ के चलते अधर में लटका हुआ है और इसे पूरा करने में काफी लंबा समय लग जाएगा.

AKTC अफगानिस्तान के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अजमल मैवंडी ने दिप्रिंट को बताया, ‘पिछले अगस्त से भारत सरकार प्रोजेक्ट पर आगे बढ़ने में अनिच्छुक दिखाई दे रही है. वे पूरी तरह से रडार से बाहर हो गए हैं. उनके समर्थन के बिना हम आगे नहीं बढ़ पा रहे है.’

उन्होंने कहा, ‘हमें उम्मीद है कि इस स्थिति को सुलझाया जा सकता है. भारतीय अधिकारियों ने अफगान विरासत के संरक्षण में अपने निवेश को फिर से शुरू करने का फैसला किया है.’

एकेटीसी का यह दावा इन खबरों के बीच आया है जिसमें तालिबान ने कहा है कि भारत युद्धग्रस्त देश में 20 रुकी हुई योजनाओं को फिर से शुरू करेगा. अतीत में भारत और अफगानिस्तान ने संयुक्त रूप से काबुल के स्टोर पैलेस के पुनरुद्धार पर काम किया था. इसका उद्घाटन 2016 में किया गया था.

दिप्रिंट ने इन रिपोर्टों और एकेटीसी के दावे के बारे में प्रतिक्रिया के लिए विदेश मंत्रालय (एमईए) से संपर्क किया लेकिन उसने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.

‘भारत के विपरीत सक्रिय जुड़ाव दिखा रहा है जर्मनी’

AKTC एक बड़े गैर-लाभकारी संस्थान आगा खान डेवलपमेंट नेटवर्क (AKDN) की एक एजेंसी है. यह अफगानिस्तान में 150 से ज्यादा प्रोजेक्ट पर काम कर चुकी है. इसमें काबुल में बाला हिसार गढ़ में दो चल रही योजनाएं भी शामिल हैं. वहीं साथ ही हेरात में गौहरशाद के मकबरे की पांचवीं मीनार को ढहने से रोकने के लिए काम में भी लगी हुई है.

गैर-लाभकारी संगठन के अनुसार, भारत सरकार की ‘अनिच्छा’ उन अन्य देशों के व्यवहार के विपरीत है, जो अफ़ग़ानिस्तान में परियोजनाओं को वित्त पोषित कर रहे हैं.

मैवंडी ने दिप्रिंट से कहा, ‘काबुल रिवरफ्रंट ट्रांसफॉर्मेशन प्रोजेक्ट एक और प्रमुख प्रयास था, जो दुर्भाग्य से रुक गया है. प्रोजेक्ट को वित्त पोषित करने वाली जर्मन सरकार ने पिछले अगस्त में इसे कुछ समय के लिए स्थगित करने का फैसला किया था. लेकिन हम नियमित रूप से उनके संपर्क में हैं. उन्होंने सैकड़ों लोगों को रोजगार देने वाली एक सक्रिय परियोजना को स्थगित करने से संबंधित कई मुद्दों को हल करने में सक्रिय भागीदारी दिखाई है.’

अगस्त 2018 में, जर्मन सरकार ने काबुल रिवरफ़्रंट ट्रांसफॉर्मेशन (KARIT) प्रोजेक्ट के लिए लगभग 18 मिलियन डॉलर देने का वादा किया था.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(अनुवादः संघप्रिया मौर्य)


यह भी पढ़ेंः अफगानिस्तान शासन के खिलाफ दुनिया में बढ़ती हताशा के बीच एंटी-तालिबान ग्रुप के साथ खड़ा हो रहा है अमेरिका


share & View comments